ढुंगा सकरा में बडोला बंधुओं की भव्यतम तिबारी में उत्कृष्टतम कला अलंकरण दर्शन
House wood Carving Art of Udaypur Patti (Yamkeshwar) -12
गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -
Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya 40
दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 40
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गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 66
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 66
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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अब तक समीक्षित तिबारियों में ढुंगा सकरा गांव में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी काष्ठ कला अलंकरण दृष्टि से सबसे उत्कृष्ट तिबारी है। भव्य है बड़ी है और कई तरह की कलाएं /अलंकरण बडोला बंधुओं की तिबारी में हैं। अब यह भव्य तिबारी हर्ष मोहन बडोला की तिबारी कहलायी जाती है।
ढुंगा उदयपुर /यमकेश्वर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण गाँव है जहां बडोला जाती का संख्या अधिक है , ढुंगा तीन हैं अकरा , ढुंगा पल्ला सकरा ढुंगा , वल्ली सकरा ढुंगा। ढांगू , डबराल स्यूं लिए ढुंगा का अर्थ था रिस्तेदारी हो गयी तो उच्च गुणवत्ता के उड़द , काले सफेद लुब्या /किंडनी बीन्स की दाल बीज व ढुंगा गए तो दाल के संग कटोरी भर घी। याने अन्य क्षेत्रवासियों की दृष्टि में ढुंगा याने कृषि व पशु पालन में समृद्ध गाँव।
कहा जाता है कि बड़ोली एकेश्वर से बडोला ढुंगा में बसे व यहाँ से उदयपुर के अन्य क्षेत्रों में ठांगर , पण चूर, जड़सारी आदि ही नहीं बेस अपितु ढांगू में ठंठोली में भी बेस।
सम्प्रति तिभित्या म, दुखंड मकान में छह कम तल मंजिल व पहली मंजिल में है (याने तीन बंद कमरे व बाहर कमरों का मकान किन्तु तिबारी हेतु तीन कमरों को बरामदा में बदल दिया गया है। आम तिबारी चार स्तम्भों व तीन मोरियों की तिबारी देखि गयीं किन्तु ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं (वर्तमान हर्ष मोहन बडोला ) की तिबारी में छह स्तम्भ हैं व पांच द्वार /मोरियां /खोळियां हैं। अब तक समीक्ष्य तिबारियों से विलक्षण तिबारी हुयी ढुंगा सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी।
मकान पत्थर के छज्जों वाला है , दास भी पत्थर के ही हैं। पत्थर की देळी /देहरी ऊपर छह के छह स्तम्भ हैं , ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी में स्तम्भ ालकरण भी क्षत्र की तिबारियों से भिन्न है। क्षेत्र की अन्य स्तम्भ आधार कुम्भी अधोगामी पदम् दल (descending lotus flower petals ) से अलंकृत होता है किन्तु बडोला की तिबारी में स्तम्भ कुम्भी में भिन्न प्रकार का पत्ती अलंकरण हुआ हो इस तिबारी को अन्य तिबारियों से ही देता है।
स्तम्भ में दोनों डीले (round wood plate ) भी अन्य तिबारियों जैसे ही हैं , आधार में कुम्भी के बाद डीला व फिर उर्घ्वगामी पदम् दल की शैली भी क्षेत्रीय शैली से मिलती जुलती है। किन्तु स्तम्भ के ऊपरी सिरे याने डीले के ऊपर कुम्भी/पथोड़ा आकृति कमल दल से नहीं अपितु फूल व पत्ती मिश्रित चित्रकारी से अलंकृत है जो ढुंगा सकरा में ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी को दक्षिण गढ़वाल की अभी तक विवेच्य तिबारियों से अलग कर देने में सक्षम है।
ऊपर प्रत्येक स्तम्भ शीर्ष में थांत/ bat blade नुमा काष्ठ आकृति शुरू होती है जो छत की आधार पट्टिकाओं के नीचे की पट्टिका से मिल जाता है. थांत पट्टिका से काष्ठ छिप्पटी /ब्रैकेट /bracket निकले हैं जिनमे उत्कृष्ट कला उत्कीर्ण हुयी है। व यहीं से स्तम्भ से तोरण /मंडन अर्ध चाप /arch बनाने की पट्टिका भी शुरू होती है जो दुसरे स्तम्भ की पट्टिका से मिल सम्पूर्ण अर्ध चाप या तोरण बनाती है।
थांत पट्टिका से निकले छिप्पटी में पक्षी व पुष्प /पात /flowers leaves की प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है याने इस छिपट्टी /ब्रैकेट /wood bracket में प्राकृतिक , ज्यामितीय व मानवीय या पशु पक्षी युक्त कलाओं /अलंकरणों का सम्मिश्रण हुआ है जो कला दृष्टि से अभिनव माना जाता है। पक्षी तोता या मोर की छवि प्रदान करता है व पंख में फूल पत्तियों का अलंकरण है।
प्रत्येक ब्रैकेट /छिपट्टी ऊपर छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं व छत की आधार काष्ठ पट्टिका से लटकते शंकु नुमा आकृतियां तिबारी को भव्य छवि perception प्रदान करने में सफल सिद्ध हुए हैं। तोरण शीर्ष व छत आधार पट्टिकाके मध्य पट्टिका में भी प्राकृतिक ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। ऐसे ही शंकु सौड़ ढांगू में शेर सिंह नेगी की तिबारी में भी मिले हैं।
कला विदों की स्पष्ट राय है कि ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं , अजमेर , लंगूर व शिला पट्टियों में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (पक्षी) का सम्मिश्रित अलंकरण की दृष्टि से ब्रह्मा नंद , परमानंद , सोहन लाल बडोला बंधुओं की तिबारी भव्यतम व उत्कृष्टतम तिबारियों में से एक है व यह तिबारी कई विशेषता लिए भी है जो क्षेत्र की अन्य तिबारियों में नहीं मिलते हैं ua utne haavi nhi hai ।
तिबारी का निर्माण सम्भवतया 1930 के लगभग हुआ होगा व कलाकार तो आयतित ही रहे होंगे। कहा जाता है कि कलाकार श्रीनगर या मथि गढ़वाल से ही आये थे।
सूचना व फोटो आभार : शिव प्रसाद बडोला , ढुंगा , सकरा
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