Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में
These are Pride of Uttarakhand - उत्तराखंड के गौरव
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
गोविंद वल्लभ पंत
गोविंद वल्लभ पंत (सितम्बर १०, १८८७ - मार्च ७, १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंतजी का जन्म अल्मोडा जिले के खोत (khoot) नामक स्थान मे हुआ था। सरदार वल्लभ भाई पटेल के निधन के बाद वे भारत के गृहमंत्री बने। हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमीनदारी प्रथा को खत्म कराने मे उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमंत्रित्व काल में आरम्भ किया गया।
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Nobel Prize Winner Dr राजेन्द्र कुमार पचौरी
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भारतीय पर्यावरणविद राजेन्द्र कुमार पचौरी ( जन्म- २० अगस्त १९४० -- ) की अध्यक्षता वाले आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) को इस साल नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार आईपीसीसी को अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ संयुक्त रूप से मिला है।
आर.के. पचौरी का जन्म 20 अगस्त 1940 को नैनीताल में हुआ था। 1981 में वह टेरी (द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट) के डाइरेक्टर बने। 2001 में पचौरी ने इस संस्थान के डाइरेक्टर जनरल का पद संभाला।
अब तक विविध सब्जेक्ट्स पर 21 किताबें लिख चुके पचौरी 20 अप्रैल 2002 को आईपीसीसी के अध्यक्ष चुने गए। तबसे वह इस पद पर कार्य कर रहे हैं। अब तक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े तमाम संस्थानों और फोरम में पचौरी ने एक्टिव भूमिका निभाई है। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके महत्वूपर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया।
डीएलडब्ल्यू वाराणसी से अपने करियर की शुरुआत करनेवाले राजेन्द्र कुमार पचौरी ने अमेरिका के करोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी, रेलिग से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग और इकोनॉमिक्स में डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल की है। 1974 से 1975 तक को वह इसी यूनिवर्सिटी में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रफेसर रहे।
अमेरिका से भारत लौटने के बाद पचौरी ने कई महत्वूपर्ण सरकारी पदों पर काम किया। जनवरी 1999 में वह इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के अध्यक्ष बने और तीन साल तक इस पद पर रहे। पर्यावरण से जुड़े तमाम मुद्दो पर इनके बहुत सारे आर्टिकल देश-विदेश के महत्वपूर्ण न्यूजपेपर्स और साइंस मैगजीन में छप चुके हैं।
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गोविन्द चन्द्र पाण्डे
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गोविन्द चन्द्र पाण्डे उत्तराखण्ड प्रान्त के मूल निवासी हैं। उनका जन्म १९२३ में प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ। वह एक लेखक और भारत के प्राचीन इतिहास के प्रमुख विद्वान हैं। उन्होंने वेदकाल और बौद्धकाल पर बहुत कार्य किया है, और इन विषयों पर कई ग्रन्थ लिखे हैं। वह इतिहास, संस्कृति और दर्शन के सुविख्यात चिन्तक हैं।
वह राजस्थान एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के आचार्य और विश्वविद्यालय-कुलपति रह चुके हैं। वह इलाहाबाद संग्रहालय समिति और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के अध्यक्ष रहे हैं।
वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और विज्ञान की अधुनातन-सामग्री के विश्लेषन में आधुनिक पाश्चात्य एवं पारम्मपरिक दोनों प्रकार की व्याख्याओं की समन्वित समीक्षा वैदिक संस्कृति में की गयी है।
ग्रन्थ
* बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास
* अपोहसिद्धि
* न्यायबिन्दु
* मूल्य मीमांसा
* वैदिक संस्कृति
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शैलेश मटियानी
शैलेश मटियानी (१४ अक्तूबर १९३१-२४ अप्रैल २००१) का जन्म अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना गांव में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था तथा आरंभिक वर्षों में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखा करते थे। मटियानी जी जब बारह वर्ष (१९४३) के ही थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उस समय वे पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। चाचाओं के संरक्षण में परिस्थितियां कुछ ऐसी विलोम हो गई कि उन्हें पढ़ाई छोड़ बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का नाम करना पड़ा। इसी दौरान पांच सालों के बाद वे किसी तरह पढ़ाई शुरू करके मिडिल तक पहुँचे और काफी विकट परिस्थितियों के बावजूद हाईस्कूल पास कर गए। लेखक बनने की उनकी इच्छा बड़ी जिजीविषापूर्ण थी।
कहानी संग्रह
मटियानी जी में बचपन से ही एक लेखक बनने की धुन थी जो विकट से विकटतर परिस्थितियों के बावजूद न टूटी। १९५० से ही उन्होंने कविताएं, कहानियां लिखनी शुरू कर दीं, परंतु अल्मोड़ा में उन्हें उपेक्षा ही मिली। हालांकि मटियानी जी नेे आरंभिक वर्षों में कुछ कविताएं भी लिखी, परंतु वे मूलतः एक कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। अगर विश्वस्तरीय प्रमुख कहानियों की सूची बनाई जाए तो उनकी दस से ज्यादा कहानियां सूची में शामिल होंगी। उनकी आरंभिक पंद्रह-बीस कहानियां 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में छपी थी। उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियां'(१९६१) के नाम से संग्रहित हैं। मटियानी जी की कालजयी कहानियां में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख', 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य', और 'मिट्टी' आदि प्रमुख हैं। 'डब्बू मलंग' एक दीन-हीन व्यक्ति की कथा है जिसे कुछ गुंडे पीर घोषित कर लोगों को ठगते हैं। 'रहमतुल्ला' कहानी सांप्रदायिक स्थितियों पर कठोर व्यंग्य है। 'चील' मटियानी जी की आत्मकथात्मक कहानी है जिसमें भूख की दारूण स्थितियों का चित्रण है। 'दो दुखों का एक सुख' मैले-कुचैले भिखाड़ियों की जीवन की विलक्षण कथा है। 'अर्द्धांगिनी' दांपत्य सुख की बेजोड़ कहानी है। एक कहानीकार के रूप में वे नई कहानी आंदोल के सबसे प्रतिबद्ध कहानीकार हैं। जिन्होंने बजाय किसी विदेशी प्रभाव के अपने मिट्टी की गंध और विशाल जीवन अनुभव पर अपनी कहानी रची है। 'दो दुखों का एक सुख'(१९६६), 'नाच जमूरे नाच', 'हारा हुआ', 'जंगल में मंगल'(१९७५), 'महाभोज'(१९७५), 'चील' (१९७६), 'प्यास और पत्थर'(१९८२), एवं 'बर्फ की चट्टानें'(१९९०) उनके महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं। 'सुहागिनी तथा अन्य कहानियां'(१९६७), 'पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां'(१९७३), 'माता तथा अन्य कहानियां'(१९९३), 'अतीत तथा अन्य कहानियां', 'भविष्य तथा अन्य कहानियां', 'अहिंसा तथा अन्य कहानियां', 'भेंड़े और गड़ेरिए' उनका अन्य कहानी संग्रह है।
निबंध
आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषित-दलित वर्ग उनकी कहानियों के केन्द्रीय पात्र हैं। लेकिन काफी संख्या में उनके संस्मरण और निबंध संग्रह भी प्रकाशित हैं। 'मुख्य धारा का सवाल' , 'कागज की नाव'(१९९१), 'राष्ट्रभाषा का सवाल' , 'यदा कदा', 'लेखक की हैसियत से' , 'किसके राम कैसे राम'( १९९९), 'जनता और साहित्य' (१९७६), 'यथा प्रसंग' , 'कभी-कभार'(१९९३) , 'राष्ट्रीयता की चुनौतियां'(१९९७) और 'किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब'(१९९५) उनके संस्मरणों तथा निबंधों के संग्रह हैं। पत्रों का संग्रह 'लेखक और संवेदना'(१९८३) में संकलित है। मटियानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, देवरिया केडिया सम्मान, साधना सम्मान और लोहिया सम्मान दिया गया। उनकी कृतियों के कालजयी महत्व को देखते हुए प्रेमचंद के बाद मटियानी का नाम लिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
उपन्यास
मटियानी जी ने कई उपन्यास भी लिखे हैं। 'हौलदार'(१९६१), 'चिट्ठी रसेन'(१९६१), 'मुख सरोवर के हंस', 'एक मूठ सरसों'(१९६२), 'बेला हुई अबेर'(१९६२), 'गोपुली गफूरन'(१९६२), 'नागवल्लरी', 'आकाश कितना अनंत है' आदि उपन्यासों में वे उत्तराखंड के जीवन और अनुभव को रचना क्षेत्र के रूप में चुनते हैं। 'बोरीबली से बोरीबंदर', बंबई की वेश्याओं के जीवन पर आधारित एक आर्थिक उपन्यास है। 'भागे हुए लोग', 'मुठभेड़'(१९९३), 'चंद औरतों का शहर'(१९९२) पूरब के व्यापक हिन्दी क्षेत्र पर लिखा उपन्यास है। गरीबों के दमन-शोषण पर आधारित 'मुठभेड़' के लिए उन्हें हजारीबाग, बिहार के फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार 1984 से सम्मानित किया गया। 'किस्सा नर्मदा बेन गंगू बाई', 'सावित्री', 'छोटे-छोटे पक्षी', 'बावन नदियों का संगम', 'बर्फ गिर चुकने के बाद', 'कबूतरखाना'(१९६०), 'माया सरोवर' (१९८७) और 'रामकली' उनके अन्य उपन्यास हैं।
Devbhoomi,Uttarakhand:
सुमित्रानंदन पन्त
आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुमित्रानंदन पन्त जी ,छायावाद के प्रमुख स्तम्भ तथा सुकुमार कवि के रूप में प्रसिद्ध है। सुमित्रानंदन पन्त जी जन्म २० मई ,१९०० को अल्मोडा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। जन्म के ६ घंटे बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया ।
पन्त जी के पिता पंडित गंगादत्त पन्त धार्मिक ब्राहमण थे और कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष तथा बड़े जमींदार थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोडा में हुई। इसके बाद काशी के जयनारायण हाई स्कूल से आपने मैट्रिक परीक्षा पास की और और उच्च शिक्षा के लिए म्योर कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया,किंतु बाद में पढाई छोड़ दी और इसके बाद घर पर ही संस्कृत तथा बंगला का अध्ययन किया।
शिक्षा काल से ही इनमे काव्य प्रतिभा जागृत हो गई थी और कविताये रचा करते थे। कालांतर में इनका परिचय सरोजनी नायडू ,रविंद्रनाथ ठाकुर तथा अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ।
सन १९५० में आप आल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और उसके बाद सात बर्षो तक प्रत्यक्ष रूप से रेडियो से सम्बद्ध रहे । आपको "कला और बूढा चाँद" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार ,"लोकायतन" पर सोबियत भूमि नेहरू पुरस्कार तथा "चिदंबरा" पर "भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार" प्राप्त हुआ।
भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। माँ भारती का यह अमर गायक २८ दिसंबर ,१९७७ को इस संसार से बिदा हो गया।
पन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे। सुमित्रानंदन पन्त जी सुकोमल भावनाओ के कवि है। उनमे निराला जैसी संघर्षमयता और पौरुष नही है।
इनके काव्य में अनेकरूपता है किंतु वे अपनी सौन्दर्य-दृष्टि और सुकुमार उदात्त कल्पना के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है। निसंग्रत वे प्रकृति के सुकुमार कवि है। प्रकृति के साथ उनकी प्रगाढ़ रागाताम्कता शैशव से हो गई थी। इन्होने प्रकृति में अनेक रूपों की कल्पना की है।
इन्होने प्रकृति के अनेक सौदर्यमय चित्र अंकित किए है और इसके साथ उनके उग्र रूप का भी चित्रण किया है किंतु इनकी वृत्ति मूलतः प्रकृति के मनोरम रूप वर्णन में ही रमी है। पन्त काव्य की रेखाए चाहे टेढी- मेढ़ी है, किंतु उनका विकासक्रम सीधा है। इस क्रम में हम पन्त को छायावादी ,प्रगतिवादी ,समन्वय वादी एवं मानववादी आदि रूप में देख सकते है।
पन्त जी सन १९३३ से लगभग छायावादी से प्रगतिवादी बन गए। युगांत में आकर पन्त में छायावादी रूप का अंत हो जाता है। ग्राम्या,युगवाणी इनकी प्रगतिवादी रचनाये है। इसके बाद इनकी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण उत्तरोतर विकसित होता गया। इसके अनंतर इनके समन्वयवादी रूप को निहारा जा सकता है :
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