Author Topic: These are Pride of Uttarakhand - उत्तराखंड के गौरव  (Read 10485 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,

Uttarakhand has been a favorite land of Saints (Rishi Muni) to attain salvation, peace and bone for public welfare. Be it Rishi Bhagirath who did penance to bring Ganga in earth or a place for Pandava who spent their exile period here. Even according the Ramanayana, Sita last entered in soil in this state only (mansar pauri garwal).

In addition, this soil has produced many great personalities who not only brought pride for state but also for entire nation.

We will give information of such great personalities who born in Dev Bhoomi Uttarakhand.

You may also join us in providing the subject information under this thread.

Regards,

M S Mehta 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


माधो सिह भंडारी
---------------------


माधो सिंह भंडारी का जनम १५९५ के आसपास टिहरी जनपद के मलेथा ग्राम में हुवा था ! इनके पिता लखनपुर के निवासी वीर सोंनवाण कालो भंडारी थे ! तत्कालीन गढ़वाल नरेश ने इनकी बुद्धिमता व वीरता से प्रभावित होकर एक विस्त्रृत क्षेत्र जागीर के रूप में इन्हें भेट की थी!


माधो का गाव पानी के आभाव में मोटा आनाज पैदा करने में सक्षम था ! मलेथा गाव के दक्षिण पश्चिम  की ओर पहाड़ का एक भाग अलकनंदा नदी तक पहुच जाता है ओर उसके दुसरे छोर से एक नदी बहकर नीचे अलकनंदा में मिल जाती थी !
माधो ने विचार किया कि किसी प्रकार से पर्वतीय नदी के मध्य आने वाले निचले भाग में सुरुंग निर्माण की जाय नदी का पानी मलेथा गाव तक पहुच जाय !


माधो सिह भंडारी ने इस असंभव काम को संभव कर दिखाया और अपने गाव कि भूमि को उपजावो किया ! सुरंग के निर्माण के दौरान मादो ने अपने पुत्र को भी खोया ! मादो सिंह भंडारी के मिर्त्यु को ३५० साल से अधिक हो गए परन्तु यह वीर आज भी गढ़वाल निवासियों के लिए किसी देवीय शक्ति के घोतक से कम नहीं है ! इस वीर पुरुष का स्थायी समारक "मलेथा कि गूल" के रूप में विद्यमान है !

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
Sri Dev Suman, श्री देव सुमन
===================================


श्रीदेव सुमन वो, वीर है उस पुण्य भूमि का, जिसको मानसखंड , केदारखंड, उत्तराखंड कहा जाता है, स्वतंत्रता संग्रामी श्री देब सुमन किसी परिचय के मोहताज़ नही हैं, पर आज की नई पीड़ी को उनके बारे में, उनके अमर बलिदान के बारे में पता होना चाहिए, जिससे उन्हें फक्र हो इस बात पर की हमारी देवभूमि में सुमन सरीखे देशभक्त हुए हैं।

सुमन जी का जनम १५ मई १९१५ या १६ में टिहरी के पट्टी बमुंड, जौल्ली गाँव में हुआ था, जो ऋषिकेश से कुछ दूरी पर स्थित है। पिता का नाम श्री हरी दत्त बडोनी और माँ का नाम श्रीमती तारा देवी था, उनके पिता इलाके के प्रख्यात वैद्य थे। सुमन का असली नाम श्री दत्त बडोनी था। बाद में सुमन के नाम से विख्यात हुए। पर्ख्यात गाँधी- वादी नेता, हमेशा सत्याग्रह के सिधान्तों पर चले।

पूरे भारत एकजुट होकर स्वतंत्रता की लडाई लड़ रहा था, उस लडाई को लोग दो तरह से लड़ रहे थे कुछ लोग क्रांतिकारी थे, तो कुछ अहिंसा के मानकों पर चलकर लडाई में बाद चढ़ कर भाग ले रहे थे, सुमन ने भी गाँधी के सिधान्तों पर आकर लडाई में बद्चाद कर भाग लिया। सुन्दरलाल बहुगुणा उनके साथी रहे हैं जो स्वयं भी गाँधी वादी हैं।


परजातंत्र का जमाना था, लोग बाहरी दुश्मन को भागने के लिए तैयार तो हो गए थे पर भीतरी जुल्मो से लड़ने की उस समय कम ही लोग सोच रहे थे और कुछ लोग थे जो पूरी तरह से आजादी के दीवाने थे, शायद वही थे सुमन जी, जो अंग्रेजों को भागने के लिए लड़ ही रहे थे साथ ही साथ उस भीतरी दुश्मन से भी लड़ रहे थे। भीतरी दुश्मन से मेरा तात्पर्य है उस समय के क्रूर राजा महाराजा।

 टिहरी भी एक रियासत थी, और बोलंदा बद्री (बोलते हुए बद्री नाथ जी) कहा जाता था राजा को। श्रीदेव सुमन ने मांगे राजा के सामने रखी, और राजा ने ३० दिसम्बर १९४३ को उन्हें गिरफ्तार कर दिया विद्रोही मान कर, जेल में सुमन को भरी बेडियाँ पहनाई गई, और उन्हें कंकड़ मिली दाल और रेत मिले हुए आते की रोटियां दी गई, सुमन ३ मई १९४४ से आमरण अन्न शन शुरू कर दिया, जेल में उन्हें कई अमानवीय पीडाओं से गुजरना पड़ा, और आखिरकार जेल में २०९ दिनों की कैद में रहते हुए और ८४ दिनों तक अन्न शन पर रहते हुए २५ जुलाई १९४४ को उन्होंने दम तोड़ दिया।

 उनकी लाश का अन्तिम संस्कार न करके भागीरथी नदी में बहा दिया । मोहन सिंह दरोगा ने उनको कई पीडाएं कष्ट दिए उनकी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए कई बार पर्यास किया पर सफल नही हुआ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

मुकुन्द राम बडथ्वाल

ज्योतिष शाश्त्र एव महान संस्कृत कवि मुकुन्द राम बडथ्वाल का नाम गढ़वाल के खंड गाव में ९ नवम्बर १८८७ को हुवा था ! पिता रघुवर दत्त संस्कृत एव ज्योतिष कर्मकांड के प्रकांड विद्वान थे ! प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल व लौहार में प्राप्त कर साहित्य साधना पत्रिक गाव खंड व देव प्रयाग के पूर्ण की !

प्राचीन संस्कृत शाश्त्रो के महान ज्ञाता एव ज्योतिष शाश्त्र का पंडित बाराह मिहिर के समक्ष ज्ञान अर्जित करने के लिए श्री बडथ्वाल को देवैग्य के नाम से भी जाना जाता है ! उन्होंने ज्योतिष शाश्त्र में एक लाख से अधिक शलोक लिखने का यश प्राप्त किया ! जिसमे २२ ग्रन्थ प्रकाशित हुए !

भारतीय ज्योतिष अनसंधान संस्थान के अभिनव बाराह मिहिर की उपाधि से उन्हें विभूषित किया ! ३० सितम्बर १९७९ को ज्योतिष शाश्त्र का यह प्रकांड विद्वान गंगा नदी के तट पर निमिर्त मुकुंद आश्रम में स्वर्गवासी हो गया !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
सुन्दरलाल बहुगुणा
 ------------

चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म ९ जनवरी, सन १९२७ को देवों की भूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ । प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए ।

सन १९४९ में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए । दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया ।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की । सन १९७१ में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए ।

बहुगुणा के 'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-


   क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार ।
   मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार ।


सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है ।बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड आफ नेचर नामक संस्था ने १९८० में इनको पुरस्कृत भी किया । इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।

पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' बन गया है ।


http://hi.wikipedia.org

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

गोविंद वल्लभ पंत

गोविंद वल्लभ पंत (सितम्बर १०, १८८७ - मार्च ७, १९६१) प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे। अपने संकल्प और साहस के मशहूर पंतजी का जन्म अल्मोडा जिले के खोत (khoot) नामक स्थान मे हुआ था। सरदार वल्लभ भाई पटेल के निधन के बाद वे भारत के गृहमंत्री बने। हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमीनदारी प्रथा को खत्म कराने मे उनका महत्वपूर्ण योगदान था। भारत रत्न का सम्मान उनके ही गृहमंत्रित्व काल में आरम्भ किया गया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Nobel Prize Winner Dr राजेन्द्र कुमार पचौरी
========================

भारतीय पर्यावरणविद राजेन्द्र कुमार पचौरी ( जन्म- २० अगस्त १९४० -- ) की अध्यक्षता वाले आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) को इस साल नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार आईपीसीसी को अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ संयुक्त रूप से मिला है।

आर.के. पचौरी का जन्म 20 अगस्त 1940 को नैनीताल में हुआ था। 1981 में वह टेरी (द एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट) के डाइरेक्टर बने। 2001 में पचौरी ने इस संस्थान के डाइरेक्टर जनरल का पद संभाला।

अब तक विविध सब्जेक्ट्स पर 21 किताबें लिख चुके पचौरी 20 अप्रैल 2002 को आईपीसीसी के अध्यक्ष चुने गए। तबसे वह इस पद पर कार्य कर रहे हैं। अब तक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े तमाम संस्थानों और फोरम में पचौरी ने एक्टिव भूमिका निभाई है। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके महत्वूपर्ण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया।

डीएलडब्ल्यू वाराणसी से अपने करियर की शुरुआत करनेवाले राजेन्द्र कुमार पचौरी ने अमेरिका के करोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी, रेलिग से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग और इकोनॉमिक्स में डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल की है। 1974 से 1975 तक को वह इसी यूनिवर्सिटी में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रफेसर रहे।

अमेरिका से भारत लौटने के बाद पचौरी ने कई महत्वूपर्ण सरकारी पदों पर काम किया। जनवरी 1999 में वह इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के अध्यक्ष बने और तीन साल तक इस पद पर रहे। पर्यावरण से जुड़े तमाम मुद्दो पर इनके बहुत सारे आर्टिकल देश-विदेश के महत्वपूर्ण न्यूजपेपर्स और साइंस मैगजीन में छप चुके हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


गोविन्द चन्द्र पाण्डे
=========

गोविन्द चन्द्र पाण्डे उत्तराखण्ड प्रान्त के मूल निवासी हैं। उनका जन्म १९२३ में प्रयाग (इलाहाबाद) में हुआ। वह एक लेखक और भारत के प्राचीन इतिहास के प्रमुख विद्वान हैं। उन्होंने वेदकाल और बौद्धकाल पर बहुत कार्य किया है, और इन विषयों पर कई ग्रन्थ लिखे हैं। वह इतिहास, संस्कृति और दर्शन के सुविख्यात चिन्तक हैं।

वह राजस्थान एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के आचार्य और विश्वविद्यालय-कुलपति रह चुके हैं। वह इलाहाबाद संग्रहालय समिति और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के अध्यक्ष रहे हैं।

वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और विज्ञान की अधुनातन-सामग्री के विश्लेषन में आधुनिक पाश्चात्य एवं पारम्मपरिक दोनों प्रकार की व्याख्याओं की समन्वित समीक्षा वैदिक संस्कृति में की गयी है।

ग्रन्थ

    * बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास
    * अपोहसिद्धि
    * न्यायबिन्दु
    * मूल्य मीमांसा
    * वैदिक संस्कृति

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

शैलेश मटियानी

 

शैलेश मटियानी (१४ अक्तूबर १९३१-२४ अप्रैल २००१) का जन्म अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना गांव में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था तथा आरंभिक वर्षों में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखा करते थे। मटियानी जी जब बारह वर्ष (१९४३) के ही थे तभी उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उस समय वे पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। चाचाओं के संरक्षण में परिस्थितियां कुछ ऐसी विलोम हो गई कि उन्हें पढ़ाई छोड़ बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का नाम करना पड़ा। इसी दौरान पांच सालों के बाद वे किसी तरह पढ़ाई शुरू करके मिडिल तक पहुँचे और काफी विकट परिस्थितियों के बावजूद हाईस्कूल पास कर गए। लेखक बनने की उनकी इच्छा बड़ी जिजीविषापूर्ण थी।

कहानी संग्रह

मटियानी जी में बचपन से ही एक लेखक बनने की धुन थी जो विकट से विकटतर परिस्थितियों के बावजूद न टूटी। १९५० से ही उन्होंने कविताएं, कहानियां लिखनी शुरू कर दीं, परंतु अल्मोड़ा में उन्हें उपेक्षा ही मिली। हालांकि मटियानी जी नेे आरंभिक वर्षों में कुछ कविताएं भी लिखी, परंतु वे मूलतः एक कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित हुए। अगर विश्वस्तरीय प्रमुख कहानियों की सूची बनाई जाए तो उनकी दस से ज्यादा कहानियां सूची में शामिल होंगी। उनकी आरंभिक पंद्रह-बीस कहानियां 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में छपी थी। उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियां'(१९६१) के नाम से संग्रहित हैं। मटियानी जी की कालजयी कहानियां में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख', 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य', और 'मिट्टी' आदि प्रमुख हैं। 'डब्बू मलंग' एक दीन-हीन व्यक्ति की कथा है जिसे कुछ गुंडे पीर घोषित कर लोगों को ठगते हैं। 'रहमतुल्ला' कहानी सांप्रदायिक स्थितियों पर कठोर व्यंग्य है। 'चील' मटियानी जी की आत्मकथात्मक कहानी है जिसमें भूख की दारूण स्थितियों का चित्रण है। 'दो दुखों का एक सुख' मैले-कुचैले भिखाड़ियों की जीवन की विलक्षण कथा है। 'अर्द्धांगिनी' दांपत्य सुख की बेजोड़ कहानी है। एक कहानीकार के रूप में वे नई कहानी आंदोल के सबसे प्रतिबद्ध कहानीकार हैं। जिन्होंने बजाय किसी विदेशी प्रभाव के अपने मिट्टी की गंध और विशाल जीवन अनुभव पर अपनी कहानी रची है। 'दो दुखों का एक सुख'(१९६६), 'नाच जमूरे नाच', 'हारा हुआ', 'जंगल में मंगल'(१९७५), 'महाभोज'(१९७५), 'चील' (१९७६), 'प्यास और पत्थर'(१९८२), एवं 'बर्फ की चट्टानें'(१९९०) उनके महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं। 'सुहागिनी तथा अन्य कहानियां'(१९६७), 'पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां'(१९७३), 'माता तथा अन्य कहानियां'(१९९३), 'अतीत तथा अन्य कहानियां', 'भविष्य तथा अन्य कहानियां', 'अहिंसा तथा अन्य कहानियां', 'भेंड़े और गड़ेरिए' उनका अन्य कहानी संग्रह है।

निबंध

आर्थिक और सामाजिक रूप से शोषित-दलित वर्ग उनकी कहानियों के केन्द्रीय पात्र हैं। लेकिन काफी संख्या में उनके संस्मरण और निबंध संग्रह भी प्रकाशित हैं। 'मुख्य धारा का सवाल' , 'कागज की नाव'(१९९१), 'राष्ट्रभाषा का सवाल' , 'यदा कदा', 'लेखक की हैसियत से' , 'किसके राम कैसे राम'( १९९९), 'जनता और साहित्य' (१९७६), 'यथा प्रसंग' , 'कभी-कभार'(१९९३) , 'राष्ट्रीयता की चुनौतियां'(१९९७) और 'किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब'(१९९५) उनके संस्मरणों तथा निबंधों के संग्रह हैं। पत्रों का संग्रह 'लेखक और संवेदना'(१९८३) में संकलित है। मटियानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, शारदा सम्मान, देवरिया केडिया सम्मान, साधना सम्मान और लोहिया सम्मान दिया गया। उनकी कृतियों के कालजयी महत्व को देखते हुए प्रेमचंद के बाद मटियानी का नाम लिया जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


उपन्यास

मटियानी जी ने कई उपन्यास भी लिखे हैं। 'हौलदार'(१९६१), 'चिट्‌ठी रसेन'(१९६१), 'मुख सरोवर के हंस', 'एक मूठ सरसों'(१९६२), 'बेला हुई अबेर'(१९६२), 'गोपुली गफूरन'(१९६२), 'नागवल्लरी', 'आकाश कितना अनंत है' आदि उपन्यासों में वे उत्तराखंड के जीवन और अनुभव को रचना क्षेत्र के रूप में चुनते हैं। 'बोरीबली से बोरीबंदर', बंबई की वेश्याओं के जीवन पर आधारित एक आर्थिक उपन्यास है। 'भागे हुए लोग', 'मुठभेड़'(१९९३), 'चंद औरतों का शहर'(१९९२) पूरब के व्यापक हिन्दी क्षेत्र पर लिखा उपन्यास है। गरीबों के दमन-शोषण पर आधारित 'मुठभेड़' के लिए उन्हें हजारीबाग, बिहार के फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार 1984 से सम्मानित किया गया। 'किस्सा नर्मदा बेन गंगू बाई', 'सावित्री', 'छोटे-छोटे पक्षी', 'बावन नदियों का संगम', 'बर्फ गिर चुकने के बाद', 'कबूतरखाना'(१९६०), 'माया सरोवर' (१९८७) और 'रामकली' उनके अन्य उपन्यास हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
सुमित्रानंदन पन्त

आधुनिक हिन्दी साहित्य में सुमित्रानंदन पन्त जी ,छायावाद के प्रमुख स्तम्भ तथा सुकुमार कवि के रूप में प्रसिद्ध है। सुमित्रानंदन पन्त जी जन्म २० मई ,१९०० को अल्मोडा के निकट कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। जन्म के ६ घंटे बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया ।

पन्त जी के पिता पंडित गंगादत्त पन्त धार्मिक ब्राहमण थे और कौसानी राज्य के कोषाध्यक्ष तथा बड़े जमींदार थे। आपकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोडा में हुई। इसके बाद काशी के जयनारायण हाई स्कूल से आपने मैट्रिक परीक्षा पास की और और उच्च शिक्षा के लिए म्योर कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया,किंतु बाद में पढाई छोड़ दी और इसके बाद घर पर ही संस्कृत तथा बंगला का अध्ययन किया।

 शिक्षा काल से ही इनमे काव्य प्रतिभा जागृत हो गई थी और कविताये रचा करते थे। कालांतर में इनका परिचय सरोजनी नायडू ,रविंद्रनाथ ठाकुर तथा अंग्रेजी की रोमांटिक कविता से हुआ।

सन १९५० में आप आल इंडिया रेडियो के परामर्शदाता के पद पर नियुक्त हुए और उसके बाद सात बर्षो तक प्रत्यक्ष रूप से रेडियो से सम्बद्ध रहे । आपको "कला और बूढा चाँद" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार ,"लोकायतन" पर सोबियत भूमि नेहरू पुरस्कार तथा "चिदंबरा" पर "भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार" प्राप्त हुआ।

 भारत सरकार ने आपको पद्मभूषण की उपाधि से अलंकृत किया। माँ भारती का यह अमर गायक २८ दिसंबर ,१९७७ को इस संसार से बिदा हो गया।
पन्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे। सुमित्रानंदन पन्त जी सुकोमल भावनाओ के कवि है। उनमे निराला जैसी संघर्षमयता और पौरुष नही है।

 इनके काव्य में अनेकरूपता है किंतु वे अपनी सौन्दर्य-दृष्टि और सुकुमार उदात्त कल्पना के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है। निसंग्रत वे प्रकृति के सुकुमार कवि है। प्रकृति के साथ उनकी प्रगाढ़ रागाताम्कता शैशव से हो गई थी। इन्होने प्रकृति में अनेक रूपों की कल्पना की है।

 इन्होने प्रकृति के अनेक सौदर्यमय चित्र अंकित किए है और इसके साथ उनके उग्र रूप का भी चित्रण किया है किंतु इनकी वृत्ति मूलतः प्रकृति के मनोरम रूप वर्णन में ही रमी है। पन्त काव्य की रेखाए चाहे टेढी- मेढ़ी है, किंतु उनका विकासक्रम सीधा है। इस क्रम में हम पन्त को छायावादी ,प्रगतिवादी ,समन्वय वादी एवं मानववादी आदि रूप में देख सकते है।

 पन्त जी सन १९३३ से लगभग छायावादी से प्रगतिवादी बन गए। युगांत में आकर पन्त में छायावादी रूप का अंत हो जाता है। ग्राम्या,युगवाणी इनकी प्रगतिवादी रचनाये है। इसके बाद इनकी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण उत्तरोतर विकसित होता गया। इसके अनंतर इनके समन्वयवादी रूप को निहारा जा सकता है :

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22