Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

These are Pride of Uttarakhand - उत्तराखंड के गौरव

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

Uttarakhand has been a favorite land of Saints (Rishi Muni) to attain salvation, peace and bone for public welfare. Be it Rishi Bhagirath who did penance to bring Ganga in earth or a place for Pandava who spent their exile period here. Even according the Ramanayana, Sita last entered in soil in this state only (mansar pauri garwal).

In addition, this soil has produced many great personalities who not only brought pride for state but also for entire nation.

We will give information of such great personalities who born in Dev Bhoomi Uttarakhand.

You may also join us in providing the subject information under this thread.

Regards,

M S Mehta 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


माधो सिह भंडारी
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माधो सिंह भंडारी का जनम १५९५ के आसपास टिहरी जनपद के मलेथा ग्राम में हुवा था ! इनके पिता लखनपुर के निवासी वीर सोंनवाण कालो भंडारी थे ! तत्कालीन गढ़वाल नरेश ने इनकी बुद्धिमता व वीरता से प्रभावित होकर एक विस्त्रृत क्षेत्र जागीर के रूप में इन्हें भेट की थी!


माधो का गाव पानी के आभाव में मोटा आनाज पैदा करने में सक्षम था ! मलेथा गाव के दक्षिण पश्चिम  की ओर पहाड़ का एक भाग अलकनंदा नदी तक पहुच जाता है ओर उसके दुसरे छोर से एक नदी बहकर नीचे अलकनंदा में मिल जाती थी !
माधो ने विचार किया कि किसी प्रकार से पर्वतीय नदी के मध्य आने वाले निचले भाग में सुरुंग निर्माण की जाय नदी का पानी मलेथा गाव तक पहुच जाय !


माधो सिह भंडारी ने इस असंभव काम को संभव कर दिखाया और अपने गाव कि भूमि को उपजावो किया ! सुरंग के निर्माण के दौरान मादो ने अपने पुत्र को भी खोया ! मादो सिंह भंडारी के मिर्त्यु को ३५० साल से अधिक हो गए परन्तु यह वीर आज भी गढ़वाल निवासियों के लिए किसी देवीय शक्ति के घोतक से कम नहीं है ! इस वीर पुरुष का स्थायी समारक "मलेथा कि गूल" के रूप में विद्यमान है !

Devbhoomi,Uttarakhand:
Sri Dev Suman, श्री देव सुमन
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श्रीदेव सुमन वो, वीर है उस पुण्य भूमि का, जिसको मानसखंड , केदारखंड, उत्तराखंड कहा जाता है, स्वतंत्रता संग्रामी श्री देब सुमन किसी परिचय के मोहताज़ नही हैं, पर आज की नई पीड़ी को उनके बारे में, उनके अमर बलिदान के बारे में पता होना चाहिए, जिससे उन्हें फक्र हो इस बात पर की हमारी देवभूमि में सुमन सरीखे देशभक्त हुए हैं।

सुमन जी का जनम १५ मई १९१५ या १६ में टिहरी के पट्टी बमुंड, जौल्ली गाँव में हुआ था, जो ऋषिकेश से कुछ दूरी पर स्थित है। पिता का नाम श्री हरी दत्त बडोनी और माँ का नाम श्रीमती तारा देवी था, उनके पिता इलाके के प्रख्यात वैद्य थे। सुमन का असली नाम श्री दत्त बडोनी था। बाद में सुमन के नाम से विख्यात हुए। पर्ख्यात गाँधी- वादी नेता, हमेशा सत्याग्रह के सिधान्तों पर चले।

पूरे भारत एकजुट होकर स्वतंत्रता की लडाई लड़ रहा था, उस लडाई को लोग दो तरह से लड़ रहे थे कुछ लोग क्रांतिकारी थे, तो कुछ अहिंसा के मानकों पर चलकर लडाई में बाद चढ़ कर भाग ले रहे थे, सुमन ने भी गाँधी के सिधान्तों पर आकर लडाई में बद्चाद कर भाग लिया। सुन्दरलाल बहुगुणा उनके साथी रहे हैं जो स्वयं भी गाँधी वादी हैं।


परजातंत्र का जमाना था, लोग बाहरी दुश्मन को भागने के लिए तैयार तो हो गए थे पर भीतरी जुल्मो से लड़ने की उस समय कम ही लोग सोच रहे थे और कुछ लोग थे जो पूरी तरह से आजादी के दीवाने थे, शायद वही थे सुमन जी, जो अंग्रेजों को भागने के लिए लड़ ही रहे थे साथ ही साथ उस भीतरी दुश्मन से भी लड़ रहे थे। भीतरी दुश्मन से मेरा तात्पर्य है उस समय के क्रूर राजा महाराजा।

 टिहरी भी एक रियासत थी, और बोलंदा बद्री (बोलते हुए बद्री नाथ जी) कहा जाता था राजा को। श्रीदेव सुमन ने मांगे राजा के सामने रखी, और राजा ने ३० दिसम्बर १९४३ को उन्हें गिरफ्तार कर दिया विद्रोही मान कर, जेल में सुमन को भरी बेडियाँ पहनाई गई, और उन्हें कंकड़ मिली दाल और रेत मिले हुए आते की रोटियां दी गई, सुमन ३ मई १९४४ से आमरण अन्न शन शुरू कर दिया, जेल में उन्हें कई अमानवीय पीडाओं से गुजरना पड़ा, और आखिरकार जेल में २०९ दिनों की कैद में रहते हुए और ८४ दिनों तक अन्न शन पर रहते हुए २५ जुलाई १९४४ को उन्होंने दम तोड़ दिया।

 उनकी लाश का अन्तिम संस्कार न करके भागीरथी नदी में बहा दिया । मोहन सिंह दरोगा ने उनको कई पीडाएं कष्ट दिए उनकी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए कई बार पर्यास किया पर सफल नही हुआ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

मुकुन्द राम बडथ्वाल

ज्योतिष शाश्त्र एव महान संस्कृत कवि मुकुन्द राम बडथ्वाल का नाम गढ़वाल के खंड गाव में ९ नवम्बर १८८७ को हुवा था ! पिता रघुवर दत्त संस्कृत एव ज्योतिष कर्मकांड के प्रकांड विद्वान थे ! प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल व लौहार में प्राप्त कर साहित्य साधना पत्रिक गाव खंड व देव प्रयाग के पूर्ण की !

प्राचीन संस्कृत शाश्त्रो के महान ज्ञाता एव ज्योतिष शाश्त्र का पंडित बाराह मिहिर के समक्ष ज्ञान अर्जित करने के लिए श्री बडथ्वाल को देवैग्य के नाम से भी जाना जाता है ! उन्होंने ज्योतिष शाश्त्र में एक लाख से अधिक शलोक लिखने का यश प्राप्त किया ! जिसमे २२ ग्रन्थ प्रकाशित हुए !

भारतीय ज्योतिष अनसंधान संस्थान के अभिनव बाराह मिहिर की उपाधि से उन्हें विभूषित किया ! ३० सितम्बर १९७९ को ज्योतिष शाश्त्र का यह प्रकांड विद्वान गंगा नदी के तट पर निमिर्त मुकुंद आश्रम में स्वर्गवासी हो गया !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सुन्दरलाल बहुगुणा
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चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म ९ जनवरी, सन १९२७ को देवों की भूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ । प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए ।

सन १९४९ में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए । दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया ।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की । सन १९७१ में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए ।

बहुगुणा के 'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-


   क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार ।
   मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार ।


सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है ।बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड आफ नेचर नामक संस्था ने १९८० में इनको पुरस्कृत भी किया । इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।

पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' बन गया है ।

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