Author Topic: Uttarakhand Nestled in the lap of the Himalayas-हिमालय की गोद में उत्तराखंड  (Read 20549 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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गंगोत्री हिमालय की गोद में'

Harsil से एक Darali घाटी फर्श संकरा हो जाता है और पहुँचने पर गंगोत्री के द्वारा प्राप्त आय के रूप में, घाटी और संकुचित हो जाता है. और पहाड़ पर गैर पक्षों के दौरान अपने बंजर चट्टानी सतह के साथ शिखर सर्दी के महीनों भयंकर और भव्य दिखता है. $ $ $ $ $ जहाँ एक गंगोत्री में चला जाता है !

 विशाल पहाड़ तुम पर पत्थर का एक विशाल लहर की तरह करघा होगा. इन पहाड़ों की ढलानों अल्पाइन वृक्षों और अन्य उच्च ऊंचाई वनस्पति के कब्जे में हैं. गंगोत्री में चोटियों में से कुछ, Bhageerati के दोनों ओर गंगोत्री मंदिर तथा हनुमान टेकरी और गंगोत्री मंदिर के दक्षिण की ओर गणेश चोटियों के उत्तर की ओर भैरव Jhamp जैसे नामों से जाना जाता है. गंगोत्री घाटी से ,

एक साफ, cloudless दिन, एक घाटी के पूर्वी तरफ सुदर्शन चोटी के snowcapped शिखर स्थान सकता है. गंगोत्री, प्रसिद्ध तीर्थ स्थान और सुरम्य गंतव्य उत्तराखंड, भारत के राज्य में स्थित है .

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भैरों घाटी, उत्तराखंड

भैरों घाटी , जध जाह्नवी गंगा तथा भागीरथी के संगम पर स्थित है। यहां तेज बहाव से भागीरथी गहरी घाटियों में बहती है, जिसकी आवाज कानों में गर्जती है।

वर्ष 1985 से पहले जब संसार के सर्वोच्च जाधगंगा पर झूला पुल सहित गंगोत्री तक मोटर गाड़ियों के लिये सड़क का निर्माण नहीं हुआ था, तीर्थयात्री लंका से भैरों घाटी तक घने देवदारों के बीच पैदल आते थे और फिर गंगोत्री जाते थे।

 भैरों घाटी हिमालय का एक मनोरम दर्शन कराता है, जहां से आप भृगु पर्वत श्रृंखला, सुदर्शन, मातृ तथा चीड़वासा चोटियों के दर्शन कर सकते हैं।

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भैरों घाटी का इतिहास

राजा विलसन द्वारा निर्मित जाह्नवी नदी पर एक रस्सी-पुल हुआ करता था जो विश्व का सर्वोच्च झूला-पुल था, जिसपर से आप बहुत नीचे नदी को भ्रमित करने वाला दृश्य निहार सकते थे। अब यहां दो कगारों से लटकते हुए कुछ रस्सियों के टुकड़े ही बचे हैं। परंतु ई.टी. एटकिंसन ने वर्ष 1882 के अपने द हिमालयन गजेटियर (भाग -1, वोल्युम- 3) में बताया है कि यहां एक झूला-पुल था, जिसे “वनाधिकारी श्री. ओ. कैलाघन द्वारा जाधगंगा पर एक हल्के लोहे के पुल का निर्माण कर बदल दिया गया।” उस 380 फीट लंबे तथा 3 फीट चौड़े पुल को तीर्थयात्री रेंगते हुए पार करते थे।

जाह्नवी के स्रोत का प्रथम खोजकर्त्ता हॉगसन भैरों घाटी के प्रभावशाली सौंदर्य को देखता रह गया! विशाल चट्टानों, खड़ी दीवारें, ऊंचे देवदार के पेड़ तथा कोलाहली भागीरथी सबों को निहारता रहा। उसने इस जगह को “सबसे भयानक तथा डरावनी जगह बताया है, जिसके ऊपर एक बड़ा चट्टान आगे तक बढ़ा हुआ है।”

प्रसिद्ध जर्मन पर्वतारोही हेनरिक हैरियर भैरों घाटी से जाह्नवी के किनारे-किनारे तिब्बत गया था। तिब्बत में वह दलाई लामा का शिक्षक बन गया तथा उसने अपनी कृति ‘तिब्बत में सात वर्ष’ में अपने अनुभवों को बताया।

हिमालयन गजेटियर में उदधृत फ्रेजर के अनुसार पुल पार करने तथा देवदार के घने जंगलों से गुजरने के बाद आप “एक छोटे मंदिर भैरों के समतल सफेद भवन पहुंचते हैं, जिसे अमर सिंह गोरखाली के आदेश पर बनाया गया तथा जिसे सड़क की मरम्मत तथा गंगोत्री की पूजा के लिये स्थान निर्मित करने के लिये धन दिया।”

गंगोत्री मंदिर तक पहुंचने से पहले इस प्राचीन भैरव नाथ मंदिर का दर्शन अवश्य करना चाहिये।

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UTTARAKHAND  KI SADKEN HIMALAY KI WADIYON MAIN


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कुमाऊ एवं गढवाल क्षेत्रों के संगम से निर्मित उत्तरांचल की भूमि में पर्यटकों को प्रदान करने के अनेकों आकर्षण उपलब्ध हैं। यहाँ पर अति प्राचीन मन्दिर एवं विरासत में प्राप्त सांस्कृतिक महत्व का आनन्ददायक समाज उपलब्ध है। यहाँ पर पर्वतों, नदियों, वनों, वनस्पतियों, एवं प्राणिजगत की बहुलता है जो प्रत्येक पर्यटक के हृदय में आनन्द एवं स्फूर्ति भर देता है।

हिमालय की गोद में स्थित यह क्षेत्र वन सम्पदा से समृद्ध है तथा यहाँ पर उप उष्ण कटिबन्धी से अल्पाइन प्रकार की वनस्पतियों की वृहत्त सीमा पाई जाती है। 13 जिलों के संगम से निर्मित उत्तरांचल राज्य 51,082 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। पुष्पों की दृष्टि से यह क्षेत्र पश्चिमी हिमालय के वनस्पति जोन के अन्तर्गत आता है एवं यहाँ पर आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान विभिन्न प्रकार के फूलों की लगभग 4000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं जो देश में किसी अन्य हिमालय क्षेत्र की तुलना में अधिक समृद्ध है।

यहाँ उपलब्ध स्थानीय वनस्पतियाँ विशिष्ट रुप से चर्चा योग्य है जो हमारी मूल्यवान राष्ट्रीय विरासत है। गढवाल एवं कुमाऊ हिमालय क्षेत्र में स्थानीय प्रजातियों की लगभग 116 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें एरेनारिया फेरुगिनिया, चिमोनोकामुमुवुमा जौनसारेनसिस, जेनटिआना टेट्रासिपाला, जीमेगिनाइडेस, मीबोलडिआ सेलिनाइडिस, माइक्रोसोइनस डुठि, ट्रैकिकारपस ताकिल, पोआ राडिना इत्यादि कुछ प्रमुख प्रजातियाँ हैं।

 इसके अतिरिक्त उत्तरांचल के विभिन्न भागों में विज्ञान के लिए कुछ नवीन प्रजातियों को भी मिश्रित किया गया है। इस प्रकार की कुछ प्रजातियों में अनेमोनी राई, अरेनारिया क्युरिफोलिया, कारेक्स नन्दा देविएनसिस, लिसटेरा नन्दा देवीएनसिस, सौसुरिया सुधानसुई, यूफोरविया शर्मे, एनुएडेस गढवालिकम इत्यादि प्रमुख हैं।

सबसे छोटे पुष्प के पौधों में से एक एरसिउथोवियम मिनुटिस्सियम एवं एशिया के सबसे लम्बे पौधों में एक पाइनस रौक्सिवुर्गी की उत्तरकाशी जिले में उपलब्धता अत्याधिक आकर्षक एवं विशिष्ट रुप से ध्यान देने योग्य है। जोशीमठ में पवित्र मुलबेरी नामक वृक्ष, पनवाली मार्ग में साइअथिया स्पिनुलोसा नामक वृक्ष एवं व्यामी के निकट राजा साल नामक लम्बा वृक्ष क्षेत्र में पाये जाने वाले कुछ विशिष्ट वृक्ष हैं

 जिनका वृक्षारोपण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया बताया जाता है। उत्तरांचल की वन सम्पदा का वर्णन जब तक अधूरा है जब तक देव भूमि में पूजा के लिए उपयोग किये जाने वाले पवित्र वृक्षों का वर्णन नही किया जाता। इसके अतिरिक्त पूर्व में वर्णित ब्रहमकमल, तिमूर, पानया, स्किमिया लौरिओला, प्रिमुला, डेन्टिलकुलेटा, आर्टेमिसिया निलागिरिका, आइले मार्मेलोस इत्यादि पुष्पों को देवताओं को अर्पित किया जाता है।



Devbhoomi,Uttarakhand

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                 हिमालय की गोद में बद्रीनाथ धाम
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बद्रीनाथ धाम हिमालय की पर्वत माला पर चमोली जिले में 3110 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा के दक्षिणी तट पर है। यहां पहुंचने का मार्ग कितना भी दुसाध्य हो पर मंदिर परिसर पर पहुंचने पर मन की मलीनता दूर हो जाती है और मन भक्ति में लीन होने लगता है।

 बद्रीनाथ जाने के लिए सर्वोत्तम समय जून से अक्तूबर के बीच होता है। बद्रीनाथ जाने के लिए ऋषिकेश से बस मिल जाती हैं जो रुद्रप्रयाग होते हुए जाती हैं। रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ तक एकल पहाड़ी रास्ता है।

 यह दूरी करीब 160 किमी. है पर यात्रा का समय मौसम के मिजाज पर निर्भर करता है। एक तरफ ऊंची पहाड़ी और दूसरी तरफ गहरी अलकनंदा के कारण यात्रा बहुत रोमांचक लगती है।



हेम पन्त

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Panchchuli Peaks Seen from Munsiyari during Sunset
« Reply #17 on: April 19, 2010, 01:24:58 PM »
Panchchuli Peaks Seen from Munsiyari during Sunset


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                  हिमालय के गोद में बसी वाली देवभूमि में कूड़ा करकट


बर्फ के श्वेत-धवल मुकुट से सजे गिरिराज हिमालय, मखमली व खूबसूरत बुग्यालों, सदानीरा नदियों के साथ चार प्रमुख तीर्थ धामों और सैकड़ों देवस्थलों को अपने भीतर समेटे देवभूमि उत्तराखंड की सेहत के लिए पल-पल सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रहे कूड़े-कचरे ने खतरा पैदा कर दिया है। राज्य कूड़े के बड़े ढेर में तब्दील हो रहा है। दून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल जैसे जिलों के तराई क्षेत्र ही नहीं, प्रमुख चार धाम, पर्यटक स्थल और ट्रेकिंग रूट हर दिन सैकड़ों टन अजैविक व हानिकारक कूड़ा-कचरा उगल रहे हैं।

सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट की तमाम रणनीति फिलहाल बड़ी मात्रा में इकट्ठा हो रहे कूड़े-कचरे के आगे बौनी दिखती है। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक सूबे में 72 फीसदी जैविक, 26 फीसदी प्लास्टिक-पालीथीन जैसा अजैविक कचरा और दो फीसदी धूल-मिट्टी कचरा है।

 कूड़े के ढेर बढ़ाने में कम आय वर्ग से लेकर निम्न-मध्यम, उच्च-मध्यम व उच्च वर्ग समेत जनता के सभी वर्गो की भागीदारी है। मैदानी जिलों व तराई क्षेत्रों के शहरी इलाकों में कूड़ा निस्तारण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। सूबे के शहरों में हर व्यक्ति प्रति दिन कुक्ड फूड, मिनरल वाटर, लजीज कुरकुरे-चाकलेट-टाफी के साथ दूध व दही के इस्तेमाल के जरिए तकरीबन 300 ग्राम अजैविक कूड़ा जुटा रहा है तो मैदानी ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति तकरीबन 200 ग्राम है।

अच्छी आर्थिक हैसियत वाले शहरी इलाके कूड़ा जमावड़े में कई गुना आगे हैं। अनुमान है कि दून में हर दिन 210, हरिद्वार में 60, ऊधमसिंह नगर में 55 टन से ज्यादा कूड़ा-कचरा जमा हो रहा है। हिमालयी क्षेत्र में कूड़ा निस्तारण में योगदान दे रहे विशेषज्ञों का तीर्थ स्थलों, पर्यटक स्थलों व ट्रेकिंग रूटों पर कूड़े के बारे में आंकड़े चौंकाने वाले हैं।

 इसके मुताबिक यात्रा सीजन की छमाही में ही यात्री व श्रद्धालु बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री यात्रा मार्गो पर तकरीबन क्रमश: 40 टन, 70, 20, 35 टन से ज्यादा कूड़ा ला रहे हैं। फूलों की घाटी व ट्रैकिंग रूटों के हाल और बुरे हैं। सूबे में तकरीबन 123 ट्रेकिंग रूट हैं। सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े विशेषज्ञ विपिन कुमार, पर्यटन महकमे के विनोद श्रीवास्तव मानते हैं कि कूड़े के ढेरों को बढ़ने से रोकने को व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान जरूरी है।

 श्रीनगर व काठगोदाम में रिसाइक्लिंग प्लांट, जोशीमठ, सोनप्रयाग, बदरीनाथ व जानकीचट्टी में कूड़ा निस्तारण को कांपेक्टर लगाए गए हैं। कांपेक्टर जल्द कार्य प्रारंभ करेंगे। शहरी विकास विभाग की अपर सचिव निधिमणि त्रिपाठी के मुताबिक कूड़ा निस्तारण पर प्रभावी ढंग से अमल करने को पीपीपी मोड में इसे अंजाम दिया जाएगा।

हेम पन्त

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Nandaghunti and Trishul Peaks, a view from Gwaldam


 

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