Author Topic: Uttarakhand Quoted By Famous Personalities - प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा सराहना  (Read 6337 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: OUR UTARAKHAND AND ITS CULTURE AS QUOTED BY FAMOUS PERSONALITIES
« Reply #10 on: May 04, 2009, 06:42:22 PM »
जब मै पहाड़ से दीखने वाले महात्मा मुंशीराम जी के दर्शन करने और उनका गुरुकुल देखने गया , तो मुझे वहाँ बड़ी शांति मिली । हरिद्वार के कोलाहल और गुरुकुल की शांति के बीच का भेद स्पष्ट दिखायी देता था । महात्मा ने मुझे अपने प्रेम से नहला दिया ।
 ब्रह्मचारी मेरे पास से हटते ही न थे । रामदेवजी से भी उसी समय मुलाकात हुई और उनकी शक्ति का परिचय मै तुरन्त पा गया । यद्यपि हमे अपने बीच कुछ मतभेद का अनुभव हुआ , फिर भी हम परस्पर स्नेह की गाँठ से बँध गये ।
 गुरुकुल मे औद्योगिक शिक्षा शुरु करने की आवश्यकता के बारे मै रामदेव और दूसरे शिक्षकों के साथ मैने काफी चर्चा की । मुझे गुरुकुल छोड़ते हुए दुःख हुआ । मैने लछमन झूले की तारीफ बहुत सुनी थी। बहुतो ने मुझे सलाह दी कि ऋषिकेश गये बिना मै हरिद्वार न छोडूँ । मुझे वहाँ पैदल जाना था । इसलिए एक मंजिल ऋषिकेश की ओर दूसरी लछमन झूले की थी ।



MOHANDAS KARAMCHAND GAANDHI

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Re: OUR UTARAKHAND AND ITS CULTURE AS QUOTED BY FAMOUS PERSONALITIES
« Reply #11 on: May 04, 2009, 07:09:55 PM »
स्वामी रामतीर्थ ने सभी बन्धनों से मुक्त होकर एक संन्यासी के रूप में घोर तपस्या की। प्रवास करते समय उनकी भेंट टिहरी रियासत के तत्कालीन नरेश कीर्तिशाह से हुई। टिहरी नरेश अनीश्वरवादी थे। स्वामी रामतीर्थ के सम्पर्क में आकर वे आस्तिक हो गये। महाराजा कीर्तिशाह ने स्वामी रामतीर्थ के जापान में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में जाने की व्यवस्था की। वे जापान से अमरीका तथा मिस्त्र भी गये। विदेश यात्रा में उन्होंने भारतीय संस्कृति का उद्घोष किया तथा विदेश से लौटकर अनेक स्थानों पर उन्होंने प्रवचन दिए। उनके व्यावहारिक वेदान्त पर विद्वानों ने सर्वत्र चर्चा की।

टिहरी (गढ़वाल) से उन्हें अगाध स्नेह था। वे पुन: यहां लौटकर आए। टिहरी उनकी आध्याÎत्मक प्रेरणास्थली थी और यही उनकी मोक्षस्थली भी बनी। 1906 की दीपावली के दिन उन्होंने मृत्यु के नाम एक संदेश लिखकर गोलकोठी सिमलासू से नीचे भिलंगना नदी में जलसमाधि ले ली।

स्वामी रामतीर्थ अपने जीवन के अन्तिम दिनों में हिमालय पर एक स्वावलम्बी वेदान्त आश्रम खोलना चाहते थे ताकि देशवासियों को त्याग, शांति तथा सांस्कृतिक वैभव की परिपूर्ण शिक्षा दे सकें।



स्वामी रामतीर्थ

 

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