Author Topic: म्यर उत्तराखण्ड ग्रुप संस्था 14 अगस्त 2011 को गैरसैण (चंद्रनगर) राजधानी की मांग  (Read 19545 times)



राजधानी सिर्फ गैरसैंन ही होगी ...... अब यह सबने ठानी है!

hemraj1397

  • Newbie
  • *
  • Posts: 1
  • Karma: +0/-0
about uttrakhnad
« Reply #42 on: August 05, 2011, 01:35:07 PM »
myor uttrakhnad ki team Aug me Gairshan ja rahi, mein chata ho ki isme hamre nav yuwako ki sankhya bahut zayda honi chaiye! kyuki hamare forfathers ne hame azadi dilayi hai khule bhart me rehne ke liye to hamara bhi farz banta hai kuch kar dikhane ka! :)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
बहुत खूब हेमराज जी कितने शुद्ध विचार हैं आपके काश ये उत्तराखंड का हर नौजवान सोचता तो आज उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण होती न की देहरादून

जय उत्तराखंड

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
म्यर उत्तराखण्ड ग्रुप १४ अगस्त २०११ को  "हिटो गैरसैंण" आन्दोलन को व्यापक रूप देने के लिए प्रयासरत है। हमें १४ अगस्त को गैरसैण में पहुंचकर इस आन्दोलन को एक प्रदेशव्यापी आन्दोलन का रूप देना है, जिससे गैरसैण मुद्दे को दबाने वालों को पता चले कि अभी गैरसैण मुद्दा अभी शान्त नहीं हुआ है। प्रदेश की जनता को भोली-भाली समझने वाले लोगों को यह पता चले कि जनता अब जागरूप हो चुकी है, वह अब उनकी चाल को जान चुकी है।

यदि हमने उत्तराखण्ड को अपने संघर्षों और बलिदानों से एक अलग राज्य को बना के ही छोड़ा है यह तो सिर्फ राजधानी का ही मुद्दा है। जो कि गैरसैण में होगी।

उत्तराखण्ड की राजधानी सिर्फ गैरसैण होगी ।
आज नहीं तो कल जरुर होगी ।
उत्तराखण्ड की राजधानी सिर्फ गैरसैण होगी ।।

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
राजधानी को गैरसैंण में प्रदर्शन 14 को

अल्मोड़ा। राज्य की राजधानी गैरसैंण में बनाने की मांग को लेकर म्यर उत्तराखंड संस्था के तत्वावधान में आगामी 14 अगस्त को गैरसैंण में धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया है। संस्था के पदाधिकारियों ने बैठक करके कार्यक्रम की तैयारियों पर विचार विमर्श किया।
बैठक में वक्ताओं ने कहा कि राज्य की राजधानी गैरसैंण में बनाने की मांग शुरू से उठती रही है। यहां की ज्यादातर जनता राजधानी गैरसैंण बनाने की पक्षधर है लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक दल इस मुद्दे पर जनता को छलते रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज भी उत्तराखंड से युवाओं का पलायन जारी है। राज्य निर्माण के बावजूद रोजगार के अवसर पैदा नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया म्यर उत्तराखंड संस्था के लोग दिल्ली और उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में राज्य के बुनियादी मुद्दों को लेकर लगातार अभियान चलाते रहे हैं।
संस्था के पदाधिकारियों ने बाद में पत्रकारों को बताया कि गैरसैंण में राजधानी बनाने की मांग को लेकर आगामी 14 अगस्त को गैरसैंण में धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया है।
उन्होंने इस कार्यक्रम में अधिक से अधिक लोगों से भागीदारी करने का आह्वान किया। इस मौके पर संस्था के मोहन सिंह बिष्ट, त्रिलोक सिंह रावत, नीरज पंवार, सुमित के अलावा प्रो. जीएस नयाल आदि मौजूद थे।

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
गैरसैंण में बने राजधानी
« Reply #46 on: August 08, 2011, 03:59:04 AM »
गैरसैंण में बने राजधानी

बागेश्वर। म्यर पहाड़ ग्रुप के कार्यकर्ताओं ने कहा कि गैरसैंण के अलावा राजधानी के लिए और कोई विकल्प स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने सरकार से कहा कि वह स्थाई राजधानी शीघ्र घोषित करने को कहा।
केएमवीएन के पर्यटक आवास गृह में सदस्यों ने कहा कि पहाड़ में पहले रोजगार के लिए पलायन होता था लेकिन अब शिक्षा के लिए पलायन हो रहा है जो शर्मनाक है। राज्य की स्थाई राजधानी आज तक की सरकारों ने घोषित नहीं की है। अस्थाई राजधानी में मनमाना धन खर्च हो रहा है। गैरसैंण राजधानी के लिए सदस्य 13 अगस्त को दिल्ली से रवाना होंगे।
वह 14 अगस्त को गैरसैंण पहुंचेंगे। सदस्यों ने कहा कि 15 अगस्त को जीआईसी जौरासि में गोष्ठी होगी। उक्रांद युवा शाखा के प्रदेश महामंत्री भुवन पाठक, मोहन सिंह बिष्ट, सुमित बनेसी, नीरज पंवार आदि मौजूद थे।

साभार : अमर उजाला


MANOJPUNDIR

  • Newbie
  • *
  • Posts: 11
  • Karma: +1/-0
प्रवासियों से आमजन को मिला हौसला
Story Update : Tuesday, August 09, 2011    12:01 AM

कर्णप्रयाग। उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण के पक्ष में प्रवासी उत्तराखडि़यों के समर्थन ने स्थानीय लोगों में उत्साह की नई लहर पैदा कर दी है। वहीं विदेश में रहे पहाड़वासियों ने भी गैरसैंण को लेकर अपनी मुहिम छेड़ दी है।
गैरसैंण के लिए जनसंगठनों के आंदोलन पर राजनीतिक दलों की चुप्पी जहां गले से नहीं उतर रही वहीं प्रवासी उत्तराखंडियों का संचार क्रांति के माध्यम से गैरसैंण राजधानी के लिए समर्थन पहाड़ के आमजन को हौंसला दे रहा है। 90 के दशक में कौशिक समिति और रुड़की इंजीनियरिंग कालेज के भूवैज्ञानिकों के सर्वे में गैरसैंण को उपयुक्त मानने के बाद भी दीक्षित आयोग ने इसे हासिए पर ला दिया था। लेकिन अन्य राज्यों और विदेश में रह रहे अपनों की हुंकार ने राजधानी गैरसैंण के लिए एक बार फिर उम्मीदों के दिए जला दिए हैं।
उत्तराखंड व गैरसैंण के लिए जनसंघर्ष की दास्तां
गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए 1952 में पीसी जोशी ने पोलित ब्यूरो अधिवेशन में प्रस्ताव रखा।
सन 1964 में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया।
70 के दशक में गैरसैंण के समर्थन में टिहरी के तत्कालीन सांसद त्रेपन सिंह के नेतृत्व में प्रदर्शन।
सन 1974 में उत्तराखंड के पूर्व छोर असकोट से पश्चिमी छोर आराकोट तक पदयात्रा।
सन 1979 में उक्रांद का गठन।
23 नवंबर 1987 को त्रिवेेंद्र पंवार और धीरेंद्र भदोला ने उत्तराखंड की मांग पर लोकसभा की दर्शक दीर्घा में पर्चे फेंके।
25 जुलाई 992 को उक्रांद ने राजधानी गैरसैंण का औपचारिक शिलान्यास कर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर की स्थापना।
सन 1994 में रमाशंकर कौशिक समिति ने गैरसैंण राजधानी बनाने पर सहमति जताई।
24 अगस्त 1994 मोहन पाठक और मनमोहन तिवारी संसद में कूदे।
23 सितंबर 1998 राज्य विधेयक में संशोधनों के विरोध में लखनऊ विधानसभा में नारेबाजी।
सन 1992 से वर्ष 2000 तक उक्रांद ने किया रैलियों का आयोजन।
वर्ष 1994 से 2004 तक बाबा मोहन उत्तराखंडी ने उत्तराखंड राज्य और गैरसैंण राजधानी को लेकर 13 बार तथा उत्तराखंड संघर्ष समिति ने167 दिन का क्रमिक अनशन।
2004 में देहरादून विधानसभा में गैरसैंण राजधानी की मांग पर नारेबाजी। 2005 में उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने गैरसैंण से बागेश्वर तक पदयात्रा की।
2007 से जनसभाओं एवं धरने के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडी संस्थाएं गढ़वाल सभा, कुर्माचंल परिषद, उत्तरांचल महासभा मुंबई, बुरांस मुंबई, मेरु पहाड़ और मेरा उत्तराखंड दिल्ली, गैरसैंण राजधानी के लिए समर्थन की अलख जगाए हुए हैं।
प्रवास में रहने के बाबजूद उत्तराखंड एवं गैरसैंण के लिए सभी प्रवासी संस्थाआें का संघर्ष जारी रहेगा। गढ़-कुमाऊंनी भाषा, बोली और रीति-रिवाजों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय रूप से कार्य करने की जरूरत है।
----- गीतेश सिंह नेगी संस्थापक प्रवासी उत्तराखंडी संस्था बुरांस मुंबई

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

  • Sr. Member
  • ****
  • Posts: 353
  • Karma: +2/-0


It is obvious that political leaders left no stone un-turned to decentralize this issue. Now enough is enough. We can not tolerate these corrupt people any more. We need our Capital to its designated place.. Gairsain ……………………….
 Only.


प्रवासियों से आमजन को मिला हौसला
Story Update : Tuesday, August 09, 2011    12:01 AM

कर्णप्रयाग। उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण के पक्ष में प्रवासी उत्तराखडि़यों के समर्थन ने स्थानीय लोगों में उत्साह की नई लहर पैदा कर दी है। वहीं विदेश में रहे पहाड़वासियों ने भी गैरसैंण को लेकर अपनी मुहिम छेड़ दी है।
गैरसैंण के लिए जनसंगठनों के आंदोलन पर राजनीतिक दलों की चुप्पी जहां गले से नहीं उतर रही वहीं प्रवासी उत्तराखंडियों का संचार क्रांति के माध्यम से गैरसैंण राजधानी के लिए समर्थन पहाड़ के आमजन को हौंसला दे रहा है। 90 के दशक में कौशिक समिति और रुड़की इंजीनियरिंग कालेज के भूवैज्ञानिकों के सर्वे में गैरसैंण को उपयुक्त मानने के बाद भी दीक्षित आयोग ने इसे हासिए पर ला दिया था। लेकिन अन्य राज्यों और विदेश में रह रहे अपनों की हुंकार ने राजधानी गैरसैंण के लिए एक बार फिर उम्मीदों के दिए जला दिए हैं।
उत्तराखंड व गैरसैंण के लिए जनसंघर्ष की दास्तां
गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए 1952 में पीसी जोशी ने पोलित ब्यूरो अधिवेशन में प्रस्ताव रखा।
सन 1964 में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया।
70 के दशक में गैरसैंण के समर्थन में टिहरी के तत्कालीन सांसद त्रेपन सिंह के नेतृत्व में प्रदर्शन।
सन 1974 में उत्तराखंड के पूर्व छोर असकोट से पश्चिमी छोर आराकोट तक पदयात्रा।
सन 1979 में उक्रांद का गठन।
23 नवंबर 1987 को त्रिवेेंद्र पंवार और धीरेंद्र भदोला ने उत्तराखंड की मांग पर लोकसभा की दर्शक दीर्घा में पर्चे फेंके।
25 जुलाई 992 को उक्रांद ने राजधानी गैरसैंण का औपचारिक शिलान्यास कर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर चंद्रनगर की स्थापना।
सन 1994 में रमाशंकर कौशिक समिति ने गैरसैंण राजधानी बनाने पर सहमति जताई।
24 अगस्त 1994 मोहन पाठक और मनमोहन तिवारी संसद में कूदे।
23 सितंबर 1998 राज्य विधेयक में संशोधनों के विरोध में लखनऊ विधानसभा में नारेबाजी।
सन 1992 से वर्ष 2000 तक उक्रांद ने किया रैलियों का आयोजन।
वर्ष 1994 से 2004 तक बाबा मोहन उत्तराखंडी ने उत्तराखंड राज्य और गैरसैंण राजधानी को लेकर 13 बार तथा उत्तराखंड संघर्ष समिति ने167 दिन का क्रमिक अनशन।
2004 में देहरादून विधानसभा में गैरसैंण राजधानी की मांग पर नारेबाजी। 2005 में उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष मोर्चा ने गैरसैंण से बागेश्वर तक पदयात्रा की।
2007 से जनसभाओं एवं धरने के माध्यम से प्रवासी उत्तराखंडी संस्थाएं गढ़वाल सभा, कुर्माचंल परिषद, उत्तरांचल महासभा मुंबई, बुरांस मुंबई, मेरु पहाड़ और मेरा उत्तराखंड दिल्ली, गैरसैंण राजधानी के लिए समर्थन की अलख जगाए हुए हैं।
प्रवास में रहने के बाबजूद उत्तराखंड एवं गैरसैंण के लिए सभी प्रवासी संस्थाआें का संघर्ष जारी रहेगा। गढ़-कुमाऊंनी भाषा, बोली और रीति-रिवाजों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए सक्रिय रूप से कार्य करने की जरूरत है।
----- गीतेश सिंह नेगी संस्थापक प्रवासी उत्तराखंडी संस्था बुरांस मुंबई

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22