Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

Baba Mohan Uttarakhandi(Hero Of Uttrakhand Struggle) - बाबा मोहन उत्तराखण्डी

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पंकज सिंह महर:






सभी फोटो- मयंक नौनी

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Merapahad pays Homage to Late Baba Mohan Uttarakhandi on his death anniversary who lost his life for sake of Uttarakhandi people.

We assure that the dream of Baba Mohan uttarakhandi for shifting capital for gairsain will come true one day! His scarification will not go waste.


--- Quote from: Charu Tiwari on August 12, 2009, 08:33:55 PM ---आपके सपनों की राजधनी बनकर रहेगी बाबाजी,
यही हमारा संकल्प है यही हमारी श्रद्धांजलि    
   
शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी के साथ रहना एक अद्भुत अनुभव था। मई 2004 में उत्तराखंउ राज्य के शिल्पी और द्वाराहाट के विधायक स्व. विपिन त्रिपाठी के सुपुत्र को मौजूदा विधयक भाई पुष्पेश त्रिपाठी का जनेऊ संस्कार था। हमने उसके बाद गैरसैंण में एक बैठक का आयोजन किया था। द्वाराहाट में तीन दिनों तक रहना था। उत्तराखंड क्रान्ति दल के शीर्ष नेता काशी सिंह ऐरी, प्रताप शाही और  एस. के. शर्माजी और मैं इस बीच जनसंपर्क में निकल गये। चौखुटिया के डाक बंगले में हम लोग रह रहे थे। यहां से मासी, मानिला और अन्य जगहों से जनसंपर्क के बाद हम लोग गैरसैंण को गये। त्रिपाठी जी भी अपने काम निपटाकर गैरसैंण आ गये। जब भी हम लोग गैरसैंण जाते हैं, वरिष्ठ पत्रकार और आंदोलनकारी बड़े भाई पुरुषोत्तम जी के यहां पहला पड़ाव होता है। असनोड़ा जी की दुकान पर बैठे थे कि बाबाजी आ गये। पहली बार उनसे मुलाकात हुयी। सहज, सरल व्यक्तित्व लेकिन आंखों में व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा साफ पड़ा जा सकता था। बाबा बनना तो उनका समाज के लिये समपर्ण था लेकिन उत्तराखंड के बारे में एक सापफ समझ उनके अन्दर थी। हम लोग दो दिन गैरसैंण के डाक बंगले मे रहे इस बीच लगातार वह हमारे साथ रहे। उसे समय हमने उनसे कहा था कि राजधनी की बात राजनीतिक है इसलिये इस अभियान में वह भी राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ें लेकिन वह उक्रांद के समर्थक होते हुये भी सक्रिय रूप से अपने को कभी तैयार नहीं कर पाये। यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि जो व्यक्ति राज्य के सवालों पर इतना आंदोलन कर रहा हो उसमें कहीं भी किसी प्रकार का अतिवाद नहीं दिखाई दिया। वे इन दो दिनों में बस हमें सुनते रहते थे। एक ही बात होती थी राज्य के सवालों को मुखरता से उठना चाहिये। मुझे एक बात का बहुत अफसोस है कि मैं दुबारा कभी उनसे नहीं मिल पाया। एक पत्रकार के रूप में उनके बारे में उनसे मिलने से पहले भी मैं बहुत लिख चुका था। वह लिखना अपने साथियों से जानकारी जुटाकर ही था या समाचारों की समीक्षा के रूप में। एक और अपफसोस कि जो फोटोग्राफ हमने खींचें थे वह किन साथियों के पास हैं उसका भी पता नहीं है। उनके शहादत दिवस पर नमन करते हुये इस संकल्प के साथ कि आपके सपनों की राजधानी के लिये हमारा संघर्ष जारी रहेगा, यही हमारी श्रद्धांजलि है।
   राज्य की स्थायी राजधनी गैरसैंण बनाने और राज्य का नाम उत्तराखंड करने सहित पांच मांगों को लेकर 2 जुलाई 2004 से बेनीताल, आदिबदरी में आमरण अनशन में बैठने के 38 दिन बाद बाबा मोहन उत्तराखंडी ने 9 अगस्त 2004 को कर्णप्रयाण के सरकारी अस्पताल में दस तोड़ दिया। गैरसैंण को राजधानी बनाने की इतिहास में अपना नाम अमर कर गये।
   चैंदकोट क्षेत्र, जनपद पौड़ी के ग्राम बठोली में मनवर सिंह नेगी के घर 1948 में जन्में मोहन सिंह नेगी बचपन से ही जनूनी तेवरों के लिये जाने जाते रहे। इंटरमीडिएट और उसके बाद आईटीआई करने के पश्चात उन्होंने बंगाल इंजीनियरिंग में गु्रप में बतौर क्लर्क नौकरी की शुरुआत की। सेना की नौकरी उन्हें ज्यादा रास नहीं आयी। वर्ष 1994 में उत्तराखंड आंदोलन के ऐतिहासिक इदौर में बाबा ने सक्रियता से हिस्सेदारी की। दो कक्टूबर 1994 में मुजफरनगर कांड के बाद बाबा ने आजीवन दाड़ी-बाल ने काटने की शपथ ली। उसके बाद मोहन सिंह नेगी बाबा उत्तराखंडी के नाम से प्रसिद्ध हो गये। उत्तराखंड राज्य निर्माण में खुद को अर्पित करने वाले बाबा उत्तराखण्डी अपनी मां की मृत्यु पर भी घर नहीं गये। उन्होंने अपन दाड़ी-बाल भी नहीं कटवाये। राज्य आंदोलन और जनता की लड़ाई में लग बाबा को अपने घर में तीन बच्चों और पत्नी की ममता भी नहीं डिगा पायी। उनके तीन बच्चे सुनीता, यशोदा और शैलेन्द्र हें। पत्नी का नाम कमला है। बाबा का उत्तराखंड की जनता के लिये लंबा संघर्ष रहा। वे गैरसैंण को राजधनी बनाने और विभिन्न क्षेत्रीय समस्याओं को लेकर 10 बार अनशन में बैठे।[/color]

- 11 जनवरी 1997 को लैंसडोन के देवीधार में उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिये अनशन।
- 16 अगस्त 1997 से 12 दिन तक सतपुली के समीप माता सती मंदिर में अनशन।
- 1 अगस्त 1998 से दस दिन तक गुमखाल ;पौड़ी में अनशन
- 9 पफरवरी से 5 मार्च 2001 तक नंदाढोक ;गैरसैंण में अनशन।
- 2 जुलाई से 4 अगस्त 2001 तक नंदाढोक ;गैरसैंण में राजधानी बनाने के लिए अनशन।
- 31 अगस्त 2001 को पौड़ी बचाओ आंदोलन के तहत अनशन।
- राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर 13 दिसंबर 2002 से फरवरी 2003 तक चैंदकोट गढ़ी ;पौड़ी में अनशन।
- 2 अगस्त से 23 अगस्त 2003 तक कनपुर गढ़ी ;थराली में अनशन।
- 2 पफरवरी से 21 पफरवरी 2004 तक कोदिया बगड़ ;गैरसैंण में अनशन।
- 2 जुलाई से 8 अगस्त 2004 तक बेनीताल ;आदिबदरी में अनशन।
- अखिरकार राजधानी के लिये संषर्ष करते हुये 8 अगस्त 2004 को उन्होने अपना बलिदान कर दिया।

--- End quote ---

हेम पन्त:
आज बाबा मोहन उत्तराखण्डी की सातवीं पुण्यतिथि के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं....

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा:

Baba Mohan Uttarakhandi Amar Rahe!

Baba Mohan Uttarahkandi your sacrification will not go waste. Captial will be shifted Gairsain and Gairsain only.

Kanika Bhatt (Devbhoomi):
Baba Mohan uttrakhandi ko unki punaya tithi par sat sat naman....
God bless his soul....

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