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Delhi-Gairsain Yatra, 2009 : दिल्ली-गैरसैंण यात्रा : 2009

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Devbhoomi,Uttarakhand:
BABA MOHANUTTARAKHANDI JI KO MERA BHI SATT SATT NAMAN HAI OR AAP SABHI SADSYA JINHONE IS YATRA MAIN BHAAG LIYA AAP SABHI BADHAI KE PAATR HAI JAI UTTARAKHAND

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Press Coverage connected to this Yatra. This news published from Delhi in Nai Duniyan, shortly will provide local news paper Caverage.

sanjupahari:
Sabhi ko dher saari shubhkamnayein.....ye chetna ka bigul ab bajta rahega....iski awaaj her Uttarakhandi tak pahuchane ki koshis ke santh....aapka dagaru .... sanjupahari

Charu Tiwari:
पानी यहीं से निकलेगा

जनकवि दुष्यन्त का यह शेर उत्तराखंड की स्थायी राजधानी आंदोलन के लिये सटीक है-

वक्त की रेत पर एड़ियां रगड़ते रहे,
मुझे यकीं है कि पानी यहीं से निकलेगा।

   हमने जब दिल्ली से गैरसैंण के लिये जनजागरण यात्रा पर विचार किया तो मेरे साथियों में उत्साह और गैरसैंण जाकर अपनी बात को कहने का संकल्प साफ झलक रहा था। लेकिन आंदोलनों के अभ्यस्त न होने के कारण मैं उनकी इस पीड़ा को समझ सकता था कि हम इस यात्रा से जो संदेश देना चाहते हैं उसमें कितने सफल होंगे। मैं चाहता था कि जैसे भी हो सब लोग गैरसैंण चलें और इस पूरी यात्रा में गैरसैंण को राजधनी बनाने के निहितार्थ भी समझें। मेरे लिये गैरसैंण की बात और आंदोलन की सफलता-असफलता का कोई द्वन्द्व भी नहीं था। वह इसलिये कि 25 दिसंबर 1992 को जब गैरसैंण का नाम चन्द्रनगर रखकर इसे राजधनी घोषित किया गया तो मैं इसके शिलान्यास समारोह में शामिल था। श्रीदेव सुमन के शहादत दिवस पर 25 जुलाई 1992 में जब चन्द्रसिंह गढवाली की मूर्ति के अनावरण में भी मैं इसमें शामिल रहा। इसके बाद कई बार उत्तराखंड के सवालों पर हम लोग गैरसैंण में इकट्ठा होते रहे। गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिये अपनी शहादत देने वाले बाबा उत्तराखंडी के साथ भी हम लोग गैरसैंण में रहे हैं। राज्य आंदोलन के शुरुआती दौर को देखने और विपरीत परिस्थितियों में भी राज्य आंदोलन के साथ चलने से संख्या नहीं बल्कि जिजीविषा से चलने को महत्व दिया। अच्छा हुआ युवा साथियों के साथ वे लोग साथ चले जिन्होंने उत्तराखंड के कई संघर्षों में हिस्सा लिया। सर्वश्री प्रताप शाही, प्रेम सुन्दरियाल, दिनेश जोशी, सत्येन्द्र रावत, बोराजी, महेश मठपाल और कृपाल सिंह भी जुड़ गये। हमारी टीम में पहले से ही दयाल पांडे, मोहन बिष्ट, रणजीत सिंह राणा, मुकुल पांडे, कैलाश बेलवाल, दिनेश सिंह और रुद्रपुर से भाई हेम पंत मौजूद थे। दोनों दलों में एक-एक गैर उत्तराखंडी थे जो पहाड़ की राजधानी गैरसैंण को बनाने के प्रबल पक्षधर थे। हमारे साथ महोबा उत्तर प्रदेश के इंजीनियर भाई पुनीत सिंह और  दूसरे दल के साथ डा.... थे। खैर! दिल्ली से यात्रा निकल गई। गये तो कम लोग ही थे लेकिन काफिला बढ़ता गया। गैरसैंण तक हमारे साथ 70 लोग जुड़ गये। एक खामोशी को तोड़ने का प्रयास करते हुये क्रान्तिवीर स्व. विपिन त्रिपाठी की पांचवीं बरसी पर इस यात्रा का समापन एक अच्छे संदेश के साथ समाप्त हुयी। यह हमारी मंशा की पवित्रता ही है कि अब राजधनी का आंदोलन धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। राजधानी गैरसैंण बनेगी इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिये। यही इस यात्रा का सार है।

   मैं इस यात्रा की तैयारी के लिये दो दिन पहले चला गया था। मुझे आज से 25 साल पहले की याद आयी जब राज्य की बात करने वालों पर दुकान के अन्दर बैठकर राजनीति करने वाले लोग फब्तियां कसते थे। आंदोलन के प्रति उदासीनता आज भी है। यह खामोशी जनता पर थोपी गयी है। इस खामोशी को तूफान आने से पहले की खामोशी के रूप में देखा जा सकता है। जब हम लोग द्वाराहाट पहुंचे तो लोगों ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। 29 अगस्त को हमारा बहुत व्यस्त कार्यक्रम था। हमने द्वाराहाट और चौखुटिया में बच्चों के लिये कैरियर काउंसलिंग का कार्यक्रम रखा था। पहले चौखुटिया पहुंचे वहां के साथियों ने लोक निर्माण विभाग के डाक बंगले में हमारी व्यवस्था की थी। यहां से हम लोग दिशा विद्यालय में गये जहां 85 छात्रा-छात्रायें कैरियर कांउसलिंग के लिये जुटे थे। भारी संख्या में शिक्षक भी उपस्थित थे। यहां स्थानीय जनता ने हमारे प्रयासों की सराहना की। हमारे प्रबुद्ध साथी दिनेश सिंह ने बच्चों को बहुत मनोरंजक और वैज्ञानिक तरीके से भविष्य के प्रति मार्गदर्शन किया। यहां पुराने साथी राजेन्द्र तिवारी, बीरेन्द्र बिष्ट, आनन्द किरौला, मनोज शर्मा, उपाध्यायजी आदि ने पूरी व्यवस्था की थी। यहां डाकबंगले में उत्तराखंड क्रान्ति दल की केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रदेश भर के लोग जुटे थे। हम लोगों ने उनसे मिलेकर आंदोलन को आगे बढ़ाने की अपील की। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने माना कि यह शून्यता को तोड़ने का प्रयास है। लोगों में गैरसैंण को लेकर भारी उत्साह था। द्वाराहाट और चौखुटिया से बहुत सारे साथी गैरसैंण के लिये चले।
   गैरसैंण जाने पर हमेशा नये उत्साह का संचार होता है। जैसे ही गैरसैंण में प्रवेश किया यहां की सुन्दरता को देख नये साथी भारी उत्साह से भर गये। तेजी से गाड़ी में उतरते ही हमारे सबसे ऊर्जावान साथी कभी पहाड़ नहीं रहे मुकुल पांडे ने नारों से घाटी में गर्जना कर दी- ‘‘जो गैरसैंण की बात करेगा, वो उत्तराखंड पर राज करेगा।’’ बाबा मोहन उत्तराखंडी, अमर रहे’’, ‘‘और कहीं मंजूर नहीं, गैरसेंण कोई दूर नहीं।’’ मुकुल का यह उत्साह यूं ही नहीं है। वे आजादी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले हरगोबिन्द पंत और कुमांऊ केसरी बद्रीदत्त पांडे के परिवार से आते हैं। उनके साथ निःस्वार्थ अपना काम करने वाले मोहन बिष्ट जिन्हें सभी मोहन दा कहते हैं। मेरे से 12 साल छोटे होने के बाद भी कभी-कभी मेरे मोहन दा हो जाते हैं। भाई दयाल पांडे उत्तराखंड के सवालों को साथ बचपन मे ही पचपन के हो गये हैं। बड़ी गंभीरता से सब चीजों की व्यवस्था देखने लगे। हमारे साथ हेम भाई का होना उस स्वाभाविक प्रकृति के समान है जो शान्त और गंभीर रहकर सबके लिये प्राणवायु बनती है। भाई शैलू त्रिपाठी एक चलते-फिरते वैचारिक संस्थान के रूप में साथ देते हैं। मुझे इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा है कि कैलाश बेलवाल जिन्हें मंच में गाते हुये तो सुना था लेकिन जाते ही बिना किसी से पूछे गैरसैंण पर मंच का संचालन कर देंगे। संयोग से उस दिन गैरसैंण बाजार बंद था लेकिन साथियों की हुंकार सुनकर लोग इकट्ठा होने लगे। प्रखर आंदोलनकारी प्रताप शाही, प्रेम सुन्दरियाल, सत्येन्द्र रावत ने नारों से नई चेतना का संचार किया। सभी लोग चन्द्रसिंह गढ़वाली की मूर्ति के सामने इकट्ठा हुये माल्यार्पण किया और एक जनसभा की। इसे प्रताप शाही, प्रेम सुन्दरियाल, शाहजी, बिष्टजी, मुकुल पांडे आदि ने संबोधित किया। प्रताप शाही जी ने जनगीत से शमा बांध् दिया। इसके बाद सभी लोग जुलूस की शक्ल में शहर के विभिन्न मार्गों से नारेबाजी करते हुये निकले लोग जुटते गये।

   गैरसैंण से लौटकर हम लोग वापस चौखुटिया आये। यहां पहुंचते-पहुंचते रात के आठ बज गये थे। चौखुटिया से तीन किलोमीटर दूर इनहेयर के गेस्ट हाउस में खाना खाया और द्वाराहाट के लिये प्रस्थान किया। यहां कुमांऊ इंजीनियरिंग कालेज के अतिथि गृह में रात्रि विश्राम किया। दिनेश सिंह हमारे साथ गैरसैंण नहीं आये थे। उन्होंने दिन में राजकीय इंटर कालेज के 120 छात्रों की कैरियर काउंसलिंग की। इस कार्यक्रम में असगोली और द्वाराहाट इंटर कालेज के बच्चों ने भी भाग लिया। 30 अगस्त को द्वाराहाट के शीतला पुष्कर मैदान में इस यात्रा का समापन होना था। इस दिन स्व. विपिन त्रिपाठी की पांचवी पुण्यतिथि थी जिन्होंने गैरसैंण को चन्द्रनगर का नाम दिया था। इससे पहले साथियों ने कहा कि दूनागिरी मां के दर्शन करते हैं। बहुत सुबह हम लोग दूनागिरी चले गये। वहां पूजा-अर्चना के बाद दूनागिरी से गैरसैंण राजधानी बनाने का आशीर्वाद लिया। भंडारे में खाना खाने के बाद द्वाराहाट के मुख्य कार्यक्रम में आये। यहां कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी थी। यह आयोजन हमारे लिये नया नहीं है। असल में वर्ष 2004 में जब त्रिपाठीजी का असमय निधन हुआ तो हमने दिल्ली में क्रान्तिवीर विपिन त्रिपाठी विचार मंच के नाम से संगठन बनाया। इस बैनर पर हमने संकल्प लिया था कि उनके विचारों के अनुरूप हम एक खुशहाल राज्य के संकल्प को जितना भी हो सकेगा आगे बढ़ायेंगे। इस बार पता लगा कि द्वाराहाट में इसी नाम से संस्था का पंजीकरण कर लिया गया है। उनकी पहली पुण्यतिथि से ही हमने पहाड़ के सरोकारों के लिये काम शुरू कर दिया था। उनके आर्दश और टिहरी रियासत के खिलापफ अपनी शहादत देने वाले श्रीदेव सुमन, त्रिपाठीजी के पोस्टर का प्रकाशन किया। प्रखर समाजवादी विचारक सुरेन्द्र मोहनजी को द्वाराहाट ले गये। उन्होंने त्रिपाठी जी के जीवन पर मेरी पुस्तक का विमोचन किया था। हर साल इस मौके पर हम कोई रचनात्मक पहल करते हैं। पिछले साल कुमांऊ इंजीनियरिंग कालेज के सभागार में पहाड़ के बुद्धिजीवियों को बुलाकर "हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ" पर सेमिनार का आयोजन किया था। इसमें पद्मश्री डा. शेखर पाठक, पर्यावरण और इतिहासविद डा. अजय रावत, पद्मश्री पुरातत्ववेत्ता डा. यशोध्र मठपाल, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’, प्रखर आंदोलनकारी और विचारक डा शमशेर सिंह बिष्ट, प्रखर आंदोलनकारी और वरिष्ठ पत्राकार पीसी तिवारी, नैनीताल समाचार के संपादक और आंदोलनकारी राजीव लोचन साह, जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, रंगकर्मी श्रीश डोभाल, प्रखर आंदोलनकारी और उक्रांद के वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी के अलावा भारी संख्या में लोगों ने भागीदारी की थी। इसी मौके पर पोस्टरों का विमोचन भी किया गया।

   इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुये इस बार भी उत्तराखंड राज्य आंदोलन की अगुवाई करने वाले स्व. ऋषिवल्लभ सुन्दरियाल जी के पोस्टर का विमोचन किया गया। 1972 से वन आंदोलन में शामिल रहे बुजुर्ग आंदोलनकारी जैत सिंह किरौला की पुस्तक ‘उत्तराखंड में चकबंदीः परिकल्पना और यर्थाथ’ का विमोचन हुआ। इसे हमारी संस्था क्रिएटिव उत्तराखंड ने प्रकाशित किया था। इस मौके पर क्रियेटिव उत्तराखंड के प्रयासों की सबने सराहना की। यहां टिहरी से आये साथियों ने श्रीदेव सुमन की पुस्तक जो क्रिएटिव उत्तराखंड की ओर से प्रकाशनाधीन है उसे चंबा में एक कार्यक्रम में विमोचित करने का प्रस्ताव दिया है। कई विद्यालयों ने अपने यहां कैरियर काउंसलिंग के प्रस्ताव दिये। सबसे बड़ी बात यह है कि इस यात्रा में बहुत सारे नये लोग हमारे साथ जुड़े। स्व. त्रिपाठी की श्रद्धांजलि सभा में सभी वक्ताओं ने हमारे प्रयासों की सराहना की। काशी सिंह ऐरी, डा. नारायण सिंह जंतवाल, सुभाष पांडे, डा. शैल शक्ति कपणवाण, बीडी रतूड़ी, महेश परिहार, सुभाष पांडे, हरीश पाठक, रामलाल नवानी, एपी जुयाल, मोहन उनियाल उत्तराखंडी आदि ने गैरसैंण राजधानी बनाने के लिये दिल्ली से ग्रिसैंण यात्रा की प्रसंशा की। इस मौक पर स्व. त्रिपाठी जी के प्रिय गाने ‘दिन ऊने और जाने रया.... को गाकर सुप्रसिद्ध गायक हरीश डोर्बी ने विपिन दा की याद ताजा कर दी। हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वहां का शिक्षित वर्ग हमारे काम को गंभीरता से ले रहा है। बहुत सारे इंटर कालेजों के प्रवक्ता हमारे विचार को सहयोग करने के लिये आग आये हैं। मुझे व्यक्तिगत रूप बड़ी आशा है कि टुकड़ों में ही सही हमारे काम की प्रासंगिकता पहाड़ में बढ़ेगी। यह उन सभी लोगों के लिये आशा की किरण है जो हमारी तरह विभिन्न मंचों से काम कर रहे हैं। हमारी ऐसे लोगों  से अपील है कि वे लोगों के बीच जाकर काम करेंगे तो इसका लाभ वहां की जनता को अधिक होगा। लेकिन आवश्यकता वहां की समस्याओं को समझना और उसके लिये व्यावहारिक रास्ता तलाशने की है।

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