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Dotigarh- डोटीगढ़ का संक्षिप्त इतिहास और उसकी ऐतिहासिक और सामाजिक

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

      इतिहास के झरोखों से :  डोटी गढ़  का संक्षिप्त इतिहास और उसकी ऐतिहासिक और सामाजिक  महता उत्तराखंड के जागर लोकगीत  और लोक गाथाएँ  स्वयं में अतीत के असंख्य ऐतिहासिक घटनाओं  को  अपने गर्भ में समेटें हुए है जिनमे पुरातन हिमालयी संस्कृति के सर्जन  और विघटन से भरे  असंख्य पन्ने समाये हुए है | ये लोकगीत इस हिमालयी  राज्य  की सनातन संस्क्रति का उद्घोष  तो करते ही इसके साथ साथ एक ओर ये प्राचीन  वीर भड़ो का यशोगान भी करते है तो वहीं दूसरी और ये लोकगीत और लोक गाथाएँ इतिहास प्रेमी    लोगौं के लिये  काल चक्र परिवर्तन के रूप में अतीत  के अनछुए - बिखरे  घटनाक्रम  को समझने -  सजोने और एक विरासत के रूप में लोक इतिहास के क्रम  में जोडने में  प्रमुख भूमिका निभाते आ रहे हैं  | इतिहासकारों के लिये भले  ही ये ऐतिहासिक रूप से शोध के विषय हो परन्तु ये  समस्त लोकगीत और गाथाएँ  उत्तराखंड के जनमानस के मानस पटल पर उनके असंख्य  आराध्य देबी-देबतौं   की  आराधना -आह्वाहन  के मंत्रों ,लोकगीतों ओर साहित्यिक  धरोहर ओर  उनकी आस्था के बीज रूप में भी बिराजमान है  और उनके समस्त सामाजिक क्रियाकलापौं,विवाह -पूजा संस्कारों , तीज -त्योहारौं,थोल म्यालौं आदि   में रच  बस गए है |इन्ही लोकगीत और लोक गाथाओं  विशेषकर गोरिल (ग्वील -गोलू  -गोंरया  जो की चम्पावत  के  सूरज वंशी  राजा झालराय का पुत्र  था  और इतिहासिक काल में धामदेव -विरमदेव और हरु सेम के समकालिक  माना जाता है )  की गाथाओं और गीतों में  ,राजुला मालुशाही और गढ़ु  सुम्याल आदि में भी   डोटी गढ़ का अनेक बार उल्ल्लेख मिलता है | जो प्राचीन काल में डोटी गढ़ की  इसकी ऐतिहासिक महता को सार्थक करता है |

डोटी शब्द  की उत्पति के  सम्बन्ध  में दो  धारणायें व्यापत है | पहली धारणा के अनुसार इसकी उत्पति   ‘Dovati’ ( which means the land area between the confluences of the two rivers ) sey  हुई है  जबकि दूसरी धारणा (DEVATAVI= DEV+AATAVI or AALAYA  (Dev meaning the Hindu god and aatavi  meaning the place of re-creation, place of attaining a meditation in  Sanskrit) से इसकी उत्पति मानी गयी है |

Information provided by our Member Geetish Singh Negi.

Regards,

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
डोटी गढ़ जो की नेपाल का एक सुदूर पश्चिम क्षेत्र है  , तथा उत्तराखंड के कुमौं  क्षेत्र की काली नदी तथा नेपाल की  कर्णाली नदी के बीच बसा है वर्तमान डोटी मंडल में नेपाल के सेती और महाकाली क्षेत्र के ९ जिल्ले कर्मश : धारचूला ,बैतडी ,डडेलधुरा ,कंचनपुर ( महाकाली में  ) और  डोटी,कैलाली,बझांग,बाजुरा और  अछाम  (सेती में )  हैं |


लोकगीतों ,लोककथाओं और उत्तराखंड और नेपाल के लोक इतिहास के अनुसार  डोटी गढ़ उत्तराखंड का  एक प्राचीन राज्य  था  जो सुदर नेपाल तक फैला हुआ था जो सन ११९१ तथा सन १२२३  में उत्तराखंड के  कत्युर राजवंश पर  खश  आक्रमण कारी अशोका- चल्ल और क्राचल्ल  देव आक्रमण के फलस्वरूप १३०० में स्थापित हुआ  ,अशोल चल बैतडी का ही महायानी बोध राजा (Atkinson  ,गोपेश्वर - बाड़ाहाट (उत्तरकाशी ) त्रिशूल अभिलेख )  था जबकि क्राचल्ल देव नेपाल के पश्चिम भाग डोटी का अधिपति था |(दुलू ताम्रभिलेख  के अनुसार)  |

 डोटी  कत्युरौं के उन् ८ प्रमुख भागौं (बैजनाथ-कत्युर ,द्वाराहाट ,डोटी ,बारामंडल ,अस्कोट ,सिरा ,सोरा ,सुई (काली कुमोउन) में से एक  था  जो खश  आक्रमण  के कारण हुए  कत्युर साम्राज्य के विघटन के बाद  स्थापित  हुआ था |

विजय के पश्चात खश  आक्रमण कारी अशोका- चल्ल ने गोपेश्वर  में बैतडी धारा / वैतरणी धारा में पदमपाद राजयातन (प्रासाद ) का भी निर्माण किया था और उसे  अपनी राजधानी बनाया था जहाँ अब अवशेष  रूप में केवल बोध शैली के एक  भैरव मंदिर सहित कुछ अन्य मंदिर ही मौजूद है | उसने यहाँ   सन १२०० तक राज किया और इस  समय अंतराल में उसने बोध गया में बुद्ध मूर्ति की प्रतिष्ठा भी की  जो की  उसका मुख्या अभियान माना जाता है | जिसका उल्लेख गोपेश्वर त्रिशूल   में  "दानव भूतल स्वामी " के रूप में मिलता है (दानव  भूतल  गढ़वाल कुमोउन का दानपुर क्षेत्र,नंदा  जात का  प्रसिद्ध भड लाटू दाणु यहीं का बीर भड था जिसकी पूजा नंदा राज जात में होती है   )

अशोक चल्ल ने कर वसूली के लिये यहाँ बिभिन्न रैन्का चौकियों/चबूतरों का निर्माण भी  किया जिसके उतराधिकारी कैन्तुरी  रैन्का बाद में यहाँ शासन करते रहे (रैन्का = राजपुत्र ) इसके अतिरिक्त  प्रसिद्ध कैन्तुरी  राजा  ब्रहम देव (विरम देव ) जिसे गढ़वाली लोक गाथा गढ़ु  सुम्याल में "रुदी "   नाम से जाना जाता है और  जिसका शासन  काल सन १३७०-१४४३ ई समझा जाता है  ने महाकाली  क्षेत्र के कंचनपुर जिले में "ब्रहमदेव की मंडी " की स्थापना  भी की थी | 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
क्राचल्ल  देव  जो की पश्चिम  नेपाल के डोटी गढ़ का अधिपति था और एक महायानी बोध था ने सन १२३३ मे उत्तराखंड के यत्र - तत्र   बिखरे कत्युरी राज्य पर आक्रमण किया जिसका उल्लेख दुलू  (क्राचल्ल  देव  का पैत्रेक राज्य ) के लेख में मिलता है | विजय के पश्चात  क्राचल्ल  देव ने इस भाग को दस सामन्तौं (जिन्हे मांडलिक कहा जाता था )के अधीन सौंपकर दुलू  लौट गया |

क्राचल्ल  देव द्वारा नियुक्त ये   दस मांडलिक सामंत निम्नवत थे :

(१) श्री बल्ला देव मांडलिक (२) श्री बाघ  चन्द्र मांडलिक (३) श्री श्री अमिलादित्य राउतराज    (४) श्री जय सिंह मांडलिक (५) श्री जाहड़देव मांडलिक

(६) श्री जजिहल देव मांडलिक (७) श्री चन्द्र  देव मांडलिक(करवीरपुर ,बैजनाथ अभिलेख ,१२३३ ई  ) (८) श्री वल्लालदेव मांडलिक (९) श्री विनय चन्द्र (१०) श्री मुसादेव मांडलिक

कालांतर में   कत्युरी राज्य के पश्चिम  भाग  अर्थात काली कुमौं में चन्द शक्ति  का उदय  हुआ उधर  गढ़वाल -कुमौं - नेपाल  के तराई पर यवनों के आक्रमण शुरू  हो चुके थे |

सन १४४५-५० ई  के आसपास डोटी राजपरिवार  का छोटा राजकुमार नागमल्ल (सिरा का रैन्का राजा ) ने अपने बडे भाई अर्जुन देव  से राजगद्दी  छीन कर अपनी शक्ति का विस्तार किया | अर्जुन देव को चन्द राजा कलि कल्याण चन्द्र की शरण में जाना पड़ा | कलि कल्याण चन्द्र की जानता उसके बर्ताव  से खुश नहीं थी,अस्तु राजकुमार भारती चन्द (कलि कल्याण चन्द का भतीजा     ने विद्रोही कुमौनियों को साथ मिलकर अपना अलग संघ बना डाला और डोटी पर छापा  मरने निकल पड़ा | (Atkinson , के अनुसार भारती चन्द्र ने अपना   शिविर बाली चोकड़    नामक  स्थान  पर (काली नदी के तट पर) लगया था |

कालान्तर में जब डोटी के राजा ने काली कुमोउन पर आक्रमण कर दिया तो कटेहर  नरेश (संभवतया हरु सैम ) ,मुसा सोंन   के वंसज तथा सोंनकोट के पैक मैद सोंन की मदद से उन्होने भीषण  युद्ध में  डोटी के  नागमल्ल को परास्त कर दिया |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
डोटी के रैन्का  :

निरंजन  मल्ला  देव  ने १३ वी  सदी के आस पास ,कत्युर साम्राज्य के अवसान के
बाद डोटी राज्य की स्थापना की | वह संयुक्त कत्युर राज्य के अंतिम कत्युरी
राजा  का पुत्र था | डोटी के राजा को  रैन्का  या रैन्का महाराज भी कहा जाता था
|

इतिहास कारौं ने निम्न रैन्का महाराजौं की प्रमाणिक  पुष्टि की है :

*निरंजन  मल्ल  देव  (Founder of Doti Kingdom)*, नागी   मल्ल  (1238), रिपु
मल्ल  (1279), निरई   पाल  (1353 *may be of Askot and his historical evidence
of 1354 A.D has been found in Almoda*), नाग  मल्ल  (1384), धीर  मल्ल
(1400), रिपु  मल्ल  (1410), आनंद  मल्ल  (1430), बलिनारायण  मल्ल  (*not known
*), संसार  मल्ल  (1442), कल्याण  मल्ल  (1443), सुरतान    मल्ल  (1478), कृति
 मल्ल (1482), पृथिवी  मल्ल  (1488), मेदिनी  जय  मल्ल   (1512), अशोक  मल्ल
(1517), राज  मल्ल  (1539), अर्जुन  मल्ल / शाही   (*not known but he was
ruling Sira as Malla and Doti as Shahi*), भूपति  मल्ल / शाही  (1558), सग्राम
  शाही  (1567), हरी  मल्ल /शाही  (1581 *Last Raikas King of Sira and
adjoining part of Nepal*), रूद्र  शाही  (1630), विक्रम  Shahi  (1642),
मान्धाता  शाही  (1671), रघुनाथ  शाही  (1690), हरी  शाही  (1720), कृष्ण
शाही  (1760), दीप   शाही  (1785), पृथिवी  पति   शाही  (1790, '*he had fought
against Nepali Ruler (Gorkhali Ruler) with British in 1814 A.D'*).

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
इतिहासकार डबराल के  अनुसार कत्युरी राजा  त्रिलोक पाल देव जिसकी  शासन  अवधि
१२५०-७५ ई ० मानी जाती है का राज्य डोटी से अस्कोट ,दारमा,जौहार,सोर
,सीरा,दानपुर ,पाली पछाउ - बारामंडल -फल्दाकोट तक फैला हुआ था | इतिहासकारों
के अनुसार राजा निरंजन देव ने अपने भाई अभय पाल की मदद से असकोट को जीत लिया था
उसने कुंवर धीरमल्ल को सीरा ,धुमाकोट   और चम्पावत का शासक नियुक्त किया उसने
अपने छोटे पुत्र को द्वाराहाट(पाली पछाउ ) का और बडे पुत्र को चम्पावत सुई  का
मांडलिक बनाया जो कालांतर में डोटी का राजा बना |

कैन्तुरी   इतिहास में प्रीतम देव /पृथ्वीपाल /पृथ्वीशाही का भी  उल्लेख मिलता
है  जो आसन्ति - वासंती देव पीड़ी के ७ वे  नरेश अजब राय  (पाली पछाउ ) के पुत्र
गजब राय  (द्वाराहाट का कैन्तुरी राजा ) के पुत्र सुजान देव का छोटा भाई था
जिसने रानीबाग के भयंकर युद्ध में तुर्क सेना को परस्त किया था | पिथोरागढ़
उसका एक प्रमुख गढ़ था  और उसकी एक पत्नी मान सिंह की बेटी गांगला देई,दूसरी
धरमा देई और तीसरी धामदेव की माता और हरिद्वार के निकट  के पहाड़ी  भूभाग के
मालवा खाती  क्षत्रिय राजवंशी झहब  राज की पुत्री थी जिसे    "रानी जिया " और
"मौला देई " के नाम से जाना जाता था | प्रीतम देव शत्रु  का विनाश  करने वाला
प्रतापी राजा था  जिसका वर्णन जागर गीतों में *( "जै पृथ्वीपाल ने पृथ्वी हल
काई "  ) *मिलता है  |

रानी जिया पृथ्वीपाल की मृत्यु के पश्चात गौला नदी के समीप सयेदौं से हुए युद्ध
में विजय के पश्चात मृत्यु को प्राप्त हुई थी जहाँ आज भी उसकी समाधि
"चित्रशीला " नाम से उत्तरायणी मेले  के दिन पूजी जाती है | जिया रानी का पुत्र
धामदेव था जो बड़ा प्रतापी  और  शक्तिशाली राजा था और  कत्युरी राज के इतिहास
में उसके  शासन काल को  स्वर्णिम युग की संज्ञा दी जाती है | राजुला - मालूशाही
की प्रसिद्ध लोकगाथा का नायक मालूशाही , राजा धामदेव का ही पुत्र था |

प्रसिद्ध गीत " तिलै धारू बोला  "   जो तिलोतमा पर  विरमदेव के बलपूर्वक अधिकार
की गाथा को अपने गर्भ में लिये हुए है भी डोटी गढ़ से ही सम्बन्ध  रखती है
क्यूंकि तिलोतमा दुलू पधानी और रिश्ते में  विरम देव की मामी थी |

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