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Facts Freedom Struggle & Uttarakhand Year wise- आजादी की लडाई एव उत्तराखंड तथ्य

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

During Freedom Uttarakhad thousands of people from of Uttarakhand scarified their lives for motherland. We are going sharing information here year-wise details of Freedom Struggle and role of people from Devbhoomi.

1804 - खुड़बुड़ा यु( में नेपाली गोरखाओं की गढ़वाली सेना पर जीत। गढ़वाल नरेश प्रद्युम्नशाह को वीरगति।

1804-15- गढ़वाल पर नेपाली गोरखाओं का शासन।

1815 - गढ़वाल के निर्वासित राजा सुदर्शनशाह के अनुरोध पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा गढ़वाल से नेपाली गोरखाओं को खदेड़ कर मुक्त किया। सुदर्शनशाह द्वारा कम्पनी को यु( व्यय अदान करने पर गढ़वाल का एक हिस्सा कम्पनी को दिया, जो ब्रिटिश गढ़वाल कहलाया। प्रशासन की दृष्टि से इसे कुमाऊं कमिश्नरी के अलमोड़ा जिले से सम्ब( किया। - सुदर्शनशाह ने भागीरथी एवं भिलंगना के संगम पर स्थित स्थान टिहरी को अपनी रियासत की राजधानी बनाया।

1839 - गढ़वाल जिले की अलग से स्थापना। 1940 में मुख्यालय श्रीनगर से पौड़ी लाकर स्थापित किया।

1857 - गदर के दौरान ब्रिटिश गढ़वाल में पूर्ण शान्ति। रियासत टिहरी नरेश सुदर्शनशाह ने ब्रिटिश शासन का साथ दिया।

1864 - डिप्टी कमिश्नर बेकेट ने 1864 में अपनी ओर से 1840 भू-व्यवस्था में ‘शिक्षा कर’ लगाकर गढ़वाल में आधारिक विद्यालयों की स्थापना की।

(Courtesy -Regional Reporter Magazine Gahrwal)

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कब क्या हुआ ?

1864 - पौड़ी के समीप चोपड़ा में अमेरिकन मिशनरी थोवर्ण ने मिशन शाखा खोली ।

1868 - ‘समय विनोद’ पत्र का नैनीताल से प्रकाशन

1870 - अल्मोड़ा में ‘डिबेटिंग क्लब’ की स्थापना।

1871 - ‘अल्मोड़ा अखबार’ का अल्मोड़ा से प्रकाशन
आरम्भ।

1875 - टिहरी नरेश प्रतापशाह द्वारा रियासत में प्रथम स्कूल की स्थापना। कीर्तिशाह के शासनकाल में यह प्रताप हाईस्कूल कहलाया।

1877- गढ़वाल में भीषण अकाल पड़ा, इससे पूर्व भी गढ़वाल में अन्न संकट आया था, जिसको‘बावनी’ कहा जाता है।

1879 - कान्धार के यु( में विशेष वीरता एवं सूझ-बूझ दिखाने पर बलभद्रसिंह नेगी को ‘ऑर्डर ऑफ मैरिट’ का सम्मान दिया गया। यह सम्मान बहुत कम भारतीयों को मिला था। इन्हें ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश इण्डिया’ नामक पदक भी मिला। पांच वर्ष तक इन्हें भारत के जंगीलाट (रक्षासचिव) के अंगरक्षक के पद पर रखा गया। सन् 1885 में रिटायर होने पर इन्हें पेंशन तथा उल्लेखनीय सेवाओं के पुरस्कार स्वरूप भाबर में 1600 एकड़ भूमि की मुआफी जागीर प्रदान  की गई।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कब क्या हुआ ?

1880- बलभद्र सिंह नेगी के निवेदन पर भारत के जंगीलाट रॉबर्टस ने गढ़वालियों के लिए पृथक पल्टन खड़ी करने की संस्तुति प्रदान की।

1882- सम्पूर्ण उत्तराखण्ड एवं टिहरी राज्य में जन स्वतंत्रता की पहली बगावत। टिहरी नरेश के आदेशानुसार रियासत के हर परिवार पर प्रतिवर्ष एक बोझ घास, चार पाथा चावल, दो पाथा गेहूं, एक सेर घी और एक बकरा राजमहल में पहुंचा कर उसकी रसीद लेने का नियम बना। रसीद न होने पर दण्ड का प्रावधान रखा गया। लक्ष्मणसिंह द्वारा राजा से शिकायत करने पर राजा ने उसे टिहरी से निकाल दिए जाने की आज्ञा जारी की। लक्ष्मण सिंह ने वायसराय को पत्र लिखकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि टिहरी नरेश ने लक्ष्मण सिंह के घर पहुंच कर ‘पाला विसाढः’ के नाम से ली जाने वाली बेगार समाप्त करने की घोषणा की एवं नरेश प्रतापशाह द्वारा लक्ष्मण सिंह को राजसी वस्त्र पहना कर सम्मानित किया।

1896- चोपड़ा के पास गडोली में मिशन के आधारिक विद्यालय की स्थापना।

1901- लैंसडौन में लेफ्टिनेन्ट कर्नल एबट की अध्यक्षता में गढ़वाली रेजीमेन्ट की दूसरी बटालियन खोली गई, जिसका नाम 39वीं गढ़वाल रायफल्स ऑफ बंगाल इनफेंटरी रखा गया।

1901 - गढ़वाल यूनियन संस्था की स्थापना, जिसका दूसरा नाम गढ़वाल हित प्रचारिणी सभा था।

1902 - देहरादून से गढ़वाली पत्र का प्रकाशन

1905 - लैंसडौन से गढ़वाल समाचार (मासिकद्) का प्रकाशन।
1905- टम्टा सुधार सभा की अल्मोड़ा में स्थापना, जो 1913 में शिल्पकार सभा में बदल दी गई।

1906-7- मथुरा प्रसाद नैथानी के प्रयत्नों से गढ़वाल भातृमण्डल की लखनऊ में स्थापना।

1908- 24,26 दिसम्बर तक श्रीनगर गढ़वाल भ्रातृमण्डल का प्रथम सम्मेलन। समाज सुधार के कई बिन्दुओं पर चर्चा।

1910 - कोटद्वार से लैंसडौन तक प्रथम बार बैलगाड़ी सड़क बनी ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कब क्या हुआ ?

1910 - गढ़वाल की समस्त संस्थाओं को ‘गढ़वाल सभा’ में सम्मिलित कर लिया गया।

1911 - ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नए कानून बना कर वनों पर से जनता के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।

1912 - गिरिजा दत्त नैथानी ने दुगड्डा में अपना समाचार पत्र ‘गढ़वाल समाचार’ मुद्रित करने के लिए प्रेस लगाया। प्रेस का नाम तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के नाम पर ‘स्टोवेल प्रेस’ रखा।

1912 - पौड़ी सहित 10 स्थानों पर कुली एजेन्सी की स्थापना, इसका पूरा नाम ‘‘ट्रांसपोर्ट एण्ड सप्लाई को आपरेटिव एसोसिएशन’’ था।


1914 - फ्रांस के यु( में अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन करने पर गबर सिंह नेगी तथा दरबान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रास से सम्मानित किया गया। इस सम्मान को प्राप्त करने वाले ये पहले  भारतीय थे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कब क्या हुआ ?

1916 - कुमाऊं परिषद का गठन।

1918 - कुमाऊं परिषद का हल्द्वानी में द्वितीय अधिवेशन, जिसमें बेगार समाप्त करने व जनता को वनाधिकार लौटाने सम्बन्धी प्रस्ताव पारित किएगए।

1918 - 15 अक्टूबर को देशभक्त प्रेस अल्मोड़ा से बदरीदत्त पाण्डे के संपादन में राष्ट्रवादी विचारधारा के पत्र ‘शक्ति’ का प्रकाशन।
हरगोविन्द पन्त, मोहनसिंह मेहता, हरिकृष्ण पन्त अन्य सहयोगी।

1919 - बैरिस्टर मुकन्दीलाल एवं अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयत्नों से गढ़वाल में कांग्रेस की स्थापना।

1919 - दिसम्बर में कुमाऊं परिषद के कोटद्वार सम्मेलन में कुमाऊं गढ़वाल के 500 लोगों ने हिस्सा लिया।

1920 - ब्रिटिश गढ़वाल के नगरीय क्षेत्रों से कुली बेगार समाप्त।

1920 - देहरादून में पहला राजनीतिक सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू एवं लाला लाजपतराय के अलावा कई प्रमुख लोगों की भागीदारी रही। सम्मेलन में भाग लेने के लिए चमोली एवं पौड़ी गढ़वाल के दूर दराज के इलाकों के अलावा नजीबाबाद, मुरादाबाद, सहारनपुर जौनसार बाबर से लोग पहुंचे।

1921 - 12 जनवरी को अनुसूयाप्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में बेगार और बर्दायश के विरोध में दशज्यूला पट्टी में 72 गांवों से आए युवकों ने जनपदचमोली के ककोड़ाखाल में गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर पी.मैसन के सम्मुख उनके शिविर में पहुंचाई जाने वाली रसद दूध, दही, घी आदि सभी सामग्रियों को मार्ग में ही रोक दिया गया। बेगारियों द्वारा अमले के प्रयोग के लिए निर्मित छप्परों को उखाड़कर उनमें आग लगा दी गई।

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