आजादी के 62 वर्ष: आहत हैं स्वतंत्रता सेनानी श्री बिष्ट
==============================
देश आज आजादी की 62वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इसके लिये स्थान-स्थान पर भव्य समारोह व कार्यक्रम होंगे तथा इस मौके पर जहां स्वतंत्रता आन्दोलन के क्रांतिबीरों की शहादत को याद किया जायेगा, वहीं कई सम्मानित भी होंगे, लेकिन आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आज भी उपेक्षित हैं।
इन्हीं में एक हैं इस विकास खंड के छाना गांव निवासी 87 वर्षीय खेम सिंह बिष्ट। जिन्हें आवंटित जमीन के मामले में 37 वर्षो में भी न्याय नहीं मिल पाया। लंबी लड़ाई व पत्र व्यवहार के बाद भी उन्हें आवंटित भूमि पर न तो कब्जा मिल पाया, न ही कोई मुआवजा। श्री बिष्ट एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका जीवन का एक भाग देश की प्रमुख राजनैतिक हस्तियों के साथ बीता है, मगर यह सब कुछ होने के बावजूद उनकी आवाज फाइलों में ही दब कर रह गई है।
थक हार कर बढ़ती उम्र में श्री बिष्ट ने अपने पैतृक गांव में खेतीबाड़ी शुरू कर दी, लेकिन आज काफी वृद्ध हो जाने के कारण वे असहाय से हो गये हैं। हैरत की बात है कि ऐसे शख्स आज भी जमीन पाने की आस में दर दर की ठोकरें खा रहे हैं, मगर सुनने वाला कोई नहीं है। जबकि गत वर्ष उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति ने भोज पर बुलाकर सम्मानित भी किया।
खेम सिंह बताते हैं कि सेनानी कोटे के अंतर्गत उन्हें सरकार द्वारा वर्ष 1961 में तराई के बेचालगढ,़ किसनपुर-कोटली में 5 एकड़ जमीन आवंटित की गई। लेकिन इस जमीन पर आज तक श्री बिष्ट को कब्जा नहीं मिल सका है। जबकि 1964 से वे तमाम सरकारों से गुहार लगाते लगाते थक गये हैं। बताया जाता है कि आवंटित जमीन पर असरदार लोग कब्जा जमाये बैठे हैं।
थके-हारे व परेशान श्री बिष्ट बीते कुछ वर्षो से मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे हैं, फिर भी उनकी कोई नहीं सुन रहा है। श्री बिष्ट बताते हैं कि आजादी के बाद उनका पूर्व राष्ट्रपति राजेन्द्र बापू, पुरूषोत्तम टंडन, जवाहर लाल नेहरू, संजीवा रेड्डी व इंदिरा गांधी का साथ रहा है। इतना सब कुछ होने के बाद भी जीवन के इस आखिरी पढ़ाव में भी वे जमीन समस्या से जूझ रहे हैं।
Source Dainik jagran