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Freedom Fighters From Uttarakhand- उत्तराखंड के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी

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Devbhoomi,Uttarakhand:

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर सूछ्म दिर्सटी डालने से ग्याँत होता है कि यह आन्दोलन दो मुख्या धाराओं मैं बंटारहा जो आगे चल कर एक दुसरे में विलीन हो गयी! प्रथम धारा के अंतर्गत क्रांतिकारियों का वह वर्ग था जो सम्भैधानिक तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त करने का पछधर है !

दूसरी और या दूसरी बिचार धारा के समर्थकों का विस्वाश था कि  स्वराज्य माँगने से नहीं वरन संघर्ष करने से ही प्राप्त होगा ! इस वर्ग के आन्दोलन को क्रांतिकारी आन्दोलन कि संज्ञां दी गयी है जो समयानुसार शास्त्रों के प्रयोग मैं विस्वाश रखते थे! यह विरोध बिर्टिश साशन कि दमनपूर्ण निति का स्वाभाविक परिणाम था!

 ८ अप्रैल १९१९ को केन्द्रीय एसेम्बली मैं बम फेंकने केबाद क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह और बटुकेस्वरदत ने जो पर्चे फेंके थे,उनमें स्पस्ट लिखा था "हम इंसान का रक्त बहाने कि विवशता पर दुखी हैंलेकिन क्रांति द्बारा सबको स्वत्न्रता देने और मनुष्य के शोषण को समाप्त करने के लिए कुछ ना कुछ रक्तपात अनिवार्य है"क्रांतिकारी वर्ग इस विचार धारा से गढ़वाल का जनमानस भी अछूता न रहा!


गढ़वाली नवयुवक जीविकोपार्जन हेतु गढ़वाल से बाहर मैदानी भागों मैं जाते रहे हैं!उन पर भी क्रांतिकारी आन्दोलन का गहरा प्रभाव पड़ा!

फलतःउनोहोने इस आन्दोलन के प्रमुख सूत्रधार चन्द्रशेखर आजाद व सरदार भगत सिंह एवं अन्य क्रांतिकारियों गोविन्दराम,हीरालाल कपूर, शम्भुनाथ आजाद, विद्याभूषण,विशम्भर दयाल,यशपाल आदि के साथ मिलकर  क्रन्तिकारी  आन्दोलन महत्वा पूर्ण भूमिका का निएवः किया!गढ़वाल के जिन क्रंतिरियों ने देश स्थापित क्रांतिकारी संघठनों मैं भाग लिया उनके प्रमुख किर्या कलापों पर प्रकाश डालना संघ्रामी भावनाओं के अनुकूल होगा !

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01-क्रन्तिकारी भवानी सिंह रावत  


क्रन्तिकारी भवानी सिंह रावत  का जन्म १५ दिसम्बर १९१२ को ग्राम नाथपुर,पोडी गढ़वाल मैं हुवा था,इनके पिता सेना मैं कप्तान के पद पर कार्यरत थे!भवानी सिंह ने अपने प्रारम्भिक शिछा लैंसीडाउन मैं सैनिक छावनी मैं प्राप्त की, तत्पश्चात उनोहोने मुरादाबाद चंदोसी,सराय रोहिला की शिछां संस्थाओं मैं शिछा प्राप्त की!

उच् शिछा प्राप्त हेतु भवानी सिंह ने दिल्ली के हिन्दू कालेज मैं पर्वेश लिया !एक सैनिक अधिकारी का पुत्र होने के कारण भवानी सिंह रावत के ब्य्क्तित्वा पर पर्याप्त सैनिक प्रभाव पड़ा!पुनः सराय रोहिला शिछां संस्थान मैं अध्ययन करते समय उनने पंडित जवाहरलाल नेहरु का देशप्रेम ब्याख्यान सुनने का अवसर मिला इससे भवानी सिंह अत्यधिक प्रभवित हुए!धीरे धीरे उनके बिचारों मैं उगार्ता का समावेश होने लगा और उन्होंने राजनितिक पर्य्कर्मों मैं भाग लेना आरम्भ कर दिया!

भवानी सिंह के कान्तिकारी बिचारों से प्रभावित होकर महान क्रन्तिकारी कैलाशपति और जसदेव कपूर ने उनसे संपर्क अथापित किया तथा क्रन्तिकारी भावनाओं से परिपूरन साहित्य उने प्रदान किया !
भवानी सिंह के परिपक्वा बिचारों से प्रभवित होकर क्रांतिकारियों ने उने "हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ" की सदस्यता प्रदान की !१९२८ मैं भवानी सिंह कुछ दिनों के लिए अपने घर आगये,दुर्भाग्यवास इनी दिनों क्रांतिकारी जसदेव कपूर बम निर्मित करते हुए गिरफ्तार कर दिए गए!

तलासी लेने पर उनकी जेब मैं एक पत्र मिला जिसमें भवानी सिंह को घर से बुलाने की योजना थी!इस पत्र के प्राप्त होने के बाद पोलिस ने भवानी सिंह के सम्बन्ध मैं जानकारी लेनी प्रारंभ कर दी किन्तु सेना के कप्तान का पुत्र होने के कारण पोलिस ने उने गिरफ्तार नहीं किया!

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 भवानी सिंह रावत की,चंद्रशेखर आजाद से भेंट

बिर्टिश सरकार ने भारतियों के मह्त्वापून मांगों के प्रति अत्यधिक अन्यायपूर्ण निति अपनाई !अत क्रांतिकारियों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिए भारतीय केंद्रीय एसेम्बली मैं बम फेंकने की योजना बनाई!योजना की गोपनीय रूप रेखा दिल्ली मैं बनी,जबकि चंद्रशेखर आजाद उन दिनों कानपुर मैं थे,

अत उन्हें दिल्ली बुलाने हेतु भवानी सिंह को पत्र सहित उसके पास भेजा गया !भवानी सिंह रावत की चंद्रशेखर आजाद से ये प्रथम भेंट थी!आजाद भवानी सिंह सहित दिल्ली आये और केन्द्रीय एसेम्बली में बम डालने की योजना को सर्व्समती स्वीकार कर लिया!

 भगत सिंह राजगुरु सुखदेव के शत भवानी सिंह रावत ने भी अपना नाम उस सूची मैं लिखवाया,जिन्हें बम फेंकना था!परन्तु आजाद इन मैं से भगत सिंह और भवानी सिंह को बम फेंकने के लिए नहीं भेजना चाहते थे!अथ उन्होंने इन दोनों को अनुमति नहीं दी भवानी सिंह ने आजाद की आज्ञां स्वीकार कर ली!

८ अप्रैल १९१९ को भगत सिंह राजगुरु और शुख्देव ने केन्द्रीय एसंबली मैं बम फेंक दिया,और पकडे जाने पर उने मिरतु दंड दिया गया,एक अन्य विवरण के अनुसार दिल्ली ब्यावास्थापिका मैं बम फेंकने की योजना को कार्यविंत करने के सन्दर्भ  मैं मात्र भगत सिंह और बुत्केस्वर दत के नामों का उल्लेख प्राप्त होता है!

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वायसराय बम काण्ड 

  सरदार भगत सिंह एवं उनके साथियों पर घोषित मिर्त्यु दंड को समाप्त करवाने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने वायसराय लार्ड इर्विन  से प्रार्थना की!किन्तु वायसराय ने आजाद की इस प्रार्थना पर कोई अनुकूल प्रतिकिर्या प्रकट नहीं की थी!


अतःआजाद वायसराय के सैलून को बम से उदा देने का निर्णय लिया!२३ सितम्बर १९२९ को आजाद ने अपने साथी यशपाल और भवानी सिंह रावत के साथ नई दिल्ली निजामुद्दीन रेलवे स्टेसन के कुछ आगे वायसराय के सैलून पर बम फेंका किन्तु उनकी योजना पूर्ण तय सफल नहीं हो पाई!और लार्ड इर्विन बच गए अपने अन्य साथियों सहित भवानी सिंह भी भागने मैं सफल हो गए!

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गढ़वाल मैं क्रांतिकारी दल का प्रशिछन शिविर

क्रांतिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र चलाने  मैं दच्छ होना अत्यंत अनिवार्य एवं उपयोगी था!आजाद भी अपने साथियों को रिवाल्वर चलाने का प्रशिछन देना चाहते थे,गाडोदिया स्टोर को लूटने के पश्चात् क्रांतिकारियों ने हथियार खरीद लिए थे!लेकिन इसका प्रशिछन लेने के लिए एकांत स्थान दूंधने की समस्या थी!

भवानी सिंह ने इस समस्या का समाधान करते हुए प्रामर्स दिया की ऐशा एकांत स्थान मात्र गढ़वाल मैं ही उपलब्ध हो सकता है,अतः क्रांतिकारियों का दल जिसमें चंद्रशेखर आजाद बिद्याभूषण हारकेन सिंह.हजारी लाल विशम्भर दयाल,और यशपाल थे!भवानी सिंह के साथइ  जुलाई १९३० मैं गढ़वाल आये,भवानी सिंह उन्हें अपने गाँव नाथूपुर ले गए !

क्रांतिकारियों का परिचय भवानी सिंह ने अपने पिता को सहपाठियों के रूप मैं दिया,और बताया की वे लोग पहाड़ और जंगलों को देखने की इच्छा से आये हैं!

तथा शिकार मैं भी रूचि रखते हैं एक उच्च सकारी अधिकारी होने के कारण भवानी सिंह के पिता ने अपने पुत्र और उसके सहपाठियों के लिए जंगल मैं भार्मन और शीकार खेलने की आज्ञां प्राप्त कर ली! क्रांतिकारी प्रतिदिन सांयकाल मैं जंगल जाते और वहाँ गोली चलाने का अभ्याश करते! कुछ दिनों पश्चात् इनकी सूचना सरकार को मिल गयी! अतः सरकार ने इनको पकड़ने के प्रयाश तेज कर लिए, किन्तु क्रांतिकारी पुलिश को धोखा देकर भागने मैं सफल हो गए !


कुछ दिनों के पश्चात् क्रन्तिकारी दल के एक सदस्य कैलाशपति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया!उन्हें कठोर यातनाएं दी गयी ,और उन पर क्रांतिकारी साथियों का भेद बताने के लिए दबाव डाला गया ,जिसे वे सहन ना कर सके और उन्होंने क्रन्तिकारी साथियों का भेद खोल दिया जिसमें भवानी सिंह का नाम भी था!

नाम ग्यांत हो जाने के बाद सेकर ने भवानी सिंह के चित्र स्थान-स्थान पर चिपका दिए और उनके बारे मैं सूचना देने वाले को पांच सो रूपये देने की घोशना करवा दी!सकरी सूचना मिलाने पर भवानी सिंह सतर्क हो गए,इस अवधि मैं वे वहां से कानपुर लोट आये !जहाँ चंदार्शेखर से पुनः उनकी भेंट हुयी !चंद्रशेखर आजाद फरवरी १९३१ मैं इलाहबाद मैं पुलिश के साथ लड़ते हुए शीद हो गए !

भगत सिंह राजगुरु एवं बुत्केस्वर दत को मार्च १९३१ मैं फांसी की सजा दी गयी !इससे क्रन्तिकारी संघठन का प्रकार समाप्त होने लगा,अतः भवानी सिंह ने अपने संघठन को मजबूत बनाने और उसका प्रचार करने के उदेश्य से रूस जाने की इच्छा प्रकट की!किन्तु क्रन्तिकारी संगठन ने उन्हें बम्बई मैं क्रांतिकारी संगठन की स्थापना और प्रचार करने का कार्यभार सोंपा!

भवानी सिंह बम्बई आ गए जन्हाँ वे कामरेड नरदेव के साथ रहने लगे,कुछ समय के पस्च्हत वे उर्दू के सम्पादक मुहमद इस्मैले के साथ मुशलमान की भेष भूषा मैं रहने लगे २५ दिसम्बर १९४२ को पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया,और बम्बई से उन्हें दिली लाया गया!जहाँ उन पर विशेस मज्स्तेड की अदालर मैं मुकदमा चलाया गयामुकदमें की पूरी अवधी मैं भवानी सिंह ने क्रन्तिकारी संगठन के सन्दर्भ मैं कोई जानकारी नहीं दी!

बिर्टिस गढ़वाल की राजनीति गतिविधियों के केंद्र दोग्डा मैं रहने लगे ,किन्तु वहां भी बिर्टिस शासन ने उन पर कड़ी निगरानी रखी,स्वतंत्रता के पश्चात् भवानी सिंह ने चौदह वर्षों तक पंचायत निरिछन के पद पर कार्य किया किन्तु सरकार की नियोजन निति पसंद न आने के कारण उन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया!

 सन १९६७ के चुनाव मैं भवानी सिंह ने पोडी गढ़वाल निर्वाचन छेत्र से पमुनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा,किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली १९७३ मैं भवानी सिंह ने चंद्रशेखर आजाद की पुन्य तिथि स्मिरती मैं दुगडामैं चंदार्शेखर आजाद स्मारक अथापित करवाया,भवानी सिंह एक महान क्रांतिकारी थे!

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