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Give Employment Not Ebriety 1984 - "नशा नहीं, रोजगार दो" आन्दोलन 1984

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पंकज सिंह महर:
ऎसी स्थितियों में छुटपुट विरोध का होना भी स्वाभाविक था, उत्तरकाशी की महिलाओं ने उच्च न्यायालय में जहरीले पदार्थों के ऊपर याचिका दर्ज की। अगस्त 81 में कौसानी में छात्रों ने जीप में से शराब पकड़ी, मार्च 82 में उफरैंखाल में नवयुवकों ने कच्ची शराब के अड्डे नष्ट किये। इसी तरह अन्य घटनायें भी शुरु हुंई। लेकिन सुरा-शराब को मुद्दा बनाकर कोई राजनैतिक दल आंदोलन शुरु नहीं कर सका, क्योंकि सुरा-शराब का धन राजनीति व चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
        अन्ततः 23-24 अप्रैल को अल्मोड़ा में आयोजित चन्द्र सिंह गढ़वाली स्मृति स्मारोह में उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी ने जंगलों और खनन के साथ सुरा-शराब की समस्याओं का सवाल उठाने का भी फैसला किया। इस मुद्दे को लेकर जनांदोलन शीघ्र नहीं हो सका। हालांकि जनता इस बुराई को आजमा चुकी थी। सितम्बर, 1983 में अल्मोड़ा की शराब लाबी द्वारा एक युवक की हत्या किये जाने से कस्बाती जनता में हलचल उत्पन्न हुई और आंदोलन की बात कुछ आगे बढी़। जनवरी 1984 में "जागर" की सांस्कृतिक टोली ने भवाली से लेकर श्रीनगर तक पदयात्रा की और सुरा-शराब का षडयंत्र जनता को समझाया। 1 फरवरी, 1984 को चौखुटिया में जनता ने आबकारी निरीक्षक को अपनी जीप में शराब ले जाते पकड़ा और इसके खिलाफ जनता का सुरा-शराब के पीछे इतने दिनों का गुस्सा एक साथ फूट पड़ा। एक आंदोलन की शुरुआत हुई, २ फरवरी, ८४ को ग्राम सभा बसभीड़ा में उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी ने एक जनसभा में इस आंदोलन की प्रत्यक्ष घोषणा कर दी। फरवरी के अंत में चौखुटिया में हुये प्रदर्शनों में ५ से २० हजार जनता ने हिस्सेदारी की।......

पंकज सिंह महर:
...इसके बाद आंदोलन असाधारण तेजी से फैला, मासी, भिकियासैंण, स्याल्गे, चौखुटिया, द्वाराहाट, गगास, सोमेश्वर, ताड़ीखेत, कफड़ा, गरुड़, बैजनाथ होते-होते यह आंदोलन अल्मोड़ा जिले की सीमा भी पार कर गया। जगह-जगह जनता ने सुरा-शराब के अड्डों पर छापा मारा या सड़को-पुलों पर जगह-जगह गाड़ी रोक कर करोड़ों रुपयों की सुरा-शराब पकड़वाई। इस जहरीले व्यापार में लिप्त लोगों का मुंह काला किया गया, प्रदर्शन, नुक्कड़ नाटक, सभायें होती रहीं। पहाड़ के एक बहुत बड़े हिस्से में जनता में उत्साह और सुरा-शराब के व्यापारियों में आतंक छा गया। सुरा-शराब की खपत में असाधारण रुप से गिरावट आई। महिलाओं ने निडर होकर घर से बाहर निकलना शुरु किया, सन ८४ की होलियां बहुत सालों बाद इन गांवों के महिलाओं व पुरुषों ने एक साथ बड़े उत्साह से महाई, पहाड़ के ताजा इतिहास में शायद पहली बार किसी आंदोलन में महिलाओं को इतना समर्थन मिला, क्योंकि सुरा-शराब से सबसे ज्यादा महिलायें प्रभावित हो रहीं थीं।

पंकज सिंह महर:
.....उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी, जो सुरा-शराब के खिलाफ चल रहे आन्दोलन की अगुवा है, का शुरु से ही मानना है कि यह एक सुधारवादी आंदोलन नहीं है, बल्कि जनचेतना को विकसित करने और उसे अन्य लड़ाईयों से जोड़ने का आंदोलन है। इसलिये जब २०-२१ मार्च को अल्मोड़ा में शराब की नीलामी की घोषणा हुई तो, दो माह तक देहात की उर्वरा भूमि में सफलतापूर्वक आंदोलन चलाने के बाद उ०सं०वा० ने सुरा-शराब लाबी से प्रभावित सरकार और उसके प्रशासन से दो-दो हाथ करने की ठानी। २० मार्च, ८४ को अल्मोड़ा में जनता का ढोल-नगाड़ो-निशाणॊम का विशाल प्रदर्शन अद्भुत प्रभाव छोड़ गया, इस जन दबाव के डर से प्रशासन ने नीलामी २६-२७ मार्च तक टाल दी। २६ मार्च को अल्मोड़ा बंद रहा। नीलामी का विरोध करने पर १५ लोगों को गिरफ्तार कर लिया ग्या। २७ मार्च को एक महिला ग्राम प्रधान के प्रदर्शन ने दोबारा भी नीलामी नहीं होने दी। तीन कुख्यात शराब व्यापारियों को गरमपानी की जनता ने अल्मोड़ में मुंह काला करके घुमाया। इससे सिर्फ सुरा-शराब व्यापारी ही नहीं, बल्कि पुलिस व शासन भी डर गया। अंततः सरकाने ने गुपचुप तरीके से टैंडरों के द्वारा नीलामी करवाई।
       शराब के ठेके शुरु हुये तो धरने भी शुरु हुये, अल्मोड़ा, रानीखेत, भवाली और रामगढ़ में भट्टियों के आगे ऎसे धरने हुये। लेकिन अब आंदोलनकारी देहात से निकलकर नगरों और कस्बों में आ गये। आंदोलन की दृष्टि से यह विवेकपूर्ण निर्णय नहीं था। सरकार-प्रशासन के लिये कालापानी जैसे देहाती क्षेत्रों मॆं जनता अपने मन की कर सकती थी, लेकिन नगरों और कस्बों में पुलिस-प्रशासन भी था, उसके द्वारा समर्थित गुंडे और सुरा-शराब के पैसों पर पलने वाले, उठा-पटक में निष्णात राजनीतिक दल भी , आंदोलनकारियों की दिक्कत बढ़ाने लगे।
       ५ अप्रैल को अल्मोड़ा में धरना देती महिलाओं पर गुंडों द्वारा हाकी चलाई गई, १२ अप्रैल को सोमेश्वर में शर्मनाक तरीके से पी०ए०सी० ने दमन किया और आठ लोगों को गिरफ्तार किया। इसी दिन भवाली में भट्टी के बाहर रामायण पढ़ रही महिलाओं को गुंडों ने खदेड़ दिया।

पंकज सिंह महर:
......इधर आंदोलन अपने संकटों से गुजर रहा था, उधर २० अप्रैल, को प्रदेश सरकार ने अल्मोड़ा जनपद में एक अस्पष्ट सी शराबबंदी लागू कर दी। जेल में बंद ३३ आंदोलनकारियों को छोड़ दिया गया, इस घटना से आंदोलनकारियों का उत्साह बढ़ गया और नैनीताल जिले में आंदोलन का प्रसार होने लगा। रामगढ़, भवाली और नैनीताल में आंदोलन की गति तेज होने लगी। नैनीताल में घनी आबादी के बीचोंचीच स्थित भट्टी को बंद करवाने में जनता कामयाब हुई, नैनीताल में प्रदर्शनों का लम्बा सिलसिला प्रारम्भ हो गया, जिसे छात्र-छात्राओं, अनेक ट्रेड यूनियनों और अध्यापकों का भी समर्थन प्राप्त था।
      इसी बीच आंदोलनकारियों ने नैनीताल मुख्यालय में क्रमिक और आमरण अनशन करने का निर्णय लिया। आजादी के बाद के वर्षों में आंदोलन का घिसा पिटा तरीका अपनी अपील खो चुका था और जनता के बीच अपनी गहरी पैठ रखने वाले आंदोलनकारियों के लिये अचूक अस्त्र कभी नहीं माना जा सकता था। अनशन के नौवें दिन ३ पुरुष और २ महिला अनशनकारियों को गिरफ्तार कर लिया ग्या। जिनपर लगाये गये अभियोग दो माह बाद वापस ले लिये गये, अनशन कुछ दिन और जारी रहा, पर्वतीय विकास मंत्री, उ०प्र० के आमंत्रण पर अनशनकारी लखनऊ गये, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल पाया। यह भी बहुत अधिक स्पष्ट नहीं हो सका कि प्रदेश सरकार और आंदोलनकारियों के बीच क्या-क्या बातें हुई?

पंकज सिंह महर:
.....इस बीच पर्यटन की आड़ लेकर सुरा-शराब लाबी ने नैनीताल में आंदोलन का अप्रत्यक्ष रुप से विरोध शुरु करवा दिया। सत्ताधारी कांग्रेस(ई) द्वारा समर्थित एक विपरीत आंदोलन एक ट्रैवल एजेंसी के माध्यम से उजागर हुआ। १५ जून को शराब के पक्ष में एक बचकाना प्रदर्शन तथा आम सभा हुई, जिसे तीसरे दशक में शराब की दुकानों पर पिकेटिंग कर चुके एक वृद्ध नेता, जो हाल ही में दलबदल कर कांग्रेस में आये हैं, ने सम्बोधित किया। दो दिन बाद १७ जून, ८४ को मूसलाधार वर्षा के बीच संघर्ष वाहिनी के आह्वान पर एक ऎतिहासिक प्रदर्शन नैनीताल में हुआ, जिसमें ढोल-नगाड़ों, निशाणॊं के साथ पहाड़ के कोने-कोने से आये हजारों लोगों ने भागीदारी दी।
      आंदोलन अभी जारी है, उत्तराखंड संघार्ष वाहिनी इन दिनों, सुरा, बायोटानिक जैसे १० प्रतिशत से अधिक नशीले द्रव्यों के खिलाफ लाखों लोगों के हस्ताक्षर लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है और साथ ही जहां-जहां सम्भव हो, नगरों में, देहात में, मेलों मॆं, लोक शिक्षण का कार्यक्रम भी चला रही है।
       संघार्ष वाहिनी इस आंदोलन को सिर्फ सुरा-शराब के खिलाफ लड़ाई बनाकर नहीं रखना चाहती, "शराब नहीं रोजगार दो"  "कमाने वाला खायेगा-लूटने वाला जायेगा" "फौज-पुलिस-संसद-सरकार, इनका पेशा अत्याचार" जैसे नारे यही बतलाते हैं, दूसरी ओर जनता पूरे उत्साह के साथ इस आंदोलन में शिरकत कर रही हजारों-हजार जनता फिलहाल सुरा-शराब के अभिशाप से मुक्त होने से ज्यादा कुछ नहीं चाहती। उसे राजनैतिक दृष्टि से इससे अधिक सचेत होने में अभी वक्त लगेगा। इस कारण कभी-कभी एक संवादहीनता की सी स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे आंदोलन में ठहराव सा दिखाई देने लगता है।.......

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