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Heroes Of Wars From Uttarakhand - देश की रक्षा में शहीद उत्तराखंड रणबाकुरे

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Mahi Singh Mehta
 
यह एक साहसी मां की वीर पुत्र के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी है - अल्मोड़ा (uttarakhand)

आम तौर पर बच्चों द्वारा माता-पिता की स्मृति में मंदिर बनाने के उदाहरण मिलते हैं, लेकिन इकलौते बेटे के कारगिल में शहीद होने के बाद मां ने सरकारी सहायता के रूप में मिले पैसों से मंदिर बनाकर वहां बेटे की मूर्ति लगाई।

गांव में शहीद मोहन सिंह की स्मृति में सड़क भी बन चुकी है। गांव के लोग खास अवसरों पर मंदिर जाकर शहीद मोहन सिंह बिष्ट को याद करते हैं।

अल्मोड़ा तहसील के खड़ाऊं गांव निवासी मोहन सिंह बिष्ट चार जुलाई 1999 को कारगिल में शहीद हुए थे।
उस समस उनके पिता भीम सिंह का निधन हो चुका था। तब उनकी बहन सुंदरी का विवाह हो चुका था। मोहन सिंह अपने परिवार का अकेला सहारा थे।

मोहन सिंह के शहीद होने के बाद मां देबुली देवी को गहरा आघात पहुंचा। प्रशासन ने सरकार और सेना द्वारा दी गई सहायता राशि में से दो लाख रुपए उनकी मां देबुली देवी के नाम से एफडी के तौर पर रख दिए थे।

यह मां का बेटे के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक है कि अनपढ़ मां देबुली देवी ने सरकार से मिले सारे पैसों से बेटे मोहन की स्मृति में गांव में मंदिर बनाकर बेटे की मूर्ति स्थापित कराई।

बेटे की स्मृति में बनाए राधा-कृष्ण के इस मंदिर परिसर के बाहर शहीद मोहन सिंह की मूर्ति लगाई गई है।शहीद मोहन सिंह की यह मूर्ति मुंबई से बनकर आई। मूर्ति बनवाने में शहीद मोहन सिंह के जीजा शमशेर सिंह मेहरा ने भी सहयोग किया। जो मुंबई में नौ सेना में काम करते हैं। मूर्ति के अनावरण के मौके पर पत्नी विमला देवी भी परिवार सहित दिल्ली से गांव आई थीं।

गांव के लोगों ने बताया कि मंदिर में लोग पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही कारगिल दिवस और अन्य अवसरों पर लोग शहीद मोहन सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं।

देबुली देवी का निधन छह साल पहले हो चुका है। शहीद की पत्नी और बच्चे दिल्ली में रहते हैं। हालांकि उनका गांव आना-जाना रहता है। 1999 में मोहन सिंह के शहीद होने के चार माह बाद उनका बेटा हुआ। जो इस समय दसवीं का छात्र है। दो बेटियां दिल्ली में पढ़ रही हैं। जबकि सबसे बड़ी बेटी का विवाह हो चुका है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
पिता 71 की लड़ाई में, बेटा कारगिल में शहीद - पिथौरागढ़

कारगिल शहीद जवाहर सिंह धामी के परिवार ने इस देश की रक्षा में बलिदान दिया था। ऐसे उदाहरण बहुत कम होंगे एक परिवार की दो पीढ़ियां देश के लिए शहादत दे चुकी हों और एक पीढ़ी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भागीदारी की।

पिथौरागढ़ जिले के मूनाकोट विकासखंड के अंतर्गत मड़मानले के पास अखुली गांव के इस परिवार की गाथा स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने देश की रक्षा के लिए सेवा की थी।

कारगिल में जवाहर सिंह धामी की शहादत के बाद इस परिवार की अगली पीढ़ी अखुली गांव छोड़ चुकी है।

1991 में सेना में भर्ती हुए
जवाहर सिंह धामी 26 मई 1999 को कारगिल सेक्टर में दुश्मन के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। वह 25 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। उनकी टुकड़ी गश्त पर थी। तभी दुश्मन के साथ भिड़ंत हो गई। दुश्मन के आठ सैनिक मारे गए। शहीद जवाहर सिंह को कई गोलियां लगी थीं। जवाहर सिंह 1991 में सेना में भर्ती हुए थे। उसी साल उनका विवाह लीला देवी से हो गया। उनकी एक पुत्री है।

दादा दान सिंह धामी भी भारतीय सेना में थे
जवाहर सिंह के दादा दान सिंह धामी भी भारतीय सेना में थे। दूसरे विश्व युद्ध के समय 1942 की लड़ाई में भाग लेने के बाद जब वह रिटायर होकर घर आए तो उनका बीमारी से निधन हो गया। उनके बाद जवाहर के पिता कमान सिंह धामी ने भी भारतीय सेना ज्वाइन कर ली।

1971 में भारत-पाक युद्ध के समय जम्मू-कश्मीर में कमान सिंह धामी शहीद हो गए। तब जवाहर सिंह की उम्र मात्र एक साल की थी। माता झूपा देवी ने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने बेटे को जवाहर सिंह को बंदा प्राथमिक स्कूल से प्राइमरी तक की शिक्षा दिलवाई। हाईस्कूल की शिक्षा के लिए वह राजकीय इंटर कॉलेज मड़मानले आ गए।

हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करते ही वह सेना में भर्ती हो गए, लेकिन झूपा देवी को बेटे का यह सुख भी ज्यादा समय तक नहीं मिल पाया। पहले ससुर की आकस्मिक मौत, फिर पति और बेटे की शहादत से झूपा देवी बुरी तरह टूट गई। अब वह बहू लीला देवी और नातिन के साथ रहती हैं। परिवार को पेंशन मिलती है। पिथौरागढ़ के बस्ते गांव में उन्होंने मकान बना लिया है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
 जिला टिहरी गढ़वाल, देवप्रयाग ब्लाक के
मोल्या गांव के वीर शहीद दीप रावत की शहादत
को कोटि कोटि नमन | गढ़वाल रायफल में तैनात
उत्तराखंड के वीर सपूत दीप रावत को कल राजकीय
सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी | भगवान,
शहीद दीप रावत के परिजनों को इस दुःख की घड़ी से
लड़ने की शक्ति दें | हम सब आपके साथ हैं तथा शहीद
दीप रावत के अभूतपूर्व साहस एवं बलिदान से
उत्तराखंड, मोल्या गांव एवं सम्पूर्ण
भारतवासियों को आप पर गर्व है |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड के जांबाज को मिला ‘कीर्ति चक्र’

उत्तराखंड के जांबाज सूबेदार अजय वर्धन तोमर को मरणोपरांत ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया गया है। एक दिसंबर 2014 को जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए वह शहीद हो गए थे।

मूलत: पौड़ी गढ़वाल के पट्टी लंगूर तल्ला के जवाड़ गांव और देहरादून में माजरी माफी निवासी सूबेदार अजय वर्धन तोमर 14 गढ़वाल राइफल्स में थे। एक दिसंबर 2014 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नौगाम सेक्टर में घुसपैठ कर रहे आतंकियों से मुठभेड़ में तोमर शहीद हो गए थे।

48 घंटे तक चली मुठभेड़ में सैन्य टुकड़ी ने लश्कर-ए-तैय्यबा के कुछ आतंकियों को ढेर किया था। तोमर ने सालभर पहले ही दून में मकान बनाया था। शहीद की पत्नी लक्ष्मी सास, बेटी भूमिका और बेटे अक्षत संग यहां रहती हैं।

भूमिका नवीं, जबकि अक्षत पांचवीं कक्षा में पढ़ता है।सूबेदार अजय वर्धन को मरणोपरांत कीर्ति चक्र मिलने पर परिवार गर्व महसूस कर रहा है। भूमिका और अक्षत ने कहा कि� जांबाज पिता पर उन्हें हमेशा नाज रहेगा। बता दें कि इस पुरस्कार के एवज में प्रदेश सरकार की ओर से शहीद के परिजनों को आर्थिक सहायता दी जाती है।

हरीश गिरि, ईश्वरी लाल टम्टा, जीत सिंह को राष्ट्रपति पदक
रुद्रपुर के अग्निशमन अधिकारी हरीश गिरि, रेडियो इंस्पेक्टर ईश्वरी लाल टम्टा और 31 बटालियन के प्लाटून कमांडर विशेष श्रेणी जीत सिंह को गणतंत्र दिवस पर सोमवार को देहरादून में सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया जाएगा। देहरादून में राज्यपाल केके पाल उन्हें सम्मानित करेंगे।

मूलरूप से अल्मोड़ा के बजवाड़ निवासी हरीश गिरी 1978 में पुलिस में भर्ती हुए। नौकरी के दौरान ही उन्होंने पढ़ाई पूरी कर फायर सेफ्टी में डिप्लोमा और एलएलबी किया। अपने कार्यकाल के दौरान वे नैनीताल, पिथौरागढ़, देहरादून के साथ ही उत्तर प्रदेश के बरेली और पीलीभीत में भी तैनात रह चुके हैं।

एफएसओ हरीश गिरी ने मोबाइल पर बताया कि दिसंबर 2013 से वह रुद्रपुर में तैनात हैं। वर्ष 2010 में सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। बताया कि फिलहाल उनका परिवार हल्द्वानी में रह रहा है। उधर, ईश्वरी लाल टम्टा 1976 में पुलिस सेवा में आए।

वे मूलरूप से बागेश्वर के गांव उडेरखानी के मूल निवासी हैं। तीनों की इस उपलब्धि पर एसएसपी नीलेश आनंद भरणे, एएसपी टीडी वैला, सीओ सिटी राजीव मोहन, सीएफओ एनएस कुंवर ने बधाई दी है।

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