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Hisotry of Uttarakhand Sagartal garh-राजा धामदेव क़ी "सागर ताल गढ़ " विजय गाथा)

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सागर ताल गढ़ विजय  से धामदेव कि ख्याति दूर दूर तक फ़ैल चुकी थी और मौलादेवी अब कत्युर वंश कि राजमाता मौलादई के नाम से अपनी कत्युर का राज चलाने  लगी | धामदेव को दुला शाही  के नाम से भी जाना जाता था वह कत्युर का मारझान (चक्रवर्ती ) राजा था और उसकी राजधानी वैराठ-लखनपुर थी उसके राज में सिद्धों का पूर्ण  प्रभाव  था और दीवान पद पर महर जाति के वीर   ,सात भाई निन्गला कोटि और सात भाई पिंगला कोटि  प्रमुख थे |धामदेव अल्पायु में कि युद्ध करते हुए शहीद  हो गया था परन्तु उसकी सागर ताल गढ़ विजय का उत्सव आज भी उसके भगत जन धूमधाम से मानते है वह कत्युर वंश में प्रमुख  प्रतापी राजा था जिसके काल को कत्युर वंश का स्वर्ण काल कहा जाता है जिसमे अनेकों मठ मंदिरों का निर्माण हुआ ,पुराने मंदिरों को जीर्णोद्धार किया गया  और जिसने अत्याचारियों  का अंत किया |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
वीर धाम देव तो भूतांगी होकर चला गया परन्तु आज भी सागर ताल  विजय गाथा उसकी वीरता का बखान करती है और कैंतुरी पूजा में आज भी उसकी खाणा और कटार पूजी ज़ाती है | कैंतुरी  वार्ता में "रानी जिया कि खली म़ा नौ लाख कैंतुरा  जरमी गयें " सब्द आज भी कैंतुरौं मैं जान फूंक कर पश्वा रूप में अवतरित हो जाता है और युद्ध सद्रश   मुद्रा में  नाचने लगता है धामदेव समुवा को मरने कि अभिव्यक्ति देते हैं तो नकुवा  जजीरौं  से बंधा होकर धामदेव से अनुनय विनय कि प्रार्थना करने लगता है तो विछुवा को  काले कम्बल से छुपा कर  रखा जाता है | इसके उपरान्त समैण पूजा में एक जीवित सुकर  को गुफा में बंद कर दिया जाता है और रात में  विछुवा समैण को अष्टबलि   दी ज़ाती है जो कि घोर अन्धकार में सन्नाटे   में  दी ज़ाती है और फिर चुप चाप अंधेरे में गड़ंत करके बिना किसी से बात किये  चुपचाप आकर एकांत में वास  करते हैं और तीन दिन तक ग्राम  सीमा से बहार प्रस्थान नहीं करते अन्यथा समैण लगने का भय बना रहता है | धामदेव कि पूजा के विधान से ही समुवा कि क्रूरता और उस काल में उसके भय का बोध होता है | उसके बाद दल बल के सात  और शस्त्र और वाद्या  यंत्रों के सात जब गढ़ के समीप  दुला चोड़ में धामदेव कि पूजा होती है तो धामदेव का पश्वा और ढोल वादक गढ़ कि गुफाओं में दौड़ पड़ता  है   और तृप्त होने पर स्वयं जल से बहार आ जाता हैं उसके बाद बडे धूम धाम-धाम  से रानी जिया कि रानीबाग स्थित  समाधि "चित्रशीला " पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
अब इसे वीर भडौं कि वीरता का प्रभाव कहें या गढ़-कुमौनी वीरों  कि वीरता शोर्य और बलिदानी इतिहास लिखने कि परम्परा  या फिर मात्रभूमि के प्रति उनका अपार  स्नेह ,कारण चाहे जो भी हो पर आज भी उत्तराखंडी बीर अपनी भारत भूमि कि रक्षा के लिये कफ़न बांधने वालौं  में सबसे आगे खडे नज़र आते है फिर चाहे  वह चीन के अरुणाचल सीमा युद्ध का "जसवंत बाबा  " हो पाकिस्तान युद्ध के अमर शहीद ,या विश्व युद्ध के फ्रांस युद्ध के विजेता या  " पेशावर क्रांति " के   अग्रदूत  " वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली " ,या कारगिल के उत्तराखंडी रणबांकुरे  या अक्षरधाम और मुंबई हमलों में  शहीद म़ा भारती के अमर सपूत , सब आज भी उसी   " वीर  भोग्या  बसुन्धरा " कि परम्परा का सगर्व  निर्वाहन  कर रहे हैं |
   
संदर्भ ग्रन्थ :  उत्तराखंड के वीर भड , डा ० रणबीर सिंह चौहान

                    गढ़वाल के गढ़ों का इतिहास एवं पर्यटन के सौन्दर्य स्थल  ,डा ० रणबीर सिंह चौहान 
                    ओकले तथा गैरोला ,हिमालय की लोक गाथाएं 
                    यशवंत सिंह कटोच -मध्य  हिमालय का पुरातत्व
विशेष आभार : डॉ. रणबीर सिंह चौहान, कोटद्वार  (लेखक और इतिहासकार ) --

Best Regards,

Geetesh singh negi
Geophysicist

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

More Details about 52 Garh of Garhwal, you can get from here.

http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-at-a-glance/52-garh-of-garhwal-52-%28exclusive%29/

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