Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 51303 times)

Bhishma Kukreti

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      गुप्त काल में धार्मिक यात्राएं

       Pilgrimages  and Religious beliefs in Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  246               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

      धामरिक यात्राएं
 गुप्त काल में धार्मिक यात्राओं का संदर्भ अभिलेखों , गुप्त कालीन साहित्य में मिलता है। गंगा का धार्मिक महत्व था याने हरिद्वार को धार्मिक ष्ठान महत्ता प्राप्त हो चुकी होगी।  गंगा स्नान को कई बीमारियों के निदान माध्यम माने जा लगा था। प्रयाग एक धार्मिक स्थल की मान्यता प्रॉपर कर चूका था जहां मृत्यु मोक्ष सामान मानी जाती थी। दक्षिण भारत के राजा सामंत भी प्रयाग संगम पर स्नान हेतु आते थे व दान देते थे।  प्रयाग में सोलह संस्कारों अनुष्ठान पूजा होती थी   बलि की प्रथा थी व ब्राह्मण को दान दक्षिणा का रिवाज था। एकादशी व्रत आदि प्रचलित थे
     अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्त राजा पक्के हिन्दू थे किन्तु अन्य धर्मों का पूरा आदर करते थे। गुप्त सम्राटों का व्यवहार बुद्ध व जैन धर्मावलम्बियों के प्रति सौहार्दपूर्ण था। संस्कृत भाषा का पुनरजन्म व पोषण गुप्त काल में हुआ। कई संस्कृत साहित्य इस काल में रचे गए। बौद्ध व जैन मुनियों ने भी संस्कृत में रचनाएँ रचीं।  गुप्त कालीन मंत्री घूम कर हिन्दू धर्म को बढ़ावा देते थे। गुप्त काल में हिंदी दर्शन शास्त्रों का प्रादुर्भाव हुआ .
       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient  History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;   seohara , Bijnor History Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार  इतिहास गुप्त काल ; तेलपुरा , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार गुप्त काल इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार  इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ;लक्सर हरिद्वार  इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार  गुप्त काल इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार  इतिहास ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर गुप्त काल   इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर गुप्त काल इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर गुप्त काल इतिहास , बेहत सहारनपुर गुप्त काल इतिहास , नकुर सहरानपुर गुप्त काल इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas


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      गुत्प काल में हिन्दू षट  दर्शन में अन्वेषण, भाष्य संकलन व विकास

       Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur - 247
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


        सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से गुप्त काल में हिन्दू षट दर्शन में विकास , पुनर्निरीक्षण व संकलन सम्पादन प्रमुख घटनाएं मानी जाएँगी।  हरिद्वार का कुछ न कुछ योगदान दर्शन विकास में रहा ही होगा। गुप्त काल में दोनों मीमांसाओं , सांख्य , योग , विशेषिका व न्याय दर्शनों को विधि सम्मत किया गया व उन्हें न्यायोचित संकलित किया गया।  साबरा भाष्य का संकलन लगभग 500 िश्वि में हुआ जो मीमांसा की व्याख्या करता है। पतांजलि व शंकर भाष्य प्रमुख भाष्य हैं।  4 थी सदी में ईश्वर कृष्णा ने सांख्य की व्याख्या 'सांख्यरिका' में की . व्यास भाष्य में पतंजलि योग की व्याख्या की गयी। काची के वात्सायन ने न्याय दर्शन भाष्य संकलित किया। 





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           गुप्त काल में बौद्ध धर्म

       Buddhism in Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  248               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

गुप्त सम्राट हिन्दू अनुयायी थे किन्तु अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु थे।  गुप्तों ने बौद्ध धर्म दोनों को प्रचुर ता से महत्व दिया।
गुप्त काल में महायान व हीनयान दोनों पंथ समृद्ध हुए दीपवम्सा व् महावम्सा इसी काल में रचे गए। बुद्धितसव ने विषुद्धिमग्गा की रचना की व अन्य साहित्य पर टीकाएँ लिखीं।
कश्मीर , अफघानिस्तान गांधार बौद्ध शिक्षा केंद्र थे।
 गुप्त काल में महायान पंथ अधिक से अधिक समृद्ध हुआ। नागार्जुन , आर्यदेव , असंग, वसुबन्धु इसी काल में हुए।
 महायान के दो सिद्धांत प्रचलित हुए मध्यमिका व योगाचार।  योगाचार का यह काल स्वर्णिम काल था।  गुप्त काल के अंत में दोनों पंथ एक दुसरे से दूर होते गए।  बौद्ध का तर्क शास्त्र का जन्म गुप्त काल में ही हुआ
गुप्त काल में बौद्ध धर्म अनुयायियों में लगातार ह्रास हो रहा था।  तथापि बौद्ध कला की समृद्ध काल भी यही काल था। अजंता , एलोरा , नाशिक , कपिलवस्तु , रामग्राम , सरवस्ती बौद्ध कला के प्रमुख केंद्र रहे बुध मठों में मायियों का प्रवेश भी इसी काल में शुरू हुआ।  गुप्त काल में कई विश्व प्रसिद्ध स्तूप ,चैत्री व अन्य वास्तु शिल्प निर्मित हुए। .  , बौद्ध धर्म में तांत्रिक विचारधारा गुप्त काल में नहीं थी
हरिद्वार , गोविषाण व बिजनौर बौद्ध धर्मों के शिक्षा केंद्र बने रहे। 





       





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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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       गुप्त काल में जैन धर्म

       Jainism in Gupta Era in context History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 249                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 जैन धर्म इतिहास में गुप्त काल का विशेष महत्व है।  गुप्त काल में जैन धर्मावलम्बियों के मथुरा व बल्लभी में दो महत्वपूर्ण सम्मेलन हुए।  इन सम्मेलनों ने धर्म हेतु लिखित साहित्य को सही किया या मतभेद दूर किये।  गुप्त काल में ही जैन धर्म पंडितों ने कई ग्रंथों की रचना संस्कृत में की। जैन दर्शन , जैन न्याय आदि की व्याख्या आदि   की दें है।  इन पंडितों में निर्युक्ति , उमास्वाति , सिद्धसेन , प्रमुख हैं।
    इस काल में जैन धर्म का प्रसार बंगाल , मैसूर , मथुरा , बल्लभी, तामिलनाडु  आदि क्षेत्रों में खूब हुआ।  वैसे जैन धर्म का प्रभाव हर तबके पर भी पड़ा। 
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 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


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      कालिदास साहित्य में बिजनोर , हरिद्वार , सहारनपुर वर्णन

           Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur in Kalidasa Literature
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
   कालिदास साहित्य चंद्र गुप्त काल की  है।
कालिदास ने उत्तराखंड विशेषकर गढ़वाल वर्णन अधिक किया है।

  अभिज्ञान  शाकुंतलम में बिजनौर व भाभर
अभिज्ञान शकंतुलम में पृथक अंक में कण्वाश्रम व मालनी नदी का वर्णन है जो अजमेर गढ़वाल , भाभर व बिजनौर के क्षेत्र में आता है द्वितीय , तृतीय व चतुर्थ अंक की घटनाएं भी कण्वाश्रम की हैं याने गढ़वाल व बिजनौर का समावेश ही है।
    कालिदास साहित्य में कण्वाश्रम
  कुलपति कण्व का आश्रम आज के भाभर (कोटद्वार , बिजनौर,  क्षेत्र ) में स्थित था।  आज भी भाभर में कण्वाश्रम नाम चलता है। आश्रम मालनी तट के दोनों ओर बसा था। गौरी गुरु नामक पर्वत श्रेणी वर्णन है।
कण्वाश्रम हिमलय के तलहटी में बसा था।  यद्यपि कण्वाश्रम में रथ आ सकते थे फिर भी भूमि ऊपर नीचे थी।
    मेघदूत में कनखल व सावधानी वर्तनी पड़ती थी (शकुंतला अंक -१)
कण्वाश्रम में दस सहस्त्र ऋषि व छात्र अध्ययन करते थे (शकुंतला अंक ५ ) अर्थात निकट कृषि क्षत्र रहा होगा।
मालनी से नहरों की भी चर्चा कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतलम मेंहै कई वनस्पतियों व जानवरों का उल्लेख मिलता है।

पूर्व मेघदूत में यक्ष मेघ से कुरुक्षेत्र से कनखल होते हुए हिमालय श्रेणियों में जाने की पैरवी करता है। उत्तर मेघदूत कव १ वे अंक में कनखल का उल्लेख हुआ है। कुरुक्षेत्र से कनखल सहारनपुर क्षेत्र से ही आया जाया जा सकता था।
 मालिनी नदी - कण्वाश्रम में बहने वाली नदी आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है। मालिनी के बारे में विद्वानों जैसे भगवत शरण अग्रवाल का मत है  तब यह नदी सहारनपुर , अवध से होते हुयी घाघरा में गिरती थी
भाभर /बिजनौर की जलवायु - भाभर याने भाभर , हरिद्वार , सहारनपुर के बारे में कालिदास ने शकुंतला में व मेघदूत में वर्णन किया है।  ग्रीष्म में भाभर में वृक्षों से पत्ते झड़ जाते थे

(शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ , पृष्ठ ३१४ - ३४० )
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    कालिदास साहित्य में हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर भाषा समाज आदि वर्णन

      Various Aspects in Kalidasa literature about Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  251               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
 यद्यपि कालिदास साहित्य में हिमालय अधिक बर्णित है तथापि भाभर , कनखल आदि वर्णन से हम उस समय /गुप्त काल के इतिहास की जांच पड़ताल क्र ही सकते हैं।
 हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर की जनसंख्या अनुमान
कण्व आश्रम में सैकड़ों मुनि व विद्यार्थी अध्ययन व अध्यापन कार्य करते थे जिससे अनुमान लगाया जा सकता है निकटवर्ती भूमि उत्पादक अवश्य थी।
शिवालिक में कुटिया - लोग कुटियाओं में रहते थे , गाय भैंस पालते थे (शाकुंतलम भाग ४ )
वेशभूषा - स्त्रियां श्रृंगार करतीं थी।  धनी धातु आभूषण प्रयोग करते थे तो कम धनी फूल, पादप के आभूषण आदि प्रयोग करते थे।  मुख पर विभिन्न लेपों का उल्लेख भी शकुंतलम में मिलता है।
साधारण जन सस्ते व सुलभ वस्त्र पह्न्नते थे छल के वस्त्र भी प्रयोग होते थे संभवतया भांग रेशे प्रयोग होते थे। घरों में कास्ट व मरडिका पात्र प्रयोग होते थे।  घट प्रयोग होते थे।
भाषा - ज्ञाता संस्कृत व आम जन प्राकृत याने स्थानीय भाषा बोलते थे
मनोरंजन साधन - चित्रकला व संगीत मुख्य मनोरंजन साधन थे तथापि खिलौने , खेल , क्रीड़ाएं भी प्रचलित थे।
स्वभाव - पर्वतवासी सीधे सरल स्वभाव के होते थे  मैदानी अधिक व्यवहार कुशल चतुर होते थे।
(शिव प्रसाद डबराल, उत्तराखंड इतिहास भाग -३ पृष्ठ -३२० से ३३२ )

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Bhishma Kukreti

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    मौखरि   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास 
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in  Maukharis   Period -1
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  252
                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  252               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती

  हूण आक्रमणों के कारण गंगा पश्चिम में गुप्त शासन चरमर्रा गया था।  इससे लाभ उठाकर थानेश्वर में पुष्य भूमि के वंशजों व मध्य देश अथवा  वर्तमान उत्तर प्रदेश के बड़े भूभाग पर मुखर वंशजों ने अधिकार कर लिया। मुखर या मौखरियों ने कन्नौज को राजधानी बनाई।


यो मौखरै:समीतिषपूद्धतहूण सैन्यावबल्गद घटा बिघटयन नरुबारणानाम

(आदित्यसेन का अफ़साड़  अभिलेख )


चटर्जी अनुसार मौखरि वंशज के प्रथम शासक हरि  वर्मन , आदित्य वर्मन व ईश्वर वर्मन सम्भवतया गुप्त नरेशों के क्षेत्रित राजयपाल या सामंत थे।  गुप्त नरेशों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित होने से मुखर वंशियों की प्रतिष्ठा  बढ़  चुकी थी।

     मौखरि राजाओं का राज्य  क्षेत्र


नरवर्मन के सिरोली अभिलेख व हर्ष अभिलेख से पता चलता है कि मौखरि  वंश राजाओं का राज मगध का कुछ हिस्सा , गया से उत्तर प्रदेश  मध्य हिमालय , स्रुघ्न प्रदेश , दक्षिण में था , थानेश्वर से सीमा लगती थी। (डबराल )  इससेसाबित होता है कि मौखरियों  का हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर पर अधिकार था।  संभवतया प्रसासन उनके सूबेदार देखते रहे होंगे

      मौखरियों  की दूसरी शाखा भी थी किन्तु उस शाखा का हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर से संबंध न था व वः शाखा गुप्त काल के उपरान्त की है ।

 शासन काल

  ईशान वर्मन से गृह वर्मन तक का काल 550 से 605 िश्वि आंका गया है (महाजन ने मजूमदार का ंदर्भ से जतलाया है )

 संदर्भ

चटर्जी , गौरी शंकर , हर्षवर्धन

शिव प्रसाद डबराल (1975 ) उत्तराखंड का इतिहास भगा ३ , पृष्ठ 372 -77

महाजन वी डी ,ऐनसियंट इंडिया पृष्ठ 594 -599

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ईश्वर  वर्मन  मौखरि शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास 
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Rule of Ishwar varman ,  Maukharis   Period -2
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  253                   
                         
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  253               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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 महाजन अनुसार आदित्य वर्मन के बाद उसका पुत्र ईश्वर वर्मन गद्दी पर बैठा व उसका शासन काल 554 ईश्वी से पहले ही होना चाहिए।  ईश्वर वर्मन की उपाधि महाराजा थी। जौनपुर अभिलेख से हमें महत्वपूर्ण सूचनाएं मिलती हैं।  लिखा है कि धारा पथ से अग्नि पुंज आया । यह मालवा के मुखिया यशो वर्मन की हार का संदर्भ है। और संभवतया यशो वर्मन ने अपनी राजधानी मंदसौर से धारा स्थान्तरित की हो।  अभिलेखों से पता चलता है कि ईश्वर वर्मन ने आंध्रा को भी जीता था।  इसी अभिलेख से ज्ञात होता है कि ईश्वरवर्मन ने किसी अन्य राजा को भी जीता था जिसने  रायवोटका पर्वत पर संन्यास लिया।
इसका तातपर्य है कई ईश्वर वर्मन ने सौराष्ट्र व काठियावाड़ के आक्रांता को भी हराया था।
 असरगढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि ईश्वर वर्मन का विवाह  देवी उपगुप्त से हुआ था।  संभवतया उपगुप्त मगध नरेश गुप्त की राजकुमारी थी।
 हर्ष वर्धन अभिलेख से ज्ञात होता है कि ईश्वर वर्मन दयालु। वीर , दानी , महत्वाकांक्षी , सत्य , नीति पालक व उदार नरेश था।
ईश्वर वर्मन के बाद उसका पुत्र मौखरी राजगद्दी पर बैठा।

सन्दर्भ :

 महाजन  वी डी , (1998 )  ऐनसियंट  इंडिया  ऐस  .  चंद  ऐंड  कम्पनी लि   . दिल्ली , पृष्ठ 597 . 598

 

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Ishwar varman Rule ,  History of  Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule , History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule , History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule ,  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ishwar varman Rule ,  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule ,  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule ,   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ishwar varman Rule ,  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ishwar varman Rule , History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule ,  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ishwar varman Rule , History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ishwar varman Rule ,  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ishwar varman Rule , History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ishwar varman Rule , History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ishwar varman Rule , History of Bijnor;   Seohara , Bijnor History  ,  Ishwar varman Rule ,  History of Nazibabad Bijnor ;    Ishwar varman Rule , History of Saharanpur;   Ishwar varman Rule ,  History of Nakur , Saharanpur;    Ishwar varman Rule ,   History of Deoband, Saharanpur;     Ishwar varman Rule ,  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ishwar varman Rule , Saharanpur History,     Ishwar varman Rule , Bijnor History;

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ईशान   वर्मन  मौखरि शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Rule of Ishan  varman ,  Maukharis   Period -3
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  254                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  254                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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    ईशान वर्मन ने अपने पिता ईश्वर वर्मन से राजगद्दी प्राप्त की व महाराजधिराज उपाधि ली।  हर्ष अभिलेखों में ईशान वर्मन की प्रशंसा हुयी है। महाजन (वही पृष्ठ 508 ) ईशान वर्मन ने आंध्र सुलिक  व गौड़ राज जीते।  सलीका या चोला जीत मौखरि काल की सबसे बड़ी जित बताई जाती है।  सतलज से पश्चिम में मौखरि राज नहीं था। 
   
  ईशान वर्मन , सर्व वर्मन व अवन्ति वर्मन की कई मुद्राएं मिली है
महाजन डा आर सी मजूमदार का संदर्भ देते हुए लिखता है कि -
ईशान वर्मन का शासन काल - 558 -576 ईश्वी
सर्व वर्मन काल  576 -580 ईश्वी
अवन्ति वर्मन काल  - 580 से 600 ईश्वी तक रहा था   
  संभवतया ग्रह वर्मन अवन्ति वर्मन का पुत्र था व रभकर वर्मन की पुत्री राजयश्री से उसका परिणय हुआ।  गृह वर्मन को संभवतया गौड़ राजा ने मारा व उसकी पत्नी को बंधक बनाया गया था। बाद में हर्ष वर्धन कनौज शाहक बना।  शायद कुछ हिस्सों पर तब भी मौखरि शासन था।

उत्तर प्रदेश गजेट बिजनौर  (1981 ) के पृष्ठ २५ में उद्घृत है कि अछिछत्र /रामनगर में मौखरि  सिक्के मिलने से अंदाज लगता है कि बिजनौर गृह वर्मन काल में मौखरि राज्य में सम्मलित हुआ। ई  ए  पायर्स (द मौखरीज 1983  , पृष्ठ 40 ) में सहारनपुर का मौखरि राज्य का अंग सिद्ध करने हेतु काडसा मुद्राओं का उल्लेख हुआ है।  उमा प्रसाद थपलियाल ने ( उत्तरांचल: हिस्टोरिकल ऐंड कल्चरल प्रोस्पेक्टिव्स पृष्ठ 29 ) हरिद्वार को मौखरि राज के अंतर्गत बताया है।
सन्दर्भ :

 

 

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IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of  Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Bijnor;   Seohara , Bijnor History  ,  IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    IshanVarman Maukhari rule and Ancient History of Saharanpur;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    IshanVarman Maukhari rule and Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     IshanVarman Maukhari rule and Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   IshanVarman Maukhari rule and Ancient Saharanpur History,     IshanVarman Maukhari rule and Ancient Bijnor History;

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हर्षवर्धन के पूर्वज

 हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -1
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 1
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  255                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  255               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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 हर्ष शासन का ज्ञान हमे बाण भट्ट के हर्षचरित , हर्ष ताम्रपत्र , अभिलेखों व चीनी यात्री युआन चांग सन्दर्भों / यात्रा वर्णन से मिलता है।
 युआन चांग अनुसार पश्चिम यमुना से लेकर स्रुघ्न (बिजनौर , हरिद्वार  सहारनपुर मिलकर ) , ब्रह्मपुर (पहाड़ी उत्तराखंड ) हर्ष शासन अंतर्गत थे।  हर्ष से पूर्व इन जनपदों पर मौखरि  शासन था (डबराल ).
     हर्षचरित अनुसार  शासन संस्थापक पुष्यभूति थानेश्वर निकट श्रीकंठ का शासक था।  हर्ष ताम्रशाशनव मुद्राओं अनुसार हर्ष के पूर्वजों में नरवर्धन , राज्यवर्धन , आदित्यवर्धन व प्रभाकर वर्धन थे।
 मजूमदार अनुसार नरवर्धन से आदित्यवर्धन शासन काल 500  से 580  ई  बैठता है।  हर्ष पूर्वजों ने क्षीण गुप्त शासन का लाभ उठाकर अपने साम्राज्य को ताकतवर बनाया। कुछ समय तक वर्धन शासक चुपचाप हूणों व मौखरि काल अपनी शक्ति वर्धन करते गए और मौखरि के अंतर्गत भी रहे ।
    आदित्यवर्धन के पुत्र प्रभाकर वर्धन ने परम भट्टारक महाधिराज विरुद धारण किया जिससे अनुमान लगाना सरल है कि प्रभाकरवर्धन ने अपनी शक्ति वृद्धि की।  प्रभकरवर्धन ने मौखरि से स्वंत्र सत्ता घोषित करने में कोई देर न लगाय होगी।
     मजूमदार अनुसार प्रभाकर वर्धन का राज्य पंजाब , पश्चिम में व्यास  नदी तक  में यमुना नदे तक प्रसार किया व दक्षिण में मरुभूमि थी।
       प्रभाकर के दो पुत्र थे हर्षवर्धन व राजयवर्धन।   पुत्री राजकुमारी राजयश्री का विवाह मौखरि राजा गृह वर्मन से हुयी थी (बांसखेड़ा ताम्रशासन ) .

सन्दर्भ :युआन

 

 आर सी   मजूमदार, 1970 , क्लासिकल एज  पृष्ठ   97

हर्षचरित , पृष्ठ  168 , 169

डबराल , उपरोक्त  पृष्ठ 378 -79

महाजन , उपरोक्त

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