Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50718 times)

Bhishma Kukreti

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राजयवर्धन की सूचना

Rajya-Vardhana 

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -2
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 2
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  256                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  2556               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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प्रभाकर वर्धन के समय सहारनपुर , हरिद्वार व बिजनौर पर किसका शासन था की सूच्चना नहीं मिलती क्योंकि मजूमदार अनुसार प्रभाकर वर्धन का राज्य पंजाब से यमुना तक था तो यमुना से रामगंगा तक  मौखरि शासन रहा होगा
  हर्ष चरित व मजूमदार (उपरोक्त ) अनुसार प्रभाकर वर्धन की मृत्यु समय प्रभाकर वर्धन का बड़ा पुत्र राज्य वर्धन उत्तर में हूणों से युद्ध में व्यस्त था। प्रभाकर की मृत्यु बाद ही वह लौट सका। राज्य वर्धन राज्य संभालने हेतु तैयार न था वः सन्यास लेना चाहता था किन्तु तभी सूचना मिली कि मालव राज ने कनौज पर आक्रमण किया , ग्रहवर्मन का वध कर दिया व राजश्री (राज्यवर्धन की भीं ) को कारागार में बंद कर दिया है।   उत्तेजित हो राज्य वर्धन कनौज पंहुचा व उसने मालव नरेश को सरलता से पराजित कर लिया किन्तु ाल्व नरेश के सहायक ने राज्य वर्धन को दिखावटी स्वागत समारोह में धोखे से मार गिराया।  (हर्ष चरित ) 
सन्दर्भ :

 शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ , पृष्ठ ३८१

 

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कनखल , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; तेलपुरा , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; सकरौदा ,  हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; भगवानपुर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ;रुड़की ,हरिद्वार का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; झाब्रेरा हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; मंगलौर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ;लक्सर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ;पाथरी , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; बहदराबाद , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ; लंढौर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर   इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; देवबंद सहारनपुर का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान , बेहत सहारनपुर का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान , नकुर सहरानपुर का प्राचीन इतिहास में राज्यवर्धन स्थान Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

 

Bhishma Kukreti

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हर्षवर्धन  का पांचाल पर अधिकार

Harsha -Vardhana Capturing Panchal

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -3
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 3
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  257                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  257                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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हर्ष चरित (उ ७ , पृष्ठ ३८२ ) से विदित होता है कि जब हर्ष वर्धन को राज्यवर्धन की हत्या की सूचना मिली तो हर्ष सेना लेकर कनौज की ओर चल पड़ा। मार में उसे आसाम (प्राग ज्योतिष ) का दूत मिला जो मित्रता संदेश व् भेंट लाया था (हर्षचरित उ ७ , पृष्ठ ४०४ ) . कुछ समय बाद हर्ष को समाचार मिला कि उसकी भीं राज्य श्री व कुछ मौखरी  राज्याधिकारी कारावास से भागकर विन्ध्याचल वन कि ओर चलीं गयीं है।  हर्ष के आगमन व पड़ोसी देश की हर्ष से मित्रता के भी से गौडाधिपति शशांक गौड़ प्रदेश  की ओर भाग गया।
    हर्ष ने राज्यश्री को विन्ध्याचल वन में खोजा जब कि वह सती होने जा रही थी।  बौध आचार्य दिवाकर मित्र से राज्यश्री ने व्ह्चं सुने व वः बौध मत के प्रति श्रद्धालु हो गयी। 
  हर्ष वर्धन ने गौड़ नरेश को ददंड कार्य अपने सेनापति भांड को सौंपा और कन्नौज की ओर चल पड़ा।
    राज्यश्री , अधिकारियों व बौध आचार्य के आग्रह युक्त परामर्श से हर्ष ने पांचाल (कान्यकुब्ज ) व स्थानेश्वर दोनों राज्यों पर राज्य अधिकार करने  को स्वीकृत किया। 
सन्दर्भ :

 

 बाण  भट्ट रचित हर्षचरित

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हर्षवर्धन द्वारा राज्य विस्तार

 हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -3
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 3
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  258                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  258                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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   हर्षवर्धन केपैतृक राज्य व पंचाल /कनौज राज्य से मिलने से हर्षवर्धन साम्राज्य पंचनद से मगध तक फ़ैल गया।  चीनी यात्री युआन सांग यात्रा संस्मरण अनुसार हर्ष ने छह  वर्ष तक अपना विजयअभियाँ जारी रखा और फिर 30 वर्ष तक शान्ति से राज्य किया।  (डा डबराल द्वारा वाटर रचित  ऑन ट्रैवल्स ऑफ़ Xuanzang का संदर्भ )  . संभवतया हर्षवर्धन को नर्मदा तट के नरेश पुलककेशिन द्वितीय  से पराजित होना पड़ा था। विद्वानों के मत अनुसार जिन क्षेत्रों का उल्लेख युआन संग के संस्मरणों में नहीं है जैसे गढ़वाल , स्रुघ्न व गोविषाण वे भी हर्ष वर्धन राज्य के अंतर्गत थे।  (डबराल ). इस तर्क से हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर हर्ष राज्य अधीन ही थे। 

सन्दर्भ :

 शिव प्रसाद डबराल , १९७५ , उत्तराखंड का इतिहास  भाग 3 , वीर गाथा प्रेस  , गढ़वाल , उत्तराखंड पृष्ठ 380 -81

 

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Bhishma Kukreti

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 हर्ष वर्धन द्वारा विद्वानों को आश्रय

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -5
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 5
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  259                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  259               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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  हर्षवर्धन  स्वयम विद्वान् था व विद्वानों का सत्कार करता था। हर्षवर्धन ने संस्कृत में नागानन्द  , रत्नावली व प्रियदर्शिका नाटक लिखे थे (चटर्जी ) .
हर्ष परिषद में बाण  , मयूर व मातंग विद्वान् थे।
बाण ने हर्षचरित व कादंबरी दो संस्कृत गद्य ग्रंथों की रचना की।  हर्षचरित में हर्ष पूर्वज व हर्ष का पूर्वार्ध काल का इतिहास संजित  है। राजयश्री मिलने के पश्चात ग्रंथ समाप्त हो जाता है।
बाण की असमय मृत्यु होने से कादंबरी आधी रह गयी थी जिसको उसके पुत्र भूषण भट्ट या पुलिंद भट्ट ने पूर्ण किया।  भूषण ने हर्षचरित पूरा नहीं किया का आशय होता है कि भूषण हर्ष का आश्रित न था। 
हर्षचरित में बाण ने अपना इतिहास भी लिखा है।


सन्दर्भ :

 

 गौरी शंकर चटर्जी , 1950  , हर्षवर्धन , इलाहाबाद , पृष्ठ 256

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Bhishma Kukreti

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हर्षवर्धन का व्यक्तित्व

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -6
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 6
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  260                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  260               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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 हर्षचरित , युआन सांग यात्रा वर्णन से इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि हर्षवर्धन का जीवन काल 606 से 647 ई  तक था।  हर्षवर्धन का शासन संगठित व सुशासन था जैसे गुत्प्तकाल में था (डबराल )
ललित कला व अन्य कलाओं में , व्यापार , समृद्धि में वृद्धि हुयी व राज्य शक्तिशाली था कि वाह्य आक्रांताओं ने भिड़ने या आक्रमण करने का साहस न किया।
    आदर्श चरित्रवान हर्ष के शासन में बौद्ध धर्म को नव जीवन भी मिला हर्ष ने कुछ सम्मेलन भी किये किन्तु जनमानस ने स्वीकार नहीं किया।
          हर्ष की विशाल सेना तो थी किन्तु हर्षवर्धन ने राज्य विस्तार नहीं किया।  वः विजेता था किन्तु निर्माता नहीं।  वैसे इतिहास में , जो राजा नाटक रचे वह तलवार से कम ही राज्य विस्तार करते दिखे हैं
हर्ष वर्धन का कोई पुत्र /पुत्री न था व हर्ष ने किसी उत्तराधिकारी को भी नहु चुना तो हर्ष  मृत्यु के पश्चात वर्धन व मौखरि साम्राज्य समाप्त हो गया। 
सन्दर्भ :

 

 शिव प्रसाद डबराल , १९७५ , उत्तराखंड का इतिहास , भाग ३ , पृष्ठ 382 -383

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कनखल , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; तेलपुरा , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; सकरौदा ,  हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; भगवानपुर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ;रुड़की ,हरिद्वार का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; झाब्रेरा हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; मंगलौर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; लक्सर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ;पाथरी , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; बहदराबाद , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; लंढौर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; नगीना ,  बिजनौर   इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; देवबंद सहारनपुर का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; बेहत सहारनपुर का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व    ; नकुर सहरानपुर का प्राचीन इतिहास में ह्र्श्वर्धं व्यक्तित्व     ; Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

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उत्तराखंड में चीनी यात्री युआन च्वांग /हुएन सांग यात्रा

Xuanzang travelling Uttarakhand -1

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -7
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 7
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  261                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  261               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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 बौद्ध मत ग्रंथों को समझने चीन से एक बौद्ध भिक्षु युअन च्वांग / हुएन  सांग हर्ष काल में  बौद्ध तीर्थ यात्रा हेतु चीन से मध्य एशिया होकर भारत आया था। युअन च्वांग /हुएन सांग अक्टूबर 630 से 644 तक भरत में यात्रा करता रहा। (डबराल, स्मिथ लेख आधारित  ) भारत में युअन  च्वांग /हुएन  सांग ने नालंदा सहित कई बौद्ध अध्यन केंद्रों  में बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया।  हुएन सांग /युअन  च्वांग ने हर्ष वर्धन द्वारा प्रायोजित धर्म सम्मेलन प्रयाग में में भी भाग लिया जहां हर पांच वर्ष में विभिन्न धर्मावलम्बी चर्चा करते थे। 
हर्ष ने कनौज में बौद्ध सम्मेलन करवाया था जिसमे अध्यक्ष युअन च्वांग /हुएन सांग था।
भारत में कई नरेशों ने हुएन सांग का स्वागत किया व अध्ययन में सहयोग भी दिया।
    16 वर्षों के बाद हुएन सांग /युअन च्वांग कई बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद , प्रतिलिपि लेकर वापस चीन लौटा।  उसके संस्मरण भारत ही नहीं   सहारनपुर  , बिजनौर सहित उत्तराखंड  इतिहास पर प्रकाश भी डालते हैं।  समकालीन उत्तराखंड का वर्णन अगले अध्यायों में किया जाएगा।
Shraanpur  : गजेटियर बीइंग वॉल्यूम II  ... में भी युअन  च्वांग  / हुएन सांग का सहारनपुर हरिद्वार , बिजनौर यात्रा संदर्भ  पर प्रकाश डाला गया है।

सन्दर्भ :

 

 शिव प्रसाद डबराल  उपरोक्त , पृष्ठ 382

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Bhishma Kukreti

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चीनी यात्री युअन च्वांग।  हुएन सांग यात्रा में बेहट , सहारनपुर जिलेका  इतिहास की झलक

Glimpses of  Behat  Saharanpur discription  in Hiuen Tsang  Journey

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -7
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 7
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  261                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  2601               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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 ऐतिहासिक दृष्टि से सही मानों में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सूचना सर्वपर्थम हमे हुएन सांग या युअन चुआंग की पुस्तक /संस्मरण में ही मिलती है।  युअन चुआंग के संस्मरणों को उसके सहायक पाइन ची व पीछे के लेखकों ने कुछ जोड़ा है (वाटर्स  पृष्ठ ३ ) । 
 युअन च्वांग या हुएन सांग के अनुसार उत्तराखंड तब तीन भागों में विभक्त था -
स्रुघ्न जनपद   - यमुना पश्चिम से गंगा तक
ब्रह्मपुर जनपद  -गंगा से काली गंगा तक
  गोविषाण - भाभर या आज का उधम सिंह नगर कुछ भाग बिजनौर
            शस्रुघ्न जनपद याने सहारनपुर , हरिद्वार व बिजनौर
 वाटर्स  (पृष्ठ 317 ) अनुसार युअन च्वांग / हुएन  सांग थानेश्वर से उत्तर पूर्व 400 ली याने 66 मील चलने पर हुएन सांग /युअन  च्वांग Su -Lu -Kina -na  पंहुचा जबकि जीवनी में  इस जनपद का नाम Lu -Kin -na बताया गया है (वाटर्स) .
            यात्रा वर्णन की कुछ प्रतियों में Su -Lu -kie  है जो स्रु खिन  या स्रुघिन होना चाहिए।  याने स्रुघ्न। कनिंघम ने इस जनपद की पहचान श्रुघ्न नगर या जनपद  से की है। (डबराल )
    राहुल सांकृत्यायन अनुसार एक ली एक मील का छटा भाग होता है जिसके अनुसार स्थानेश्वर से स्रुघ्न ठीक बैठता है।  विश्वास अनुसार यह स्थान बहत है जहां से हुएन सांग कनौज गया।
   यात्री अनुसार स्रुघ्न की परिधि 6000 ली या 1000  मील थी व गंगा सीमा में बहती थी। जनपद के उत्तर सीमा में महा पर्वत खड़ा था। इतिहासकार स्मिथ का मन्ना है कि तब स्रुघ्न के अंर्तगत आज  के अम्बाला का उत्तर पूर्वी भाग , उत्तर  सहारनपुर व देहरादून रहा होगा।
   स्रुघ्न की लम्बाई बारेमे विश्लेषण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज भी सामन्य जन लतड़ांग  या कोष कह देते हैं  जो कि  बस बोला जाता है।  हुएन सांग ने वह  लिखा जो उसे बताया गया हो।  किन्तु लगता है हुएन सांग बेहट आया होगा क्योंकि कभी बेहट ऐतिहासिक राजधानी थी उस समय भी बेहट की शान कम न हुयी होगी।
 कनिंघम अनुसार स्रुघ्न में सहारनपुर का कुछ भाग , टिहरी का कुछ भाग व सिरमौर से गंगा तक फैला था (देहरदून स्वतः ही मध्य में है ) .
      चीनी यात्री फिर स्रुघ्न  से गंगा स्रोत्र याने हरिद्वार पंहुचा था (डबराल विश्लेषण पृष्ठ 386 )
सन्दर्भ  :
 डबराल,  शिव प्रसाद , उत्तराखंड का इतिहास भगा 3 , वीर गाथा प्रेस गढवाल , भारत पृष्ठ -383, 386

पब्लिशर्स नोट्स ---वाटर्स थॉमस , (1904 ), युअन च्वांग ट्रेवल्स इन इण्डिया , रॉयल एसियाटिक सोसाइटी , लंदन

विश्वास , ए  एम , विश्वास अमियमय, (1974 )  . लेट मी स्पीक , बंगाल , पृष्ट 76

स्मिथ , इटनेररी  ऑफ युअन  च्वांग , वाटर्स , उपरोक्त भाग दो पृष्ठ 337 -38

कनिंघम ऐन्शिएंट जिओग्राफी , पृष्ठ 293 ,

 

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चीनी यात्री युअन च्वांग।  हुएन सांग यात्रा में मतिपुर या बिजनौर  इतिहास की झलक

Glimpses of  Matipur , Bijnor  in Hiuen Tsang  Journey

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -8
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 8
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  262                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  262               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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सभी इतिहासकार मानते हैं कि चीनी यात्री हुएन सांग स्रुघ्न या बेहट (  सहारनपुर क्षेत्र ) से चलकर यमुना पार कर गंगा द्वार (source of  Ganges ) अथवा हरिद्वार पंहुचा था (64 मील जो कि बेहट से हरिद्वार ही हो सकता है ) ।  कनिंघम के मत का डबराल ने खंडन करते हुए वाटर्स (पृष्ठ 319 ) का विश्लेषण अधिक सही है क्योंकि गंगोत्री पंहुचने हेतु यात्री को पहाड़ों अन्य नदियों का भी वर्णन करना पड़ता।  गंगोत्री में तब भी बौद्ध केंद्र न थे जब कि मौर्य , गुप्त काल में या हर्ष काल में हरिद्वार ,  बिजनौर व गोविषाण (आज का उधम सिंह नगर ) बौद्ध शिक्षा व प्रचार केंद्र थे ही।  तो हुएन सांग का गंगोत्री जाना या बड़ाहाट जाना तर्कसंगत नहीं लगता। 
  ब्रह्मपुर या मतिपुर
    हुएन सांग यात्रा वर्णन अनुसार यात्री वहां से हरिद्वार से ) 300 ली अर्थात 50 मील उत्तर की और चला व उसने  Po -lo -ki mo  जनपद में प्रवेश किया।  कनिंघम ( पृष्ठ 299 ) व जूलियन ने इस नाम का संस्कृत अनुवाद ब्रह्मपुर किया।  यात्री अनुसार क्षेत्र का घेरा 4000 ली अथवा 666  मील था व चरों ओर पहाड़ थे।  (वाटर्स पृष्ठ 329  )
         विश्लेषकों की सबसे बड़ी समस्या 'वहां से ' सर्वनाम स्थल से है।  प्रश्न आज भी है कि यह 'वहां से ' कहाँ था।  यदि यह 'वहां  से ' हरिद्वार था जिसे कनिंघम  (पृष्ठ 295 ) ने मायापुर याने मयूर लिया और कहा कि मायापुर से चलकर ब्रह्मपुर गया।  किन्तु वाटर्स (पृष्ठ 330  ) अनुसार यात्री ने मयूर शब्द प्रयोग ही नहीं किया। 
       डा डबराल ने वाटर्स (उपरोक्त पृष्ठ 329 ) को उल्लेखित करते विश्लेषण किया कि संभवतया यात्री हरिद्वार से सीधे उत्तर की ओर  न चक्र उत्तर पूर्व गया हो व मतिपुर पंहुचा।  डा डबराल का मानना है कि हरिद्वार से 50 मील  मतिपुर या उत्तर या उत्तर पूर्व क्षेत्र गढ़वाल का सलाण प्रदेश (ढांगु व उदयपुर या लंगूर या अजमेर ) न होकर बिजनौर या गढ़वाल का भाभर हो सकता है। 
यद्यपि ऐटकिंसन यात्री वर्णन से निष्कर्ष निकालता है कि ब्रह्मपुर जनपद गढ़वाल ही था।  स्मिथ भी  ब्रह्मपुर को गढ़वाल ही मानता है (डबराल , पृष्ठ 389 ) .
 डबराल (पिष्ठ 390 ) ने विश्लेषण किया कि यात्री ब्रह्मपुर से वापस मतिपुर आया और फिर गोविषाण की ओर चला गया।
 स्रुघ्न , हरिद्वार  से गोविषाण जाने हेतु बिजनौर होकर जाना ही होता था। 


सन्दर्भ  :
 डबराल,  शिव प्रसाद , उत्तराखंड का इतिहास भगा 3 , वीर गाथा प्रेस गढवाल , भारत पृष्ठ -387 , 388 , 389 , 390

 वाटर्स थॉमस , (1904 ), युअन च्वांग ट्रेवल्स इन इण्डिया , रॉयल एसियाटिक सोसाइटी , लंदन जिल्द 1 , पृष्ठ 329



कनिंघम , ऐन्शिएंट जिओग्राफी , पृष्ठ 293 ,

 

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सहारनपुर इतिहास संदर्भ में चीनी  यात्री द्वारा स्रुघ्न नगर वर्णन

Glimpses of Srughna City described by  Hiuen Tsang 


हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   -9
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    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  263               


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                  गोविषाण   जनपद
  वाटर्स अनुसार हुएन सांग या युअन च्वांग ब्रह्मपुर से मतिपुर पंहुचा व मतिपुर से दक्षिण पूर्व लगभग 66 मील चलकर Ku -pi -shunang या Sang )-na  जनपद पंहुचा।  इस जनपद की पहचान गोविषाण जनपद से की गयी है (2 )
 कनिंघम (3 ) ने    काशीपुर रामपुर व  पीलीभीत क्षेत्र माना है जिसका विस्तार रामगंगा और शारदा घाघरा मध्य क्षेत्र रहे होंगे।
तब गढ़वाल या ब्रह्मपुर।; मायापुर  या  हरिद्वार -बिजनौर मिलाकर व गोविषाण हर्ष राज्य अतंर्गत थे (डबराल ) . सहारनपुर क्षेत्र भी हर्ष अंतर्गत ही था।

                                  स्रुघ्न नगर

         युअन च्वांग या हुएन सांग की यात्रा वर्णन में स्रुघ्न नगर उत्तराखंड के दक्षिण पश्चिम में कोने पर स्थापित था (4 ) यात्रा वर्णन में यह वर्णन नहीं मिलता कि स्रुघ्न नगर की सीमाएं क्या थीं किन्तु यह अनुमान लगाना सरल है कि स्रुघ्न नगर स्रुघ्न जनपद के किनारे न रहा होगा। 
     स्रुघ्न यमुना नदी के पश्चिम तट पर था (5 ) . नगर की परिधि 20 लि या तीन मील थी (6 ). कुणिंद  राज्य राजधानी उजाड़ हो गयी  थी (7 )।  यमुना के पश्चिम तट पर एक विशाल नौढ़ मठ था जिसका पूर्वी तोरण अशोक काल में निर्मित हुआ था।  इस स्तूप के पास  अन्य स्तूप भी थे जिनमे बुद्ध , सारि पुत्र व मौदगलायन के अवशेष थे (7  )  . कनिंघम ने स्रुघ्न की पहचान अम्बाला में की किन्तु दूरी गणन  में गलत बैठता है (डबराल के मत से अर्थ निकला गया है )

सन्दर्भ :

 

1 -Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Vee Gatha Press , Garhwal, India page  390 -391

 2 -वाटर्स थॉमस , (1904 ) ऑन  युअन  च्वांग ट्रेवल्स इन इण्डिया , रॉयल ेसियतक सोसिटी , लंदन , पृष्ट 331

 3 -कनिंघम , उपरोक्त (पिछले अध्याओं में ) पृष्ठ 302

4 - , वाटर्स उपरोक्त , पृष्ठ 317

5, 6 , 7  - वाटर्स , उपरोक्त पृष्ठ 318 , 319

 

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कनखल , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; तेलपुरा , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; सकरौदा ,  हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; भगवानपुर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ;रुड़की ,हरिद्वार का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; झाब्रेरा हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; मंगलौर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; लक्सर हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ;पाथरी , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; बहदराबाद , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; लंढौर , हरिद्वार  का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ;ससेवहारा  बिजनौर , बिजनौर इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; नगीना ,  बिजनौर   इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; देवबंद सहारनपुर का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; बेहत सहारनपुर का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर ; नकुर सहरानपुर का प्राचीन इतिहास सन्दर्भ में हुएन सांग वर्णित स्रुघ्न नगर  ; Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

 

Bhishma Kukreti

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  चीनी यात्री हुएन  द्वारा वर्णित मयुरपुर या मायापुर नगर (हरिद्वार इतिहास संदर्भ  )

Mayur Nagar described by Hiuen Tsang or Yuan Chwang

हर्षवर्धन शासन   काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   10
 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harshavardhana regime    Period - 10
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  264                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  264               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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               यात्री अनुसार मतिपुर से उत्तर पूर्व गंगा के पूर्वी तट पर Mo -y u -lo या मयूर नगर बसा था (२ ) जिसकी परिधि ३० लि या ३ १/२ मील से अधिक थी (३ ) जनसंख्या घनी थी।  मयूरपुर के निकट स्वच्छ जल के नाले बहते थे।  (५ )
नगर के पास गंगा तट पर एक देवी मंदिर था (६ ) जो आश्चर्य चकित करने वाले महातम्यों हेतु विख्यात था ७  )।  मंदिर अंदर कुंड था जिसके तट पर पत्थर घाट थे (८ ) . कृत्रिम  .नहर द्वारा इस कुंड में गंगा जी से जल आता था (९ )
  वाटर्स अनुसार यह स्थान गंगा द्वार कहलाया जाता था (१० ) नगर में अनेक पुण्य शालाएं (धर्मशालाएं ) थीं  (११ ) जिसमे नरेशों द्वारा मुफ्त स्वादिष्ट भोजन व निशुल्क चिकित्सा प्रबंध थे (१२ )
कनिंघम ने  मयूर नगर की पहचान हरिद्वार व कनखल के मध्य मायापुर कस्बा से की है ( १३ )  कनिंघम अनुसार संभवतया मापापुर का दूसरा नाम मयूरपुर था।  (१४ ) कनिंघम ने अनुमान लगाया कि इस काल के पीछे गंगा ने दिशा बदली थी।  कनिंघम का अनुमान है कि पहले कनखल मायापुर , ज्वालापुर के पश्चिम में बहती थी व बाद में जब गंगा ने दिशा बदली तो रगड़ों में भवन बना दिए गए  (१६ )
 वाटर्स व स्मिथ कनिंघम मत से सहमत नहीं हैं।  वाटर्स का मत है कि Mo -yu -lo मायापुर का रपान्तर नहीं हो सकता (१७ )।  स्मिथ व वाटर्स का मत है कि गंगा ने दिशा नहीं बदली किन्तु हरिद्वार निकट गंगा के पूर्वी तट पर कोई नगर था (१८ )
वाटर ने मत दिया कि युअन  च्वांग मयूरपुर स्वयं नहीं गया था व मयूरपुर वर्णन दूसरों से पूछ क्र लिखा गया था (१९ )
 डबराल कामत है कि गंगा का दिशा बदलना असंभव नहीं है।  भीष्म कुकरेती ने भी ' मेरी गंगा ह्वेली मीम ाली 'लोक कथा के हवाले से जिक्र किया है कि गंगा ने कभी तो दिशा बदली थी तभी यह लोक कथा गढ़ी गयी होगी (२० )
 डबराल ने मत दिया कि  मार्कण्डेय पुराण अनुसार इस क्षेत्र ाहॉंग गंगा द्वार के पास है व मयूरगिरि कहलाता था।  इस क्षेत्र के पास कई स्थानों के नाम मयूर से जुड़े हैं।  चंडी घाट के पास कई प्राचीन खंडहर फैले हैं जिन्हे कईयों को  गंगा जी बहा ले गयी (२१ )
 
सन्दर्भ :

 

१-Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page

 २- कनिंघम , एसियन जिओग्राफी , पृष्ठ  २९१

३- 12 वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवेल्स इन इण्डिया vol 1 , पृष्ठ 328

१३ से १६  कनिंघम पूर्वोक्त पृष्ठ २९५ -९६

१७ -वाटर्स , उपरोक्त , पृष्ठ ३२९

१८ स्मिथ  इटरनरी ऑफ़ युअन च्वांग , वाटर्स पूर्वोक्त जिल्द २ १३८

१९ - वाटर्स उपरोक्त पृष्ठ ३२९

२० कुकरेती , भीष्म , (1985 ) , गढ़वाल की लोक कथाएं , बिनसर प्रकाशन , दिल्ली भारत

२१ डबराल , उपरोक्त पृष्ठ ३९२





 

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