हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर इतिहास संदर्भ में हर्ष कालीन में बौद्ध धर्म
Buddhism in Harsha period
हर्षवर्धन शासन काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास 22
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur in Harsha Vardhana regime Period - 22
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 276
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 276
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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उत्तराखंड में बौद्ध धर्म हर्ष काल में क्षीण हो गया था। यद्यपि इससे पहले कई स्तूप यहां स्थापित थे। बौद्ध मठों में राजाओं , जमींदारों व धनिको प्रदत्त अपार सम्पति थी। हर्ष स्वयं भी बौद्ध मत का संरक्षक था व बौद्ध मठों को दान देता रहता था (१ )।
बौद्ध मठाधीश मंडलेश्वरों सामान आनंदयुक्त जीवन व्यतीत क्कर रहे थे , वे हाथियों की सवारी भी करते थे (१) .
वाटर्स अनुवाद अनुसार मठों में व्रजयान का शुरुवाती स्वरूप विकसित हो रहा था क्योंकि तारा की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं लगनी शुरू हो चुकीं थी (३ )।
बोधि वृक्ष पूजा महत्वपूर्ण हो चुकीं थीं (४ ) और स्तूपों के सनातन धर्म की नकल स्वरूप चमत्कार संबंधी कथाओं ने जन्म ले लिया था (५)।
श्रद्धालु रोग निवारणार्थ स्तूपों के धर्षण हेतु दूर दूर से आते थे (६ ) . मठों की इन कार्यकलापों से खूब आय होती थी। दर्शर्नार्थियोंको नख , कंडल आदि दर्शन से धन लिया जाता था। (७ ).
भारत में विद्वानों की कमी न थी। जनता का बौद्ध विद्वानों में श्रद्धा थी किन्तु बौद्ध धर्म ह्रास हो रहा था। (८ )
स्रुघ्न (सहरानपुर इतिहास संदर्भ) की जनता बौद्ध नहीं अपितु हिन्दू धर्मावलम्बी थी। नगर में ५ बौद्ध मठ थे। जिनमे १००० से अधिक भिक्षु रहते थे व अधिकांश महायान अनुयायी थे। (९ )
स्रुघ्न में उन दिनों बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान् रहते थे जिनका नाम जयगुप्त था। अन्य मंडलों व क्षेत्रों से विद्वान् अध्ययन व वार्ता हेतु स्रुघ्न आते थे।
युअन च्वांग सारे शीतकाल व अगले वसंत तक सर्घं में टिक्कर विभाषा व सौतांत्रिक सिद्धांतों का अध्ध्य्यन किया (१० ).
उन दिनों प्रचलित था कि भगवान बुद्ध ने स्रुघ्न की यात्रा की थी व एक ब्राह्मण कुमार विद्वान् का मोह भंग किया था जिसका उल्लेख दिव्यवदान में भी है (११) .
ऐसा माना जाता है कि बुद्ध निर्वाण पश्चात बौद्ध धर्म जब ह्रास हो रहा था तो बौद्ध आचार्य स्रुघ्न आकर धर्म प्रचार किया व जिस स्थान पर इंद्रा बुद्ध से हारे थे वहां पर ५ मठ निर्मित किये थे (१२ ).
डबराल (१ ) ने वाटर्स के निम्न संर्दभों ( १३ से २३ )के बल पर विवेचना करते लिखा कि मयूर (संभवतया बिजनौर व हरिद्वार ) में भी आम जनता हिन्दू धर्मावलम्बी ही थे व अपने भौतिक सुखों को जुटाने में व्यस्त थी। ब्रह्मपुर में बौद्ध जन नगण्य थे।
डबराल लिखते हैं कि गोविषाण (आज का काशीपुर जसपुर व बिजनौर का पूर्वी भाग ) में भी जनता बौउद धर्म को नहीं मानती थी। नगर में दो बौद्ध मठ थे जिसमे १०० के लगभग भिक्षु थे व सभी हीनयानी थे (१ )
सन्दर्भ :
१ - Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 401
२ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ १६२
३ - ,वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ १०७
४ -६ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ २०४
७ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ १३८
८ -९ ,- वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१८
१० - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३२१ ३२२
११ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३२१
१२ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१९
१३ - - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१८
१४- - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१९
१५ - - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३२९
१६- १७ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३३०
१७- १८ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३३१
१९ - २३ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ
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