Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50675 times)

Bhishma Kukreti

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   हर्ष शाशन में सूर्य देव का महत्व

हर्षवर्धन शासन  काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   20

 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harsha Vardhana regime    Period - 20
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  274                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  274                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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  हर्ष चरित से मालूम होता है कि शिव पश्चात महत्वपूर्ण देव सूर्य था,  याने सौर धर्म एक महत्वपूर्ण धर्म था।  हर्ष के पुरखे शैव्य व सौर थे। 
           स्नान
   सौर धर्म अनुयायी सूर्य उपासना करते थे व सूर्योदय समय स्नान करते थे। सिर को सफेद वस्त्रों से ढकते थे व घुटने के बल बैठकर रक्तकमल या कुमकुम से बने सौरमंडल को अर्घ्य देते थे (2 )
   डबराल अनुसार  उत्तराखंड में सूर्य पूजा प्रचलित थी व पलेठा सूर्य मंदिर इसी कल में निर्मित हुआ।  (1 )
    जनता में विश्वास प्रचलित था कि  विष्णु और शिव के विभिन्न रूपों , सूर्य , चंडिका , सप्तमातृका व कुलदेवों के पूजन से वघन हर जाते हैं (3 )
     यक्षों की पूजा हेतु महमायुरि पाठ किया जाता था (४ ) .
  भूतों से  रक्षा हेतु बलि दी जाती थी (५ ).
राजा के प्राण रक्षा हेतु मानव बलि प्रचलित थी (७ )
राजा रक्षा हेतु मानव बलि देवताओं को अर्पित होता था (८ )
बेताल को मानव मुन्द्र अर्पित किया जाता था। (८ )

सन्दर्भ :

 

१ - Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 400

 २  -हर्षचरित , उ 5 पृष्ठ २०८

३--हर्षचरित , उ 5 पृष्ठ २६३

४, ६ --हर्षचरित , उ 5 पृष्ठ 265

७--हर्षचरित , उ 5 पृष्ठ २१८

८--चटर्जी हर्षवर्धन  पृष्ठ २६५ 

 

Copyright@ Acharya Bhishma Kukreti , 2018

 

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  हर्ष काल में उत्तराखडं , बिजनौर व सहारनपुर में जैन धर्म

हर्षवर्धन शासन  काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   21

 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harsha Vardhana regime    Period - 21
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  275                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  275                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 
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डबराल ने हर्षचरित का उद्धरण देते लिखा कि जैन साधू अल्पहार करते थे।  जैन साधु प्रायः स्नान नहीं करते थे या कम करते थे।  कुछ जैन साधु नंगे रहते थे व मेल बटोरते थे। कुछ जैन साधु श्वेतपट पहनते थे।  उत्तराखंड में जैन धर्मवालंबियों की सूचना नहीं मिलते (1 )  जिससे कहा जा सकता है हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर में हर्ष काल में विशेष प्रचार प्रसार न रहा होगा। 
 सन्दर्भ :
 

1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 400

 

 

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  हरिद्वार , बिजनौर  व सहारनपुर इतिहास संदर्भ में हर्ष कालीन में बौद्ध धर्म
Buddhism  in Harsha period
हर्षवर्धन शासन  काल में हरिद्वार, सहारनपुर व बिजनौर इतिहास   22

 History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  in Harsha Vardhana regime    Period - 22
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  276                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  276                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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  उत्तराखंड में बौद्ध धर्म हर्ष काल में क्षीण हो गया था।  यद्यपि इससे पहले कई स्तूप यहां स्थापित थे।  बौद्ध मठों में राजाओं , जमींदारों व धनिको प्रदत्त अपार सम्पति थी।  हर्ष स्वयं भी बौद्ध मत का संरक्षक था व बौद्ध मठों को दान देता रहता था (१ )।
   बौद्ध मठाधीश मंडलेश्वरों सामान आनंदयुक्त जीवन व्यतीत क्कर रहे  थे , वे हाथियों की सवारी भी करते थे (१) .
    वाटर्स अनुवाद अनुसार मठों में व्रजयान का शुरुवाती स्वरूप विकसित हो रहा था क्योंकि तारा की बड़ी बड़ी प्रतिमाएं लगनी शुरू हो चुकीं थी (३ )।
      बोधि वृक्ष पूजा महत्वपूर्ण हो चुकीं थीं (४ ) और स्तूपों के  सनातन धर्म की नकल स्वरूप चमत्कार संबंधी कथाओं ने जन्म ले लिया था (५)।
    श्रद्धालु रोग निवारणार्थ स्तूपों के धर्षण हेतु दूर दूर से आते थे (६ ) . मठों की इन कार्यकलापों से खूब आय होती थी।  दर्शर्नार्थियोंको नख , कंडल आदि दर्शन से  धन लिया जाता था। (७ ).         
        भारत में  विद्वानों की कमी न थी। जनता का बौद्ध विद्वानों में श्रद्धा थी किन्तु बौद्ध धर्म ह्रास हो रहा था। (८ )
  स्रुघ्न (सहरानपुर इतिहास संदर्भ) की जनता बौद्ध नहीं अपितु हिन्दू धर्मावलम्बी थी।  नगर में ५ बौद्ध मठ थे। जिनमे १००० से अधिक भिक्षु रहते थे व अधिकांश महायान अनुयायी थे। (९ )
    स्रुघ्न में उन दिनों बौद्ध धर्म के प्रकांड विद्वान् रहते थे जिनका नाम जयगुप्त था। अन्य मंडलों व क्षेत्रों से विद्वान् अध्ययन व वार्ता हेतु स्रुघ्न आते थे। 
युअन च्वांग सारे शीतकाल व अगले वसंत तक सर्घं में टिक्कर विभाषा व सौतांत्रिक सिद्धांतों का अध्ध्य्यन किया  (१० ).     
   उन दिनों प्रचलित था कि भगवान बुद्ध ने स्रुघ्न की यात्रा  की थी व एक ब्राह्मण कुमार विद्वान् का मोह भंग किया था जिसका उल्लेख दिव्यवदान में भी है (११) .
 
  ऐसा माना जाता है कि बुद्ध निर्वाण पश्चात बौद्ध धर्म जब ह्रास हो रहा था तो बौद्ध आचार्य स्रुघ्न आकर धर्म प्रचार किया व जिस स्थान पर इंद्रा बुद्ध से हारे थे वहां पर ५  मठ निर्मित किये थे (१२ ).   
      डबराल (१ ) ने वाटर्स के निम्न संर्दभों ( १३ से २३ )के बल पर विवेचना करते लिखा कि मयूर (संभवतया बिजनौर व हरिद्वार ) में भी आम जनता हिन्दू धर्मावलम्बी ही थे व अपने भौतिक सुखों को जुटाने में व्यस्त थी। ब्रह्मपुर में बौद्ध जन नगण्य थे।
 डबराल लिखते हैं कि गोविषाण (आज का काशीपुर जसपुर व बिजनौर का पूर्वी भाग ) में भी जनता बौउद धर्म को नहीं मानती थी।  नगर में दो बौद्ध मठ थे जिसमे १०० के लगभग भिक्षु थे व सभी हीनयानी थे (१ )

           
         
     
     
सन्दर्भ :

 

१ - Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 401

  २  - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ  १६२

३ - ,वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ १०७

 ४ -६ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ  २०४
 ७  - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ १३८

 ८ -९ ,- वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१८ 

  १० - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३२१ ३२२

 ११ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ   ३२१

  १२ - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१९

१३ - - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१८

१४-  - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३१९

१५ - - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३२९

१६- १७   - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३३०

१७- १८  - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ ३३१

१९ - २३  - वाटर्स , ऑन युअन च्वांग ट्रैवल्स इन इण्डिया , पृष्ठ

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हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास


Dark  Age of History after Harsha Vardhan death

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  277                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  277               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती

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  हर्ष की मृत्यु सन 647 ई मन गया है।  हर्ष का कोई पुत्र न था न ही उसने किसी सुयोग्य  व्यक्ति को राज्य उत्तराधिकार सौंपा।  सन 647 के पश्चात स्थानेश्वर , कान्यकुब्ज का इतिहास अज्ञात ही है। कोई भौतिक सख्सी नहीं मिलते कि यह लिखा जाय कि फलां राजा या जागीरदार ने इन क्षेत्रों में राज किया। 
डबराल लिखते हैँ कि हर्ष मृत्यु पश्च्चात हर्ष साम्राज्य में उथल पुथल मच गयी और  स्थानीय राजा (जागीरदार ) अपने अपने राज्य स्थापित करने में जुट गए (1 ). हर्ष साम्राज्य के सीमावर्ती राजाओं ने भी अपने राज्य सीमा वृद्धि करने हेतु कतिपय राजाओं ने हर्ष साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।  कामरूप नरेश (प्राचीन आसाम ) ने अपनी राज्य सीमा पश्चिम व दक्षिण में बढ़ा ली। मगध राजा गुप्त नरेश आदित्यसेन ने अपनी शक्ति बढ़ा ली व महाराजाधिराज विरिद धारण कर ली (1 ) .
     भोट तथा नेपाल आक्रमण
चीन के कतिपय ऐतिहासिक पत्रों से पता चलता है कि भोट नरेश ने नेपाल की सहायता से चीन की सहयता हेतु मध्य देश पर आक्रमण किया। चीन नरेश हर्ष के उत्तराधिकारी अर्जुन को बंदी बनाकर ले गए (2 )
किन्तु भारत में कोई साहित्य उपलब्ध नहीं है जो उपरोक्त साक्ष्य दे सके (2 )
   पलेटा व तालेश्वर शासन तिमिर युग पर कुछ प्रकाश डालते हैं कि भोट आक्रमण कल्पित ही है।  पलेटा शासन से अंदाज लगता है कि प्राचीन दक्षिण उत्तराखंड (हरिद्वार , सहारनपुर ) पर आदिवर्मन का राज्य था।  यह केवल अंदाज ही है। और शायद बिजनौर पर भी आदिवर्मन का राज रहा हो (अगले अध्याय में )

सन्दर्भ :

 

1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 404

 2 -Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 405 

 

 

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हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व

Stone Inscriptions of Paletha and Taleshwar Copper Inscriptions and Haridwar, Bijnor, Saharanpur  History
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास -1

Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -1

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  278                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  278               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती 

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              हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर सहित उत्तराखंड पर तिब्बत शासन की भ्रान्ति
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 कुछ समय पहले इतिहासकारों मध्य भ्रान्ति थी कि हिमालय पर हर्ष कॉल पश्चात तिब्बत नरेश का शासन था।  डबराल ने क्लासिकल एज पुस्तक (पृष्ठ 130 से 137 ) , राहुल (तिब्बत के बौद्ध धर्म पृष्ठ 5 ) , रिचर्डसन (तिबेट ऐंड इट्स हिस्ट्री पृष्ठ 29 ) के हवालों से लिखा कि ये इतिहासकार मानने लगे थे कि कुछ समय तिब्बत नरेश (सोंग गचन गसम व उत्तराधिकारियों ) का शासन हिमालय पर रहा।  (1 ). इन रिचर्डसन , राहुल जैसे इतिहासकारों  ने लिखा कि तिब्बत नरेशों का शासन नेपाल व भारत के हिमालय के ढलानों पर रहा (1 ). किन्तु डबराल ने पलेठा व तालेश्वर ताम्रपत्र शासन से सिद्ध किया कि यह केवल भ्रान्ति थी।

             पलेठा (देवप्रयाग, गढ़वाल ) का शिलालेख द्वारा भ्रान्ति टूटना

  देवप्रयाग निकट  पलेठा (टिहरी गढ़वाल ) में शिलालेख मिले व डा डबराल के बार बार पुरात्व विभाग को स्मरण करने से पुरातत्व विभाग ने पलेठा शिलालेखों का अध्ययन किया व वार्षिक रिव्यू व पुस्तक 1971 में वृतांत दिया (2, 3  ).   
          पलेठा के शिलालेख सूर्य व बुद्ध मंदिर के बाहर मिले व बुरी अवस्था में थे।  एक शिलालेख टुटा है।  शिलालेख की भाषा संस्कृत है व सातवीं सदी की व उत्तरी भारत के गुण वाले हैं।  एक शिलालेख में आदिवर्मन ,पराम् भट्टारक महाराजाधिराज  , परमेश्वर कल्याणवर्मन , आदित्यवर्मन व दौहित्र करकवर्धन उल्लेख हैं। दूसरे टूटे शिलालेख में कल्याणवर्मन व आदित्यवर्मन नाम उल्लेखित हैं। लिपि अनुसार अनुमान
लगाया गया है कि इन नरेशों ने 601 ई  . से 700 ई ० तक राज्य किया व इनका शासन उत्तराखंड के दक्षिण भाग व बिजनौर , हरिद्वार ाव सहरानपुर तक रहा होगा।  या बिजनौर के कुछ भाग में अल्मोड़ा नरेश का शासन रहा होगा (तालेश्वर शासन का उल्लेख अगले अध्याय  में होगा )

सन्दर्भ :

 

1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 406

2 -ऐनुअल रिपोर्ट ों एपिग्रफी , सम्पादन बी. बी लाल , 1968-69  .पृष्ठ 52 

3 -इंडियन आर्कियोलॉजी : ए रिव्यू , 1971 , आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पब्लिकेशन विभाग पृष्ठ 52

 

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सहरानपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;देवबंद , सहरानपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;बेहट , रामपुर , सहरानपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;बाड़शाह गढ़ , सहरानपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ; नकुर , सहरानपुर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;

बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ; धामपुर , बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;   नजीबाबाद ,  बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;   नगीना ,  बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;   चांदपुर ,  बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ;  सेउहारा  बिजनौर इतिहास में पलेठा शिलालेख व तालेश्वर ताम्रपत्र का महत्व  ; 

 

 

 

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   हरिद्वार ,बिजनौर  सहारनपुर पर आदिवर्मन का शासन

Rule of Adivarman over  Haridwar, Bijnor  and Saharanpur
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास -2

Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -2

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  279                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  279               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: Bhishma Kukreti 

-
     डबराल विवेचना (1 ) व पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड्स से निर्णय लिया जा सकता है कि पलेठा शिलालेख को ऐतिहासिक पुस्तकों में लाने का कार्य डबराल ने किया (1 ) और डबराल ने ही आदिवर्मन आदि शाशकों की विवेचना की। 
   डबराल लिखते हैं कि देवप्रयाग निकट शिलालेखों में उल्लेखित नामों से केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है क्योंकि शिलायों में लेख स्पष्ट नहीं रह चुके हैं व टूट भी गयी हैं।
      डबराल ने अनुमान लगाकर तर्क दिया कि संभवतया आदिवर्मन हर्ष राज्य में दक्षिण उत्तराखंड ( स्रुघ्न सहारनपुर सहित ) स्रुघ्न के अंतर्गत था व आदिवर्मन हर्ष का अधिकारी या शाशक था व हर्ष मृत्यु पश्चात उसने स्रुघ्न राज्य पर अधिकार कर लिया।
                   देवप्रयाग राजधानी ?
    डबराल ने उल्लेख किया कि  पलेठा इन शाशकों की राजधानी नहीं थी। गुप्त काल में देव प्रयाग ने महत्व प्राप्त कर लिया था व शासक देव प्रयाग यात्रा पर आते थे।  संभवतया वर्मन शासक देव प्रयाग यात्रा पर आये व यहाँ शिलालेख गढ़ कर यात्रा सम्पन की गयी हो। 
        चूँकि इतिहास में उस काल में आदिवर्मन आदि कोई शासन न था तो अनुमान लगाया जा सकता है कि आदिवर्मन व उसके परिवार ने स्रुघ्न (उत्त्तराखंड ) पर राज किया होगा (1 ) .
       हरिद्वार व पश्चिम बिजनौर अवश्य ही आदिवर्मन परिवार शासन के अंर्तगत था ही। 
 सन्दर्भ :
 

1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 407

 

 

Copyright@ Acharya Bhishma Kukreti , 2018

 

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 हरिद्वार ,बिजनौर  सहारनपुर पर कल्याणवर्मन का शासन


Rule of Kalyanvarman  over  Haridwar and Saharanpur
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास -3

Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -3

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  280                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  280               


                  इतिहास विद्यार्थी :::  भीष्म कुकरेती 

-
 ऐनुअल रिपोर्ट ऑफ इंडियन एपिग्रफी 1968 -69 अनुसार पलेठा  के बुद्ध मंदिर बाहर शिलालेख में जिसका बांये ओर आधा भाग टूटा है व कुछ भाग अपठनीय है में कल्याणवर्मन का विरुद पराम् भट्टारक महारदजधिराज परमेश्वर  उल्लेख है।
600  - 700 ई के भारत में किसी  कल्याणवर्मन राजा का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है (1 ) जो देवप्रयाग या तीर्थ यात्रा पर गढ़वाल आया हो।  . महराजधिराज  परमेश्वर विरुद सिद्ध करता है कि कल्याणवर्मन का शासन किसी वृहद भूभाग पर था व सीमावर्ती राज्य कमजोर रहे होंगे।  यह भूभाग स्रुघ्न ही हो सकता है जीके अंतर्गत सहारनपुर , देहरादून , हरिद्वार , गढ़वाल व बिजनौर रहे होंगे।  कल्याणवर्मन का आदिवर्मन से क्या संबंध रहा था व समय काल के बारे में उल्लेख नहीं मिलता।  हो सकता है शिलालेख में अंकित रहा होगा किन्तु लेख मिटने व शिलालेख टूटने से कुछ भी जानकारी सम्भव नहीं है। 
सन्दर्भ :

 

1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 408

 

 

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कनखल , हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ; ज्वालापुर हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;रुड़की , हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;लक्सर हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;मंगलौर , हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ; बहादुर जुट , हरिद्वार इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;

सहरानपुर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;देवबंद , सहरानपुर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;बेहट , रामपुर , सहरानपुर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;बाड़शाह गढ़ , सहरानपुर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ; नकुर , सहरानपुर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;

बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ; धामपुर , बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;   नजीबाबाद ,  बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;   नगीना ,  बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;   चांदपुर ,  बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ;  सेउहारा  बिजनौर इतिहास में कल्याणवर्मन शासन का स्थान  ; 

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हरिद्वार ,बिजनौर  पर पर्वताकार  पौरव  शासन काल  (647 से 725 लगभग तक )

Rule Period of Paurava of Parvatakar   over  Haridwar and Bijnor 
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास 6

Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -6

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  283                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  283               


                  इतिहास विद्यार्थी :::  भीष्म कुकरेती 
-
  पौरव शासकों का शासन काल विवेचना -
लिपि अध्ययन के पश्चात् इतिहासकार गुप्ते ने पौरव ताम्रा शासनों का काल छटी सदी  से आठवीं सदी का माना (2 )
तालेश्वर ताम्रपत्रों में पांच शासकों का उल्लेख है जो 725 से 752 ईश्वी तक मन गया है। 
   जाली ताम्रपत्रों  की चर्चा
 इतिहासकार गुप्ते ने जाली ताम्र शासन उल्लेख किया और 8 तर्क दिए (2 , 3  )
डा डबराल ने डा गुप्ते के सभी तर्कों को तर्कों से ही पूरी तरह ध्वस्त किया (1 )
साथ में भारत के प्रमुख अभिलेखागार डा डी सी सरकार ने भी गुप्ते को खारिज किया और लिखा कि गुप्ते (तालेश्वर ताम्र शासन के सम्पादक ) के जाली ठहराने के तर्क काफी  और वे तर्क युक्तिपूर्ण भी नहीं हैं कि इन तमरशषनों को जाली ठहराया जा सके (4  )
          नरेशों के नाम (एपिग्राफिया इंडिका जल्द 13 पृष्ठ 113 )
संख्या --------    नरेश नाम --- ---पूर्व नरेश से संबंध----उपाधि
१-   ----------    विष्णु वर्मन I ----------------   --------------------
२-  ---------------वृष वर्मन    -----------
३- ---------अग्नि वर्मन ------------ तत्पुत्र -----------परम भट्टारक महाराजधिराज
४- --------द्युतिवर्मन   -----------तत्पुत्र ---------परम भट्टारक महाराजधिराज
५ -  ----विष्णु वर्मन II  ----------तत्पुत्र ---------परम भट्टारक महाराजधिराज
डबराल ने इंगित किया कि  इन इन पौरव वंशी लेखों में हर्ष या कत्यूरी के  अभिलेखों जैसे  राजमहिषी नाम नहीं दिए गए हैं।   
   
सन्दर्भ :
 
1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 410 -411
२- एपिग्राफिया इंडिका जिल्द 13 पृष्ठ 109
3 -एपिग्राफिया इंडिका जिल्द 13 पृष्ठ 150
4 -एज ऑफ इम्पीरियल कनौज पृष्ठ 131

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1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page
 

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हरिद्वार ,बिजनौर, सहरानपुर इतिहास और  पौरव राजवंश  (647 से 725 लगभग तक )

Paurava Dynasty of Parvatakar  and History of   Haridwar , Bijnor  , Sahranpur
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास- 7

Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -7

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  284                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  284               


                  इतिहास विद्यार्थी :::  भीष्म कुकरेती
-
  द्युतिवर्मन के शासन (ताम्रपत्र आदेश ) राजमुद्रा में द्युतिवर्मन वंश का संबंध सोम वंश बताया गया है।  मुद्रा में उल्लेख है -  सोम  दिवाकरान्वयो गोटरब्राह्म्णहितैषी।  विष्णुवर्मन   द्वितीय के राजयमुद्रा में भी ' सोमदिवाकरप्रांगशु -बंश -वेश्मप्रदीपः  उल्लेख है (2  )
  द्युतिवर्मन की राजमुद्रा में उसके पिता  श्रीअग्निवर्मन को पौरव राजवंश में उत्पन व वंश संस्थापक पुरुरवा वंशज बतलाया गया है (1 )
    महाभारत के अनुशासन प्रव 147 /26 में पुरुरवा की माता व पिता का सत्य , चंद्र वंश से संबंध बतलाया गया है। 
 
सन्दर्भ :
 
1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 412
2 -एपिग्राफिया इंडिका vol . 13 पृष्ठ 113
 

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हरिद्वार ,बिजनौर, सहरानपुर इतिहास और  पौरव राज्य सीमा  आकलन   (647 से 725 लगभग तक )

  Paurava Kingdom Area  and History of   Haridwar , Bijnor  , Sahranpur
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग  इतिहास- 8

Paurava dynasty in Dark  Age of History of Haridwar, Bijnor , Saharanpur after Harsha Vardhan death -8

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  285                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  285               


                  इतिहास विद्यार्थी :::  भीष्म कुकरेती 
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 द्युतिवर्मन शासन आदेश से पता चलता है कि राज्य का नाम पर्वताकार था।  अर्थात स्रुघ्न या कुणिंद, कुलिंद  नाम न था। इतिहासकार पर्वताकार की पहचान गढ़वाल या गिर्यावली से करते हैं (1 )
 द्युतिवर्मन के शासन से पता चलता है कि कुमाऊं का कुछ भाग पर्वताकार राज्य के अंतर्गत था।  राज्य सीमा वृद्धि व शत्रु विजय पश्चात उसने  परम्भट्टारक महाराजधिराज उपाधि धारण की (1 ).
 द्युतिवर्मन की राजधानी ब्रह्मपुर थी अनुमान किया जाता है कि हर्ष काल का ब्रह्मपुर जनपद पर पवर्तकार शासकों का राज था।  द्युतिवर्मन के राजयधिकारियों में पीलुपति या गजपति पद थे जो सिद्ध करते हैं भाबर , तराई , मैदान तक पूर्व वंश राज्य फैला था। (1 )  अर्थात गढ़वाल भाभर , हरिद्वार भाभर , बिजनौर भाभर , व सहरानपुर भाभर भी पर्वताकार राज्य अंतर्गत थे। 
   गुप्त सम्राटों के अनुसार द्युतवर्मन ने 'अमितविक्रम 'उपाधि धारण किया था (1 ) अर्थात द्युतिवर्मन का राज्य विस्तार बड़ा था।  जिससे अनुमान लगाया जा सकता है बिजनौर , शरण पुर , हरिद्वार के कुछ भाग अवश्य ही पूर्व वंशी राज्य अंग थे।
     

सन्दर्भ :
 
1- Dabral, Shiv Prasad, (1960), Uttarakhand ka Itihas Bhag- 3, Veer Gatha Press, Garhwal, India page 416
 

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Paurava Kingdom Area, History of Haridwar; Paurava Kingdom Area, History of  Kankhal , Haridwar; Paurava Kingdom Area, History of Jwalapur , Haridwar; Paurava Kingdom Area, History  of  Rurki Haridwar; Paurava Kingdom Area, History  of Haridwar; Paurava Kingdom Area, History  of Laksar , Haridwar; Paurava Kingdom Area, History  of  Saharanpur; Paurava Kingdom Area, History of  Behat , Saharanpur; Paurava Kingdom Area, History  of  Saharanpur; Paurava Kingdom Area, History  of Nakur,  SaharanpurPaurava Kingdom Area, History of  Devband , Saharanpur; Paurava Kingdom Area, History of  Bijnor ; Paurava Kingdom Area, History  of  Bijnor ; Paurava Kingdom Area, History  of  Nazibabad , BijnorPaurava Kingdom Area, History of  Bijnor; Paurava Kingdom Area, History  of Nagina  Bijnor ; Paurava Kingdom Area, History  of  Dhampur , Bijnor ; Paurava Kingdom Area, History of  Chandpur Bijnor ; 
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