Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50580 times)

Bhishma Kukreti

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        Sapsindhu Rivers , Sarswati and Unaware of Haridwar by Vedic Aryas

                          वैदिक आर्य साहित्य में सप्तसिंधु नदियां , सरस्वती एवं हरिद्वार के बारे में अनभिग्यता

                                                            History of Haridwar Part  --38 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -38   
                                                                                 
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
                                              सप्तसिंधु
                     वैदिक साहित्य में उत्तर पश्चिम की 31 भारतीय नदियों व इनके तटों पर कई घटनाओं का वर्णन मिलता है। 31 में से 25 नदियों का वर्णन वैदिक प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद में भी मिलता है। इन नदियों के वर्णन से पता चलता है कि आर्यों का प्रसार यमुना नदी के पूर्व तक हो चका था ।   वेद में वर्णित मुंजावत शिखर शायद जम्मू है।  इसी क्षेत्र में वेदों की रचना हुयी थी।
           ऋग्वैदिक आर्यों की मुख्य भूमि सप्तसिंधु रही है। ये सात नदियां हैं -
१- सिंधु
२- परुष्णी
३- अस्कनी
४-विपास
५- वितस्तता
६-शुतुद्रि
७-सरस्वती
सरस्वती वर्तमान की सिंधु , रावी , चिनाव , व्यास , झेलम , सतलुज और कुरुक्षेत्र में बहने वाली नदी माना गया है।
ऋग्वेद में सप्तसिन्धव: का प्रयोग एक बार हुआ है और अन्यत्र अधिक बार हुआ है।

                         सरस्वती नदी
 ऋग्वेद में नदियों को पूर्व याने गंगा से पश्चिम की और अफगानिस्तान की और गिना गया है-
गंगा
यमुना
सरस्वती
शुतुद्रि (सतलुज )
परुष्णी (रावी )
अस्किनी (चिनाव )
मरुदृघा
वितस्ता (झेलम )
आरजीकिया
सुषोमा
त्रिष्टामा
रसा
श्वेता
सिंधु
कुभा
गोमती (गोमाल )
क्रमु
महत्नु
इस तरह सरस्वती की पहचान वर्तमान सरसुती नदी से की जाती है जो अम्बाला के निकट शिवालिक पहाड़ियों से नीचे उतरती है और भटनेर मरुस्थल के निकट लुप्त हो जाती है।
ऋग्वेद में गंगा का प्रयोग केवल एक ही बार हुआ है।  और गंगा के बारे में कुछ भी नही कहा गया है।
अतः हरिद्वार के बारे में प्राचीन वैदिक साहित्य सर्वथा अनभिज्ञ रहा है।



***संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज


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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 38         
History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास


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Bhishma Kukreti

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                      Food Habits  /Culinary Arts and Agriculture  of Vedic Aryans in terms of History of Haridwar, Bijnor and Saharanpur
                             
                                     हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में वैदिक आर्यों का भोजन व कृषि कला


                                                History of Haridwar Part  --38 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -38   
                                                                                 
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
                  दिवोदास के समय तक वैदिक आर्यों का प्रसार यमुना के पश्चिम वर्तमान हरियाणा तक ही था। कुछ वैदिक आर्य वस्तियां सिरमौर की पहाड़ियों के नीचे तक भी अवस्थित थीं।
पशुचारक आर्य ऋग्वेद के समय कृषि अपना चुके थे। भूमि अरण्य व  क्षेत्र (कृषि लायक ) में विभक्त हो गयी थी।
 आर्य उर्बरा भूमि में साल भर में दो खेती करते थे।  सिंचाई भी करते थे। हल बैलों से खींचा जाता था।  हल दो बैलों से लेकर 12 बैलों से खींचा जाता था।  इससे ज्ञात होता है कि वैदिक आर्य मैदानी हिस्सों तक सीमित थे।
पकी फसल को दराती से काटा जाता था। पूलों में बांधकर फसल लायी जाती थी और फिर मांडी जाती थी। भूसा अलग करने की विधि भी अपनाई जाती थी।
आरम्भ में केवल जौ की खेती की जाती थी और बाद में निम्न अन्न उगाये जाते थे -
धान (ब्रीहि )
मूंग
उड़द /मॉस
तिल
अणु
खल्व
प्रियंग
मसूर
श्यामक आदि
फलों में निम्न फल खाए जाते थे -
कर्कन्धु
कुवल
बदर याने बेर

***संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज


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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 38   


History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास


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                                            Animal Husbandry , Ranching in by Vedic Aryan Era

                                    हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों द्वारा पशुपालन

                                                               History of Haridwar Part  --39 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -39   
                                                                                 
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
            वैदिक आर्यों के लिए गाय -बैल प्रधान सम्पति मानी जाती थी।  भेड़ -बकरी व घोड़े भी पाले जाते थे।
गायों को सुबह , दोपहर व संध्या समय दुहा  जाता था। गोपाल गाय -बच्छियों के देखरेख हेतु जानवरों के संग चलते थे।  गायों आदि की पहचान हेतु कान चिन्हित (branding ) किये जाते थे।  रात्रि समय दूध देने वाली गायें मकान में रखी जाती थीं बाकी जानवर गोठ /गोष्ठ में रखे जाते थे।
पशु धन वृद्धि हेतु कर्मकांड /प्रार्थना की जाती थी। वैदिक साहित्य में अप्सराओं की तुलना गायों से की गयी है।
दूध , घी , दही की प्रचुरता थी।
पूजा ,  दही , घी का प्रयोग संभव था।  शायद बैलों को बधिया करने की परम्परा भी  चल पड़ी थी।

**संदर्भ - ---
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 40


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                   Village Life of Aryans reference to history of Haridwar, Bijnor and Saharanpur
                         
                            हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में वैदिक आर्यों का ग्रामीण जीवन व व्यवस्था


                                                       History of Haridwar Part  --40 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -409   
                                                                                 
                           
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
  वैदिक आर्य गाँवों में निवास करते थे।  गाँव एक दूसरे के नजदीक व दूर दूर भी होते थे। छोटी छोटी पगडंडियां गाँवों को जोड़तीं थीं। वैदिक आर्य गांवों में पशुओं के साथ रहते थे व रोज उन्हें जंगल के चारगाह ले जाते थे व संध्या समय घर ले आते थे। अलग अलग घरों में रहने की प्रथा थी व कभी कभी कोट /किला /गढ़ /पुर भी बनाये जाते थे। घरों के अंदर व बाहर अन्न रखा जाता था।
वैदिक काल में श्रम विभाजन शुरू हो चुका था और निम्न वर्ग थे -
कृषक
ब्राह्मण
क्षत्रिय
बढ़ई
धातुकार /कमीर्
ग्राम प्रधान जो राजा द्वारा नियुक्त होता था।
सभी ग्रामीण किसी राजा के अधीन होते थे।
भोजन में सत्तू का प्रयोग अधिक था , दूध , दही घी की प्रचुरता थी।
मेढ़ों का मांश खाया जाता था।
सोम रस मुख्य पेय था जो उर्ज्वान व मद्ययुक्त था।
रात्रि को सामूहिक मनोरंजन होता था और सोमरस पीया जाता था। सोमरस घड़ों में रखा जाता था।
 


**संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 41

Village Life of Vedic Aryans in context History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Village Life of Vedic Aryans in context History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Bijnor; Village Life of Vedic Aryans in context History of Nazibabad Bijnor ; Village Life of Vedic Aryans in context History of Saharanpur

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                     Dresses of Aryans in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                         हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों की वेषभूषा


                                                        History of Haridwar Part  --41 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -41   
                                                                                 
                           
                                       इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
आर्य कपास , ऊन  या चमड़े के कपड़े पहनते थे।
कपड़े तीन प्रकार के होते थे -
१-निम्बी या निम्नबसा - कमर से नीचे के कपड़े
२-बसल याने कमर से ऊपर के कपड़े।
३- अदलिस याने मफलर , पगड़ी आदि
रंगीन कपड़ों को रूचि से पहना जाता था।
                      आभूषण
आभूषणों में  कर्ण कुंडल, गले में हेमल , छाती या हाथों में पहनने वाले आभूषण मुख्य थे।

                 दाढ़ी मूछ
पुरुष दाढ़ी मूछ रखते थे और संभवतया इन्हे रंगा भी जाता। था।  कुछ पुरुष औरतों के सामान जूड़ा  भी रखते थे। उस्तरे से हजामत की जाती थी.
चमड़े के जुटे पहनने का भी रिवाज था।

**संदर्भ - ---
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डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 42

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                           Social Structure of Aryan in context History of Hardwar, Bijnor, Saharanpur

                                हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों का सामजिक जीवन


                                                        History of Haridwar Part  --42 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -42   
                                                                                 
                           
                                       इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
     
                         ताम्र उपकरण संस्कृति
 आर्य जन ताम्र उपकरण युगीन थे।  उनके अधिसंख्य उपकरण व हथियार ताम्र धातु के बने होते थे।
 आयुध उपकरण -इषु (बाण ), कुलिश /बज्र गदा, परशु आदि
घरेलू उपकरण - बसूला आदि
चमड़े के उपकरण - निषंग (तुरीण ), ज्या आदि
               लौह उपकरण संस्कृति प्रारम्भ

लौह उपकरण संस्कृति का भी आरम्भ हो चुका था।

                        मनोरंजन
नृत्यगीत
सोमपान
मल्ल युद्ध
द्यूत
संगीत
छंदों को गायत्री कहा जाता था।

                         शिक्षा
शिक्षा गुरु के माध्यम से मौखिक दी जाती थी और शिष्य उन्हें बार बार रटता था।
कर्मकांड का महत्व शिक्षा में अधिक था।
चिकत्सा शिक्षा का अपना महत्व था। चिकत्स्कों को अश्विनीकुमार या दिव्याभिषग कहा जाता था।

                समाज में चार वर्ग
समाज में चार वर्गों का प्रारम्भ हो चुका था -
ब्राह्मण
राजन्य
वैश्य
शूद्र
शूद्रों का स्थान सबसे नीचे था

                      राजनैतिक संगठन
 राष्ट्र की वास्तविक सत्ता क्षत्रिओं के हाथ में थी।  लगान का प्रारम्भ हो चुका था।
        राज्यों का आकार छोटा होता था. बड़े राज्यों का विवरण नही मिलता है।
व्यापरी या धनिक वर्ग राजाओं या क्षत्रियों को धन देते थे। प्रजा  भी युद्ध में भाग लेते थे।

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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 43

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                Aryan Families  in context History of Haridwar, Bijnor and Saharanpur

                        हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर के इतिहास संदर्भ में आर्यों  पारिवारिक जीवन

                                                        History of Haridwar Part  --43 
                                            हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -43   
                                                                                                             
                                       इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

                आर्यजन सम्मलित परिवार में रहते थे।  वृद्ध पुरुष परिवार का मुखिया होता था। परिवार विभाजित होने पर नया मुखिया बनने /बनाने की प्रथा थी।  विलोम जाति में विवाह कम होते थे।  कभी कभार बड़ी जाति का पुरुष शूद्र महिला से विवाह करता था तो  उलझन पैदा होती थी।
      बड़ी आयु में विवाह होते थे।  बहुपत्नी प्रथा भी थी।  कन्या शुक्ल का भी प्रचलन था तो कन्या को आभूषण आदि भेंट देने का रिवाज था।
 विवाह धार्मिक संस्कार माना जाता था अतः तलाक की प्रथा को स्थान नही था।  धार्मिक व संस्कारों में नारी का महत्व था।  विधवाओं को मृत पति की सम्पति पर अधिकार की प्रथा थी। कभी कभी विधवाएं भी पुनर्र्विवाह भी करतीं थीं।  विधवाएं अपने देवर से या अन्य पुरुष से संतान भी जनतीं थीं।
    समाज में नारियों को भी पढ़ाया जाता था और कई विदुषियों का वर्णन वैदिक साहित्य में मिलता है।
 अतिथि सेवा एक धार्मिक व सामाजिक  कर्तव्य माना जाता था।
मन, शरीर  वातावरण की स्वक्छ्ता पर विशेष ध्यान दिया जाता था।  त्याग , सत्य, उच्च  विचारों का बोलबाला था।

**संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 44

History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur
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                          Vedic Aryan Religious Faith in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                     हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में वैदिक आर्यों के   धार्मिक विश्वास

                                                               History of Haridwar Part  --44 

                                                         हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -44   
                                                                                                             
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


      आर्य देवताओं के परम भक्त , पौरुष पूजक और आशावादी थे। आर्य औटोसजेसन सिद्धांत में विश्वास करते थे।  आर्यों के देवता भी इन्ही गुणों से सम्पन थे। आर्य पितरों व परलोक पर, स्वर्ग -नरक आदि पर विश्वास करने वाला समाज था।  देवपूजा से आर्य कामना फल की मांग करते थे।
                           आर्यों के मुख्य देवता
वैदिक आर्यों के मुख्य देवता निम्न थे -
इंद्र
वरुण
मित्र
अग्नि
अर्यमा
सविता
भग
रूद्र
वसुगण
मरुत
रोतसी
भिषग (अश्वनी )
नासत्य -अश्वनी
सरस्वती
वायु
ऋभुक्षा
पर्जन्य
आकाश को पिता और पृथ्वी को माता, अग्नि को भ्राता का दर्जा हासिल था
नदियों का सम्मान /पूजा देवरूप में किया जाता था।
देवताओं को युग्म रूप में पुकारा जाता था जैसे -इंद्र -सोम , इंद्र -पूसा आदि
अन्न , प्रकृति , जल के वे कृतज्ञ रहते थे।
इंद्र मुकुटधारी मुख्य देव था।
रोग निवारण आदि हेतु मंत्र -तंत्र में आर्य समाज विश्वास करता था। जड़ी -बूटी भी प्रयोग शुरू हो चुका था
कार्य प्रारम्भ व कार्य सम्पन में देवताओं की स्तुति  का रिवाज था।  विजय , शत्रु नाश , भी नाश , संतति , धन प्राप्ति के लिए स्तुति करते थे।

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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 45


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                                   Aryans De-Rooting   Hill Asur Kingdoms in context History of Haridwar ,Bijnor and Saharanpur

                                          हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों द्वारा असुर जनपदों का उत्पाटन

                                                                                    History of Haridwar Part  --45 

                                                         हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -45   
                                                                                                             
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

                                                               आर्य जनपदों की स्थापना
  आर्य समाज ने भारत में प्रवेश सेना के साथ नहीं किन्तु परिवार , चल सम्पति व पशु सम्पति के साथ किया था।  अतः कहा जा सकता है कि आर्यों का विस्तार सेना की सहायता से नही बल्कि सामाजिक उच्चता याने सम्पति- समृद्धि प्राप्ति से हुआ।
 आर्य अपने पशुओं को लेकर चराई वाले क्षेत्रों से धीरे धीरे आगे बढ़े।  उन दिनों सप्तसिंधु या सिंधु -सतलज क्षेत्र में उस समय अन्य जनपद थे।  ये जनपद भी सिंधु घाटी संभ्यता समाज समान अपनी रक्षा या जमीन के प्रति सावधान नही थे। अतः ये जनपद आर्यों के चारागाहों में आने के बाद  पूर्व व दक्षिण की ओर हटते गए और कुछ यहीं रहीं और आर्यों के साथ कलह में शामिल थीं ।  आर्यों के पहले सिंधु क्षेत्र में कॉल , द्रविड़ , खस जातियां बसी थीं।  आर्य प्रसार युद्ध से नही हुआ।  तभी तो कुभा से लेकर शुतुद्रि तक पंहुचने के लिए आर्यों को 300 साल या नौ दस पीढ़ियां लगीं।  आदि समाज के ऊपर आर्यों का शाशन बढ़ता गया।
 सप्त सिंधु  आर्यजनों में पुरू , यदु , तुर्वस , द्रह्यु जनपद मुख्य थे।
   धीरे धीरे इन आर्य जनपदों ने अनार्य जनपदों को नष्ट करना शुरू किया और पूर्व की ओर बढ़ना शुरू किया। आर्यों की तुत्सु  भरतों की एक उपशाखा थी।  इनमे बद्रयश्व , उसका पुत्र दिवोदास और पौत्र सुदास प्रसिद्ध हुए।  दिवोदास ने अपने जनपद के उत्तर में हिमालय की निचली ढालों में बसे जनपदों का उत्पाटन किया। सुदास ने सप्तसिंधु व पंजाब के आर्यों को एकजुट करने की कोशिस की।
 सुदास की महत्वाकांक्षा का अन्य आर्य जनपदों जैसे यदु , तरवस , पक्थ , भलान , अलीन , विषाणी, शिव आदि जनपदों ने भारी विरोध किया।
आर्यों द्वारा असुर जनपदों का उत्पाटन का शेष भाग अगले अद्ध्याय में पढ़िए -
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डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 46


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                                 हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर इतिहास संदर्भ में आर्यों द्वारा दास प्राप्ति

                                                                  History of Haridwar Part  --46 

                                                         हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -46   
                                                                                                             
                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 सप्तसिंधु क्षेत्र में 300 वर्ष विताने के वाद आर्यों की जीवनपद्धति में परिवर्तन हुए।  धीरे धीरे आर्य निरा पशुचारक न रहकर कृषक -पशुचारक बन चुके थे। पशुपालन व कृषि एक दूसरे के पूरक बन चुके थे। कृषि कार्य व पशुपालन से सम्पति वृद्धि हेतु मानव श्रमिकों की आवश्यकता पड़ने पर आर्यों ने दास -दासियों का प्रयोग प्रारम्भ कर दिया था।
 ज्यों ज्यों कृषि -पशुपालन से समृद्धि -सम्पति वृद्धि की लालसा बढ़ती गयी आर्यों को दास दासियों की आवश्यकता पड़ती गयी।  अब आर्य अन्य भारतीय जातियों से कृषि भूमि , अनाज , ही नही छीनने लगे अपितु दास दासियाँ भी छीनने लगे या अनार्यों दास बनाने लगे। आर्य अब दासों के लिए भी अनार्यों के गाँवों पर भी छापे मारने लगे।

कृष्णवर्ण वर्ग वाले दो वर्गों में बांटे जाते हैं- द्रविड़ व गुहावासी।  द्रविड़ों व गुहावसियों से आर्यों का घोर संघर्ष चला था।  किन्तु ऋग्वेद काल में द्रविड़ व गुहावासी आर्यों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे।
 ऋग्वेद अनुसार अनार्य या दास जाति कृष्ण वर्ण व लिंग पूजक थे। यद्यपि किरात पीले थे  किन्तु आर्यों ने उन्हें कृश्णवर्ण वर्ग में ही रखा अनार्य पत्थरों के दुर्ग निवासी याने  गुफावासी थे। इतिहासकार इन्हे किरात जाति के मानव मानते हैं जो पंजाब की पहाड़ियों से लेकर सहारनपुर , हरिद्वार , बिजनौर , गढ़वाल की भाभर तराई क्षेत्रों में फैले थे।
 



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History of Haridwar to be continued in  हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास; बिजनौर इतिहास, सहारनपुर इतिहास  -भाग 47

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