यशोवर्मन के राज्य में हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर क्षेत्र
हर्षवर्धन पश्चात बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर का 'अंध युग' अर्थात तिमर युग इतिहास - २६
Dark Age of History after Harsha Vardhan death - 26
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 303
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३०३
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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यशोवर्मन व सामयिक हरिद्वार , बिजनौर व सहरानपुर
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हर्ष की मृत्यु बाद उन दिनों पूर्व नरेशों का राज चल रहा था। भारत के पश्चिम में यवनों का राज्य प्रारम्भ हो गया था। इसी समय कश्मीर में ललितादित्य व पंचाल नरेश यशोवर्मन ने अरबों या मुस्लिम आक्रांताओं या आतंकवादियों को रोकने हेतु प्रयत्न किये।
हर्ष की मृत्यु से ७५ वर्ष तक का पांचाल इतिहास में कोई प्रामाणिक सामग्री नहीं मिलती है। तभी सन ७२५ ी के लगभग कन्नौज में एक भड़ /बियर योद्धा ने कान्यकुब्ज राजगद्दी पर अधिकार कर लिया (२ )
यशोवर्मन के बारे में यशोवर्मन के राजकवि वाकपति के प्राकृत काव्य संग्रह गाऊड वहो ('गौड़ वध ' में मिलता है (३) ।
इस विवरण याने गाउड वहो म यशोवर्मन तै चंद्रवंशी बुले गे अर यशोवर्मन दिग्विजय प्रकरण मिल्दो सर्व प्रथम बंग नरेश ने अधीनता स्वीकार की फिर मलय देस व समुद्र तटीय क्षेत्र जीते , पारसीकों के बाद सह्याद्रि , राजस्थान , थानेश्वर में राज्य कायम किया व उपायेन (कर या दक्षिणा ) निश्चित किये। थानेश्वर से कुरुक्षेत्र होते हुए अयोध्या जीता। फिर मंदर पर्वत जहां कुवेर वास करते हैं व देवदारु वाले क्षेत्र को जीता। (यद्यपि कई विरोधाभास हैं ) . वाकपति के वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण हैं।
तिब्बत पर आक्रमण
डा शिव प्रसाद डबराल ने बताया कि यशोवर्मन ने व तिब्बतियों के आतंकवादी हमले रोकने हेतु चीन नरेश से (731 ई ) से सहायता मांगी थी। चीन नरेश ने कोई सहायता नहीं दी तो ललितादित्य व यशोवर्मन ने अरबी आतंकियों के सरदारों को भगाया। मुस्लिम आतंकवादियों को समाप्त करने का भारत में यह पहला सादोस्य पूर्ण कार्य माना जायेगा। यशोवर्मन को तिब्बती आतंकवादी आक्रांताओं को रोकने में भी सफलता मिली थी। बाद में ललितादित्य से उसका युद्ध हुआ। इसी समय यशोवर्मन राजू अस्त हो गया।
यशोवर्मन के मुद्रा से उसका काल ७२५ से ७५२ तक बैठता है।
इस तरह साबित होता है कि यशोवर्मन का राज्य हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर पर भी था।
डा डबराल ने लिखा है कि उत्तराखंड के शासक कत्यूरी वंश संस्थापक बसन्तन ने संभवतया यशोवर्मन की अधीनता स्वीकार की होगी। यशोवर्मन का ललितादित्य से पराजय या मृत्यु बा कत्यूरी नरेश बसन्तन ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी हो।
यशोवर्मन का व्यक्तित्व
यशोवर्मन वीर था व भविष्यदर्शी भी था। यशोवर्मन को मध्य देश बचाने हेतु तिब्बत (आज चीन ) के आतंकवादी हमले रोकने के लिए उत्तराखंड रक्षा व मुस्लिम आतंकवादियों के आतंकवादी हमलों से से रक्षा हेतु कश्मीर रक्षा को महत्व पूर्ण समझा।
यशोवर्मन विद्वान् प्रशंसक था व उसके दरबार में कवि व विद्वान आश्रय लेते थे, जैसे वाकपति व नाटककार भवभूति। रजतरंगनी अनुस्वार यशोवर्मन स्वयं भी कवि था।
- संदर्भ
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४२५ -४२६
२- चोपड़ा प्राण नाथ , (२००३ ) कॉम्पेरहेंसिव हिस्ट्री ऑफ़ ऐनसियंट इंडिया , स्टर्लिंग , पृष्ठ १९४
३- मजूमदार ,रमेश चंद्र ,(१९५२), एनसीयंट इण्डिया , मोतीलाल बनारसीदास , प २५९
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