Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50611 times)

Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , बिजनौर , सहरानपुर इतिहास  संदर्भ में जोशीमठ  (कार्तिकेयपुर ) का कत्यूरी राजवंश


 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - 2
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  with  reference  Katyuri  rule -2

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   313                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  313                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
 ऐटकिंसन आदि के संदर्भ से डा डबराल ने कत्यूरी वंश का उद्भव स्थल  कार्तिकेयपुर  ( जोशीमठ )  माना है।  यही राजवंश फिर पाली दोती , अस्कोट में प्रवासित हुआ। 
 राहुल अनुसार (कुमाऊं पृष्ठ ६० )  कटीरी (कार्तिकेयपुर शाखा ) का बिघटन वीरदेव राजा की मृत्यु के बाद हुआ।  जनश्रुति आधार पर ही कहाजाता है कि कार्तिकेयपुर में यह कत्यूरी राजवंश था।  वीरदेव कुमाऊं में कत्यूर क्षेत्र का राजा था।  उसका महल कसौनी निकट हथछिना के निकट था। 
ऐटकिंसन द्वारा संग्रहित जन श्रुतियाँ अनुसार कार्तिकेयपुर के राजा कत्यूरी थे। 
कटोर  और कत्यूरी - कत्यूरी नरेश काल में कठोर का सूर्य मंदिर मिर्मित हुआ (१ ) कल्पना की जाती है कि कटार  शब्द कटोरमान  जाती के योद्धा थे। 
काबुल का अंतिम कटोरमान  राजा वासुदेव था।  जिसके उत्तराधिकार कनक से उसके मंत्री ने राज छीन लिया था।  कत्यूरियों का मूल पुरुष भी वासुदेव ही था।  काफिरसतान और चित्राल के शासक आज भी शाह कटोर कहलाये जाते हैं (१ ) ।    गजनी के सेना में हिन्दू सेनापति तिलक के अधीन कटोर युवक थे।  तैमूर के समय कटोर  वीरों ने तैमूर से लोहा लिया था।  अभिलेखों से पता चलता है  कि कटोर आयुध जीवियों के हिमालय की ढलानों में कई राजवंश स्थापित किये थे। (  इलियट ऐंड डॉसन , हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया vol २ पृष्ठ ४०४ -४०५ )
नामसाम्य  तथा कुमाऊं के कत्यूरी शाशकों के आ बसने की तिथि से अनुमान लगता है कि कत्यूर   उन्ही कटोर  वंशी थे जो महमूद के पक्ष में लड़े थे। 
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संदर्भ :
  १-शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ    ४८०- ४८१
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का प्राचीन इतिहास   अगले खंडों में


Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में  कत्यूरी कंश का शक व  कुषाणों     से संबंध         
     

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  with  reference  Katyuri  rule -3

Ancient History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   314                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३१४                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
सर अलेक्जेंडर कनिंघम  ( लेटर सिंथेसिस पृष्ठ १८५ ) अनुसार कटोरमान , किटोरान 'किदार -कुषाण ' का परिवर्तित  या रूपांतरित  रूप है।  राहुल अनुसार (गढ़वाल १०१-१०२ ) कत्यूरी वंश का संबंध शकों की कुषाण शाखा से है।  कत्यूरी नरेशों में  का नाम शालिवाहन था। 
जिस प्रकार शकाब्द को शालिवाहन शकाब्द कहा जाता है उसी प्रकार शक हेतु शालिवाहन खा गया है (राहुल ) । 
एच जी वाल्टन (देहरादून गजेटियर  १६८  )  अनुसार कत्यूरी राजाओ के वंशज शालिवाहन के पुत्र रिसालु की राजधानी देहरादून के पास हरिपुर में थी।  अर्थात सहरानपुर हरिद्वार व बिजनौर भी प्रारम्भिक कत्यूरी राज में थे ही।  कत्यूरी राजाओं द्वारा स्थापित सूर्यमंदिरों गोपेश्वर , कटारमल्ल ,बागेश्वर , द्वारहाट में हैं व बूटधारी सूर्य की प्रतिमाएं स्थापित हैं।  जिससे अनुमान लगता है कि कत्यूरी वंशज शक ही थे व कटोर वंशी थे (१ व राहुल , गढ़वाल पृष्ठ १०२) ।   
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संदर्भ :
  १ शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४४२
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का प्राचीन इतिहास  कत्यूरी  वंश भाग  अगले खंडों में


Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी राजवंश का खसों से संबंध                 

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४ 4
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  315                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३१५                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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राहुल (गढ़वाल  पृष्ठ १०२ ) अनुसार  कत्यूरियों का शकों से संबंध था किन्तु खश जाति  से नहीं।  यशोवर्मन चंदेल के खजुराहो शिलालेख अनुसार कत्यूरी वंश के किसी शाशक को खश नरेश की शक्ति से टोला था (गौड क्रीडालता सिस्तु लतखसबल कौशल: कोशलानाम (खजुराह शिलालेख पृष्ठ १३ (डबराल से उद्घृत ) . कत्यूरी नरेशों के समकालीन धर्मपाल , देवपाल नारायणपाल, मदनपाल  के अभिलेखों में खश नरेशों को उनके अधीन बताया गया है।  इसलिए कत्यूरी वंश का संबंध खश जाति  से जुड़ना अधिक तर्क संगत भी लगता है (१ )। 
कत्यूरियों की पुंडीर व चंद वंश से निम्न जाती समझा जाना (लोक गाथाएं ) भी कत्यूरियों को खश के निकट होना तर्कपूर्ण लगता है (१ ) । जैसे चंद वंशी व पुंडीर वंशी कत्यूरों की लड़की को बहु तो बनाते थे किन्तु उन्हें लड़की नहीं देते थे (१ )।


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संदर्भ :
  १ -शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   -४४२
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का  कत्यूरी युगीन प्राचीन  इतिहास   अगले खंडों में


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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में    कत्युरी    राजवंश का नेपाल से संबंध             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ५
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -5

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  316                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३१६               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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जनश्रुति अनुसार कत्यूरी वंश संस्थापक वासुदेव था।  काबुल का कटोरमान वंश का अंतिम नरेश भी वासुदेव था।  एटकिंसन दोनों को एक मानते हैं (२ ) .
किन्तु बागेश्वर के त्रिभुवनराज शिलालेख से पता चलता है कि  कत्यूरी वंश संस्थापक वासुदेव नहीं अपितु वसंतन देव था।  कत्यूरीनरेश  ललितसूर की राजयविधि ध्यान में रखकर वसंतन देव का शासन प्रारम्भ  यशोवर्मन पतन पश्चात ही हो सकता है (७४०- ७५२ ईश्वी ) )
नेपाल इतिहास (१ ) से पता चलता है कि  इन्ही दिनों मानगृह के लिच्छिव वंश में उतपन  वसंतदेव शासन कर रहा था।  कत्यूरी नरेशों का शासन नेपाल डोटी पर कई शक्तियों तक रहा है। 
   वसंतदेव व वसंतन  देव को एक मानकर कल्पना की जा सकती है कि  कत्यूरी नेपाल के थे।  किन्तु कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं। 
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संदर्भ :
१- बलदेव प्रसाद मिश्र , १९०४ , खेमचंद मुंबई पृष्ठ ५८
  २ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  -४४३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में     कत्यूरी राजवंश के सूचना स्रोत              

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ६
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -6

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 317                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ३१७                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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कार्तिकेयपुर के कत्यूरी नरेशों के अब तक ८ अभिलेखों की सूचना मिली है।  कालीमठ के भटभवबर्मन के शिलालेख भी कत्यूरी राजवंश के ही हैं।  बढ़ापुर के जैन मूर्ति का लेख भी कत्यूरी राजवंश के अंतिम दिनों का अनुमान है (डबराल) ।
 क्रम संख्या -----प्राप्ति स्थान -------- अभिलेख -----------नरेश  ------------राजधानी --------राज्य संबत सर
१  -----------------जोशीमठ ----      शिलालेख --------वासुदेव  ------------संभवतया जोशीमठ  --- ?
२------------------ बागेश्वर  -------शिलालेख  --------त्रिभुवन राजदेव   ----------------? -------------११   
३---------------- पांडुकेश्वर ---------ताम्र शासन -------ललित सूर --------कार्तिकेयपुर  --------------२१
४-  --------------- पांडुकेश्वर ---------ताम्र शासन -------ललित सूर --------कार्तिकेयपुर  -------------२२
५- ----------------बागेश्वर ----------  शिलालेख -----------भूदेव    ----------- ? ------------------------४
६ ----------------- बालेश्वर----------- ताम्रशासन -----------देशटदेव --------  "  ----------------------५
७ ------------------पांडुकेश्वर ----------- " -------------------पद्मटदेव              " -------------------- २५
८- -------------------पांडुकेश्वर ------- " ----------------सुभिक्ष राजदेव  -------सुभिक्षपुर   ----------- ४
९ -----------------कालीमठ ---------- शिलालेख  -----------? ---------------------? ----------------- ?
१० -  -----------बढ़ापुर  -----------मूर्तिपीठिकालेख ------- ? --------------------?  ----------------१०६७ वि
 लिपि - सभी कत्यूरी अभिलेखों में लिपि कुटिला लिपि है जो मगध के पाल वंशी व तिब्बत से प्राप्त ताल पत्रों में मिला है। 
(सूचना - डबराल , पृष्ठ ४४४  )

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संदर्भ :
  शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४४४
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में  कत्यूरी ताम्रपत्रों में  नंदी लांछन                

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ७
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -7

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 318                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३१९                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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कत्यूरी अभिलेख सुंदर ताम्रपत्रों पर बड़े परिश्रम से व कलापूर्ण ढंग से खुदे हैं।  नरेश ललित शूर के ताम्रपत्रों  के  राजमुद्रा में नंदी बैठा है।  नंदी का सिर थोड़ा ऊंचा उठा है।  नंदी के पिछले दोनों  पैर  धरती  पर टिके हैं। नंदी के अगले पैरों में से बांया पैर  ऊपर उठा है।  और दाहिना पैर धरती पर मुड़ा  है।  नंदी के नीचे लेख है।  लगभ्ग इसी प्रकार का नंदी श्रीनगर गढ़वाल के कमलेश्वर मंदिर में भी है व पर्व शासनों में भी नंदी लांछन मिलता है। 

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संदर्भ :
  शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४४४
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी राजवंश वंशावली              

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - 8
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -8

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  320                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    ३२०               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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बागेश्वर मंदिर शिलालेखों अनुसार उस मंदिर के दक्ष्णिी  भाग में विद्वत रचित राजवंशावली अंकित थी। दुर्भाग्य से यह सूचित वंशावली नहीं मिलती है।  कत्यूरी वंश की डोटी , अस्कोट व पाली शाखाओं के वंशवली संग्रह कई सदियों बाद हुए।  इसमें कत्यूरी अभुलेखों में वर्णित शाशकों के नाम न मिलने से पूर्व कत्यूरी वंशावली के लिए ये संकलन काम के नहीं हैं। 

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संदर्भ :
  १- -शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  -४४५ 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी राजवंश के तीन परिवार                 

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ९
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -9

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  ३२१                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 321                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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कत्यूरी अभिलेखों से मालुम होता है कि  कत्यूरियों के तीन परिवारों ने कार्तिकेयपुर के निकट क्रमश राजधानी स्थापित कर  एक दूसरे के बाद राज किया।  इन राजपरिवारों के संस्थापक वसंतन  देव , निंबर देव ,और सलोणादित्य  थे।
 एपिग्रफिका  इंडिका से विदित होता है कि सलोणादित्य  के परिवार ने निबरतादेव के पश्चात  शाशन किया।
वसंतनदेव की सुचना केवल बागेश्वर शिलालेख में मिलता है।  परम्परा अनुसार कत्यूरी राजवंश का संस्थापक वासुदेव था।  इसी समानता के बल पर एटकिनसन  व राहुल ने वसंतनदेव को कत्यूरी वंश का संस्थापक माना (२ )

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संदर्भ :
१- एपिग्रफिका इंडिका vol १३ , भाग ६   पृष्ठ २७८ , २८५
 २-  शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४४५ 
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का  कत्यूरी युगीन प्राचीन  इतिहास   अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर


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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्युरी नरेशों की नामावली   
             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - १०
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -10

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -     322               
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ३२२               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -

विभिन्न सूचना सोत्रों से  कत्युरी राजवंश में निम्न नाम मिलते हैं।
क्रम -------स्थल ----------- अभिलेख -------------------नरेश नाम -------राजधानी ---------राज्य संवत्सर
१- ---- जोशीमठ ------------ शिलालेख  ---------------वासुदेव -----------संभवतया जोशीमठ    ?
२------बागेश्वर----------------शिलालेख --------------- त्रिभुवनराजदेव  -------?------------------ ?
३- पांडुकेश्वर -----------------ताम्रशासन ---------------ललितशूर -----------कार्तिकेयपुर --------२१
४- पांडुकेश्वर --------------ताम्रशासन ------------------ललितशूर -----------कार्तिकेयपुर --------२१
५- बागेश्वर------------------- शिलालेख ------------     भूदेव  ------------------? --------------------४
७ -बालेश्वर ------------------ ताम्रशासन ---------------देशटदेव --------------कार्तिकेयपुर-------  ५ 
८- पांडुकेश्वर ---------------ताम्रशासन ----------------सुभिक्ष राजदेव --------सुभिक्ष पुर ------ -----४
९-  कालीमठ शिलालेख ------? ---------------------------? ------------------------ ?
१०- बढ़ापुर ------------------ मूर्तिपीठिकालेख-----------  ? ------------------------- ? ---------१०६७ संवत वि
सभी कत्यूरी अभिलेखों की लिपि कुटिल है जो नवीन दसवीं सदी के मगध नरेशों के अभिलेखों में मिलती है व कुछ पीछे तिबत में भी मिले है )२ )
                                                             

डा डबराल की  पुस्तक से उद्घृत
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संदर्भ :
 १- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४४४
२- राहुल , कुमाऊं पृष्ठ ३८
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में  वसंतनदेव और उसके वंशज                  

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ११
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -11

Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 323                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३२३                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -

नाम चर्चा -
जनश्रुतियों अनुसार कत्यूरी राजवंश का संस्थापक वासुदेव था।  किन्तु वासुदेव का नाम किसी भी अभिलेख में नहीं मिलता है।  ऐटकिनसं का अनुमान है कि किमबंदंति वाला वासुदेव व काबुल का अंतिम कटोरमान राजा वासुदेव एक ही थे।  किन्तु ऐटकिनसन की राय के पक्ष में कोई  साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।
इतिहासकार सरकार ने  एपीग्राफ़िया  इंडिका में  बागेश्वर शिलालेख में कत्यूरी शासक का नाम भसंतनदेव पढ़ा है (२ )।  एटकिनसं ने अनुवाद में वसंतन बना दिया (१ )।
पाली की कत्यूरी वंशावली में प्रथम व द्वितीय नरेश ों  के नाम असंतिदेव व वसन्तिदेव हैं।  दोती व अस्कोट वंशावली में उन्हें ३१ वन व ३२ स्थान दिया है। 
ऐटकिनसं व राहुल (गढ़वाल पृष्ठ १०५ ) ने कत्यूरी वंश के संस्थापक को वसंतनदेव बतलाया है।  (१ )

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संदर्भ :
  १- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४४६ -४७ 
२- एपिग्रफिया  इंडिका vol ३१ भाग ३ पृष्ठ २७८
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