Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50582 times)

Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  : कत्यूरी   नरेश  नरसिंह  देव           

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४२
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -42
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  344                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ३४४               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी नरेश  सुभिक्षराज के उत्तराधिकारियों के कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं हुए हैं।
जनश्रुति अनुसार कत्युरी नरेश नरसिंह देव के काल में कत्युरी राजधानी कार्तिकेय्पुर से कत्युर -गोमती क्षेत्र में विस्थापित हुयी थी (१ )।
डबराल लिखते (१ )  हैं कि अभी तक यह अज्ञात है कि नरसिंह देव का सुभिक्षरज से क्या संबंध था। 
राहुल व ऐटकिंसन आदि ( २ ) की राय जनश्रुति पर आधारित है कि  नरसिंह देव वासुदेव कत्यूरी का वंशज था।  एक दिन वः जब शिकार खेलने गया था तो नृसिंहअवतार विष्णु ने ब्राह्मण भेष में नरसिंह की पत्नी से  भोजन भिक्षा मांगी।  रानी ने भोजन कराया व नृसिंह रूप उनके पलंग पर लेट गए।  राजा वापस आये तो अपरिचित को अपने गृह पलंग पर देख क्रोधित हो गए व उन्होंने तलवार से आगंतुक का हाथ काट दिया।  कटे हाथ से रुधिर के स्थान पर दूध बहने लगा।  राजा स्तब्ध हो बैठे।  तब देव ने बतलाया कि "वे प्रसन्न हो राजसभा में आये थे।  तूने अपराध किया तो भोगना पड़ेगा।  तू ज्योतिरधाम छोड़ कत्यूर चला जा। "  नरसिह रुपया ने कहा कि  मेरी प्रतिछाया मंदिर के नरसिंह मूर्ति में रहेगी।  जब तक नरसिंह मूर्ति साबुत रहेगी तेरा वंश चलता रहेगा।  जिस दिन मूर्ति बिखंडित हुयी तो तेरा वंश भी खंडित हो जायेगा। (२ ) " .
 ओकले अनुसार (३ )  कत्यूरी शैव्य थे व विवशंव धर्म के वृद्धि से भयातुर कत्यूरियों ने अपनी राजधानी कत्यूर बसाई।  किन्तु कत्यूरी राजाओं ने विष्णु धर्म की भी रक्षा की थी अतः ओकले की बात  निराधार ही है (१ )। 
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४८१
२- राहुल सांकृतायन  , गढ़वाल पृष्ठ ३३५
३- ओकले , होली हिमालय पृष्ठ ९८
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Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  : हिमस्खलन से  कत्यूरी राजधानी नष्ट होना            

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४३
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -43
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  345                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३४५                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी राजवंश की राजधानी विस्थापन  हेतु डाक्टर शिव प्रसाद डबराल  का सिद्धांत अधिक सही प्रतीत होता है (१ ) ।  डॉक्टर डबराल अनुसार संभवतया कार्तिकेयपुर व निकटवर्ती क्षेत्र (जोशीमठ , विष्णु प्रयाग ) में हिमस्खलन हुआ होगा व यह हिमस्खलन बार बार  हुआ  होगा व राजधानी नष्ट हुयी होगी।   जिससे कत्यूरी नरेश ने (सुभिक्षरज  या नरसिंघ देव ) हिमस्खलन से बचाव हेतु राजधानी विस्थापित की व राजधानी वैद्यनाथ (बैजनाथ ) विस्थापित की।
लेकिन विद्यानाथ ही क्यों का कोई कारण आज तक नहीं मिल स्का है।   
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६२
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :  वैद्यनाथ -कार्तिकेयपुर राजधानी             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४४
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -44
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 346                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३४६                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
 अभिलेखों (२ )  से ज्ञात होता है कि  कत्यूरी नरेशों के अपनी राजधानी बैजनाथ (बैद्यनाथ ) स्थानन्तरित होने के पश्चात भी कार्तिकेयपुर को नहीं भुलाया व अपनी श्रद्धा व प्रेम कार्तिकेयपुर में दर्शाया। 
समय - बैद्यनाथ के मंदिरों व अवशेषों से अनुमान लगाना सरल है कि बैजनाथ (वैद्यनाथ ) नवी- दसवीं ईश्वी में प्रसिद्ध स्थान था (१ )।  जोशीमठ (कारतीयकेयपुर ) बैद्यनाथ से केवल ९० मील दूर है।  डबराल ( १ ) लिखते हैं कि  नरसिंह देव कत्यूरी ने संभवतया १००० ईश्वी में अपनी राजधानी जोशीमठ (कार्तिकेयपुर ) से बैजनाथ (वैद्यनाथ ( स्थानांतरित की थी। 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६३
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ८७- ९०
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :   कत्यूरी राजाओं की राज्य सीमायें    
कत्यूरी राज्य  के बारे में पातीराम की कल्पना के विरोध में अकाट्य पक्ष       

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४५ 45
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 347                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -    ३४७               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी अभिलेखों में महाराजाओं की प्रशस्ति तो है किन्तु राज्य सीमाओं के बारे में विषय नहीं हैं।  अभिलेख उत्तरी उत्तराखंड में ही मिले हैं। 
पातीराम (३ )  की कल्पना थी कि  जब ६९९ लगभग कनकपाल मालवा से गढ़वाल आया तो उस समय कत्यूरी समेत  अन्य छोटे छोटे ठकुराईयाँ थीं।  सोनपाल का दामाद गढ़वाल के ंशय भाग का स्वामी बन बैठा (१ )। ग*धवल के दक्षिण में मोरध्वज , पांडुवला ब्रह्मपुर राज्य थे।  डबराल ( २ ) ने इन सभी कपोल कल्पनाओं का खंडन किया।  कारण कत्यूरी नरेशों का १००० तक परिपूर्ण अस्तित्व के बारे में अकाट्य अभिलेख उपस्थित हैं किन्तु कनकपाल आदि का कोई अकाट्य सबूत नहीं मिलते हैं।  मोरध्वज , पांडुवाला आदि भी प्राचीन काल के हैं। ऐसा माना जाता है कि  हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर पर कत्यूरी राज रहा होगा। 
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६३
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग २   वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ८८ - ९०
३- पतिराम - गढ़वाल ऐन सियंट ऐंड मॉडर्न पृष्ठ १८४ -८५
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर पर   कत्यूरी राजाओं का  अधिकार प्रमाण        
(कत्यूरी राज्य सीमायें भाग २ )

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४६
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -46
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 348                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ३४८               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
डाक्टर डबराल  (२ ) पातीराम विरुद्ध तर्क देते हैं कि - कत्यूरी अभिलेखों में उनकी सेना में पदातिकों के अतिरिक्त उष्ट्रारोहि व गजारोही सैनिक टुकड़ियां भी थीं।  पहाड़ों में गजारोही या ऊंट की सेना तो रखी जा नहीं सकती।  कत्यूरी नरेश इष्टगणदेव ने अपनी तलवार से मद मस्त हाथियों की गर्दन काटी थी (२ )। इससे तर्क सही दिखता कि कत्यूरियों का सहारनपुर , हरिद्वार व बिजनौर पर अधिकार था।
  केवल सर्ववर्मन , हर्ष व यशो वर्मन काल में ही भाभर )सहरानपुर , हरिद्वार व बिजनौर ) प् राधिकार था (१ )।  बाकी अन्य नरेशों का उत्तराखंड पर अधिकार के प्रमाण नहीं मिलते हैं।  ऐटकिंसन इन कत्यूरी नरेशों का राज सतलज तट तक मानता है (हिमालयन डिस्ट्रिक्ट्स जिल्द २ , पृष्ठ ४६७ ) ।
  इतिहास पन्नों में कत्यूरी काल में किसी राजा का हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर क्षेत्र पर अधिकार के कोई प्रमाण भी नहीं मिलते हैं।  ना ही  इस काल में किसी मैदानी राजा के उत्तराखंड पर चढ़ाई के प्रमाण मिलते हैं।  अर्थात कत्यूरी राज दक्षिण में बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर तक था। 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४६३ , ४६४ 
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग २   वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ८८ -९०
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का  कत्यूरी युगीन प्राचीन  इतिहास   अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , कत्यूरी युग में हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर  इतिहास

Bhishma Kukreti

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 सहारनपुर , बिजनौर हरिद्वार पर कत्यूरी शासन समाप्ति          

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४७
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -47
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 349                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३४९                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 वर्तमान जोशीमठ में कत्यूरी राजधानी होने का अर्थ है कि कत्यूरियों की उत्तरी सीमा तिब्बत - भारत की मध्यवर्ती पहाड़ों की श्रेणी तक था (१ )।
प्राचीन जनश्रुति जिसे एटकिनसन  ने उद्घृत किया है (२ ) कि  जोशीमठ को राजधानी बनाकर कत्यूरी नरेशों का राज्य सतलज तट से लेकर पूर्व गंडकी तक था।  तथा महा हिमालय से लेकर दक्षिण मैदान व रुहेलखंड तक था। 
यमुना से सतलज तक कत्यूरी राज्य की पुष्टि अभी तक किसी ऐतिहासिक अभिलेखों व प्रमाणों से नहीं हुयी है।  सतलज के तट में निरत स्थान में एक बूटधारी सूर्य मूर्ती का मंदिर भी है (१ )। राहुल अनुसार (कुमाऊं , पृष्ठ ३३ ) इस सूर्य मंदिर की स्थापना ८ -९ वीं ईश्वी में हुआ था।  राहुल की धारणा है कि ललित शूर समय यह मंदिर कत्यूरी नरेशों के अधिकार में था। 
 कत्यूरियों ने लगभग २५० ढाई सौ वर्षों तक राज किया।  और तीन वंशजों के राज होने से कई बदलाव अवश्यंभावी हैं। 
वैजनाथ कांगड़ा शिलालेख (कांगड़ा गजेटियर परइ ५०१ ) अनुसार दसवीं सदी के अंत में तीरगत जालंधर नरेशों की शक्ति विस्तृत थी।  संभवतया इस समय कत्यूरी अधिकार यमुना के पश्चिम में समाप्त हो चला होगा (१ )।  तारीख यामिनी अनुसार (इलियट डाउसन , हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया खंड २  पृष्ठ ४७ इंडियन कल्चर गव डॉट कॉम डॉट इन /रेयर बुक्स  )  दसवीं सदी में अम्बाला -सहारनपुर , सिरमौर व देहरादून (पश्चमी भाभर ) पर किसी चाँद राय का अधिकार था।  ओकले व गैरोला अनुसार (३ ) मायापुर , हरिद्वार व गढ़वाल भाभर में सामंत भी स्वतंत्र बन बैठे थे।  इससे अनुमान लगता है कि अंतिम काल में कत्यूरियों का शासन बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर पर समाप्त हो गया था। 
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६४
२-  एटकिनसन ,  हिमालय डिस्ट्रिक्ट्स खंड २ , पृष्ठ ४६७
३-ओकले   - गैरोला हिमालयन फ़ोल लोर पृष्ठ १०२ - १०३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :  कत्यूरी नरेश चरित्र             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४८
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule 48 -
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 350                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३५०                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
चौदह कत्यूरी नरेशों में त्रिभुवनराज , निंबर व सलोणादित्य को छोड़ अन्य कत्यूरी नरेशों की उपादि पट्टमभट्टारक महाराजधिराज रहा है।  अभिलेखों में कत्यूरी राजाओं को सतयुग राजा सामान बतलाया गया है।  इन कत्यूरी नरेशों को दया , दाक्षिण्य , सत्य , सत्व , शील , शौर्य , औदार्य , गाम्भीर्य आदि गुणों सहित बताया गया है (२ )।  ताम्रशासनों में कत्यूरी नरेशों के लिए अंकित है कि ये नरेश आदर्श जीवन यापन करते थे। 
कत्यूरी नरेश दींन अनाथों के रक्षक थे।
नरेश विद्याभाषी थे।  कत्यूरी नरेशों की राज सभा में दूर दूर से विद्वान् तर्क हेतु आते थे व राजा उन्हें पारितोषिक देते थे (१ )।   
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६६
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३८० (कत्यूरी शासकों के ताम्र शासन )
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  : कत्यूरी राज में क्षेत्रीय सामंत  शासन           

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ५०
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -50
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 352                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३५२                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
कत्यूरी शासन में क्षेत्रीय शासन ठकुराई के सामंत देखते थे।  ये ठकुराई के सामंत वास्तव में क्षेत्रीय राजा ही थे।  सामंत पद कुल क्रमागत था (१ )।  ये सामंत समय आने पर केंद्रीय राजा की सहायता करते थे व उपादेय देते थे।  शक्तिहीन नरेश समय सामंत शक्तिशाली बन बैठते थे व नरेश को धमकी भी दे सकते थे।  अशोक चल्ल व क्राचल्लदेव के आक्रमण समय कत्यूरी सामंतों ने कत्यूरी को सहायता देने की जगह इनके सामंत बन बैठे।  इस समय के सामंत आपस में भी लड़ते रहते थे (१ ) ।  यदि नरेश ने किसी गांव को मंदिर हेतु दान दिया हो तो सामंत उस भूमि से कर नहीं ले सकते थे।  अर्थात सामंत जनता से कर ले राजा को उपादेय देते थे। 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६६
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  : कत्यूरी मंत्री परिषद             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ५१
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -51
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   353                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५३                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी राज में नरेश सर्वोपरि पद था।  नरेश ही विभिन्न अधकारियों की नियुक्ति करते थे।  डबराल का मत है कि अधिकतर अधिकारियों के पद कुल परम्परागत थे (१ )। कत्यूरी अभिलेखों में निम्न ९ बड़े प्रभावशाली अधिकारीयों का उल्लेख मिलते हैं -
अमात्य - प्रधानमंत्री
आयुक्तक - कमिश्नर
- उपरिक - राजयपाल
कोषपाल  - कोषाधिकारी
विषयपति -- जनपद अधिकारी
श्रेष्ठि - नगर सेठ
दंडनायक , महादंडनायक - प्रमुख पुलिस अधिकारी
महासंधिविग्रहधिकृत - संधि -युद्ध मंत्री
महादानक्षप टल धिकृत - धर्माधिकारी
महत्वपूर्ण कार्यों की जानकारी सभी अधिकारियों को दी जाती थी। 
 
-
संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६६
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :   कत्यूरी राज में जनपद प्रशासन            

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  -५२ 
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -52
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  354                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३५४                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
राज्य कुछ प्रांतों मे बंटा था।  प्रांतों (विषयों ) का प्रशासन विषयक देखते थे।  निम्न प्रांत (विषय ) कत्यूरी राज में थे (१, २ ) -
कार्तिकेय पुर - जोशीमठ से गोमती तक
टंकणपुर -अलकनंदा भगीरथी का मध्यवर्ती क्षेत्र
एशाल - भगीरथी -यमुना मध्य क्षेत्र
मायापुर हाट - हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६७
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३७२, ३८१
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का  कत्यूरी युगीन प्राचीन  इतिहास   अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , कत्यूरी युग में हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर  इतिहास , कत्यूरी नरेशों की शासन पद्धति , कत्यूरी राज में जनता , कत्यूरी राज में मंत्री परिषद आदि

 

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