Paleo- Mediterranean Race in Haridwar , Bijnor History Context
हरिद्वार , बिजनौर इतिहास संदर्भ में रोमसागरीय जाति
Racial Elements in Haridwar Population of Prehistoric Period-12
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर की नृशस शाखाएं -एक ऐतिहासिक विवेचन -12
हरिद्वार का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास -भाग -21
History of Haridwar Part --21
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
डा डी एन मजूमदार जैसे इतिहासकार ने उत्तराखंड व हिमाचल में रोमसागरीय , द्रविड़ , नॉर्डिक या आर्य रक्त का जिक्र नहीं किया है। किन्तु बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि रोमसागर की आदिम शाखा (प्राच्य रोमसागरीय नृशंस शाखा ) भारत में आ गयी थी। कुछ इतिहासकारों ने भ्रान्तिवास सेमेटिक या यहूदी नाम दिया।
कुछ विद्वानो की धारणा है कि प्राचीन काल में पश्चमी व मध्य हिमालय में जम्मू से नेपाल तक प्राच्य रोमसागरीय नृशाखा का प्रसार प्रचुर मात्रा में हुआ था। कुछ जातियों में आकृति मिलती हैं किन्तु हरिद्वार , बिजनौर सहित उत्तराखंड में इस जाति का रक्त प्रभाव कम ही मिलता है। यदा कड़ा हरिजनो की कुछ मानवों में यह रक्त मिला था।
द्रविड़ रोमसागरीय जाति
इस नृशाखा के लोगों की ऊंचाई कुछ अधिक होती है व रंग में उतने काले नही होते हैं । उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा , उत्तरप्रदेश के गंगा मैंदान में द्रविड़ जाति अधिक मात्रा में मिलती है। द्रविड़ जाति सिंध -पंजाब से लेकर बंगाल तक फैली हुयी थी।
निश्चय ही हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर के संदर्भ में द्रविड़ व कोल जाति साथ साथ बसी थी। कोल प्रजा पर द्रविड़ शासन था। चिरकाल में संग संग रहने के कारण दोनों जातियां एक दूसरे के साथ एकसार हो गयीं।
वैदिक संस्कृत व अन्य प्राकृत भाषाओं , बोलियों पर द्रविड़ भाषा का समुचित प्रभाव मिलता है।
महाकाल; भैरव ; चण्डिका पूजा संस्कृति , लिंगबास , पितर पूजा के लिए पत्थर रखना, पितृ कुड़ी बनाना आदि संस्कृति की देन है। गढ़वाली के दसियों शब्द व गढ़वाल के गाँवों के नाम सिद्ध करते हैं कि पहाड़ी उत्तराखंड , भाभर गढ़वाल , हरिद्वार , बिजनौर में द्रविड़ संस्कृति फली व फूली।
प्राचीन द्रविड़ संस्कृति
द्रविड़ जनो पर राजा (मन्नण ) शासन करते थे। राजा कोट /किले (कोट्टइ ) में रहते थे। शाशन छोटे छोटे जिलों (नाडु ) में बंटा था। बंदीजन (पुलवन ) उत्सवों (तिरविज ) पर गीत (चेयुल ) गाते थे। तालपत्र पर लेख लिखे जाते थे।
आदि द्रविड़ ईश्वर पर विश्वास करते थे , मंदिरों में प्रार्थना करते थे। ग्रहों ग्यानी थे। मानव नगर व ग्रामों निवास करते थे। धातुओं से परिचित थे।
द्रविड़ जाति हिन्दुजाति संस्कृति में अहम योगदान है। हिन्दू संस्कृति निर्माण में द्रविड़ संस्कृति का वेद संस्कृति से अधिक योगदान है। हिन्दुओं की कई पुराण कथाएँ द्रविड़ संस्कृति की देन है। कोल जाति ने लिंग पूजा शुरू की तो ध्यानमग्न विरुपाक्ष , पशुपति , उर्ध्व लिंग द्रविड़ संस्कृति की देन है। आर्य जाति (वैदिक ) जाति ने कई द्रविड़ देवी देवताओं को अपनाया जैसे हनुमंत (अण मंति ) ।
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 5/122014
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(The History of Haridwar write up is aimed for general readers)
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