Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

Honour Of State Movement Heroes - उत्तराखण्ड आन्दोलन के आन्दोलनकारियों का सम्मान

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पंकज सिंह महर:
साथियो,
    आप सभी अवगत है कि उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति के लिये हम लोगों के काफी लम्बा संघर्ष किया है, कई दमन चक्रों, लाठियों, गोलियों और असहनीय अपमान सहने के बाद हमें अपना उत्तराखण्ड राज्य मिल गया। उसके बाद सरकारों ने आन्दोलनकारियों को सम्मानित करने की योजनायें बनाई। क्या वह साकार हो पाई, क्या वास्तविक पात्रों को इसका लाभ दिया गया, किस तरह की सुविधायें और सम्मान इन्हें मिलना चाहिये, इस पर हम इस टोपिक के अन्तर्गत चर्चा करेंगे।

पंकज सिंह महर:
इन आठ सालों में उत्तराखण्ड ने तीन सरकारें और चार मुख्यमंत्री देखे। सभी यह कहते सुने गये कि उत्तराखण्ड आन्दोलनकारियों का सम्मान किया जायेगा। थोड़ी-बहुत मदद हुई भी, चिन्हीकरण की प्रक्रिया भी शुरु हुई, लेकिन क्या आन्दोलनकारी को आर्थिक मदद ही पर्याप्त नहीं है।
     जो बुजुर्ग आन्दोलनकारी थे, उनके आश्रितों को सरकारी नौकरी दी जानी चाहिये। इसके लिये सरकार समूह ग तथा घ में कुछ पद भी आरक्षित करे, जो आन्दोलनकारी अथवा उनके आश्रितों के लिये हो। क्योंकि उत्तराखण्ड आन्दोलन पृथक राज्य के लिये नहीं बेरोजगारी से क्षुब्ध होकर भी लड़ा गया था। आन्दोलन कारियों चिन्हीकरण कर सम्मान देना चाहिये, उनकी मदद से ज्यादा उनका सम्मान होना चाहिये। जो भी चिन्हित आन्दोलनकारी हैं, उन्हें कम से कम उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसों में फ्री पास, सरकारी कार्यालयों में प्रवेश हेतु आजीवन प्रवेश पत्र भी जारी किये जाने चाहिये।
      सरकार चिन्हीकरण के लिये मात्र सरकारी दस्तावेजों को ही आधार मान रही है, जब कि अधिकांश ऎसे भी आन्दोलनकारी हैं, जो न तो कभी पुलिस रिकार्ड में रहे न ही मीडिया में। ऎसे लोगों को भी सम्मान मिलना चाहिये।
       उत्तराखण्ड आन्दोलन किसी दल विशेष का आन्दोलन न होकर एक जनांदोलन था, जिसमें सभी राजनैतिक दलों के लोग, सरकारी कर्मचारी, महिला-पुरुष, बुजुर्ग-बच्चे, सभी आम जन शामिल थे। इसमें सरकार कैसे चिन्हीकरण कर पायेगी? मुझे याद है, KMOU और GMOU की सभी बसों में "उत्तराखण्ड परिवहन" लिख दिया गया था, सरकार ऎसा लिखने वालों का जबरदस्ती चालान काटते थे, क्या इनका चिन्हीकरण कर सम्मान दिया जायेगा?

सरकार ने इसके लिये उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी सम्मान परिषद का गठन जरुर किया है, लेकिन उसका output क्या रहा, यह किसी से छिपा नहीं है।

जिस आंदोलन में पूरा प्रदेश और यहां तक कि नेपाली मजदूरों को भी मैने जुलूस निकालकर "आज दो-अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो" के नारे लगाते हुये देखा है। खटीमा गोलीकांड में एक रिक्शाचालक भी शहीद हो गया था, ऎसी स्थिति में इस मुद्दे को राजनीति का हथियार न बनाया जाय और सम्पूर्ण उत्तराखण्ड का समग्र और समेकित विकास कर इस जनांदोलन का सम्मान किया जाना चाहिये। ईमानदारी के साथ आम उत्तराखण्डी की समस्या और पीड़ा को धरातल पर समझ कर धरातलीय नीतियां बनाकर विकास किया जाय, यही हर आन्दोलनकारी का सर्वोच्च सम्मान होगा।

जय उत्तराखण्ड।

पंकज सिंह महर:



राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी देने की मांगJul 01, 11:54 pm

सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के सदस्यों ने गोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर राज्य प्राप्ति आंदोलनकारियों की स्थिति व सरकारों का रवैया विषय पर व्यापक विचार विमर्श किया गया।

गोष्ठी में सोमेश्वर क्षेत्र के 16 आंदोलनकारियों को चिह्नित करने, उन्हे सरकारी नौकरी दिए जाने व स्वरोजगार के लिए कम से कम 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग की गई। इन मांगों का एक ज्ञापन प्रदेश के संसदीय कार्य एवं पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत व आंदोलन कार्य परिषद अध्यक्ष सुशीला बलूनी को प्रेषित किया गया।

गोष्ठी में उपस्थित राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि क्षेत्र के 16 आंदोलनकारियों ने राज्य प्राप्ति आंदोलन के दौरान जबरदस्त पुलिसिया उत्पीड़न सहा व कई बार जेलों में बंद रहे, लेकिन राज्य गठन के बाद राज्य प्राप्ति आंदोलनकारियों को हासिये में धकेल दिया गया है। राजनैतिक स्वार्थपूर्ति में लिप्त सरकारों ने उनकी मांगों व उनके त्याग की उपेक्षा कर आज तक उनकी कोई सुध नहीं ली

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_4593990/

पंकज सिंह महर:



राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी देने की मांगJul 01, 11:54 pm

सोमेश्वर (अल्मोड़ा)। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के सदस्यों ने गोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर राज्य प्राप्ति आंदोलनकारियों की स्थिति व सरकारों का रवैया विषय पर व्यापक विचार विमर्श किया गया।

गोष्ठी में सोमेश्वर क्षेत्र के 16 आंदोलनकारियों को चिह्नित करने, उन्हे सरकारी नौकरी दिए जाने व स्वरोजगार के लिए कम से कम 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग की गई। इन मांगों का एक ज्ञापन प्रदेश के संसदीय कार्य एवं पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत व आंदोलन कार्य परिषद अध्यक्ष सुशीला बलूनी को प्रेषित किया गया।

गोष्ठी में उपस्थित राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि क्षेत्र के 16 आंदोलनकारियों ने राज्य प्राप्ति आंदोलन के दौरान जबरदस्त पुलिसिया उत्पीड़न सहा व कई बार जेलों में बंद रहे, लेकिन राज्य गठन के बाद राज्य प्राप्ति आंदोलनकारियों को हासिये में धकेल दिया गया है। राजनैतिक स्वार्थपूर्ति में लिप्त सरकारों ने उनकी मांगों व उनके त्याग की उपेक्षा कर आज तक उनकी कोई सुध नहीं ली

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_4593990/

पंकज सिंह महर:
आंदोलनकारी की पीड़ा रेल पटरी के नीचे दफन

ऋषिकेश, जागरण कार्यालय : एक ऐसा दंपती जो उत्तराखंड आंदोलन में झंडा लेकर चलता रहा, इस परिवार का हश्र ऐसा होगा, किसी ने सोचा न था। सारी कमाई तीन बेटियों की शादी में लग गई। बेटा बेरोजगार, पत्नी की कैंसर से मौत के बाद टूट चुके प्रेम सिंह रावत ने ट्रेन के आगे कूद जान दे दी। ट्रेन के आगे कूदकर एक व्यक्ति ने आत्महत्या की भले ही यह समाचार अखबारों की सुर्खियां न बना हो, लेकिन 20 अगस्त को वीरभद्र रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के आगे कूदकर आत्महत्या करने वाले 60 वर्षीय राज्य आंदोलनकारी प्रेम सिंह रावत नवोदित राज्य उत्तराखंड की व्यवस्था को तमाचा मार कर चले गए। 35 वर्ष तक आईडीपीएल में सेवा के उपरांत वह राज्य आंदोलन में शामिल हो गए। उनकी पत्नी इमला रावत भी सुनहरे उत्तराखंड के सपने देखते-देखते कुछ वर्ष पूर्व कैंसर की बीमारी के कारण दुनिया से रुखसत हो गईं। अपने जीवन की सेवा के पश्चात रिटायरमेंट के दौरान मिली धनराशि श्री रावत ने अपने तीन पुत्रियों के विवाह पर खर्च कर डाली। अब उनके पास बचा था तो आईडीपीएल का एक अदद भवन, जो कभी भी छिन जाए और उस घर में बैठा बेरोजगार जवान बेटा। आंदोलन में सक्रिय रहे श्री रावत के साथियों का कहना है कि 13 सितंबर 1994 को जब आंदोलनकारी धरनास्थल पर बैठे थे तो अचानक आई पुलिस ने डंडे बरसाना शुरू कर दिए। इसमें श्री रावत गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस उन्हें पकड़ कर देहरादून ले गई, जहां पांच दिन तक वह जिला कारागार में बंद रहे।

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