Author Topic: Kuli Begar Movement 1921 - कुली बेगार आन्दोलन १९२१  (Read 35504 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
गढ़वाल मैं कांग्रेश और बेगार;दुगड्डा सम्मलेन
 
रास्ट्रीय स्थर पर अप्रैल १९१९ मैं महात्मागांधी ने असहयोग आन्दोलन प्रारंभ करने से पूर्व छात्रों का आह्वान किया था कि वे स्कूल कोलेजों को छोड़कर सत्याग्रह मैं सम्मिलित हों!
बनारस मैं गांधी के आह्वान कि छात्र शक्ति मैं अनुकूल प्रतिकिर्या हुयी,फलस्वरूप ५०० छात्रों ने कक्षाओं और परीक्षाओं का बहिष्कार करने का निश्चय किया!तत्पश्चात इन छात्रों ने यहाँ से अपने-अपने छेत्रों मैं पहुंच कर असहयोग के प्रश्न पर जनता को उद्देलित करने का प्रयत्न किया,बनारस मैं इस समय गढ़वाली युवक भी अंग्रेजी व संसकिरत भाषा का अद्ययन कर रहे थे!
इनमें भोलादत चंदोला भैराव्दत धूलिया,जीवानंद बडोला तथा गोवर्धन बडोला पमुख थे!गांधी निर्देश पर वे सत्याग्रह हेतु जनमत जागृति करने के लिए गढ़वाल चले आये,लखनऊ मैं मथुरा प्रशाद नैथानी के नेतृत्व मैं इन युवकों ने मुकंदिलाल के साथ विचार विमर्स कर गढ़वाल मैं असहयोग सत्याग्रह स्थानीय किर्शक व शर्मिक समस्याओं (बेगार व वन)के हल के लिए संचालित करने का निश्चय किया!इस प्रकार रास्त्र्ब्यापी असहयोग आन्दोलन गढ़वाल कांग्रेश के नवजात संघठन द्वारा दल के कार्यक्रम व नीतियों को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने के उद्देश्य से तथा स्थानीय समस्यों केरों  हल के लिए चलाया गया!यधपि बेगार आन्दोलन कांग्रेश के तत्वावधान मैं नहीं चलाया गया किन्तु कंग्रेशी नेताओं ने असंतोष को नेतृत्व प्रदान कर इसे प्रखरता प्रदान कि!
गढ़वाल मैं बेगार आन्दोलन कि रणनीति के निर्धारण के लिए कार्यकर्ताओं कि एक सभा दुगड्डा मैं आयोजित जी गयी,इसमें गढ़वाल के ग्रामीण छेत्रों से आये ब्यक्तियों ने प्रमुख रूप से भाग लिया!आपसी विचार विमर्स के उपरांत मुकंदिलाल बैरिस्टर के निर्देशन मैं बेगार कुप्रथा के उन्मूलन के लिए कार्यकर्ताओं  कि टोलियाँ गढ़वाल कि विभिन्न अंचलों मैं भेजी गयी!

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
इस प्रकार पहला दल जिसमें इस्वरिदत ध्यानी,हरिदत बोडाई,मंगत राम खान्त्वात,जीवानंद बडोला,योगेस्वर्प्र्षद खंडूडी,आदि कार्य करता थे!गढ़वाल के पूर्वी भाग इंडियापैनी,बीरोंखाल,साबली,गुजडू,की ओर गया,दुसरे दल मैं भैराव्दत धूलिया,भोलादत डबराल,मथुराप्रसाद नैथानी,आदि कार्य करता नोगांवखाल छेत्र मैं जनमत तैयार करने मैं प्रयत्नशील थे!नोगांवखाल छेत्र मैं इन कार्यकर्ताओं के आने से पूर्व ही केशर सिंह रावत ने सरकारी नौकरी का पद त्याग कर बेगार उन्नमूलन आन्दोलन को संघठित ओर सक्रियता प्रदान की थी!
उत्तराखंड मैं बेगार आन्दोलन के प्रमुख केंद्र बागेश्वर मैं जनवरी १९२१ मैं मकर संक्रांति मेले के अवसर पर जनता ने बेगार रजिस्टरों को सरयू नदी मैं डुबोकर आन्दोलन का संख नाद किया!इस प्रकार धीरे-धीरे बागेश्वर की जन भावना उत्तराखंड मैं फेलने लगी,गढ़वाल के नोगांव छेत्र मैं इसी अवधि मैं डिप्टीकमिश्नर पी मेसन सरकारी भ्रमण पर पहुंचे थे!किन्तु इससे पूर्व ही केशर सिंह रावत के नेतृत्व मैं कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारीयों और कर्मचारियों को बेगार न देने के लिए जनता को सचेत कर दिया था!ग्रामीण जनता ने जन भावनाओं के अनुरूप पी मेसन और उसके अधिनस्त कर्मचारियों को बेगार न देकर आन्दोलन को आरम्भ किया,डिप्टी कमिश्नर का सामान वहीं पड़ा रहा,फलस्वरूप मेसन को दोरा अधूरा छोड़ना पड़ा!तत्पश्चात मेसन ने पोडी लोटकर मेसन कुली बेगार एजेंसी के माध्यम से अपना सामान नोगंव्खाल से मंगवाया,इस तरह से सम्पूर्ण चौंदकोट मैं संघठित रूप से बेगार विरोधी आन्दोलन  के स्वर जनता को उद्देलित करने लगे!
प इस्वरीडट ध्यानी के नेतृत्व मैं एक दल बीरोंखाल,बदलपुर की ओर गया था!उन्होंने अप्रेल १९२१ मैं कठोलिया महदेव मैं सभा आयोजित कर कुली बेगार का पुतला जलाया,उदयपुर के यम्केस्वर स्थान पर ठाकुर कुंदन सिंह जी अध्य्क्चता मैं बेगार विरोधी सभा आयोजित की गयी! सभा मैं उकंदिलाल वैरिस्टर,थौक्दार केशर सिंह रावत,भैराव्दत धूलिया,भोलादत चंदोला,आदि प्र्मुह नेता उपस्तिथ थे!सभा मैं थौक्दार उत्तमसिंह (रेंजर) के अनुमोदन के साथ सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित किये गए!इन प्रस्तावों मैं कुली बेगार को गैर कानूनी ठहराते हुए जनता के वनों पर परम्परागत अधिकार की मांग की गयी!
मंगत राम खंतवाल के गाँव बन्दखानी मैं उनके प्रवेश करने पर दो वर्स तक प्रतिबंध रहा,ओर चमेथाखाल प्राइमरी स्कूल की पुनर्स्थापना स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हो सकी!

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
गढ़वाली में पुर्शोतम दास टंडन का आगमन

दिसम्बर १९२१ में गढ़वाल कांग्रेश कमिटी के कार्यकर्ताओं की दुग्डा में आयोजित बैठक की अध्यक्षता पुर्शोतम दास टंडन ने की !
बैठक में सर्व समती से प्रस्ताव पारित करके कुली बेगार न दिए जाने की मांग दुहराई गयी!एक एनी प्रस्ताव के अनुसार विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का संकल्प लिया गया!

और दुगड्डा में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी,इस तरह उत्तराखंड के नैनीताल,अल्मोडा,व गढ़वाल जनपदों में बेगार आन्दोलन के माध्यम से बिर्टिश साशन के साथ असहयोग के नीती अपनाई गयी !

बेगार की समस्या बिर्टिश साशन की आंतरिक विसंगतियों से उत्पन्न स्थानीय प्रश्न था!तात्कालीन प्र्श्तिथियों में इसका उपयोग राष्ट्रीय आन्दोलन की मूल धारा के साथ जोड़ने के लिए किया गया था!

इस तरह सम्पूरण उत्तराखंड ,कुमाऊँ कमिश्नरी में बेगार आन्दोलन का प्रभाव फैलने लगा था गढ़वाल में तात्कालीन डिप्टी कमिश्नर पी मेसन ने मुकंदिलाल,मथुरा प्रशाद नैथानी तथा अनुशुया प्रशाद बहुगुणा को पत्र लिखकर उनसे इस आशय से आन्दोलन स्थगित करने का अनुरोध किया वे स्वयम सरकार को बेगार प्रथा समाप्त करने के लिए लिख रहे थे !

Sunder Singh Negi/कुमाऊंनी

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 572
  • Karma: +5/-0
MERI IJA TERI MADHULI, DAAR MARICHA SAARI SAARI RATA.

DOSTO IS GEET KO SUNKAR TO AAKHON BHAR GAYEE.

DOSTO I AM GOING AT UTTARAKHAND TOUR YESTERDAY. FOR ONE MONTH.

SO YOU TAKE ENJOY AT MERRA PAHAD . COM.

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
परिणामत :जनता व प्रसाशन के बीच बेगार कुप्रथा के हल के लिए समझौता वार्ता प्रारंभ होने से आन्दोलन अपेक्षित गति नहीं पकड़ सका था!गढ़वाल की अधिकतर ग्रामीण जनता डिप्टी कमिशनर पि मेसन की ब्यवहार ,कुशलता कुशल प्रसाशन व सूझ्बूज क कारण आंग्ल पासाशन से श्रधा रखती है !

दूसरी ओर बेगार आन्दोलन को गति पकड़ता देखकर सर्कार्प्र्ष्ट ब्य्त्कियों द्बारा आन्दोलनकारियों को बंदी बनाए जाने के लिए डिप्टी कमिश्नर को उकसाने के प्रयत्न किया गए थे !किन्तु पि मेसन ने एसा न करके आन्दोलन कारी नेताओं ,युवकों औरउनके अभिभावकों से आन्दोलन स्थगित करने का अनुरोध किया था !

अन्तः जनता के प्रसाशन पर बढ़ते दबाव के कारण साशन को बेगार प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लेना पड़ा इस प्रकार १९२३ के अंत तक कुमाऊँ कमिश्नरी से बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया था !तात्कालीन प्र्श्तिथियों मैं इसे आंग्ल शासन की शौषण कारी नीतियों के ऊपर जनशक्ति की विजय के रूप मैं मान्यता मिली !

आन्दोलन की सफलता और जन-पर्तिनिधियों से जनता का उत्साहवर्धन हुआ स्वामी सत्यदेव ने उत्तराखंड मैं बेगार विरोधी आन्दोलन को असहयोग की प्रथम ईंट के रूप मैं संबोधित किया ,दूसरी ओर महत्मागांधी ने आन्दोलन को रक्तहीन क्रान्ति की संज्ञा देते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन का अगुवा कहा !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

More information about Kuli Begar Aaandolan :

कुली उतार आंदोलन ने फूंकी थी आजादी की लड़ाई में नई जान


बागेश्वर। भारत माता को गुलामी की जंजीराें से मुक्त करने में इस क्षेत्र के रणबांकुरे भी पीछे नहीं रहे थे। अंग्रेजों भारत छोड़ो, अगस्त क्रांति, असहयोग तथा नमक आंदोलन समेत अनेक संघर्षों में जिले के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान किसी से भी पीछे नहीं रहा है। भगवान बागनाथ॒की धरती से ही मकर संक्रांति के दिन अंग्रेजी हुकूमत के कुली बेगार, उतार तथा बर्दायश॒जैसे काले कानूनों को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया। इस संकल्प ने कूर्मांचल॒में स्वाधीनता की लड़ाई को न केवल नई ऊर्जा दी बल्कि अंग्रेजों के सामने मुश्किलें भी खड़ी कर दी। इस सफलता ने राष्ट्रपति महात्मा गांधी को यहां आने को विवश कर दिया था।
गोरी सरकार ने भारत माता को त्रस्त तो किया ही लेकिन उसमें भी कूर्मांचल॒क्षेत्र में अंग्रेजाें ने लोगाें पर कुली उतार बर्दायश॒तथा बेगार जैसे काले कानून थोपकर लोगों की परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था। इस कानून के सहारे अंग्रेज हुक्मरान लोगों का जबरदस्त मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक उत्पीड़न किया करते थे। तब कांगे्रस के नागपुर सम्मेलन॒में भाग लेने गए॒नगर से बागेश्वर के श्याम लाल साह, अल्मोड़ा से कूर्मांचल॒केसरी बद्रीदत्त॒पांडे तथा विक्टर मोहन जोशी आदि ने गांधी जी को इन कानूनों के बारे में विस्तार॒से बताया और उन्हें १४॒जनवरी १९२१॒को बागेश्वर चलकर मकर संक्राति॒के दिन उनका मार्ग दर्शन करने की गुजारिश की। लेकिन गांधी जी ने उनकी बात को मुस्कराकर टाल दिया। मकर संक्राति॒केदिन॒क्रांतिवीरों॒ने संगम पर अंग्रेजों के काले कानूनों के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित कर बेगार नहीं देने का संकल्प लिया। इस संकल्प से अंग्रेजों की मुश्किलें बढ़ गई। इन कानूनों को उखाड़ने पर मिली सफलता पर गांधी जी ने प्रसन्नता॒जताई। उन्हाेंने २८॒जून १९२८॒को बागेश्वर की यात्रा करके लोगों की सराहना की। कौसानी॒में कुछ दिन रहकर वहां अनाशक्ति॒योग लिखा। गांधी जी के नाम पर वहां आज अनाशक्ति॒आश्रम है जबकि एतिहासिक नुमाईशखेत॒में गांधी जी की मूर्ति के साथ स्वराज॒भवन बना है। आज जो महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हमारे बीच हैं वह हमारे प्रेरणास्रोत हैं। जो नहीं हैं उनकी महान कुर्बानियों का देश कृतार्थ है।

Source :
http://www.amarujala.com/city/Bagrswar/Bagrswar-1411-114.html

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
[justify]बेगार प्रथा और विरोध की ज्वाला

कुमाऊं, गढ़वाल में ब्रिटिशकाल में संचालित कुली प्रथा के विरोध में कुमाऊं और गढ़वाल में उठे आंदोलन को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रक्तहीन क्रांति का नाम दिया था। अंग्रेजों की यह कुली प्रथा दास प्रथा से कम नहीं थी। इस प्रथा के तीन भाग थे। पहला कुली उतार, दूसरा कुली बेगार और तीसरा कुली वरदायस (दावत)। कुली उतार का शाब्दिक अर्थ था कुली को नीचे बुलवाना। उन दिनों जब भी कोई अंग्रेज अफसर किसी क्षेत्र के दौरे पर जाता था तो वहां के लोगों को साहब का सामान लेने के लिए गांव से नीचे आना पड़ता था। अगले पड़ाव में दूसरे कुली आ जाते। कुली बेगार प्रथा के अनुसार अंग्रेज अफसरों का सामान उठाने के साथ ही अन्य काम भी लोगों को करने पड़ते थे। जिसमें अंग्रेजों के घोड़ों की देखभाल भी शामिल थी। वरदायस प्रथा के नाम पर क्षेत्र विशेष के लोगों को अंग्रेज अफसरों की आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु नि:शुल्क देनी पड़ती थी। पटवारी से लेकर दौरा करने वाले हर अंग्रेज अधिकारी को सेवा लेने का अधिकार प्राप्त था। यहां तक कि ब्रिटिश पर्यटकों को भी यह सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थीं।कई अंग्रेजों के कुमाऊं में चाय बागान थे। अंग्रेजों को बेगार प्रथा केअंतर्गत नि:शुल्क काम लेने का अधिकार था। कलक्टर को बिना भुगतान के 100 कुलियों से काम लेने का अधिकार था। भूमि का मालिक प्रत्येक व्यक्ति एक कुली माना जाता था। संपूर्ण भूमि ब्रिटिश शासन की मानी जाती थी। जो कुली अनुपस्थित रहता था, उसको 15 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना भरना पड़ता था। बीमार व्यक्ति से भी कुली बेगार ली जाती थी। कुलियों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया जाता था। महिलाएं भी इसका अपवाद नहीं थीं। अपने माता-पिता के क्रियाकर्म में लगे लोगों से भी वरदायस में संपूर्ण खाद्य पदार्थ जैसे बकरा, दूध, घी और फल लिए जाते थे। भारी हिमपात के समय भी कुलियों को पेड़ों के नीचे सोना पड़ता था।महात्मा गांधी निरंतर इस प्रथा की आलोचना करते थे।
इस प्रथा के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई गढ़वाल के तारा दत्त गैरोला ने। वह विधानसभा के भी सदस्य थे लेकिन अंग्रेज हुकूमत पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वर्ष 1946 में पं. बद्री दत्त पांडे, गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत ने कुमाऊं परिषद की नींव डाली। इस परिषद ने गांधी जी से निवेदन किया कि वह इस आंदोलन का नेतृत्व करें लेकिन गांधी जी को देश भ्रमण सेसमय ही नहीं मिल पा रहा था, गांधी जी ने कुमाऊं के लोगों को निर्देशित किया कि वे कुली बेगार न दें। प्रख्यात स्वाधीनता सेनानी स्व. बद्री दत्त पांडे ने कुली बेगार के संबंध में इस प्रकार लिखा है-
11 जनवरी 1921 को हम लोग बागेश्वर के लिए रवाना हुए। हरगोविंद पंत, चिरंजीलाल साह भी इस दल में शामिल थे। बागेश्वर पहुंचने पर एक झंडा तैयार किया गया, इस पर कुली उतार समाप्त लिखा गया था। उस समय मिस्टर डाईविल अल्मोड़ा के कलक्टर थे। डीएम 21 ब्रिटिश अधिकारियों, 50 पुलिस कर्मियों के साथ बागेश्वर पहुंचे। उनके पास 500 गोलियां थीं। डीएम गोली चलवाना चाहता था लेकिन फोर्स के लोग इससे सहमत नहीं थे।.... हमने कुली प्रथा को नहीं मानने का संकल्प लिया। तब कुलियों से संबंधित सभी कागजात सरयू नदी में बहा दिए गए।
गांधी जी ने इस घटना की प्रशंसा करते हुए इसे रक्तहीन क्रांति की संज्ञा दी थी। गांधी जी ने यंग इंडिया में लिखा था कि भारत केजन जागरण केअंतर्गत ऐसे कम उदाहरण मिलते हैं। जैसे कुमाऊं के लोगों ने अपनी कर्मठता और अहिंसात्मक आंदोलन के द्वारा कुली बेगार जैसी एक दास प्रथा का अंत कर दिया।


विशेष आभार  : पूर्व विधायक हीरा सिंह बोरा एवं अमर उजाला बागेश्वर ।

विनोद सिंह गढ़िया

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
उत्तरायणी पर सरयूबगड़ से उठे थे विरोध के स्वर

कुली बेगार आंदोलन से बागेश्वर को मिली राष्ट्रीय पहचान


कुली उतार आंदोलन आजादी की लड़ाई का महत्वपूर्ण पड़ाव रहा है। कुमाऊं परिषद ने 1920 में इसके विरोध की तैयारियां शुरू कर दी थी। दिसंबर के नागपुर अधिवेशन से लौटने के बाद कुमाऊं के प्रमुख नेताओं ने 14 फरवरी 1921 को बागेश्वर के सरयूबगड़ में उत्तरायणी के मौके पर 40 हजार लोगों के साथ कुली बेगार के बहिष्कार की कसम खाई और तमाम कुली रजिस्टर सरयू में बहा दिए। जनदबाव में इस कुप्रथा को खत्म कर दिया गया।
कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में आंदोलनकारियों  को नई ऊर्जा मिली। पं गोविंद बल्लभ पंत,बद्रीदत्त पांडे, चिरंजीलाल आदि वहां से गांधी जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 50 स्वयंसेवकों के साथ 14 जनवरी 1921 को उत्तरायणी के मौके पर बागेश्वर पहुंचे। मेले में कुमाऊं और गढ़वाल से लगभग 40 हजार लोग आए थे। बागनाथ में पूजा के बाद जुलूस निकाला गया। स्वंसेवकों  ने लोगों के डेरों में जाकर सहयोग मांगा। फिर सभा हुई जिसमें बद्रीदत्त पांडे ने किसी भी हालत में कुली बेगार और कुली बरदायस नहीं देने का आह्वान किया। तमाम लोगों ने संगम पर पवित्र गंगाजल हाथ में लेकर इस कुप्रथा के संपूर्ण बहिष्कार की कसमें खाई। तमाम प्रधानगण कुली रजिस्टर भी साथ लेकर आए थे। उन्हें सरयू नदी में बहा दिया गया। यह सब डिप्टी कलेक्टर डायबल के सामने हुआ। उसने बद्रीदत्त पांडे को भड़काऊ भाषण देने तथा निषेधाज्ञा तोड़ने के जुर्म में बंदी बनाने की चेतावनी देते हुए वहां से चले जाने को कहा। किंतु चेतावनी का भी कोई असर नहीं हुआ। डायबल के पास मात्र 21 अफसर, 25 सिपाही और 600 गोलियां थी। वह खून का घूंट पीकर रह गया। इसी दिन से लोगों ने बेगार देना बंद कर दिया। बागेश्वर से लौटते वक्त भी डायबल और साथियों  को कुली नसीब नहीं हुए। भाड़े के टट्ुओं   से सामान ढ़ुलवाना पड़ा। जनरोष भड़कने के भय से सरकार ने लोगों पर सीधे कार्रवाई करने के बजाए कई लोगों पर जंगल आंदोलन के नाम पर मुकदमे कायम किए। बागेश्वर की इस घटना के बाद सरकार ने यह कुप्रथा बंद कर दी। जनता ने बद्रीदत्त पांडे को कूर्मांचल केसरी की उपाधि दी। बागेश्वर की घटना के बारे में महात्मा गांधी ने यंग इंडिया अखबार में लिखा, इसका प्रभाव संपूर्ण था यह एक रक्तहीन क्रांति थी। कुली बेगार आंदोलन से बागेश्वर को राष्ट्रीय पहचान मिली। उसी साल जून में गांधी जी कौसानी आए और 15 दिनों तक वहां रहे। गांधी जी ने वहां अनाशक्ति योग पर टीका लिखी। 22 जून को वह बागेश्वर पहुंचे। उन्होंने जनसभा के बाद स्वराज मंदिर का शिलान्यास किया। गांधी के दौरे से लोगों का हौसला बढ़ता चला गया और लोग राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा में जुड़ते चले गए।

अधिकारी को पिलाया आंचल के दूध का दही

बागेश्वर। कुली उतार प्रथा के तहत स्थानीय लोगों  को अंग्रेज अफसरों का सामान ढोना पड़ता था और क्षेत्र में आगमन पर उनके भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती थी। यह सब मुफ्त और अनिवार्य व्यवस्था थी।
कहा जाता है कि एक बार किसी महिला की अंग्रेज अधिकारी को दूध उपलब्ध कराने की बारी थी, किंतु जानवर नहीं होने के कारण उसने अपने स्तनों के दूध का दही जमाकर अधिकारी को पिलाया। बाद में असलियत पता चलने पर अंग्रेज अधिकारी ने उसे अपनी मां की तरह सम्मान दिया।

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Kulli Begara: Folk Song describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British

Folk Songs from Kumaon-Garhwal, Haridwar, Uttarakhand (India)-313

(Asian, Himalayan Folk Song/Traditional Folktales/ Conventional Sayings Series)

                 कुमाऊं, गढ़वाल ,हरिद्वार के  लोक गीत  -314
                                      By: Bhishma Kukreti
                  British rule had a policy that whenever their administrative officers used to visit villages for official works the villagers had to do free labor in transporting necessary items of officers. Besides free labor, the officers used to insult local people. 
  There was a mass movement against compulsory unpaid labor policy by British in Kumaon region led by Kumaon Kesari Badri Datt Pandey, Har Govind Pant, Victor Mohan and other freedom fighters. The movement was successful and British administration had to abolish Kuli-Begar policy.   The following folk song illustrates and remembers the Kuli Begar movement of Kumaon.


             कुल्ली बेगारा


(सन्दर्भ :डा त्रिलोचन पांडे :कुमाउनी  भाषा और  साहित्य )

(इंटरनेट प्रस्तुती व व्याख्या - भीष्म कुकरेती )


ओ झकूरी यों ह्रदय का तारा , याद ऊँ छ जब कुल्ली बेगारा ।  .
खै गया ख्वै गया बड़ी बेर सिरा , निमस्यारी डाली गया चौरासी फेरा ।
सुण रे पधाना यो सब पुजी गो , धान ल्या चौथाई घ्यू को ।
ह्यूंन चौमास , जेठ असाढ़ा नंग भुखै बाट लागा अलमोड़ी हाट।
बोजिया बाटा लागा यो छिन कानै धारा , पाछी पड़ी रै यो कोड़ो की मार ।
यो दीन दशा देखी दया को कुर्माचल केसरी बदरीदत्त नाम ।
यो विक्टर मोहना ,  हरगोविन्द नामा , ये पूजा तीन वीर।
सन इक्कीस उतरैणी मेला यो , ये पूजा तीन वीरा गंगा ज्यू का तीरा ।
सरजू बगड़ा बजायी लो डंका , अब नौ रौली यो कुल्ली बेगारा ।
क्रुक सन सैप यो चाये रैगो , कुमैया वीर को जब विजय है गो ।
सरयू गोमती जय बागनाथ , सांति लै सकीगे कुल्ली प्रथा ।


Whenever we remember Kuli –Begar, we shiver by pain.
The unpaid labor without clothing had to go for compulsory labor as bonded labor; people had to take heavy weight on their solders.
 On top of it the officers used to beat by whip or whipping was common from officers.
The Kurmachal Kesary Badridatt Pandey felt the pain. Badridatt came ahead for movement
Victor Mohan and Hargovind also reached at Almora bazaar.
There was fair on Uttarayani (14th January) nineteen twenty one.
These three brave persons reached at poise river bank
The declared that people would refuse to take compulsory unpaid labor of British.
The British officer Crook could not anything or he declared freedom from compulsory unpaid labor policy.
By blessing of Sary-Gomati and Bagnath Kuli-Begar policy was stopped peacefully


Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com 13/8/2013
Folk Songs from Kumaon-Garhwal-Haridwar (Uttarakhand) to be continued…315 
   
Xx                        xxx
(स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी लोक गीत ; पिथौरागढ़  से स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; बागेश्वर से स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; चम्पावत सेस्वतन्त्रता   स्वतन्त्रता   स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; अल्मोड़ासे आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; से आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ;   से स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; नैनतालसे स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; उधम सिंह नगर से स्वतन्त्रतासे आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; से आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ;    आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ;से स्वतन्त्रतासे आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ; से आन्दोलन सबंधी कुमाऊंनी लोक गीत ;   पौड़ी गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ;टिहरीगढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ; गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ;   चमोली गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ; उत्तरकाशी गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ; देहरादून गढ़वाल से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत ; हरिद्वार से  स्वतन्त्रता आन्दोलन सबंधी गढ़वाली लोक गीत श्रृंखला )

Xx        xxx
Notes on Folk Song describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Kumaon Askot describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Johar Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Dwarhat Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Pithoragarh Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Champawat Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Sary Valley Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Kali Ganga valley Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Gomati valley Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Bageshwar Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Almora Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Nainital Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British; Folk Song from Udham Singh Nagar Kumaon describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British

Bhishma Kukreti

  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 18,808
  • Karma: +22/-1
Kulli Begara: Folk Song describing Mass Movement against Compulsory Unpaid Labor Policy of British

Folk Songs from Kumaon-Garhwal, Haridwar, Uttarakhand (India)-313

(Asian, Himalayan Folk Song/Traditional Folktales/ Conventional Sayings Series)

                 कुमाऊं, गढ़वाल ,हरिद्वार के  लोक गीत  -314
                                      By: Bhishma Kukreti
                  British rule had a policy that whenever their administrative officers used to visit villages for official works the villagers had to do free labor in transporting necessary items of officers. Besides free labor, the officers used to insult local people. 
  There was a mass movement against compulsory unpaid labor policy by British in Kumaon region led by Kumaon Kesari Badri Datt Pandey, Har Govind Pant, Victor Mohan and other freedom fighters. The movement was successful and British administration had to abolish Kuli-Begar policy.   The following folk song illustrates and remembers the Kuli Begar movement of Kumaon.


             कुल्ली बेगारा


(सन्दर्भ :डा त्रिलोचन पांडे :कुमाउनी  भाषा और  साहित्य )

(इंटरनेट प्रस्तुती व व्याख्या - भीष्म कुकरेती )


ओ झकूरी यों ह्रदय का तारा , याद ऊँ छ जब कुल्ली बेगारा ।  .
खै गया ख्वै गया बड़ी बेर सिरा , निमस्यारी डाली गया चौरासी फेरा ।
सुण रे पधाना यो सब पुजी गो , धान ल्या चौथाई घ्यू को ।
ह्यूंन चौमास , जेठ असाढ़ा नंग भुखै बाट लागा अलमोड़ी हाट।
बोजिया बाटा लागा यो छिन कानै धारा , पाछी पड़ी रै यो कोड़ो की मार ।
यो दीन दशा देखी दया को कुर्माचल केसरी बदरीदत्त नाम ।
यो विक्टर मोहना ,  हरगोविन्द नामा , ये पूजा तीन वीर।
सन इक्कीस उतरैणी मेला यो , ये पूजा तीन वीरा गंगा ज्यू का तीरा ।
सरजू बगड़ा बजायी लो डंका , अब नौ रौली यो कुल्ली बेगारा ।
क्रुक सन सैप यो चाये रैगो , कुमैया वीर को जब विजय है गो ।
सरयू गोमती जय बागनाथ , सांति लै सकीगे कुल्ली प्रथा ।


Whenever we remember Kuli –Begar, we shiver by pain.
The unpaid labor without clothing had to go for compulsory labor as bonded labor; people had to take heavy weight on their solders.
 On top of it the officers used to beat by whip or whipping was common from officers.
The Kurmachal Kesary Badridatt Pandey felt the pain. Badridatt came ahead for movement
Victor Mohan and Hargovind also reached at Almora bazaar.
There was fair on Uttarayani (14th January) nineteen twenty one.
These three brave persons reached at poise river bank
The declared that people would refuse to take compulsory unpaid labor of British.
The British officer Crook could not anything or he declared freedom from compulsory unpaid labor policy.
By blessing of Sary-Gomati and Bagnath Kuli-Begar policy was stopped peacefully


Copyright (Interpretation) @ Bhishma Kukreti, bckukreti@gmail.com 13/8/2013
Folk Songs from Kumaon-Garhwal-Haridwar (Uttarakhand) to be continued…315 
   

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22