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Martyrs Of UK Movement - उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के अमर शहीद एवं आन्दोलनकारी

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पंकज सिंह महर:

स्व० विपिन चन्द्र त्रिपाठी
1945-2004
23 फरवरी, १९४५ को अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के दौला गांव में जन्मे विपिन त्रिपाठी जी आम जनता में "विपिन दा" के नाम से प्रसिद्ध थे। पृथक राज्य आन्दोलन के वे अकेले ऎसे विकास प्रमुख रहे हैं, जिनके द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को उत्तराखण्ड विरोधी नीतियों के खिलाफ दिये गये त्याग पत्र को शासन ने स्वीकार कर लिया था।
     २२ वर्ष की युवावस्था से विभिन्न आन्दोलनों की अगुवाई करने वाले जुझारु व संघर्षशील त्रिपाठी का जीवन लम्बे राजनैतिक संघर्ष का इतिहास रहा है। डा० लोहिया के विचारों से प्रेरित होकर १९६७ से ही ये समाजवादी आन्दोलनों में शामिल हो गये थे। भूमिहीनों को जमीन दिलाने की लड़ाई से लेकर पहाड़ को नशे व जंगलों को वन माफियाओं से बचाने के लिये ये हमेशा संघर्ष करते रहे। १९७०में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त का घेराव करते हुये इनको पहली बार गिरफ्तार किया गया।
      आपातकाल में २४ जुलाई, १९७४ को प्रेस एक्ट की विभिन्न धाराओं में इनकी प्रेस व अखबार "द्रोणांचल प्रहरी" सील कर शासन ने इन्हें गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल भेज दिया। अल्मोड़ा, बरेली, आगरा और लखनऊ जेल में दो वर्ष बिताने के बाद २२ अप्रेल, १९७६ को उन्हें रिहा कर दिया गया। द्वाराहाट में डिग्री कालेज, पालीटेक्निक कालेज और इंजीनियरिंग कालेज खुलवाने के लिये इन्होंने संघर्ष किया और इन्हें खुलवा कर माने। इन संस्थानों की स्थापना करवा कर उन्होंने साबित कर दिया कि जनता के सरोंकारों की रक्षा और जनता की सेवा करने के लिये किसी पद की आवश्यकता नहीं होती है।
    १९८३-८४ में शराब विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व करते हुये पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। मार्च १९८९ में वन अधिनियम का विरोध करते हुये विकास कार्य में बाधक पेड़ काटने के आरोप में भी गिरफ्तार होने पर इन्हें ४० दिन की जेल काटनी पड़ी। ईमानदारी और स्वच्छ छवि एवं स्पष्ट वक्ता के रुप में उनकी अलग पहचान बनी २० साल तक उक्रांद के शीर्ष पदों पर रहते हुये २००२ में वे पार्टी के अध्यक्ष बने और २००२ के विधान सभा चुनाव में वह द्वाराहाट विधान सभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुये। ३० अगस्त, २००४ को काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया।
       त्रिपाठी जी की यादों को अक्षुण्ण रखने के लिये मेरा पहाड़ ने एक टापिक उन्हें समर्पित किया है, देखने के लिये निम्न लिंक पर जाने का कष्ट करें-

    
 उत्तराखण्ड के क्रांतिवीर-स्व० श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी/ Vipin Chandra Tripathi

http://www.merapahad.com/forum/personalities-of-uttarakhand/vipin-chandra-tripathi/

Devbhoomi,Uttarakhand:
राज्य आंदोलनकारी की विधवा दो जून रोटी को तरसी

उत्ताराखण्ड राज्य आंदोलन में अपनी शहादत देने वाले जिले के एकमात्र आंदोलनकारी की विधवा मेहनत मजदूरी कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रही है। नेताओं के लाख घोषणाओं के बावजूद शहीद की जन्मस्थली मिरोली गांव आज भी रोड, पानी, बिजली के लिए मोहताज है।

उत्ताराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान अल्मोड़ा जनपद के मल्ला सालम के मिरोली निवासी प्रताप बिष्ट की 3 अक्टूबर 1994 को पुलिस की गोली से नैनीताल में मौत हो गयी थी। प्रताप के घर की माली हालत ठीक न होने से नैनीताल के किसी होटल में नौकरी करता था। घर पर पत्नी पुष्पा के अलावा 4 नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण का जिम्मा था। इस बीच उत्ताराखण्ड आंदोलन में जुलूस में शामिल होने की सजा उसे बर्बर पुलिस ने सीने में गोली दाग कर दी।

इधर राज्य प्राप्ति के पश्चात पुष्पा को उम्मीद थी कि उसे भी आर्थिक सहायता मिलेगी। लेकिन कोरी घोषणाओं के साथ ही न तो उसे आर्थिक सहायता मिली न ही उसके गांव को पिछले 5 वर्षो से रोड से जोड़ा जा सका।

 द्योनाथल-चेलछीना के नाम से स्वीकृत यह मोटर मार्ग मात्र 3 किमी ही बन पाया। उसमें भी विगत बरसात में मलबा आने से यह मोटर मार्ग क्षतिग्रस्त हो गया। साथ ही बिजली के तिरछे पोल एवं जमीन को छू रहे तार एवं लो-वोल्टेज से ग्रामीण काफी त्रस्त हैं। इसी तरह यहां खुला एकमात्र प्राइमरी स्कूल में भी एकमात्र शिक्षक के जिम्मे सारे विद्यार्थियों के पठन-पाठन का जिम्मा है।

यहां के प्रधान कुंदन सिंह रौतेला के अनुसार स्व.प्रताप के तीन बच्चों में से सबसे बड़े लड़के को चतुर्थ श्रेणी में नौकरी अवश्य मिली। लेकिन वह अपने बाल बच्चों को साथ लेकर बाकी को गांव में बेसहारा छोड़ गया। कुल मिलाकर अपनी शहादत देने के बावजूद भी प्रताप की बेवा पुष्पा आज सड़क में पत्थर तोड़कर गुजारा कर रही है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
यशोधर बेंजवाल

शहीद यशोधर बेंजवाल भारत के एक उत्तराखण्ड आन्दोलनकारी थे। वे पृथक उत्तराञ्चल प्रदेश के निर्माण हेतु संघर्षरत संगठन उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (उक्रांद) (जो कि वर्तमान में उत्तरांचल का एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल है) के सदस्य थे। आन्दोलन के दौरान पुलिस के हाथों उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।

यशोधर का जन्म उत्तरांचल (जो कि उस समय उत्तर प्रदेश का हिस्सा था) के रुद्रप्रयाग जिले के बेंजी नामक गाँव में हुआ था। छात्र जीवन से ही वे राजनीति में सक्रिय थे। बाद में वे पृथक उत्तराखण्ड प्रदेश के निर्माण के आन्दोलन से जुड़ गये। इसी आन्दोलन के दौरान एक बार वे अपने साथियों सहित श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू पर धरने पर बैठे थे। पुलिस ने उन्हें दो साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया। काफी दिन तक तीनों युवकों को यातना देने के बाद मार डाला गया।

http://hi.wikipedia.org/

Devbhoomi,Uttarakhand:
राज्य आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण पर उठाए सवाल

उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आंदोलनकारी संघर्ष समिति के सदस्यों ने राज्य आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण के लिए राज्य सरकार ने जिन मानकों को आधार बनाया है उससे वास्तविक रूप में राज्य निर्माण के लिए त्याग करने वाले अनेक लोग सूची से बाहर हैं। अनेक बार पारदर्शितापूर्ण चिह्नीकरण की मांग करने के बावजूद सरकार राज्य आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वालों की कोई सुध नहीं ले रही है।

संघर्ष समिति संयोजक दिनेश जोशी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य गठन के दसवें वर्ष तक भी राज्य आंदोलनकारियों को अनुमन्य सुविधाएं देने के बजाय सरकार अभी तक चिह्नीकरण की प्रक्रिया से ही गुजर रही है जो राजनीति लाभ साधने के साथ ही आंदोलनकारियों की उपेक्षा का द्योतक है। जिला पंचायत सदस्य व रामनगर महाविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष संजय पांडे का कहना है कि राज्य सरकार को राज्य आंदोलन में भरपूर योगदान देने वाले लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का सहारा लेकर सूची से वंचित आंदोलनकारियों का चिह्नीकरण करना चाहिए।

 उन्होंने वर्तमान चिह्नीकरण को शासन तथा प्रशासन में दखल देने वालों की शह पर बनी सूची करार देते हुए कहा कि अगर असली आंदोलनकारी सम्मान पाने से वंचित रह गए तो उन्हें मजबूरन संघर्ष करने को बाध्य होना पड़ेगा।

Devbhoomi,Uttarakhand:
doston uttarakhand aandolan ke baare min uttarakhand ki sakaar ka kya vew hai ye news pado


उत्तराखंड आंदोलन का दस्तावेज बनाएंगे

उत्तराखंड आंदोलनकारी सम्मान परिषद के अध्यक्ष रविंद्र जुगरान ने कहा कि परिषद उत्तराखंड आंदोलन का दस्तावेज तैयार करेगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के अधिकांश जन प्रतिनिधियों में राज्य आंदोलन के जज्बे का अभाव आज भी बरकरार है।

श्री जुगरान परिषद कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आंदोलन के दस्तावेजों को प्रिंट, आडियो तथा वीडियो सभी रूपों में संजोने का प्रयास किया जाएगा। आंदोलनकारियों के संबंध में अब तक जारी सभी शासनादेशों का अध्ययन कर परिषद समीक्षा करेगी।

 उत्तराखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों में जो जुनून, उत्साह और समर्पण रहा, अधिकांश जनप्रतिनिधियों में उसका अभाव तब से आज तक बना हुआ है। यह खेदजनक है। उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका सभी क्षेत्रों में नए अवसर बढ़े, लेकिन आम जनता को अपेक्षा के अनुरूप फायदा नहीं मिला। आंदोलनकारियों, शहीदों को सम्मान दिया जाना चाहिए।

आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण में तेजी लाई जाएगी। मुजफ्फरनगर कांड समेत अन्य कांडों के न्यायालय में लंबित वादों की समीक्षा कर उनकी पैरवी में तेजी लाई जाएगी। उन्होंने माना कि श्री खंडूड़ी ने राज्य सरकार को इन मुकदमों में तीसरा पक्ष बनाने की बात कही थी, इस बाबत मौजूदा स्थिति की जानकारी ली जाएगी।

उन्होंने कहा कि रामपुर तिराहा समेत अन्य शहीद स्थलों को तीर्थ स्थल के रूप में संजोने का भरपूर प्रयास किया जाएगा। आंदोलन में योगदान देने वाले संस्कृति कर्मियों, कवियों, गीतकारों, पत्रकारों को भी परिषद उचित सम्मान देगी।

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