Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
Milestones Of Indian Independence - स्वाधीनता संग्राम के कुछ पडाव
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Rajen:
स्वाधीनता संग्राम के कुछ पडाव,
उत्तराखंड के सन्दर्भ में.
1) 1885 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में कुमायूं के दो ब्यक्ति शामिल.
2) 1890 : स्वामी विवेकानंद की प्रथम अल्मोडा यात्रा.
3) 1905 : अल्मोडा के नंदादेवी मंदिर में बंग-बिभाजन के बिरोध में सभा.
4) 1912 : अल्मोडा में कांग्रेस की स्थापना, टम्टा सुधार सभा की स्थापना.
5) 1913 : श्री बद्री दत्त पांडे के 'अल्मोडा' अखबार के संपादक बनाने (१६ जून) के साथ ही अखबार
का तेवर राष्ट्रवादी हुआ. शुद्ध साहित्य समिति, नायक सुधार सभा, इंडियन क्लब,
राजपूत पाठशाला, स्टुडेंट कल्चरल एसोशियेशन, आदि स्थापित, स्वामी सत्यमेव व
लाला लाजपतराय का अल्मोडा आगमन, बन बंदोबस्त कुमाऊँ सर्किल
दो बन बिभागों में बिभाजित.
6) 1916 : अल्मोडा में होम-रूल लीग स्थापित, कुमाऊँ परिषद् का जन्म (सितम्बर).
7) 1917 : कुमाऊँ परिषद् का अल्मोडा अधिवेशन (२२-२३ अक्टूबर), कलकत्ता कांग्रेस में भागीदारी.
8 ) 1918 : 'अल्मोडा' अखबार को सरकार द्बारा बंद करा दिए जाने के बाद 'शक्ति' का प्रकाशन.
9) 1921 : बागेश्वर में 'बेगार आन्दोलन' की सफलता (१३-१४५ जनवरी),
बन आन्दोलन शुरू (फरवरी), उत्तराखंड की पहली राजनैतिक गिरफ्तारी
के रूप में मोहन सिंह मेहता जेल भेजे गए (मार्च).
10) 1923 : स्वराजवादी आन्दोलन.
11) 1925 : अल्मोडा में अछूत शिल्पकार सम्मलेन (अक्टूबर)
12) 1926 : कुमाऊँ परिषद् का कांग्रेस में बिलय.
13) 1927 : साइमन कमीशन का बिरोध.
14) 1929 : महात्मा गांधी की कुमाऊँ यात्रा (१४ जून - ४ जुलाई)
15) 1930 : डांडी यात्रा में कुमाऊँ से ज्योतिराम कांडपाल गए.
देहरादून में लोन नदी पर नमक बना कर नमक कानून भंग.
गड्वाली सैनिकों द्वारा पेशावर में नि-हत्थे पठानों पर गोली चलाने से इनकार (23 अप्रैल).
नैनीताल में झंडा सत्याग्रह (30 अप्रैल)
अल्मोडा में झंडा सत्याग्रह करते हुए बिक्टर मोहन जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी घायल (26 मई)
टिहरी रियासत में खाई में बन अधिकारियौं की मांग करते हुए ग्रामीणों पर
रियासती सिपाहियौं के जूली चलने से दर्जनों लोग मरे (30 मई),
सल्ट में बन सत्याग्रह शुरू (अगस्त).
पूरे कुमाऊँ में 404 लोग गिरफ्तार.
16) 1931: नैनीताल में कुमाऊँ राजपूत सम्मलेन (मार्च)
बागेश्वर में महिला संगठन स्थापित.
17) 1932: अल्मोडा में अछूत-उद्धार सम्मलेन.
कुर्मांचल समाज सम्मलेन (10-12 नवम्बर).
हरिजन सेवक संघ स्थापित.
18) 1940: उत्तराखंड में सर्वत्र ब्यक्तित्व सत्याग्रह.
19) 1942: 'भारत छोडो' पूरे उत्तराखंड में फैला.
देहाट में हुए कुमाऊँ के पहले गोलीकांड में 3 लोग शहीद,
सालम आन्दोलन कारियौं ने गिरफ्तारों को रिहा कराया.
दो लोग शहीद (25 अगस्त).
टिहरी में श्री देव सुमन गिरफ्तार (29 अगस्त).
सल्ट गोलीकांड में 4 लोग शहीद (5 सितम्बर)
20) 1944: 84 दिन के अनशन के बाद टिहरी जेल में श्री देव सुमन का निधन (25 अगस्त).
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श्रोत : डा. सरोज बर्मा, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथोरागढ़.
पंकज सिंह महर:
सालम की क्रान्ति
सालम के नौगांव में ९ अगस्त की रात को जब कुछ लोग भारत छोड़ो आन्दोलन की रुप रेखा बना रहे थे तो, उस मकान को पटवारियों ने घेर लिया और १४ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जब दाडिमी गांव में इन्हें ले जाया जा रहा था तो ग्रामीणों ने उग्र प्रदर्शन कर इन्हें छुड़ाने का प्रयास किया, इसमें पटवारियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें शेर सिंह नाम के व्यक्ति घायल हो गये।
१० अगस्त को इस आन्दोलन को दबाने के लिये भारी संख्या में पल्टन भेजी लेकिन जनता ने उन्हें मार-पीट कर वापस भगा दिया और ४३ बन्दूकें तथा ४८ हठकडियां छीन लीं।
25 अगस्त, 1942 को अल्मोड़ा जिले के सालम के धामद्यौ टीले में प्रदर्शन कर रहे क्रान्तिकारियों पर पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें दो लोग शहीद हो गये।
१- अमर शहीद टीका सिंह, निवासी कांडे ग्राम।
२- अमर शहीद नर सिंह धानक, निवाकी चौकुना ग्राम।
इनके अतिरिक्त श्री रेवाधर पाण्डे एवं श्री राम सिंह आजाद को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई, जो बाद में कालापानी की सजा में बदल दी गई, साथ ही श्री दुर्गादत्त शास्त्री, श्री प्रताप सिंह बोरा, श्री मर्चराम, श्री शिव सिंह नेगी, श्री नैन सिंह को कालापानी की सजा हुई थी।
पंकज सिंह महर:
19 अगस्त, 1942 को देघाट में विनोद नदी के किनारे ५ हजार के लगभग लोग स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये आन्दोलन कर रहे थे, को पुलिसे ने चारों ओर से घेर लिया और फायरिंग कर दी, जिसमें दो लोग शहीद हो गये-
१- स्व० श्री हरिकृष्ण उप्रेती,
२- स्व० श्री हीरामणि गड़ोला।
इस घटना से लोगों में आक्रोश की लहर दौड़ गई, जिसे कुचलने के लिये ५० गोरे सिपाहियों की पल्टन देघाट आई और २९ लोगों को जेल भेज दिया गया औग गांवों से सामूहिक अर्थदण्ड वसूला गया।
पंकज सिंह महर:
5 अगस्त, 1942 को आस-पास के गांव के लोग खुमाड़ (सल्ट) जिला- अल्मोड़ा में एकत्रित होकर स्वाधीनता संग्राम हेतु सत्याग्रह कर रहे थे। तत्कालीन एस०डी०एम० जानसन के प्रतिनिधित्व में पुलिस और पटवारियों का जत्था इन्हें रोकने के लिये वहां पर आया , जानसन ने लोगों को धमकाया और स्वाधीनता सेनानियों के बारे में जानकारी न दिये जाने पर गांव में आग लगा देने की धमकी देते हुये हवाई फायर करने लगा। इसी बीच भीड़ से नैनमणि उर्फ नैनुवां ने जानसन के हाथ से पिस्तौल छीन ली और उसे मारने हेतु लाटी उठाने लगा तो पुलिस कर्मियों ने उसे पकड़ लिया। इससे भड़ककर जानसन ने गोली चलाने का हुक्म दिया। लेकिन स्थानीय होने के नाते पुलिस कर्मियों ने भीड़ को निशाना न बनाकर इधर-उधर गोलियां चलाई, जिसपर जानसन ने स्वयं ही निशाना साधकर गोली चलाना शुरु कर दिया। इस गोलीकांड में दो सगे भाई गंगाराम और खीमानंद वहीं पर शहीद हो गये और चूड़ामणि और बहादुर सिंह मेहरा गंभीर रुप से घायल हो गये, जिनकी चार दिन बाद मृत्यु हो गई। इसके अलावा गंगादत्त शाष्त्री, मधूसूदन, गोपाल सिंह, बचेसिंह व नारायण सिंह भी घायल हो गये।
स्वाधीनता संग्राम में सल्ट की अद्वितीय भूमिका रही और इसकी सराहना करते हुये महात्मा गांधी जी ने इसे कुमाऊँ* की बारदोली की पदवी से विभूषित किया था। आज भी खुमाड़ में हर साल ५ सितंबर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।
* कुमाऊँ का अभिप्राय टिहरी रियासत को छोड़ सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से था।
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