Author Topic: Popular Saying about Different Places- कहावते किस्से विशेष स्थान आदि  (Read 11521 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दोस्तों

 We will write some sayings and popular quotes about different places of Uttarakhand which are mentioned in Kumoan Ka Itihas and other books.


 हम इस टोपिक में उत्तराखंड के विभिन्न जगहों के बारे में प्रसिद्ध किस्से, कहावते लिखंगे! जो हमारे उत्तराखंड इतिहास का भी एक अंग है! आशा आपको यह प्रयास पसंद आएगा!

 पहला पिथौरागढ़ जिले में बहने वाली के काली नदी के बारे में! सोर व् डोटी (नेपाल)  के बीच  में है काली नादे! काली नदी बड़ी तेज एव गहरी है! इस पार करना कठिन भी है! इसी लिए यह किस्सा है!


 " काली हूँ, जनार नै, स्वर्ग सूँ ठंगार नै""


 झूला घात के पास तंग है! इसे जुवा घाट भी कहते थे! खाहते है इस नदी इनती तंग थी के लोग बैलो का जुवा रख कर नदी पर करते थे! बाद में लोहा फुल बनने के बाद इस
jhoolaghaat कहते है!


M  S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पिथौरागढ़ के ही काली नदी के बारे में यह कहावत है!
 
 काली नदी में स्नान karne का कुछ पुण्य नहीं माना जाता है! इसी लिए यह कहावत है!
 
 "काली नयो, भालू खयो"
 
 
 साभार - कुमाऊ का इतिहास पेज २१
 
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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"हाट कि नाली काटा, काट की नाली हाट"

काठगोदाम के ऊपर गुलाब घाटी के पश्चिम में शीतला देवा का स्थान है ! यहाँ पर चंद राज के समय में शीतला घाट नामक बाजार है! बीच में एक नदी है ! नदी उस पार "बतोखरी" की प्रसिद्ध गढ़ी है! जिस बाड़ खवाड कहते है! यह गोरखा काल में नष्ट हो गयी थी! कहते है यहाँ कोटा पर्वत ग्राम वासियों की घनी वस्ती थी! यह कहावत यहाँ प्रसिद्ध था !

"हाट कि नाली काटा, काट की नाली हाट"

यानी - हाथो हाथ नाली हाट से कोटा और कोटा और कोटा से हाट तक घूमती थी!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 "जोड़ी -जोड़ी बेर की महरुड़ी"
 
 कुमाऊ का सबसे प्रसिद्ध कहावत / किस्से में से एक :
 
 महरुड़ी - काली कुमाऊ का एक छोटी से पट्टी! यहाँ के गाव दूर है जिसके कारण आस पास के परगनों में से दो दो चार चार गाव निकालकर यह पट्टी बनाई गयी! इसीलिए कहा गया है! "जोड़ी -जोड़ी बेर की महरुड़ी"
 
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आणे–किस्से   आणे–किस्से

एक कूछी बल : दिन भर काम करने के बाद समूह में बैठकर बातें चल रही है, गांव–पडोस में क्या हुआ इसकी बात हो रही है। टो खेती, त्योहार, गांव की समस्या, बीमारी, शादी–ब्याह, मानव व्यवहार का बिश्लेषण, गांव के रास्ते, धारे, खाले डाण्डे सब स्वतः ही इस अनौपचारिक बैठक के बिषय–बिन्दु ानते जाते है। जिसमें बच्चे, बूढ़े, जवान सब शामिल है। गर्मियों में आंगन में व सर्दियों में अंगीठी के इद—गिर्द होने वाली इन फासकों के माध्यम से बुजुगो का अनुभव बिना किसी जटिल प्रकि्रया के बच्चों तक पहुंच जाता है। जिसकी नींव पर खड़ी होती है विश्वास, सम्मन तथा मुल्यों की इमरत। किसी व्यिक्त पर टिप्पणी होगी, उसका समग्र विश्लेषण होगा, समूह से एक व्यिक्त कहेगा ‘‘ एक कूंछी बल – खाण बखत मुख लाल, दिण बखत आँ ख लाल” । फिर गप्पे लगेंगी। बीच–बीच में लोग मुहावरों से अपनी बात को पुष्ट करेंगे, अनवरत चलता यह सिलसिला अब कुछ शिथिल सा पड़ रहा है। गागर में सागर के अर्थ लिए ये लोकोक्तियां संवाद को सम्प्रेषणपरक तथा साथक बनाती है और रूचि पुर्ण भी। ये कहावतें बहुत लोकप्रिय होती हैं और जन समुह की वाणी में रहती है। तभी तो इनके बारे में कहा है कि ‘‘गुड़ उज्याव में खाओ मिठे, अन्यार में खाओ मिठे’’ परिवार में आधुनिक चकाचौंध से ग्रस्त बहु जब अनसुनी करती है, तो चुटकी लेते हुए कहते है कि ‘‘सासुल ब्वारि हुणि कै, ब्वारिल कुकुर हुणि कै, कुकुरैलि पुछड़ि हलै दी’’ दोगले व्यिक्त का चरित्र चित्रण करती है ये लोकोक्ति ‘‘सिसूणांक जास पात’’ ह्यसिसूण एक पौधा है, जिसका पता दोनो तरफ कटीला होता हैहृ । परिवार के मुखिया को आगाह करने के लिए कहा जाता है कि ‘‘जैक बुड़ बिगड़, वीक कुड़ बिगड़’’ ह्यजिसका सयाना बिगड़, उसका घर बिगड़हृ, नौकरी की मानसिकता की असलियत को यह कहावत स्वतः ही बताती है ‘‘नौकरीक रोटी, बज्जर जसि खोटि’’ दिखावे–भुलावे को स्पष्ट करने के लिए कहा जाता है कि ‘‘लिखै–जौख राज– दिवाने जसि, खवै–पिवै गुणी–बनार जसि’’। इसके अलावा रीति–रिवाज, मानव व्यवहार, जीवन दर्शन व प्रकृतिक विशेषता को व्यक्त करने के लिए तमाम कहावते यहां प्रचलित हैं, जो जीवन की गहरी अनुभूतियों को अत्यन्त स्वाभाविक रूप से व्यक्त कर देती है। किन्तु जब से बुजुगो व बच्चों का संवाद कम हुआ है, इन कहावतों का उपयोग तथा प्रसार भी कम हो गया है।

कहावतो से प्रकट होता समाज का जीवनः

  चौमस क जर, राज कु कर
  जेठ कि जैसि कैरुं, पूस जैसि पाऊँ ह्यपालकहृ
  कार्तिक मैंहण कांस नी फूलि, त्वी जै फूलें
  ह्यू पड़ों पूस, म्यूकि पड़ि धूस ह्यू पड़ों माघ, ग्यू धरू कां
  चतुर चौमास बितो, लड़िलो ह्यन, रूड़ी घाड़ी बज्यून हेजो, धो काटन टैम
  बाजैकी लाकड़ी केड़ी भलि, भलि जाती की चेलि सेड़ी भलि
  हुण छा एक छपुक, नि हुण छा छाड़बड़ाट
  दिल्ली मि सौ घर, म्यार ख्वार बनधार
  काक्क सात च्याल, मैंके के द्याल
  बान–बाने, बल्द हरै गो
  हुणी च्यालक गणुवां न्यार
  सांझा–मांझक पौढ़ भुख मरू


आणे ह्यपहेलियांहृः लोक जीवन में जन साधारण के लिए ‘मनोविनोद’का साधन है ये पहेलियां। अर्थात मनोरंजनात्मक तरीके से बौद्विक परीक्षण। ‘आणों’ में जिस वर्ण्य वस्तु के गुण, रूपा, रंग, आकार, प्रकार, उपयोग अथवा स्वभाव के विषय में संकेत रहता है उसी को पकड़कर अर्थ या उत्तर की कल्पना की जाती है। इस पर बच्चों की सामुहिक कल्पना चलती है। आणे बुद्धि विलास का माध्यम बन जाते है। आणों में वर्णित वस्तुओं का गा्रमीण वातावरण एवं जन–जीवन से घनिष्ट सम्बन्ध हुआ करता है। जैसे– सौ घ्वाड़ाक एक्कै सवार ह्यसौ घोड़ों का एक सवारहृ यानी रूपया या ‘‘लाल बाकरि पाणि पी वेर ऐगे, सफेद बाकरि पाणि पीण हुणी जाणै’’  उतर – पूरी।

पहेलियों का उद्देश्य मनोरंजन के साथ बुद्धि परीक्षण है। टी0वी0, अखबार, स्कूली शिक्षा के बढ़ते प्रचलन से भले ही आज की पीढ़ियां लोक जीवन की इन पहेलियों से वंचित हो रही हों और इनकी रचना का क्रम अवरूद्व हो गया है। अंकगणित के निर्जीव सवाल बच्चों के मस्तिष्क को खोखला कर रहे हों, स्कूल में उनकी रूचि को बदल रहे हों, फिर भी इन पहेलियों का अपना महत्व यथावत है। तभी तो आज भी जिन्दा है। जीवन अभ्यास में बरकरार है क्योंकि स्थानीय समाज में पहेलियां कई प्रकार की भूमिकाएं निभाती है। जिनमें शिक्षण, बुद्धि परीक्षा और मनोरंजन मुख्य है। उम्मीद तो यही है कि मनोरंजन के नये तरीकों से लोग जल्दी ऊब जायेंगे क्योंकि इनमें जीवंतता है नहीं। फिर खड़ी हो पायेगी आणों, कथाओं तथा गीतों की एक विस्तृत श्रंृखला। अबूझी इन पहेलियों में तक—वितर्क व तात्कालिक विचार मंथन का सार :

  हाथ में अता कोरि मि नी अटान
  ग्यू रवाट मडुंवक पलथुड़, देखो ज्याण ज्यूं जेठी ज्यूं लक्षण
  तू हिट मि ऊ
  हरी–चड़ी लम पुछड़ी
  बिनू बल्द पुछड़ेल, पाणी प्यूं
  भिुमुनिया–भिमुनी के कुछैं रूक जानी, गौ पन हकाहक हरै, त्वे खानी मैं खानी
  एक सींगि बल्द सार परिवार पालूं
  एक छोरी सार परिवार के रूला दी
  बेत धमर–धुस्स, पात चकइयां, देखण क रंग–चंग, खाणंक तितइयां
  लामकन बामुड़, चमकन धोति
  लाल चड़ी बूटे दार, उसके अण्डे नौ हजार
  बणह जाणी घर है मुख, घर हैं जाणी बणह मुख
  जाण भगत फुस्यार हैरू, उण भगत चुपड़ि
  जाण भगत सफेद, उण बखत लाल
  एक उड्यार मि सफेद बरयात बाट लागि रै


द्वारा से : सिद्ध सोसाईटी
प्त्रिका : ‘‘भूमि का भूम्याला देव’’

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 जागेश्वर में अनेक देवता है इस लिए यह कहावत वहां के बारे में -

 "देवता देखण जागेश्वर, गंगा नाण बागेश्वर"
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दानपुर बागेश्वर का यह कहावत -
 बागेश्वर के दानपुर एकाके में झुनी से ऊपर कोई गाव नहीं है! इसी लिए यह किस्सा है a

 "नांग माथी मासु नै,  झुनी माथी गौ नै"


 जैसे नाखून से मांस नहीं.. झुनी से आगे गाव नहीं
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक कहावत है
 
''गौंक लछिन ग्वैठा बटी''

अर्थात किसी गाँव के लक्षण उस गाँव को जाने वाले मार्ग से ही पता लग जाते हैं

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अल्मोड़ा गये अल्मोड़ा के बारे में अनुमान कितना सही हो सकता है वह इस कहावत से विदित होता है -

न गये अल्मोड़ा, ना लाग्या गजमोड़ा
मैंने यह भी सुना है- "जब जाला अल्माड, तब लागल गज्माड" यानी- अल्मोड़ा जाके .. अल्मोड़ा के बारे में ही पता चलेगा!


 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एक गढ़वाली कहावत

 – ‘‘ध्यूल पर घाम भी है चि,
तामि पर आदु भी रौंधा त रा जान्दा त जा।’’

अर्थात् मंदिर पर धूप भी है, छोटे बर्तन में आटा भी, रहते हैं तो रहो, जाते हो तो जाओ।

 

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