महज १६ साल की अवस्था में पहली बार जेल गए मदन मोहन उपाध्याय का ज्यादातर समय मुम्बई और अल्मोड़ा की जेलों में बीता। ब्रिटिश पुलिस की गिरफ्त से फरार होने पर उन्होंने मुम्बई में भूमिगत होकर 'आजाद हिन्द रेडियोज' का संचालन कर देश वासियों में आजादी का अलख जगाने का काम किया।
वे द्वाराहाट से प्रजा सोशलिष्ट पार्टी के पहले विधायक बन लखनऊ विधानसभा में विपक्ष के उपनेता रहे। द्वाराहाट से रानीखेत तक बनी सड़क के निर्माता और रानीखेत में विद्युत आपूर्ति शुरू कराने वाले ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता को लोगों ने भुला दिया। उन्हें याद करना तो दूर, उनके नाम पर आज तक कहीं भी कोई मूर्ति तक स्थापित नहीं कराई गई और न ही कोई स्मारक बनाया गया।
पच्चीस अक्टूबर १९१० को द्वाराहाट के बमनपुरी में जीवानंद उपाध्याय के द्घर जन्मे थे मदन मोहन उपाध्याय। कालीखोली के मिशन स्कूल में अध्यापक जीवानंद की आठ संतानों में सातवें नंबर पर रहे मदन मोहन उपाध्याय का बचपन का नाम मथुरा दत्त उपाध्याय था। बाद में मदन मोहन मालवीय से प्रभावित होकर ही उन्होंने अपना नाम परिवर्तित किया और वे मथुरा दत्त से मदन मोहन उपाध्याय हो गए।
उनकी प्राथमिक शिक्षा द्वाराहाट और नैनीताल के जीआईसी में हुई। इसके बाद वे अपने बड़े भाई पं .शिवदत्त उपाध्याय के साथ इलाहाबाद चले गए। शिवदत्त पंडित मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव हुआ करते थे। मदन मोहन उपाध्याय भी उन्हीं के साथ इलाहाबाद में स्वतंत्रता सेनानियों के चर्चित केन्द्र स्थल आनंद भवन में रहे थे। तब वे महज १२ साल के थे। चार साल बाद ही मदन मोहन उपाध्याय स्वंतत्रता संग्राम के सेनानियों के संपर्क में आकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल और मदन मोहन मालवीय का साथ पाकर मदन उपाध्याय में स्वतंत्रता संग्राम के प्रति ऐसा जज्बा उमड़ा कि महज १६ साल की अवस्था में ही उन्हें पहली बार जेल जाना पड़ा। इलाहाबाद की नैनी जेल से जब वे साल भर बाद निकले तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसके बाद उन्हें पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। १९३६ में श्री उपाध्याय इलाहाबाद से वकालत की पढ़ाई पूरी कर रानीखेत आ गए। यहां आते ही उन्हें रानीखेत कन्टोमेंट बोर्ड (छावनी परिषद) का उपाध्यक्ष चुन लिया गया।