Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन

Strugle Story Of Making Uttarakhand State - उत्तराखंड राज्य बनने की संघर्ष कहानी

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
24 जुलाई 1979 में कुमायूं विश्व विद्यालय के पूव कुलपति डॉ. डी.डी. दत्त की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ने के लिये उत्तराखंड क्रान्तिदल .उक्रांद. के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन किया गया और इस दल द्वारा हरिद्वार जिले को प्रस्तावित उत्तराखंड राज्य में सम्मिलित करने की मांग सहित एक ज्ञापन राष्ट्रपति को दिया 1 दो तथा तीन अप्रैल 1980 को उत्तराखंड क्रांति दल का दो दिवसीय महासम्मेलन हल्द्वानी में किया गया 1 सन् 1980 में उक्रांद की आेर से डॉ.डी.डी. पंत ने अल्मोड़ा पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा 1 सन् 1989 में उ.प्र. विधानसभा के लिये उक्रांद के जसवन्त सिंह बिष्ट तथा काशीसिंह ऐरी चुनाव जीते

जसवंत सिंह इससे पूर्व भी उक्रांद के विधायक चुने गये थे 1 उत्तराखंड के विधायकों ने राज्य विधानसभा में उत्तराखंड राज्य के लिये प्रस्ताव रखा 1 पूर्व में राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां उत्तराखंड राज्य का विरोध करती रहीं 1 उत्तराखंड में उत्तराखंड क्रांति दल.उक्रांद. के बढ़ते प्रभाव तथा उत्तराखंड राज्य आन्दोलन को मिल रहे समर्थन को देखते हुए सन् 1988 में भारतीय जनता पार्टी ने भी उत्तराखंड राज्य की मांग का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया और उत्तराखंड राज्य के बजाये उत्तरांचल राज्य का नारा दिया 1 1991 के लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा विजयी हुयी

बाद में उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पेश कर उत्तराखंड के स्थान पर उत्तरांचल नाम को वैधानिक मान्यता प्रदान कर दी 1 कांग्रेस के नेता यद्यपि पूर्व में छिटपुट रूप में ही उत्तराखंड राज्य की मांग करते रहे किन्तु बाद में उसने भी उत्तराखंड राज्य का समर्थन करना प्रारंभ कर दिया 1 सर्वप्रथम 1991 में उ.प्र. की तत्कालीन भाजपा सरकार ने उत्तरांचल राज्य गठन का प्रस्ताव विधान सभा में पारित किया 1 सन् 1994 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने उत्तराखंड राज्य गठन के लिए कौशिक समिति का गठन किया 1 इस समिति ने राज्य का समर्थन करते हुए 05 मई 1994 को अपनी रिपोर्ट सरकार को दी 1 इस समिति ने पर्वतीय क्षेत्र में स्थान स्थान पर जाकर लोगों के सुाव लिये 1 कुमायूं और गढ़वाल के मध्य स्थित गैरसैंण नामक स्थान पर राजधानी बनाने की संस्तुति दी 1 कौशिक समिति की सिफारिश पर 24 अगस्त 1994 को उ.प्र. विधान सभा ने उत्तराखंड राज्य बनने का प्रस्ताव पारित कर दिया 1 रामगुलाम . पांडेय प्रेम

हलिया:
पंकज जी और मेहता जी, जानकारी हेतु धन्यबाद।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड आन्दोलन की संघर्ष यात्रा को आप इस ब्लाग पर देख सकते हैं-

http://jayuttarakhand.blogspot.com/2007/12/blog-post_310.html

उत्तराखण्ड आन्दोलन से संबंधित कुछ और जानकारियां भी यहां पर हैं

http://jayuttarakhand.blogspot.com/

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान घायल लोग

पंकज सिंह महर:
एक सामाजिक कार्यकर्त्ता तथा महिला कल्याण समिति की अध्यक्षा श्रीमती शशि बहुगुणा, आंदोलन के प्रारंभ को उसी तरह याद करती है मानो यह कल की ही बात हो। “अगस्त 8, 1994 में शिवरात्री थी। इन्द्रमणि बडो़नी तथा दिवाकर भट्ट जैसे कुछ लोग आरक्षण के लिये मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ सात-आठ दिनों से जिला कार्यालय (कलेक्टोरेट) के बाहर भूख हडताल पर थे।” वह याद करती हैं, “अकस्मात् पुलिस ने उन्हें घसीट कर रातों–रात मेरठ जेल में ले जाकर बंद कर दिया। उसमें कुछ वृद्ध लोग भी शामिल थे।” इसी बीच यह आदेश जारी हुआ कि सड़कों पर चार लोगों से अधिक लोगों का मिलना वर्जित है। जब पौड़ी के लोगों ने यह सुना, वे विभ्रांत एवं भयभीत हो गये।

शशि ने कुछ करना तय किया। उन्होंने महिला कल्याण संघर्ष समिति के कुछ अनुभवी सदस्याओं को बुलाया जिसमें श्रीमती नंदा नेगी, श्रीमती मोहिनी नैथानी एवं डॉ. बहुगुणा शामिल हुए एवं इन महिलाओं ने बद्रीनाथ-केदारनाथ धर्मशाला में मिलने का निश्चय किया। “हमलोग ने अपने घरों से अकेले या दो के झुण्ड में निकले, पर फिर भी हमें पुलिस द्वारा रोका गया। हमने उन्हें बताया कि हम मंदिर जा रहे हैं। कुल मिलाकर 11 महिलाओं ने धर्मशाला से निकलकर पताका लहराते हुए नारे लगाये। जैसे ही लोगों ने हमें देखा, वे सब घरों से बाहर निकल पड़े। ऐसा लगा मानों वे किसी और के आगे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। युवा, वृद्ध, गृहिणियां एवं बच्चे सभी सड़कों पर उतर पड़े और हमने कलेक्टेरेट की ओर बढ़ना शुरू किया।”

इस बीच पुलिस ने इस उपद्रव से निपटने के लिये उत्तर प्रदेश से और पुलिस दल को बुला लिया। कुछ जगह जनता के क्रोध के प्रदर्शन के कारण यह विरोध हिंसक हो उठा। पुलिस अधीक्षक की गाड़ी जला दी गयी, एक सरकारी गाड़ी का चालक मर गया, लोगों ने पत्थर फेंक-फेंक कर कलेक्टेरेट के फर्नीचर तोड़ डाले। “मैं प्रतिनिधि मंडल की एक सदस्य थी जो अंदर जिलाध्यक्ष से मिलने गयी थी। मैं महिलाओं से बातें करने बाहर आयी कि लोगों ने मुझे घेर लिया। इस धक्का-मुक्की में मेरी कुछ हड्डियां टूट गयीं। क्रोध इतना अधिक था कि लोगों को रोक पाना कठिन था। जब जिलाधिकारी तथा पुलिस अधीक्षक ने मुझे बाहर निकाला और हड्डी टूटने पर मेरी सहायता करनी चाही तो भीड़ ने डंडों से उन्हें पीटा। पुलिस ने 108 चक्र गोलियां चलायीं, फिर भी स्थिति नियंत्रित नहीं हो पायी।”

इन सभी ऊहापोहों में ही कभी एक अलग राज्य की मांग उठ गयी। लोगों ने हमेशा ही महसूस किया कि उत्तर प्रदेश सरकार की नीतियां एवं कार्यक्रम पहाड़ियों के लिये यथेष्ट नहीं रहे हैं और इसलिये उन्होंने एक अलग राज्य की मांग की, ताकि वे अपने विकास के लिये स्वयं कार्यक्रम बना सकें। बाकी, जैसा वे कहते हैं अब इतिहास बन चुका है। यह विचार सभी को भा गया और पूरे राज्य में बड़े प्रदर्शनों की दौड़ शुरू हो गयी। इसका अंत वर्ष 2000 में उत्तराखंड (तब उत्तरांचल) बनने पर ही हुआ।
 

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