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Uttarakhand Save River Programme 2008 - उत्तराखंड नदी बचाओ वर्ष 2008 अभियान

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Devbhoomi,Uttarakhand:
अगर सबकुछ  ठीक ठाक रहा तो आने वाले दिनों में उत्तराखंड की नदियां दिल्ली को जगमगाने में अहम रो
ल अदा कर सकती हैं। इस पहाड़ी राज्य की नदियों में 25 हजार मेगावाट से अधिक बिजली पैदा करने की क्षमता है जिसका एक बड़ा हिस्सा देश की राजधानी के लोगों की ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में आने वाले सालों में करीब 200 जल विद्युत परियोजनाएं बननी हैं।

फिलहाल उत्तराखंड में विभिन्न परियोजनाओं से 3200 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इनमें 1300 मेगावाट बिजली राज्य की अपनी जल विद्युत परियोजनाओं से पैदा हो रही है।

 राज्य में पैदा होने वाली बिजली दिल्ली सहित पंजाब, यूपी, हरियाणा को भी सप्लाई होती है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम के चेयरमैन योगेंद्र प्रसाद ने एनबीटी से बातचीत में कहा कि राज्य में जल विद्युत पैदा करने की अपार क्षमता है। कई परियोजनाएं प्रस्तावित हैं और कइयों पर काम चल रहा है। राज्य की जरूरत पूरी होने के बाद अतिरिक्त बिजली का लाभ महानगरों को भी मिलेगा। यहां की नदियां दिल्ली की जरूरतें भी पूरी कर सकती हैं।

धारचूला और मुनस्यारी के इलाकों में 4080 मेगावाट की 17 बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को बनाने की प्रक्रिया चल रही है। इनमें धौलीगंगा पर 2555 मेगावाट की 9 परियोजनाओं को बनाने की योजना है। इसी तरह काली नदी पर 905 मेगावाट की 6 परियोजनाएं बननी हैं।

गौरीगंगा पर 620 मेगावाट की दो परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इसके अलावा जिले की विभिन्न नदियों पर कुल 26 छोटी जल विद्युत परियोजनाएं भी बननी हैं।

राज्य में भूगर्भीय संतुलन के नाम पर इसका विरोध भी शुरू हो गया है। नदी बचाओ आंदोलन के प्रणेता रवि चोपड़ा कहते हैं कि पहाड़ों में जिस तरीके से जल विद्युत परियोजनाओं को हरी झंडी दी जा रही है वह यहां की नदियों को खत्म कर देंगी, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा।

 अभी प्रस्तावित कुल 200 परियोजनाओं में करीब 700 किलोमीटर क्षेत्र में सुरंगें बनाई जानी हैं। इससे करीब 20 लाख की आबादी प्रभावित होगी।

Devbhoomi,Uttarakhand:
उत्तराखंड राज्य बनते ही प्रदेश के लोगों को यहां की सरकारों ने जिस तरह ऊर्जा प्रदेश बनाने के सपने दिखाए थे, उनने यहां के लोगों को न सिर्फ ठगा है, बल्कि उन्हें अपने पैतृक स्थलों से पलायन के लिए भी विवश कर दिया है. लोग नए आसरे की ओर निकलते जा रहे हैं. ऐसे में जो पलायन नहीं कर रहे हैं, वे अपनी धरती, जंगल, पहाड़ और नदियों को बचाने के लिए अपनी कमर कसने लगे हैं.

नदियों की मौजूदा असलियत उत्तराखंड निवासियों के लिए असहनीय हो गई है. उत्तराखंड के पूर्व में काली (शारदा) से लेकर पश्चिम में तमसा (टौंस) तक उत्तराखंड की सभी हिमपोषित नदियों पर बिजली उत्पादन के लिए दो सौ से अधिक परियोजनाएं निर्माणाधीन या प्रस्तावित हैं, जिन्हें बांधों और सुरंगों के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है. इसके कारण इन नदियों का सनातन प्रवाह और इनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. बड़े हादसे तो जैसे अभिशाप की तरह जुड़ गए हैं.

पिछले दिनों विष्णुप्रयाग जल विद्युत परियोजना के लिए बनाई गई सुरंग के धंस जाने से उसके ऊपर बसा हुआ चॉई गांव ध्वस्त हो गया और कड़ाके की सर्दी में इस गांव के लोगों को अपने टूटे-फूटे दरकते मकानों को छोड़ कर बेघर होना पड़ा.

जंगल साफ हो रहे हैं सो अलग.

लोग हैरान हैं कि नदियों पर बांध औऱ सुरंग बनाने के प्रस्तावों पर बगैर इसके नतीजे की परवाह किए केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने भी अपनी ओर से हरी झंडी कैसे दिखा दी !

लेकिन मामला अकेला चॉई का नहीं है.

उत्तरकाशी के करीब चौदह गांव लोहारी नाग और पाला मनेरी जल विद्युत परियोजनाओं से प्रभावित हैं. इन गांवों की महिलाओं का कहना है कि उनके यहां बांध निर्माण एजेंसियां गांव के पुरुषों को प्रलोभन देकर निर्माण कार्य में मनमानी कर रही हैं. भागीरथी घाटी में सुरंग निर्माण के लिए कंपनियां हर दस मीटर पर विस्फोट कर रही हैं, जिससे मकानों में दरारें आ रही हैं. भूजल का रंग बदल गया है.

इस इलाके में 18 कंपनियां एनटीपीसी के संरक्षण में काम कर रही हैं, जिसमें बड़ी संख्या में बाहरी लोग आ रहे हैं. जाहिर है, इससे इन गांवों में सामाजिक असुरक्षा के मामले बढ़े हैं. दूसरी ओर जिनकी जमीन अधिगृहित की जा रही हैं, उनकी सुरक्षा और आजीविका के लिए कोई बात नहीं की जा रही है.

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