गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' की 1984 में लिखी यह कविता आज भी मौजूद है. राज्य बना सरकारें बदलीं मगर पहाड़ के हालात नहीं-
फिर आयी वर्षा ऋतु लाई नव जीवन जल धार।
कृषि प्रधान भारत में उजड़े फिर कितने घर बार?
कितने जनगण गाड़ बग गये?
कितने गौं-घर घाट लग गये?
कितने भगीरथों के सर से गुजरी गंगा धार?
तुम क्या जानो तुम तो ठहरे भारत की सरकार
कि हमरे बच्चे सोये चार।
उन्तीस जून सन् चौरासी की रात, शुक्र था वार
जबकि गरमपानी में हमरे बच्चे सोये चार।
किसकी करनी? किसकी भरनी?
किस मय्या की गोद उजड़नी?
बाप बने लाचार, देखते दुनिया का व्यवहार
कि हमरे बच्चे सोये चार।
अजी बिजीनिस टॉप रहेगा आलू-रैता खूब बिकेगा,
चोखा कारोबार, रुकी हैं इतनी मोटर-कार
कि हमरे बच्चे सोये चार।
कौन बड़ी यह बात हो गई? कुछ ज्यादा बरसात हो गई,
कुल्ल मरे हैं चार, मचाते खाली हा हा कार।
कि हमरे बच्चे सोये चार।
दिल्ली-लखनौ को क्या लेना, उनको वक्त कहां है इतना,
उनके काम हजार, वो ठहरे देश के ठेकेदार,
कि हमरे बच्चे साये चार।
वह तो नैनीताल जिला है, जहां कि भूस्खलन हुआ है,
वो देखेंगे यार, प्रशासन जिले का जिम्मेदार,
कि हमरे बच्चे सोये चार।
पुलिस/प्रशासन चुस्त हो गये सब हालात दुरुस्त हो गये,
रुपये मिले हजार, हमारी धन्य-धन्य सरकार।
कि हमरे बच्चे सोये चार।
दुर्घटना क्या घटनी थी जी, आमद-रफ्त बढ़ी लोगों की,
दौड़ीं मोटर-कार कि पहुंचे नेताजी इस बार,
दिया इक बोरी गेंहू, साथ नोट बांटे दो धारीदार।
चलाया वोटों का व्यौपार, कि हमरे बच्चे सोये चार।
ये रकमें बच्चे न जनेंगी
इमादादें कोखें न भरेंगी,
सोचो तो इक बार कौन इस सबका जिम्मेदार?
करें हम ठीक कहां पर वार, मिले जो इन सबसे निस्तार।
कि हमरे बच्चे सोये चार।
फिर आयी वर्षा ऋतु बरसाती जीवन जल धार।
कृषि प्रधान भारत से पूछो क्या बीती इस बार ?
-- गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा'