1962 में राजकीय इण्टर कालेज से हाईस्कूल करने के बाद गिर्दा अपने घर से स्वछन्द विचरण के लिये निकल पड़े, इसी बीच उनका सम्पर्क सुप्रसिद्ध रंगकर्मी ब्रजेन्द्र लाल शाह जी से हुआ और ये भी रंगमंच की ओर मुड़ गये। जीवन के अगले पड़ावों में ख्यात रंगकर्मियों और कलाकारों के सम्पर्क में आये, लेनिन पन्त और तारा दत्त सती जी से रंगमंच की बारीकियां सीखीं। इसके बाद गिर्दा गीत और नाटक प्रभाग, आकाशवाणी में नौकरी करने लगे, स्व० जीत जरधारी और बंशीधर पाठक "जिग्यासू" के माध्यम से गिर्दा ने रेडियो प्रसारण में अपने कई कार्यक्रम दिये। तारा दत्त सती जी के सथ मिलकर मोहिल माटी और रामायण नृत्य नाटिकायें लिखी तो लेनिन पन्त जी के साथ अंधाधुन्ध नाटक का निर्देशन और संगीत रचना की। इसी दौरान धनुष यग्य और नगाड़े खामोश हैं, नाटक भी लिखे। बाद में मिस्टर ग्लांड, अन्धेर नगरी और भारत दुर्दशा नामक नाटकों का निर्देशन भी किया। गिर्दा ने अनेक कुमाऊंनी गीतों का धुन सहित हिन्दी में भी अनुवाद किया है। उर्दू से कुमाऊंनी और कुमाऊंनी से उर्दू रचनाओं का भी अनुवाद इन्होने किया। फैज की प्रमुख रचना "हम मेहनतकश जग वालॊ" का कुमाऊनी अनुवाद "हम कुल्ली कबाड़े, ओड़ बारूडी़" इसका एक उदाहरण है।
गिर्दा जनगीतों के माध्यम से संघर्ष की प्रेरणा देते हैं, गिर्दा पहाड़ के किसी भी जनांदोलन से कभी अलग नहीं रहे, चिपको आन्दोलन हो या शराबबन्दी या पहाड़ों के पर्यावरण से खिलवाड़ करती कार रैलियां, उत्तराखण्ड आन्दोलन आदि सभी संघर्षों में गिरदा ने अपनी कविताओं से हमेशा आन्दोलनकारियों का हौंसला बढ़ाया है। आज गिर्दा उत्तराखण्ड में जन आन्दोलनों के पर्याय बन चुके हैं, गिर्दा केवल इन आंदोलनों की रीढ ही नहीं बल्कि कलम के सिपाही भी हैं, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लेखों के माध्यम से इनके विचार छपते रहते हैं। ननीताल समाचार, पहाड़, जंगल के दावेदार, उत्तरा, जागर, युगमंच, शिखर संगम आदि संस्थाओं से इनकी करीबी सहभागिता है।
हमारी कविता के आंखर (डा० शेखर पाठक के साथ), शिखरों के स्वर (दुर्गेश पन्त के साथ) नगाड़े खामोश हैं (नाटक), धनुष यग्य (नाटक), रंग डारि दियो हो (संकलन-सम्पादन) इनकी प्रकाशित रचनायें हैं। लोक गायक झूसिया दमाई पर ये शोध कार्य भी कर रहे हैं।
गिर्दा नें राजीव कुमार निर्देशित फीचर फिल्म "वसीयत" में अभिनय भी किया है।