तीसरा दौर
सन १९६२ में " पुष्पांजली रंगशाल " का गठन किया गया जिसमे मै, दिनेश पहाडी, ब्र्माह्नंद कोटनाला शामिल थे मुझे नाटक का सौक लग चुका था ! हम सब बैठे ये निर्णय लिया गया की मै नाटक लिखू ! मैंने रात दिन करके अपना पहला नाटक 'औंसी की रात " लिख डाला उस में एक नही , दो नही , तीन स्त्री पात्र रख डाले अब समस्या कहदी होगी की कौन खेलेगा इधेर उधर हाथ मरे गए.. हेरोइन लीला नेगी को आप्रोच किया गया ! लीला आल इन्ड्या रेडियो से गढ़वाली में गाना गाते थी ,! माँ के रोल के लिए गौं से श्रीमती रामभगति जी को बुलाया गया ! रिहर्शल सुरु होई .. २ फरबरी १९६9 का गढ़वाली नाटक काम्नाते हाल से उठकर थिएटर में आया.. आए आई एम् ऐ हाल में पहली बार लोग घरो से बाहर आकर हाल तक आए और टिकेट में नाटक देखा..
कहना होगा की "औंसी की रात" कई मायने में मील का पत्थर बनी ...
१.. पहली बार थिएटर में प्रस्तुती हुयी
२ पहली बार स्त्री पात्रो ने हिशा लिया
३ लोगोने टिकेट लाकर नाटक देखा
४ एक फुल लेंथ प्ले देखने को मिला
यह नाटक देहली के बिभिन संस्थोओ द्बारा 1o १२ बार खेला गया चंडीगढ़ में भी इसके शो हुए ! नायक की भूमिका मै ,नायका लीला नेगी ने की और माँ की भूमिका राम भागती की ! सन १९६३ मे दिनेश पहाडी द्बारा लिखा नाटक "जुन्ख्याली रात " का मचान किया ! मेरे द्वार कई कलाकारों को स्टेज मे आने का मौका मिला जिनमे प्यारीदेबी हरी सम्वाल, रमेश मंदोलिया ,दिनेश कोथियालर कुसुम बिष्ट आदि ! पुष्पांजली अपना काम क्र रही थी .. !
सरोजिनी नगर मे सहित्य कला समाज नामक संस्था जो एकाकी नाटक करते थे उनोहने उसको बदल कर "जागर " " का नाम देकर सन १९७४ मे राजेंदर धस्माना जी का नाटक जंकजोड़ को प्रस्तुत किया और सन ७५ मे "अर्ध्ग्रमेश्वर" जो अपने समय का एक बहुत चेर्चित नाटक था !