संगठन प्रदेश में विस्थापन व पुनर्वास की एक ठोस नीति बनाने को लेकर लगातार संघर्षरत है। संगठन ने इसके लिए बाकायदा हस्ताक्षर अभियान भी छेड़ा। इस अभियान को व्यापक जन समर्थन भी मिला। प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकार होने के बावजूद संगठन द्वारा चलाये जा रहे अभियान में केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री हरीश रावत ने भी अपने हस्ताक्षर किये। संगठन के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय कहते हैं की शुरुवात में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पीड़ितों का मनोबल बनाने की थी, जिसमे उन्हें बहुत हद तक सफलता मिली है। वे मानते हैं की अभी लड़ाई लम्बी है। उनका कहना है की अब समय आ गया है की सरकार जल्द-से-जल्द विस्थापन व पुनर्वास की ठोस नीति घोषित करे। सरकार उनकी इस मांग को अब नज़रंदाज़ नहीं कर सकती है। संगठन ने केदारघाटी में आयी आपदा के सौ दिन पूरे होने पर रुद्रप्रयाग में पीड़ितों की पंचायत भी बुलाई थी। पंचायत में बड़ी संख्या में दूर-दराज के क्षेत्रों के पीड़ितों ने भी भाग लिया। इससे भी संगठन के पदाधिकारी उत्साहित हैं।
केवीपीएस-२ के आन्दोलन को हतोत्साहित करने वालों की भी कमी नहीं है। कई लोग मानते हैं की सालों गुज़र गए, किन्तु अभी तक कई गाँवों के विस्थापन व पुनर्वास की मांग ठंडे बस्ते में पड़ी हुयी है। ऐसे में संगठन द्वारा की जा रही कार्रवाही कितनी कारगर होगी? मगर संगठन ऐसे सवालों से बेफिक्र होकर अपने अभियान में जुटा है और उसे धीरे-धीरे विभिन्न सामाजिक संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविद्दों का समर्थन भी हासिल हो रहा है। बहरहाल, संगठन को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कितनी सफलता मिलती है, यह भविष्य के गर्भ में है। पर संगठन ने एक ऐसे मुद्दे को उठाया है, जो बहुत पहले ही इस आपदाग्रस्त राज्य की नीति में शामिल होना चाहिए था।