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Articles & Poem by Sunita Sharma Lakhera -सुनीता शर्मा लखेरा जी के कविताये

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Sunita Sharma Lakhera:
दुखियों से खिलवाड़ करने वाले जीवन भर दुख ढोते है ,
आँसुओं को तोलने वाले जीवन भर फिर खुद रोते हैं ,
पीड़ितों को सहारा देने वाले मृदुभाषी करुणामयी होते है,
पथरीली धरती पर चलने वाले ही पर पीड़ा समझते हैं !

Sunita Sharma Lakhera:

कुरीतियाँ

इस धरा को यदि ध्यान से समझें तो यह की वस्तुत: सारी सृष्टी की आधारभूत शक्ति नारी है किन्तु उसने सदियों से जन्मदात्री होने के साथ - साथ यमराज का किरदार भी बखूबी निभाया है व् आज भी इस ओर प्रेरित है !यदि हम नारी के अन्य शब्द का विश्लेषण करें "औरत " तो पाएंगे उससे जुड़े तो भावपूर्ण शब्द -और ,रत ,अर्थात "अधिक इच्छा ",इसके विपरीत पुरुष का भाव पुरुषार्थ ,सृष्टी की रचना का उद्देश्य इच्छा से अधिक पुरुषार्थ हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए ! किन्तु नारी इस मार्ग में सर्वाधिक अवरोधक बन कर खडी है !
यह वह जीव है जिसकी तृष्णा से समस्त जगत विशुब्ध है !समाज में व्याप्त जितनी भी कुरीतियाँ हैं उनमें औरत की भूमिका अग्रणीय है !दया की सागर व् देवितुल्य स्थान पाने वाली इस जीव की भूमिका आज के सन्दर्भ में घर ,परिवार व् समाज कल्याण में न होकर विघटन की ओर है !भ्रूण हत्या ,कन्या -बहु प्रतार्ण ,दहेज़ हत्या ,लिंग भेद व् अन्य कुरीतियों को बढ़ावा देने में एक औरत ही दूसरी औरत की दुश्मन बनी बैठी है ,विरले अलग विचारों वाली औरतों के मार्ग अवरोधक और कोई नहीं स्वयं औरत ही तो है !
जब तक नारी एक दुसरे को समभाव नहीं देखेगी तब तक उसके अस्तित्व का पुरुष प्रधान समाज में कोई वर्चस्व रही रहेगा !तब तक उसका मानसिक ,शारीरिक व् सामाजिक शोषण होता रहेगा !सर्वप्रथम अपनी कमजोरियों से लड़ना होगा !क्या समाज सुधारना कोई मुश्किल कार्य है ,नहीं , बस नारी जन चेतना की आवश्यकता है ! सर्वप्रथम अपने घर ,परिवार में नारी को सशक्त बनाएं तत्पश्चात समाज स्वयं सुधर जायेगा !
पुरुष की भी भूमिका नकारी नहीं जा सकती ,यदि वह कलुषित मानसिकता को बढ़ावा न दें अपितु सदाचार से अपने पिता ,पति व् पुत्र की भूमिका निभाए तो बढती कुरीतियों पर लगाम लगाया जा सकता है !
कुरीतियों रहित संसार स्वर्ग के समान !

Sunita Sharma Lakhera:
क्रोध --जीवन पर अभिशाप !

जीवन में प्रत्येक व्यक्ति समय सारणी से बंधा हुआ है ! सुख व् दुःख भी जीवन के दो अटूट छाया है ! इस बदलते परिवेश में व्यक्ति प्रतिक्षण प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने भीतर विभिन्न प्रकार के कलुषित विचारों को पनाह देता है जैसे अहंकार ,इर्ष्या, भय कुंठा इत्यादि ! जिसके परिणामस्वरूप क्रोध की उत्पत्ति होती है !
क्रोध साकार व् निराकार दोनों ही रूप में समय -२ पर हमारे कर्मो द्वारा दिखते हैं ! इसका कुप्रभाव हमारे बुद्धि व् विवेक पर पड़ता है ! क्रोधी व्यक्ति न केवल अपना अहित करता है अपितु समाजघाती भी होता है ! क्रोध में लिए गए निर्णय जीवन में आत्मघाती सिद्ध होते हैं !क्रोधी व्यक्ति अपने अहं के आगे समाज से मुह मोड़ लेता है व् समस्त रिश्ते नाते उसकी अपनी दुनिया में कोई मान्य नहीं रखती !
ऐसी परिस्तिथि में ईश्वरीय भक्ति व् भजन ,इसे वशीभूत करने में सक्षम होती है !इसके अलावा उसे छोटे -२ उपायों को अपनाना चाहिए ताकि उसके द्वारा किसी का अहित न हो सके !
आये इन उपायों को अपनाएं व् अपने जीवन को क्रोध युक्त नहीं क्रोध्मुक्त बनाएं -----
१ . क्रोध को सयमित करने की चेष्ठा करें !
२ . गहरी सांसे भरें ,प्रतिदिन ,प्रतिपल !
३ . अपनी मुट्ठी को कस कर तब तक बंद करें जब तक स्थिति न संभल जाये !
४ .दूसरों के विचारों को सुने और अपनी भी नम्रतापूर्वक कहे !
५ . सबसे उत्तम उस स्थान से हट कर अपना ध्यान केन्द्रित करने की चेष्टा करें !
अपना क्रोध को सही जगह व् सही दिशा में यदि इस्तेमाल किया जाये तो प्रत्येक व्यक्ति पहाड़ों से नदी खोदकर अपने घर तक ला सकता है !

Mahi Mehta:

Sunita ji...

Welcome to Merapahadforum.com.

बहुत अच्छा लेख आपने लिखा है! खासतौर से आपकी कविता मी छियो पहाड़ी की नारी.. बहुत अच्छी लगी !

Sunita Sharma Lakhera:
उत्तराखंड औषधि दर्पण

औषधीय डाला-बूटों कु हमर जीवन दगडी सीधू सम्बन्ध च जैक वास्ता हम सभीयुं त जागरूक हूँ चेंद ! उत्तराखंड त अमूल्य संजीवनी वाटिका च जैकी जानकारी हम सभयूं ते हूण बहुत जरूरी च, निथर हमर प्राकृतिक संपदा केवल कुछ हथो मा सिमट जैली ! अगर हम सैह ढंग से जीण चाणा छंवा त अपर आसपास क वनस्पति ते न केवल समझन प्वाडल बल्कि वेक सुरक्षा वास्ता काम भी कन प्वाड़ल ! आधुनिक [एलोपथिक] दवै आराम त दीन्दी च पर वेकि दगड न जाने कथsकू आफत भी दगड़ मा लन्दिन ! हमर पुरण जमsने कू वैध हकीमो कु इलाज मा जू चमत्कार हून्दी छयाई व् यु नै दवाईयों मा कख छ ! सबसे पैली त समस्त वनस्पति जगत और मनखि जीवन मा परस्पर मेल हूण चेणू च ! हमर देस कु रिसी मुनियों न वेद , पुराणों , उपनिषदों अर अनेक धार्मिक ग्रंथों मा हमर यूँ संसाधनों की जानकारी मिलदी ! यु लेख अपुर राज्य मा ही न बल्कि हर घेर अर दरोज तक 'हर्बलिज्म' फैलाण क वास्ता उठायु गयु कोसिस/कदम च ! 'हर्बलिज्म' मतलब जड़ी बूटीयूं कु संसार क आधुनिक धारा दगडी विकास व् प्रचार /प्रसार करन च ! १५ -१७ शताब्दी ,जड़ी बूटी कुण स्वर्ण युग छयाई ! जड़ी बूटी कु सिधांत हमर आयुर्वेद ,चीनी अर यूनानी पारम्परिक हकीमों कु माध्यम च ! विश्व स्वास्थ्य सगठन कु अनुमानुसार आज क दुनिया कु ८०% आबादी कै हद तक अपर इलाज घरेलू चिकित्षा अपने की कर लिंदीन !प्राकृतिक चिकित्सक दुनिया भर मा २/३ % से अधिक जातिया जे मा अनुमानित रूप मा ३५००० औषधि गुंणों से भरपूर छन !हर्बल दवे बीज / कलम पद्धति से उगै जै सक्दन ,आर थोडा बहुत खर्च कं अपर पुंगडीयूं ,घर ,बगीचों मा उगै जै सकदन ! दुनिया भर मा भी लोग ईं दिशा मा जागरूक छन्न!

वैध डाली बूटयूं कु विभिन्न हिस्सों -जेड़, टेनी ,पत्ता ,फूल अर फलों कु रसायन / सुखू पौडर बने कन अपर रोगियों कु उपचार करदन !जातिगत वनस्पति कु अध्यन बहुत जरुरी च ! हमर उत्तराखंड मा त यु जड़ी बूटियों कु अपार संपदा च ! हमर उद्देश्य हरेक घोर मा एकी जागरूकता फैलाण कु अभियान च ! जै से धन व् समय कु बर्बाद नि करी कण हम अपर आस पास की वनस्पति कु सेह इस्तमाल कर सकवां !

देवभूमि उत्तराखंड दुर्लभ जड़ी बूटियों कुण संसार मा प्रसिद्ध च पण आधुनिक धारा मा ईंते पिछने धकेलनायी छन यु एलोपथिक सत्ताधारी ! उत्तराखंड सासन द्वारा स्वास्थ्य पर्यटन व् जड़ी बुटीयु का विकास पर ध्यान नि दीणा छन जै की वजह से लोगों ते एक यांका बारा ज्ञान नी च ! बाबा रामदेव ,गुरुकुल ,बैधनाथ अर डाबर जन और भी यीन पद्धति पर आज भी अडिग छन ! कतका यन भी वैध छन जोंते अपर ज्ञान औरों त बटण मा डैर लगदी, न वा कखी वु मै से आग्ने चली जाव !
आज इन्टरनेट कु युग छ ! अर ये माध्यम से न जाने कथका समाजसेवी यीं दिसा मा अग्रसर छन ! यूँ सब मा आजकल डॉ अरुण बडोनी जी कु नाम शिरोमणि [सर्वोपरि] चलणु च च जौन अपर फील्ड रिसर्च कु अध्यन जनता तक अपर गैर सरकारी संस्था -शेर -( सोसाईटी आफ हिमालयन एन्वैर्नमेंट रिसर्च कू माध्यम से पौंछाणा छन !
उत्तराखंड कु ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी हूण से ज्यादातर इखा क लोग गुरबत अर अभावग्रस्त जीवन यापन करणा छन ! इन परिस्तिथि मा छुट- मुट रोगों क वास्ता ये लोग अपर इलाज करी सकदन ,साथ ही बड से बड रोगों से अफु ते सुरक्षित रख सक्दन ! यदि हर गौं कु हर सदस्य अपर आसपास कु वन संपदा अर घास -पात कु जानकार व्हेह जाली त हर घर मा वैध ह्वाला अर यूँ अंग्रेजी दवे ते बस आपातकाल मा ही इस्तेमाल कारला ! पण उत्तराखंड की प्राकृतिक स्वास्थ्य केन्द्रों कु स्तिथि ठीक नि च ! दुर्लभ व् संजीवनी वर्ग कु औषधि कु महत्व दीं कु दगडी वैधों कु शिक्षा ,व् ये ज्ञान कु प्रयोग व् प्रचार वास्ता सरकारी - गैर सरकारी स्वयं सेवियों ते यीं दिशा मा कार्य करनी चेंद ! आवा हम सब एक सजग उत्तराखंडी बणिक अपर औषधि ज्ञान बढ़ौला ! सरकार ते भी शोधकर्ता अर किसानो त यीं दिशा मा बढ़ावा दीण चेन्दु ! जै उत्तराखंड !

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