माँ में भेद न कर प्राणी
माँ कौन है ...? केवल नौ दुर्गे जो आपकी यादों में नवरात्रों में चली आती हैं ! माँ के नौ रूप जो हम सभी के दृष्टीकोण में सैदेव रहने चाहिए ! धरती ,अन्नपूर्णा , गौ , गंगा ,दुर्गा ,जन्मदायित्री, कर्मदयित्री , व् बूढी काया !
प्रत्येक घर -२ में देवी के नौ स्वरूपों की विधि विधान से पूज कर व्यक्ति अपने आपको महान देवी का उपासक मानने लगता है ! इन नौ दिनों में व्यक्ति के व्यक्तित्व
में एक अलग निखार दिखने को मिलता है ! वर्ष में दो बार आने वाले इन नवरात्रों की धूम गली -२,नगर -२ देखने को मिलती हैं !इस समय तो कन्याओं की घर -२ में तलाश होती है और फिर झूठ , आडम्बर और भगती के परचम लहराने में प्रत्येक घर आगे रहता है ! विडम्बना यह की जिस नारी के नौ स्वरूपों का जीवन भर तिरस्कार किया जाता है वे इन नौ दिनों में इतनी पूजनीय क्यों हो जाती है ?
आप सभी के दृष्टीकोण में शायद देवी के नौ स्वरुप धार्मिक महत्व के होंगे किन्तु मेरे लिए माँ के नौ स्वरुप हैं -दुर्गा माँ , धरती माँ ,अन्नपूर्णा माँ , गंगा माँ ,गौ माँ , जन्मदायत्री ,कर्मदायित्री अर्थात शिक्षिका ,गुरु माँ अर्थात टेरेसा माँ जैसी समाज सेविका ,और सर्वोपरि बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ी बूढी माँ सबसे गूढ़ ज्ञानि ! यदि हमारा जीवन इनके लिए पूर्णतया समर्पित हो जाये तो असल में हम सभी के व्रत सफल हो जायेंगे ! व्रत का परम ध्येय अपनी आत्मा की शुद्धी कर उसे परमात्मा में लीं करना किन्तु हम जाते हैं तीर्थाघटन पर ..किन्तु किसलिए ? दुर्गा माँ के भक्तो की संख्या में इजाफा तो हो रहा है तो क्या पापियों की संख्या घट रही है?
सर्वप्रथम दुर्गा माँ , इसके विषय में तो सारा जगत जानता है और उसकी मौजूदगी का अहसास हम सभी के भीतर विद्यमान है !हर कार्य के प्रारंभ में विशेषकर विद्यार्थी या शिक्षण क्षेत्र में माँ दुर्गा की स्तुति का महत्वपूर्ण स्थान है !
वह जीवन वही अर्पण है और हम सभी शक्ति भी ,प्रेरणा भी ! किन्तु माँ ने कभी नहीं सिखाया की हम अपने स्वार्थ के खातिर जीव हत्या करो ,कन्या का तिरस्कार करो या फिर कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा दो !
दुसरे स्थान पर हैं धरती माँ जिसमे हमने जन्म लिया और पले बढे उसके प्रति हमारी नैतिक जिम्मेंदारी की शिक्षा कौन देगा ? प्राकृतिक संसाधनों का हनन कर उसके संतुलन को बिगाड कर शायद हम धरती माँ के प्रति अपना फ़र्ज़ भूल चुके हैं !धरती के प्रति प्रेम भाव पुन जागृत करना अत्यंत जरुरी है ,नहीं तो ध्यान रखना होगा उसके कोप का भाजन बनना होगा ! इस माँ ने अपने प्रयासों से अनेको उपभोग की वस्तुएं हमे प्रदान की हैं ,देखो इसके आँचल मैं ममता रूपी कितनी संजीवनिया छुपी हैं ,सूखे की स्तिथि हो या बाड की देखो धरती फिर भी हमारा दुःख समझती है ! इस माँ के उपकार को हमे न कभी भूलना चाहिए !
तीसरे स्थान पर अन्नपूर्णा माँ ! भोजन के प्रति अभिरुचि व् प्रेम तो शायद तो शायद युवा पीढ़ी भूल चुकी है ! विदेशी भोजन के प्रति अभिरुचि में प्रेम व् संस्कार की कमी तो है ही अपितु अनगिनत बिमारियों की जन्मदाय्त्री भी !और उसी भोजन को अपनाकर हम अपनी रसोई को नैतिकहीन बनाते जा रहे हैं !जैसे खाएं अन्न वेसे होए मन ..ये तो हम सभी जानते हैं !चूल्हे की पूजा ,अग्नि को भोग लगाना ,तत्पश्चात स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करना ,तो अब रुढ़िवादी परम्पराओं में आँका जाना आज की शान व् पहचान हैं !जब आप हम अपनी अन्नपूर्णा माँ का सम्मान नहीं करेंगे ! थाली में परोसा गया भोजन का सम्मान नहीं करेंगे तो बच्चो को अच्छे संस्कार कहाँ से प्राप्त होंगे !
चतुर्थ स्थान पर आती है गौ माँ ,जिनके प्रत्येक अंग में ब्रह्मांड समाया है किन्तु उसकी पूजा तो दूर ,सड़क पर उसको जख्मी पड़ा देख किसी का कलेजा नहीं पसीजता तो उसकी उपासना तो मील का पत्थर है ! धन्य हैं वो लोग जो गौ की पूजा अपना धर्म समझते हैं !
पंचम स्थान पर हैं गंगा माँ जो सदियों से हमारे कर्मो का भार सहन करके फिर भी निर्मल बन हमे ढेरों आशीष देती हैं ! देश की इस अमृतधारा को हमने अपने स्वार्थ के चलते इतना प्रताड़ित किया है की आज वह अपना मार्ग बदलने पर विवश है ! माँ करुणामयी तो होती है किन्तु जब उसका क्रोध जगता है तो संसार को उसका परिणाम तो भुगतना पड़ेगा !हिम ग्लेश्यर में बढ़ते कूड़े के अनुपात ,हमारे द्वारा किया जा रहा जल प्रदूषण सब हमारी इस पावन धारा पर भारी पड़ रही है !
छठे स्थान पर अपने जनम देने वाली माँ हैं जो हमे इस संसार में लायी ,उसका मान रखना और उसके अभिमान की रक्षा करना हमारा दायित्व है किन्तु विडंबना देखिये ,आज युवा माँ को माँ कहने में अपमानित महसूस करते हैं ! उन्हें तो मम्मी शब्द इतना प्यारा लगता है की वे तो उसे जीते जी कब्र में पहुंचा देते हैं !
सातवें स्थान पर कर्मदायिनी अर्थान शिक्षित करने वाली जो माँ /पिता तुल्य स्थान पर होती है !विद्यालय से विश्व विद्यालय तक शिक्षिका का स्थान भी देव तुल्य होता है !और हमे अपने आचरण से उनके मार्ग में खुशियाँ प्रवाहित करना चाहिए !युवा पीढ़ी चरण स्पर्श करने में अपमानित महसूस करती है ! उन्हें यह ज्ञात नही की शिक्षक के चरणों में साक्षात् सरस्वती माँ विराजमान है !
आठवें स्थान पर सत्संग की और प्रेरित करने वाली वह साध्वी जिसका जीवन समाज कल्याण हेतु समर्पित होता है जिस तरह माँ टरेसा / उन जैसे अनेको जिनकी संगती करने से हमारे आचरण में सुधार तो आता है साथ ही समाज के प्रति हमारे दायत्व की ओर हमे प्रेरित करती है ! हमे अपने अपने तरीके से अपने को सत्संग की ओर प्रेरित करना चाहिय !
नवे स्थान पर मेरे दृष्टी मैं आपके हमारे घर मैं वह बुजुर्ग जिन्हें हमारे द्वारा सर्वाधिक पूजनीय होनी चाहिय क्योंकि जर्जरावस्था में यह ज्योतिर्पुंज है और उसका सम्मान हमारा मान होना चाहिय ! किन्तु वास्तविकता यह है की उन्हें हम अपने स्वार्थ व् उपयोगिता की दृष्टी से देखते हैं ! यदि हमे अपने उपर जिम्मेदारी सी दिखती है तो हम उन्हें प्रताड़ित करने से नहीं चूकते !उसकी जीवन संध्या हमारी लिय बोझ क्यूँ बन जाती है ,जब उसने सारी उम्र हमारी भलाई में न जाने कितने आंसू पिए होंगे ....क्या फिर से मरण तक आंसू बहाने के लिए !
मेरे दृष्टीकोण में आपके जीवन की नौ देवियाँ आपके अपने सामने हैं !इनका तिरस्कार कर मन्दिरों में घंटो और नगाडो को बजाकर कोई लाभ न होगा ! नवरात्रों नही, नव देवियों का अभियान छेडिये -घर घर ,नगर -२ ,पूरे देश में ! यदि यह संभव हो गया तो माँ दुर्गा के नौ स्वरुप आपको हर्षित कर देंगे! ! आयें प्रकृति के साथ चलें ,उसके अपने बनकर ! !