Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 64103 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एगो हरेला ऐ ऊकाल

जी रया जागि रया
एगो हरेला ऐ ऊकाल

आषाढ़ एगो हरेला छैगो
जस ऊँच्चा आक्स

गौं घार माथा बिरजो हरेला
कपाल हल्दू चवलों साथ

सिल पीस भात खैई
लकड़ु कु टेका खुठों साथ

दुब जस पसरी जैई
मेरा मुल्का कु रीती रिवाज

जी रया जागि रया
एगो हरेला ऐ ऊकाल

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जीकोडी मेरी

धड़ धड़ बजणी
मेरी ईं जिकोड़ी जी
कैक बाण
किले की ई
दिन रति इनि कटणी
ईं जिकोड़ी मेरी

पैल बी मि समझ नि पैई
अब बी मिथे समझ नि ऐई
किले की कनि ऐ धक धक
ईं जिकोड़ी मेरी
धड़ धड़ बजणी
मेरी ईं जिकोड़ी जी

अपरी घोल म अटक्यूँ छों
अपरा अपरुँ थे मि बिसरी गियुं
झर झर किले कनि आँखि मेरी
किले ईं रुणि जिकोड़ी मेरी
धड़ धड़ बजणी
मेरी ईं जिकोड़ी जी

धड़ धड़ बजणी
मेरी ईं जिकोड़ी जी
कैक बाण
किले की ई
दिन रति इनि कटणी
ईं जिकोड़ी मेरी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
42 minutes ago
मैं समझा था मैं ही दीवानों हूँ

मैं समझा था मैं ही दीवानों हूँ
अपने पहड़ों का इन के नजारों का

गया जंहा जंहा मै
मै तुझसे मिला वंहा वंहा मैं
आँखों से बहा कंही तू
आ सीने लगा कभी तू

मैं समझा था मैं ही बंजार हूँ
अपने पहड़ों से इन बहती धारों से

गुपचुप बैठा मिला तू
खोया खोया उसके दिल में खिला तू
तेरी यादों के लेके साये
बीती बातों में जी रहा वो

मैं समझा था मैं ही जुदा हूँ
अपने पहड़ों से इन गाँव खलिहानों से

पल पल हर मोड़ मिलने लगी तू
मेरे सांसों की डोर जोड़ने लगी तू
जो प्रवासी पहाड़ी मुझसे मिला
उत्तराखंड तू बस दिल में खिला

मैं समझा था मैं ही दीवानों हूँ
अपने पहड़ों का इन के नजारों का

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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बालकृष्ण डी ध्यानी
9 hours ago · Edited
आईना मेरा

आईना मेरा आक़िबत कह गया
आज़र्दाह वो रहा आज़माईश कह गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया

पेशानी में उभरी लकीरों को देखकर
आँच के आगो़श में मुझे आगा़ज दे गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया

आरज़ू मेरी आयन्दा ही रही मुझसे
आते जाते बस वो गुफ्तगू कर गयी
आईना मेरा आक़िबत कह गया

आज़ाद है वो बस आराईश की तरह
आवाज़ह की वो बस आवाज बनकर रह गयी
आईना मेरा आक़िबत कह गया

आईना मेरा आक़िबत कह गया
आज़र्दाह वो रहा आज़माईश कह गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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(आक़िबत=अन्त, परिणाम, भविष्य) (आज़र्दाह =उदास, दु:खित, खीजा हुआ, व्याकुल,बेचैन)(आज़माईश=प्रयत्न, प्रयोग, जाँच, सिद्ध करना)(आयन्दा= भविष्य में, आगे, इसके बाद)(आराईश= सजावट, सुन्दरता, सुशोभित) (आवाज़ह= चर्चा, अफवाह, प्रसिद्धि, विवरण)(आवाज़= शोर, ध्वनि, चीख, पुकार)(आँच= ज्वाला, उष्णता, उत्साह, हानि, दु:ख)(आगो़श= आलिंगन, गोद, छाती)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19 · Edited
प्यार में

तेनु प्यार में रब दिखता
मैनु प्यार ही रब लगता

कुछ बोल दे ऐ मीत मेरे
कुछ अनसुने से वो बोल तेरे
गुनगुनाने लगे घुल मिलाने लगे
वो बोल तेरे मेरे मिलने मिलाने लगे

प्रेम ही प्रेम है रब ही रब
प्यार ही प्यार है सब ही सब

जादू है वो क्या है वो नशा
दीवानगी में है क्या इतना मजा
सजा खाने में मिलता है सकुन
तड़प तड़प जाने को फिर करता है मन

कैसी है धुन ये कैसी लगन
मिटता है शरीर पर प्रेम रहता है अमर

चल अपना फ़साना लिख जायें
किसी पत्थर किसे दर पे ठिकाना लिख जायें
कब्र में भी ना मिलगी अब हम को जगह
चल एक दूजे के दिल में जीना मरना लिख जायें

तेनु प्यार में रब दिखता
मैनु प्यार ही रब लगता

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बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19 · Edited
प्यार में

तेनु प्यार में रब दिखता
मैनु प्यार ही रब लगता

कुछ बोल दे ऐ मीत मेरे
कुछ अनसुने से वो बोल तेरे
गुनगुनाने लगे घुल मिलाने लगे
वो बोल तेरे मेरे मिलने मिलाने लगे

प्रेम ही प्रेम है रब ही रब
प्यार ही प्यार है सब ही सब

जादू है वो क्या है वो नशा
दीवानगी में है क्या इतना मजा
सजा खाने में मिलता है सकुन
तड़प तड़प जाने को फिर करता है मन

कैसी है धुन ये कैसी लगन
मिटता है शरीर पर प्रेम रहता है अमर

चल अपना फ़साना लिख जायें
किसी पत्थर किसे दर पे ठिकाना लिख जायें
कब्र में भी ना मिलगी अब हम को जगह
चल एक दूजे के दिल में जीना मरना लिख जायें

तेनु प्यार में रब दिखता
मैनु प्यार ही रब लगता

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बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19
तेनु प्यार में रब दिखता
मैनु प्यार ही रब लगता … सतत जारी है

मित्रों
कुछ बोल आपके अवश्य जोड़ देना गीत पूरा हो जायेगा

ध्यानी प्रणाम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कहानी

क़लम के कदम साथ
आज कल्पना की उड़ान
वर्तमान के शब्द लेकर
नानी की जुबानी

एक शिक्षा एक संदेश
अपने परायों के लिये
इस डाल के फल और वो फूल
उस जड़ की जवानी

लो चली है अपने संग
सुख दुःख प्रेरणा भरे क्षण लेकर
एक डाली से दूसरी डाली देने
हमारी तुम्हरी कहानी

क़लम के कदम साथ
आज कल्पना की उड़ान
वर्तमान के शब्द लेकर
नानी की जुबानी

एक उत्तराखंडी

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बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19
अभी थी वो पास मेरे अभी भी वो साथ मेरे
अमीरी -गरीबी में सदा इस दिल की धड़कन

ध्यानी प्रणाम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
8 hours ago
जब अपरा अपरा नि राई

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

देख्दा विपदा दूर खड़ा रैगैनि आंखी
टिप टिप पौड़ी कै बाना
किले कन जिकड़ी तिन इन बैमानी

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

सुख मिली सब दौड़ी ऐना
जब दुःख ऐ सब बौडी गेना
बाप दादों गंठया बिकी गैनी सब गैना

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

एक तू ही छे ना दुजु नि क्वी ई
जीकोडी मेरी बेटी तू ही मेरी भूली
छोड़ी गैंन सब तिल मी थै नि छोड़ी

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

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