बालकृष्ण डी ध्यानी
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आईना मेरा
आईना मेरा आक़िबत कह गया
आज़र्दाह वो रहा आज़माईश कह गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया
पेशानी में उभरी लकीरों को देखकर
आँच के आगो़श में मुझे आगा़ज दे गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया
आरज़ू मेरी आयन्दा ही रही मुझसे
आते जाते बस वो गुफ्तगू कर गयी
आईना मेरा आक़िबत कह गया
आज़ाद है वो बस आराईश की तरह
आवाज़ह की वो बस आवाज बनकर रह गयी
आईना मेरा आक़िबत कह गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया
आज़र्दाह वो रहा आज़माईश कह गया
आईना मेरा आक़िबत कह गया
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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(आक़िबत=अन्त, परिणाम, भविष्य) (आज़र्दाह =उदास, दु:खित, खीजा हुआ, व्याकुल,बेचैन)(आज़माईश=प्रयत्न, प्रयोग, जाँच, सिद्ध करना)(आयन्दा= भविष्य में, आगे, इसके बाद)(आराईश= सजावट, सुन्दरता, सुशोभित) (आवाज़ह= चर्चा, अफवाह, प्रसिद्धि, विवरण)(आवाज़= शोर, ध्वनि, चीख, पुकार)(आँच= ज्वाला, उष्णता, उत्साह, हानि, दु:ख)(आगो़श= आलिंगन, गोद, छाती)