Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 64311 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
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ये ईजा

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

बगदि हि गैई बगदि हि गैई उमरी की रेल
सम्लोंणाया रैगे बस गैल
कैल नि लगे सकिंन

दियू बाती जनि बल्दी ही रैई
हम आंधरा रैगे बस छैल
कैल नि लगे सकिंन

बोल्दा रंयां सब बचादा…२ चली गयां
चुप रैगे हम आपरी ही दैर
कैल नि लगे सकिंन

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
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ये ईजा

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

बगदि हि गैई बगदि हि गैई उमरी की रेल
सम्लोंणाया रैगे बस गैल
कैल नि लगे सकिंन

दियू बाती जनि बल्दी ही रैई
हम आंधरा रैगे बस छैल
कैल नि लगे सकिंन

बोल्दा रंयां सब बचादा…२ चली गयां
चुप रैगे हम आपरी ही दैर
कैल नि लगे सकिंन

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 20
हे भूली आणु छों मि घारा

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान
सिन्कोली ऐ जावा भैजी सुखान लगी बोई बाबा जी का परान
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

जब भ्तेक आप गयां भैजी ऐ पाड़ थे छोड़ि कि
ना नींदि आंदी ना राति जांदी खटलु कु बोई कू सिरनु अब छुईं लगान्दी
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

उजाड़ा पुंगड़ी भैजी यकुली किले की बिरानी वहैगे
गढ़देश कु पाणी भैजी हम दगड हे किले बैमानि वहैगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

ना क्वी शौक रेगे भैजी किले हमरी शान हर्ची गे
आलू प्याज टमाटर हो भैजी अब पाड़ा मा भैर भतिक ऐंन लगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19
जीकोडी गीत गाणी लगी

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

माया लगानि लागि
माया दिखाण लागि
माया माया दगडी ,ब्चान लागि
बैठी छ्या वा यकुली कख जान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

भितर ,भैर आन लागि
मुखडी मा वा छान लागि
मायादार छुईं लगान लागि
कु व्हाली वा जीं थे जीकोडी जीकोडी मा छिपान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

आपरी मा वा रैन लागि
सुप्नियों गैंना गठ्यान लागि
कैंकी खुद विंथे आन लागि
बैठी बैठी कबी हैसेंन कबी रुलाण लागि …… हो

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 17 · Edited
ले जा दगडी मेरु उत्तराखंड मेरु पहाड़

मेरु गौंऊ मुल्कू
माया कू सौंसार
यख मिलालू तेथे दगड्या
प्रेमा कू भंडार

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
देख ले मेरु उत्तराखंड ये च मेरु पहाड़

बगदि छ्ल छ्ल गंगा धारा
ढुंगा ढुंगा मा बस्या देबता हमारा
बद्री- केदारा यख मेरा नरंकार
माँ भगोती कू लगा दे जै कारा

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
पौड जा मथा हो जालु तेरु ऊधार

लाल खिली बुरंसा हैंसी ते देखेली
पिंगला रंगा की नार फ्योंली ते देकि की लज्जेली
किन्गुडा काफल का ये डंडा कांठा मा
देके जाली ते थे सरया धरती ई नटेली

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
ऐगै ई यख तू जब जैलू मी जुलों तेरु साथ

मायादार लोग मिळाल
माया की ही ऊ छुईं ल्गाला
बिखरी पड़ी च सरया धरती मा माया
उकरी सकी उत्गा उकरी की ले जा

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
ले जा दगडी मेरु उत्तराखंड मेरु पहाड़

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 17
एगो हरेला ऐ ऊकाल

जी रया जागि रया
एगो हरेला ऐ ऊकाल

आषाढ़ एगो हरेला छैगो
जस ऊँच्चा आक्स

गौं घार माथा बिरजो हरेला
कपाल हल्दू चवलों साथ

सिल पीस भात खैई
लकड़ु कु टेका खुठों साथ

दुब जस पसरी जैई
मेरा मुल्का कु रीती रिवाज

जी रया जागि रया
एगो हरेला ऐ ऊकाल

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
 
बैठ्युं छों मी

लग्दै दे छुईं
अपरा जीयु की
मेसे क्वी ना छुईं
तुम लुकावा जी

रोलूं बैठ्युं छों
तेरु बाटू हेरदी
दौड़ी ये तू
ना देर इनि कार जी

माया का पंथ
एक ना हजार हुंदी
सुदी सुदी ना
तुम अपरी छुईं मिसावा जी

फजल भ्तेक ब्योखुन हेगे
त्यूं डंडीयुं घाम यूँ रोलूं छलेगे
बैठी सोची मेर दिन पुरेगे
राति हुना पैल अपरी मुखडी दिखा द्यावा जी

आच तुम थे बेल नी मिली
भूल सिन्कोली ऐ जावा जी
बैठ्युं रालु अपरी जीकोडी माया संभाली
कै दिन तुम आला रैबार पैठा द्यावा जी

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 26
रची गैनी जो इतिहास विजय कू

रची गैनी जो इतिहास विजय कू
ऊँ शहीदों थे शत शत प्रणाम शत शत प्रणाम

ये बाटों तू हम थे बथे दे
ऊँ का खुठीयूं न कख छोड़ी छे आखरी निसाण
ले लूँ वो माटु थे आपरी माथा मा
जख छोड़ी वैल अपरू परान

रची गैनी जो इतिहास विजय कू
ऊँ शहीदों कु बोई बाबों थे शत शत प्रणाम शत शत प्रणाम

कै माँ का छे ऊ दूध की धारो
कै बाबा का तू हिकमत नि हारु
कैर नि चिंता कैकि तेन मातृ भूमि कु तू छे लाडो
खुना का आखरी बूंद अर्पण कैरी की चलीगे

रची गैनी जो इतिहास विजय कू
ऊँ शहीदों कु कुटुंब कु शत शत प्रणाम शत शत प्रणाम

देक नि क्वी आँखि रूनी हुली
बलिदानी तेर बलिदना देकि सबकी छाती फुगनी हुली
खिला ल ला तुम बणबण फूल बणकी
चम चमकन राला पाड़ों का चलूँ मा सदनी

रची गैनी जो इतिहास विजय कू
ऊँ शहीदों थे शत शत प्रणाम शत शत प्रणाम

ध्यानी प्रणाम

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July 26
एक रोजी पाड़ो मा

एक रोजी पाड़ो मा
खोयुं छों मी खैलू मा
अपरा मना दगड की छुईं मा
खोयुं छों ऊ गैल्युं मा
एक रोजी पाड़ो मा

किन्गुडा काफल की दानियों मा
हैर भैर डाला डलियुं का छैलू मा
डंडा कांठा कु ऊ उकालुं मा
रीता मनख्यूं की अंक्खयूं मा
खोयुं छों मी खैलू मा
एक रोजी पाड़ो मा

हिसलों टिपद रौलों खौलूं मा
गदनीयुं बग्धी धारों मा
बंजा पौडी उजाड़ा पुंगडु मा
बिकयाँ बल्द टूटी छनियों मा
खोयुं छों मी खैलू मा
एक रोजी पाड़ो मा

निळू सरग यूँ ह्यूं चलूँ मा
बीती फजल बिता दिनी गैानि रतियूं मा
भूली गैंन दौड़ी गैंन ऊं उन्दारियूं मा
गीतांग कू गीत का बोलों मा
खोयुं छों मी खैलू मा
एक रोजी पाड़ो मा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 24
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई
अपरू की खुद फिर बौडी ऐ रूले गैई
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

कया कना व्हाला म्यार बाबा बोई
आँखि थे बोलिदे माँजी ना इनि रूले जैई
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

झंगुरा कू कपलू खाटू मिथु ईजा
आषाढ़ कु मैणा बरखा कु बीजा तीजा
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

कौथिग जाला माँ सब भैना भाई
ऊँ थे जाँदा देकी की कया मेर खुद ऐई
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

परानु तिसु रैगे गौळी इन उबिगे मेरु
जीकोडी बोली मी चखुली जनि फेरा मारू
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

धीर देंदी रेंदी सदनी तेर मयाल्दी मुखडी
नींदि नि ऐनी ईजा तू ऐजा ऐ सुप्नी
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई
अपरू की खुद फिर बौडी ऐ रूले गैई
देर नि व्हाई अबैर नि व्हाई

एक उत्तराखंडी

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