Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 67265 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 23
झुमैलो ...

मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …
पुंगडु मा व्हैगे रुपेणी की शुरवात झुमैलो …
मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …

लाल्या कल्या बल्दों को साथ झुमैलो …
हळ्या मा बिराजो मेरु गढ़राज झुमैलो …
मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …

मेर बेटी ब्वारी कु यु पाड़ झुमैलो …
बरखा की गिर गिर मौल्यार झुमैलो …
मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …

उजाड़ा डंडा कंठ छेगे हरयालु झुमैलो …
मेरु माया को मायादार पाड़ झुमैलो …
मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …

चल खेलणु क्ख्क खेलण झुमैलो …
ऐजा ऐ बार खेलण कु ये पाड़ झुमैलो …
मेरा पाड़ ऐगे बसग्याल झुमैलो …

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 22 · Edited
चला हिटा जी

मोडम धरियों टोप्ला
कंधा मा चढियोँ झोला
हतामा ले की छातु
चला हिटा जी जोंला कौथिग

पैरिुंच नैय लता
कुरता सुलार जैकेट
बूटा चढ़ीली खुटयूँ मा
भुंया चढ़ेले मिल माथा
चला हिटा जी जोंला कौथिग

स्वांग इंन धरियोंचा
जनि लाल पिंगली जलेबी
पूतु लौल इन लौल्यूंचा
जनि गिर गिर गिरनी चरखी
चला हिटा जी जोंला कौथिग

किस्सामा राई बस मोबैल
बाटलु लुक्युं रैगे दैरमा
कंन गत व्हाई म्यारा दगड
भुक्युं थे जैकी एकबारी पूछा
चला हिटा जी जोंला कौथिग

कंन फजेति मेरी व्हाई
रैग्युं में चुलांदु मन आंसूं
ऐ बारी की कौथिग मा
बिसरी सब मी ना बिसरलु
चला हिटा जी जोंला कौथिग

मोडम धरियों टोप्ला
कंधा मा चढियोँ झोला
हतामा ले की छातु
चला हिटा जी जोंला कौथिग

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 21
जब अपरा अपरा नि राई

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

देख्दा विपदा दूर खड़ा रैगैनि आंखी
टिप टिप पौड़ी कै बाना
किले कन जिकड़ी तिन इन बैमानी

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

सुख मिली सब दौड़ी ऐना
जब दुःख ऐ सब बौडी गेना
बाप दादों गंठया बिकी गैनी सब गैना

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

एक तू ही छे ना दुजु नि क्वी ई
जीकोडी मेरी बेटी तू ही मेरी भूली
छोड़ी गैंन सब तिल मी थै नि छोड़ी

जब अपरा अपरा नि राई....... २
कै मुख से मि करूँ अपरू किं बड़ाई

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 21
ये ईजा

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

बगदि हि गैई बगदि हि गैई उमरी की रेल
सम्लोंणाया रैगे बस गैल
कैल नि लगे सकिंन

दियू बाती जनि बल्दी ही रैई
हम आंधरा रैगे बस छैल
कैल नि लगे सकिंन

बोल्दा रंयां सब बचादा…२ चली गयां
चुप रैगे हम आपरी ही दैर
कैल नि लगे सकिंन

कैल नि लगे सकिंन
ये ईजा जीयु की कथा कै दगड
कैल नि लगे सकिंन

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 20
हे भूली आणु छों मि घारा

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान
सिन्कोली ऐ जावा भैजी सुखान लगी बोई बाबा जी का परान
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

जब भ्तेक आप गयां भैजी ऐ पाड़ थे छोड़ि कि
ना नींदि आंदी ना राति जांदी खटलु कु बोई कू सिरनु अब छुईं लगान्दी
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

उजाड़ा पुंगड़ी भैजी यकुली किले की बिरानी वहैगे
गढ़देश कु पाणी भैजी हम दगड हे किले बैमानि वहैगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

ना क्वी शौक रेगे भैजी किले हमरी शान हर्ची गे
आलू प्याज टमाटर हो भैजी अब पाड़ा मा भैर भतिक ऐंन लगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 19
जीकोडी गीत गाणी लगी

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

माया लगानि लागि
माया दिखाण लागि
माया माया दगडी ,ब्चान लागि
बैठी छ्या वा यकुली कख जान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

भितर ,भैर आन लागि
मुखडी मा वा छान लागि
मायादार छुईं लगान लागि
कु व्हाली वा जीं थे जीकोडी जीकोडी मा छिपान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

आपरी मा वा रैन लागि
सुप्नियों गैंना गठ्यान लागि
कैंकी खुद विंथे आन लागि
बैठी बैठी कबी हैसेंन कबी रुलाण लागि …… हो

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 28
जब तू नि हूंद

जब तू नि हूंद समण
जियु कैथ तू खोजद

भैर खोजी भीतर बी देकि
देक ना तू देके क्ख्क बी
मन मा मेरु थारो नि लागि
ना देके ना जब तक तेरी मुखुड़ी

जब तू नि हूंद समण
जियु कैथ तू खोजद

कया करदु मी ना मीथै पता
यकुलु कण के जगण तू ही सिका
झट ऐजा दौड़ी सारू देजा
ना त ये पराना चली ते छोड़ि क आच

जब तू नि हूंद समण
जियु कैथ तू खोजद

खैलू मा तू समण बी तू
अग्ने बी तू मेर पिछने बी तू
तू ही तू चैणी बस म्यारा दगड
ये संसार तेर साथ ही रचण

जब तू नि हूंद समण
जियु कैथ तू खोजद

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July 31
टिप टिपदा रैग्या

टिप टिपदा रैग्या
अँखियुं मा सदनी
चम चमकणारा गैना

अंधार सरगा मा
आच जुन्याली पौडी च
तू बी टिपणा कु ऐजा भैना

बैठी जा साथ म्यार
देक ले वो आकास मा
आच देके जाला बाबा बोई

दोई छुईं ऊ लगाल
दोई छुईं हमणु लगाण
इनि ई खैरी का दिन बीती जाला

टिप टिपदा रैग्या
अँखियुं मा सदनी
चम चमकणारा गैना

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 31
यु जियु दगडी मिथे

कया हुनु कया हुनु
यु जियु दगडी मिथे
ऊ मी दगडी बचान लगे
मी ये दगडी बचान लग्युं

बादल जनि पंख लगि
ऊ यूँ उकाल उड़णु लग्युं
गद्न्युन जनि वेग आण लगि
ऊ ये ऊंदार बोगणयूं लग्युं

कया हुनु कया हुनु
यु जियु दगडी मिथे
ऊ मी दगडी बचान लगे
मी ये दगडी बचान लग्युं

कबि जानू यख कबि वख
ये जियु बौल्या बथा कया तू खोजनु लगे
इनि बी कया तेर चीज खवाई
जै थे में दगडी ही छुपानु लगे

कया हुनु कया हुनु
यु जियु दगडी मिथे
ऊ मी दगडी बचान लगे
मी ये दगडी बचान लग्युं

रंग आणु लगे फूली खिल्ना लगे
यकुलु हास्नु लगे यकलु रुनु लगे
कंन ये जियु थे रोग लागि
माया माया थे अब बुलानी लगे

कया हुनु कया हुनु
यु जियु दगडी मिथे
ऊ मी दगडी बचान लगे
मी ये दगडी बचान लग्युं

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 2
अब्द द देर व्हैग्याई

बस्ग्याल ऐंदु
जीयु धक व्है जांदू बोई धक व्है जांदू
बस्ग्याल ऐंदु

कै डारा कै घारा काल ऐजांदू
बादल चिरडयाना किले किले की ये फटना बोई किले की
बस्ग्याल ऐंदु

कैकि नजर लागि
किले की विपदा की इन घड़ी ऐ ये पाडा बोई किले की
बस्ग्याल ऐंदु

उचण्डू उकेरु
भगवती की मंडाण जागेवों कै देब्तों थे मनऊं बोई कै देब्तों थे
बस्ग्याल ऐंदु

अब्द द देर व्हैग्याई
पाडा ते बमों धामोंन सुरुंगुन खैनु गैल कै द्याई बोई गैल कै द्याई
बस्ग्याल ऐंदु

बस्ग्याल ऐंदु
जीयु धक व्है जांदू बोई धक व्है जांदू
बस्ग्याल ऐंदु

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