Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 69221 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
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तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा
भागा का रेखा जोड़्यां ये हता देकि जा ना इनि भागी जा
तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

फूलूं मा फूली बुरांस ये डंडियों भेंटि जा
चुब्ला ये कांटा खुठ्यूं का आस पास देकि जा ना इनि भागी जा
तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

त्यूं डंडीयुं चलूँ मा भेटीलू तू मेरु आक्सा भेंटि जा
बस फलणु पड़लु ते थे ये पाड़ा कु उकालु देकि जा ना इनि भागी जा
तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

गढ़ के ऐ पार गढ़ के वै पारा पीड़ा विपदा खैर कु दुधार भेंटि जा
ऐ मा मिलालु खिलालु बहारलू अपरू परेम देकि जा ना इनि भागी जा
तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा
भागा का रेखा जोड़्यां ये हता देकि जा ना इनि भागी जा
तेरु नौऊ दगड़ी जोड़्यूं मेरु नौऊ लेकि जा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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विता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 31
सन्जोल्यां ये थे अपरा बणी कि

चल देख्युंला सुप्निया मिली कि
सन्जोल्यां ये थे अपरा बणी कि

ये ढुंगों पाड़ो को देश च म्यारु
ये गद्नियों छालों को देश च म्यारु

चल पूजील्यां हम दोईयां मिली कि
सन्जोल्यां ये थे अपरा बणी कि

माया ये छोडि ले ये माय देश बान
सोचि समझी ले जरा अपरो बान

चल ये माटा मा दोईयां मिली कि
सन्जोल्यां ये थे अपरा बणी कि

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 30
खुद इनि लगणी

नौनु
खुद इनि लगणी
मिथे म्यारा डंडी कठियों की
जिकोड़ी रुनी चा
आंखि दगड़ि छुईं लगे की
खुद इनि लगणी

नौनी
मेरु पाड़ा मेरु घार
ऐ जा गेल्या हेरदु ऊकाळ
जैकी तिल कया च पैई
हमुन यख तू छे खोयी

नौनु
बैठ्युं छों मी याकलू यख
बैठ्याँ वाल वख तुम दगडी सब
मेर जीयु बोल्दु याकलू मैसे
चल बौडी ले जियु झक मेरा सब

नौनी
क्द्गा इनि मन मारीलू अपरा
सरया जिंदगी इन खची रालु
बण चखलु झट उडिले ये सरग
झख कपाट खोलला वख देव भूमि स्वर्ग

नौनु
खुद इनि लगणी
मिथे म्यारा डंडी कठियों की
जिकोड़ी रुनी चा
आंखि दगड़ि छुईं लगे की
खुद इनि लगणी

नौनी
मेरु पाड़ा मेरु घार
ऐ जा गेल्या हेरदु ऊकाळ
जैकी तिल कया च पैई
हमुन यख तू छे खोयी

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 29 · Edited
बात मेरी छूची तिल

बात मेरी छूची तिल
किले नि बिंगेई
मेरी बोली से तिल
मी थे किले नि पछाणा न

मी छों पाली धारा को
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाला को …२

तेर आंखीं देकि क
तेर छूईं सुनिक
हिंदी का तेरा टुटा फूटा बोल
लुछी गे तू मेरु जियु
गढ़ भाषा जब तिल बोलिक

तू छे कै गँवा की
ये उत्तराखंड कु कै गढ़ा धामा की

हेरदी मि रैंदु ते थे
वो पन्देरी औ सड़की मोड़ जिथे
जख बि ते दगड भेंटि व्है जाली
ये बोई मेरा चित थे
तू कंडली सी कुदगली लगे जाली

तू छे अल छला की मी छों पल छला कु
ये देव भूमि उत्तराखंड घारा कु

बात मेरी छूची तिल
किले नि बिंगेई
मेरी बोली से तिल
मी थे किले नि पछाणा न

मी छों पाली धारा को
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाला को …२

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 28
हे मेरा भागा का मणि

हे मेरा भागा का मणि
क्ख्क तुम लुक्यां छन
काळा धगा मा काळा मणि बाँधी की मि थे
क्ख्क तुम लुक्यां छन
हे मेरा भागा का मणि

अब आला कब आला
दिसा पिछने दिस भगणा छन
कन कै की पकड़ी लू लू गैंया दिस देकेन बी ना
क्ख्क तुम लुक्यां छन
हे मेरा भागा का मणि

कन आंधारो पौड़ी ये पाड़ा
जिकोड का ये घेरा मा
जुगनी सी चम चम केनी उजाला मा तुम देकेन बी ना
क्ख्क तुम लुक्यां छन
हे मेरा भागा का मणि

हे मेरा भागा का मणि
क्ख्क तुम लुक्यां छन
काळा धगा मा काळा मणि बाँधी की मि थे
क्ख्क तुम लुक्यां छन
हे मेरा भागा का मणि

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 27
झक झक लगी रैंदी छे बोई मेरी

झक झक लगी रैंदी छे बोई मेरी
कैर छे मिल बालपन जब बी उछेदी मिन

ऊं रौलों डंडा खोलों कफ्ला हिस्सोंला पक्यां
झट कैर मित्रा चल फाल मार तिपद चल्यां

बासँ अजांडू आमा डाली सर झम्पा मरायां
हौज पंतेद्र कन डुबकी मैरी की तिस बुझयाँ

बल्दू गौडू बकरु थे हाक दे चल घासु चरै
उजाड़ा पुंगडु मा खर फर वे हौलु निस्डे

खुद आंदी आंदी तेरी बोई बालपन वा उछेदी मेरी
तेर देलकनि अब भी रुळन्दी खटलु मा पौड़ी पौड़ी

झक झक लगी रैंदी छे बोई मेरी
कैर छे मिल बालपन जब बी उछेदी मिन

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 26
अब मेरु ये मने ना

मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना
देकि, देकि ना ये तेर मुकड़ी
आच कन ये दिन जाने आच
मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना

भेंटि भेंटि जा
माय कु ये गौं मा आच
फुली ला फुली ला
जब हैंसी ली तेरी गलोड़ी जब
मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना

ना रूस ना रूस
सुधि मैंसे तू इनि आच
तू छे तू छे मेरु जीयु मेरु जां
झट ऐजा दौड़ी की मेर पास ऐजा झट
मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना

मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना
देकि, देकि ना ये तेर मुकड़ी
आच कन ये दिन जाने आच
मन यु मन यु
अब मेरु ये मने ना

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
August 24
माँ भगोती

माँ नंदा नंदा माँ माँ भगोती
मेर लाडो झट ऐजा तेरा मैती माँ बाट जोहोती

बारा बरस ते थे हेरदी अांखा माँ
ये हिंवाळु कैलाश छोड़ी दरस दे जा माँ
देक सबुन हात जोडी

माँ नंदा नंदा माँ माँ भगोती
मेर लाडो झट ऐजा तेरा मैती माँ बाट जोहोती

उत्तराखंड पह्ड़ा की बेटी माँ
देक त्यार स्वागत मा सजी गे माँ डंडी कंठी
तू टक ऐजा दौड़ी

माँ नंदा नंदा माँ माँ भगोती
मेर लाडो झट ऐजा तेरा मैती माँ बाट जोहोती

देक भेंटि जा अपरा मैती बोई बाब
दादा भुलु अपरू ये समाज थे ये बोई माँ
खेली जा यक हैंसी खेली

माँ नंदा नंदा माँ माँ भगोती
मेर लाडो झट ऐजा तेरा मैती माँ बाट जोहोती

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दर्द मेरे पहाड़ का

खाव्ब टूटे पड़े हैं
आप रूठे खड़े हैं

दुनिया मेरी लूटी गयी है
मिट्टी मेरी खोदी गयी है

कौन आ के रोक देगा
हल्का सा जो टोक देगा

आंख के अन्धे लगे हैं
मुहं के गूंगे खड़े हैं

कान के परदे फटे हैं
सुरंग से गोल छेद गये हैं

सतह से मैं कट गया हूँ
धमकों से उड़ रहा हूँ

गुमसुम खाली हो रहा हूँ
बस इंतजार कर रहा हूँ

कौन आ रहा है
बस सभी जा रहे हैं

खाव्ब टूटे पड़े हैं
आप रूठे खड़े हैं

एक उत्तराखंडी

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दर्द मेरे पहाड़ का

खाव्ब टूटे पड़े हैं
आप रूठे खड़े हैं

दुनिया मेरी लूटी गयी है
मिट्टी मेरी खोदी गयी है

कौन आ के रोक देगा
हल्का सा जो टोक देगा

आंख के अन्धे लगे हैं
मुहं के गूंगे खड़े हैं

कान के परदे फटे हैं
सुरंग से गोल छेद गये हैं

सतह से मैं कट गया हूँ
धमकों से उड़ रहा हूँ

गुमसुम खाली हो रहा हूँ
बस इंतजार कर रहा हूँ

कौन आ रहा है
बस सभी जा रहे हैं

खाव्ब टूटे पड़े हैं
आप रूठे खड़े हैं

एक उत्तराखंडी

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