झणी क्ख्क गैनि वो दिन
झणी क्ख्क गैनि वो दिन , बोल्दा छन तेरा बाट मा नजरि थे अपरि हम बिछोला
झणी जख क्ख्की बि तुम रहु , माया लगुंला तुम दगड़ी सरि उमरी
तुम थे ना बिसरी जौंला
म्यारा खुटा जख भी हिटा, अपर बणाई मी थे दगड़या नि...... २
मी थे रुले रुलेगे , जांदी विं फूलो कि फुलार नि
झणी क्ख्क गैनि वो दिन …
अपरा नजरि मा आच भोळ दिन बि अंधारु रात छे...... २
छैलू म्यारा दगड़ छे ,छैलू म्यारा दगड़ी छे
झणी क्ख्क गैनि वो दिन …
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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