Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 106518 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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लुक्युं रोलू ऊँ चलूँ

लुक्युं रोलू ऊँ चलूँ
आँखा भ्तेक भुंया ना पौ डू

माया भोरि संभाली ले
अपरा अंग्वाल समैई ले

कुटुंबदरी जिम्मेदरी
बोई आच खुद भांड्या आणि

लुक्युं रोलू ऊँ चलूँ
आँखा भ्तेक भुंया ना पौ डू

एक लेन्दा गौडू
बिस सेर अन्नाज कु पुंगडु

बुकि तिसि पुट्गी
बस चवलों को मांडू

बचे राखी सेर
मि आणु छों घारू

लुक्युं रोलू ऊँ चलूँ
आँखा भ्तेक भुंया ना पौ डू

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मोदी आणा छिन

पियारी बिमला
एक बात सुणी ले
मोदी आणा छिन
अब खाब बुनी ले

पैल त गैरसैण थे
गढ़ की राजधानी बनलु
गढ़ देशा का बिकासा
का मी बाट खुल्लू

पियारी बिमला
इन सुधि ना बैठी
मोदी आणा छिन
चल झट काम मा लागि

दुजुं दज्युं पलायन थम लू
काम काज रस्ता ये उकलू थे देकलु
गढ़ की आम्दानी गढ़ मा ही राली
गढ़बोली मेरी एक भाषा बणाली

पियारी बिमला
आरती की तालु सजे ये
मोदी आणा छिन
झट तू अरसा पके ये

तीज्युं काम बेटी ब्वारी थे द्यूं लू
नाशा बंदी ये शराब छोड़ी गढ़ थे बचलु
ना क्वी कुम्या ना क्वी गढ़वाली
सबु थे मी उत्तराखंडी बनलु

पियारी बिमला
चल झट झट कै दी ये
मोदी आणा छिन
बल ऊँ का बाट हेर दी ये

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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अचु दीण आणा वाला छिन

अचु दीण आणा वाला छिन
बद्री-केदार दैणा होंण वाला छिन

इन हिंवाल चलूँ इन बगति बथों न
हम थे बाथे हम थे दिके

अचु दीण उकालु का बाटा आणा छिन
हमार दगड़ा दगडी हिटणा आणा छिन

आसा दीप ना बुझे जिकोड़ी थे ना झुरै
जगौदी रे बत्ती ब्लेदी रे

अपरा परे थे सब थे बथे सबु थे सुने
मौल्यार का गीता गाणा छिन

ढोल दामू हडूकी थकलू बजे नरंकार मने
सबु थे असिस देता आणा छिन

अचु दीण आणा वाला छिन
बद्री-केदार दैणा होंण वाला छिन

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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फिर बरसी गे बरखा.

फिर बरसी गे बरखा
आच मेरा पाडे मा
ऐ पाडे मा मेरा
कूड़े का घारे मा
फिर बरसी गे बरखा.....

काला काला बादल छैगी
चाल चमकी जीकोडी दारा
आंधरु बाटों ऐकि
ऐ राता तू किले रुलेगे
फिर बरसी गे बरखा.....

बैठी छे आस मा
कुचली का साथ मा
आंखियों मा देकि कया
बरसा थाकि हरी छे
फिर बरसी गे बरखा.....

फिर बरसी गे बरखा
आच मेरा पाडे मा
ऐ पाडे मा मेरा
कूड़े का घारे मा
फिर बरसी गे बरखा.....

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
 
अब मेरा पहाड़ मा

अब मेरा पहाड़ मा
नि देकेंदु नि देकेंदु बोई क्वी अपरू

देके बी जाली जाली त
देके जांद बल बल वै दगड बस हैर माया कु पुट्लू

नि देकेंदु हर्ची गेन ऊ सेवा सौंळी का गैंणा
रीत बणी नटेलि ब्योलि जनि आच ब्यो भोळ परदेश गैनी

लुक्यां लुक्यां कांस्य कु दूध कू गिलास
आव भगत ऊ सदनी पुरैनी अपरुँ का ऊ शिस्टाचार

पीठेई पिंगली नि रैगे चवलों दानो कख दौड़ी गे
मनखी अपरा अपरा मा मस्त तुण्ड पहाड़ कूड़ों कू हलौ खसतौ

भेद उपजे जिकोड़ी सबि शतरंज कि चालों मा रंत
नींद नि आणि बोई पैल जनि पैल जनि ऐ जांद छे सबी भै निरजक सै जांद छे

अब मेरा पहाड़ मा
नि देकेंदु नि देकेंदु बोई क्वी अपरू

देके बी जाली जाली त
देके जांद बल बल वै दगड बस हैर माया कु पुट्लू

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 1
माटु रै

कुच त बोल तू
भेद उघड़ी मन का
कुच त बोल तू
माटु रै

ना सुदी बैथि रै
ना लूटयूँ रै तू
लिपी रै
माटु रै

सरीर साथ तू
अचु बुरु भाग तू
मेरु ज्यूंदगी कू
माटु रै

हैंसी खेळी
चत कखक गैनी
रुयै रुळै की
माटु रै

दगड्या तू दगडी
मौल्यार ऐ तैमा
कबि उजाड़ा ऐ
माटु रै

बरखा नचे कबि
घाम मा हाल वै
ह्युंद मा जमे
माटु रै

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पौड़ी मा

पौड़ी मा मनस्वाग ल्ग्युं चा
रै बेटा क्खी यकुली ना जैई

ईं जिकुड़ी मा फ़िक्र दढी चा
रै बेटा बोल्यूं मेर मानी

खानि-पीनी यख मेरी हर्ची चा
रै बेटा इनि जिंदगी मेरी

पाड़ा मा सारू सोर ल्ग्युं चा
रै बेटा कंन कटना वाला तुम कुटमदरी

उत्तराखंड सरकार निरजक सीेंईं चा
रै बेटा मेर यख निंद उदी चा

पौड़ी मा मनस्वाग ल्ग्युं चा
रै बेटा क्खी यकुली ना जैई

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क्ख्क धरियूंच बल

क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२
खोजी खोजी थाकी गीयुं
मैटी मैटी पाकी गीयुं
क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२

माया तेरी आंखियों कि
दिके ना दिकेई दे ,दिके ना दिकेई दे
हाथ खुठा कि पैजनी चूड़ी
किले बल तिल लुकेई दे ,किले बल तिल लुकेई दे

क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२
खोजी खोजी थाकी गीयुं
मैटी मैटी पाकी गीयुं
क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२

बथे दे ना तू लुके
सुरुक ये आंखियों थे ना झुके तू
पुड़न देईं बल यूँ आंखियों थे बी
सु नींदि ऐन दे ये जिकोड़ी करार

क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२
खोजी खोजी थाकी गीयुं
मैटी मैटी पाकी गीयुं
क्ख्क धरियूंच बल
संभलिक तिल ……२

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
May 27
कैन बोली कैल बोली

कैन बोली कैल बोली
यकुल छों मि यख
म्यार दगडी छन म्यारा गेल्या छन
मेरा डंडा कांठा ये पाड़ा
मेर भूमि मेर माय भूमि
ये जल्म भूमि

रीता रीता दिख्यां तुम थे यख
मनखी तुमरि रीती व्हाली
लगदी मि ठीक नि देकेंदु तुम थे
या तुमरि नजरि मा खोट

झर झर बगदा गद्न्या झरदा
विनी रौंतेला मुल्क रौंतेला लोक
नि पछाण पाई नि जाण पाई तू
तेर मन छुप्युं व्हालु क्वी लोभ

देक माया पसरीच
ढुंगा गार गार छाल मा अटकी च
न देकि बोई बोबा का जोग
कंन क्ख्क भोगलो ये भोग

कैन बोली कैल बोली
यकुल छों मि यख
म्यार दगडी छन म्यारा गेल्या छन
मेरा डंडा कांठा ये पाड़ा
मेर भूमि मेर माय भूमि
ये जल्म भूमि

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May 26
मोदी आणा छिन

पियारी बिमला
एक बात सुणी ले
मोदी आणा छिन
अब खाब बुनी ले

पैल त गैरसैण थे
गढ़ की राजधानी बनलु
गढ़ देशा का बिकासा
का मी बाट खुल्लू

पियारी बिमला
इन सुधि ना बैठी
मोदी आणा छिन
चल झट काम मा लागि

दुजुं दज्युं पलायन थम लू
काम काज रस्ता ये उकलू थे देकलु
गढ़ की आम्दानी गढ़ मा ही राली
गढ़बोली मेरी एक भाषा बणाली

पियारी बिमला
आरती की तालु सजे ये
मोदी आणा छिन
झट तू अरसा पके ये

तीज्युं काम बेटी ब्वारी थे द्यूं लू
नाशा बंदी ये शराब छोड़ी गढ़ थे बचलु
ना क्वी कुम्या ना क्वी गढ़वाली
सबु थे मी उत्तराखंडी बनलु

पियारी बिमला
चल झट झट कै दी ये
मोदी आणा छिन
बल ऊँ का बाट हेर दी ये

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