Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 106537 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कैन बोली कैल बोली

कैन बोली कैल बोली
यकुल छों मि यख
म्यार दगडी छन म्यारा गेल्या छन
मेरा डंडा कांठा ये पाड़ा
मेर भूमि मेर माय भूमि
ये जल्म भूमि

रीता रीता दिख्यां तुम थे यख
मनखी तुमरि रीती व्हाली
लगदी मि ठीक नि देकेंदु तुम थे
या तुमरि नजरि मा खोट

झर झर बगदा गद्न्या झरदा
विनी रौंतेला मुल्क रौंतेला लोक
नि पछाण पाई नि जाण पाई तू
तेर मन छुप्युं व्हालु क्वी लोभ

देक माया पसरीच
ढुंगा गार गार छाल मा अटकी च
न देकि बोई बोबा का जोग
कंन क्ख्क भोगलो ये भोग

कैन बोली कैल बोली
यकुल छों मि यख
म्यार दगडी छन म्यारा गेल्या छन
मेरा डंडा कांठा ये पाड़ा
मेर भूमि मेर माय भूमि
ये जल्म भूमि

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 10
झगलु तेरु मेरु पाड़ कु

झगलु तेरु मेरु पाड़ कु
गीत लगे दे छोरी मेरु घार गौ

ये बिगरेली बांद कै गौं कु
ई सुरमा सुरेली पाल्या डंग गौ

मोडमा बंधा साफ रंग लाल कु
बुरूँसी फूली कु फुल्यार गौ

चूड़ी हाता काला माणी गौल कु
ये च पौड़ी बाजार मौल्यार गौ

माथा बिंदी की उज्याल कु
ये म्यारा मुल्का बेटी ब्वारी गौ

झगलु तेरु मेरु पाड़ कु
गीत लगे दे छोरी मेरु घार गौ

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
8 hours ago · Edited
ढोल दामू बजनि

ढोल दामू बजनि
देका गढ़ नैरना थे नच दी
आच ब्याळि देकि गैरसैण मा
मेर पाड़ा की दैन मा

कंन नेतों की फौज ये
दूँन घाम छोड़ी सैण की मौज ये
पिंगली जलेबी की तौल मा
मेर पाड़ा की दैन मा

राज कु बिचार च यु
धानी कु बस खैल मा
बल की दोई दिन की सैर मा
मेर पाड़ा की दैन मा

ढोल दामू बजनि
देका गढ़ नैरना थे नच दी
आच ब्याळि देकि गैरसैण मा
मेर पाड़ा की दैन मा

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
2 hours ago
एक दिनी सब भेंटि जुँला

वे माटा मा वे छला मा
गंगा जी की बगति लाटा मा
म्यारु उत्तराखंड म्यारु घारा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

रै क्ख्क बि मी
मेरु जीयु बस्युं मेरा पहाड़ा मा
यूँ उजाडा डंडा कांठा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

फूली जोंला प्योंली बुरंसी जनि
पाकी की खै जोंला हिसोंला किन्गोड़ा काफल जनि
चांदी जन चमकी जोंला ऊँ हिवांली का माथा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

वे माटा मा वे छला मा
गंगा जी की बगति लाटा मा
म्यारु उत्तराखंड म्यारु घारा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
Yesterday
आपरी सी लगणीचा

आपरी सी लगणीचा
ये जिंदगी कनि गैरी चा

अर्धि व्हैकि
भोरिकी की देकेनि चा
बोई बाबा की जनि देलकनि चा

आपरी सी लगणीचा
कंन ये जिंदगी दैली फैली चा

अपुरी कथा कैनि चा
माया कु ऊ थैलू थलगनु चा
सबुथे पिछने पिछने ले जानि चा

आपरी सी लगणीचा
बिरानी किले कै जाणि चा

उकलू कु बाटू चा
उन्दरु कु गीत किले गाणु चा
निसडु मन की गति चा खिंची की ले जनि चा

आपरी सी लगणीचा
ये जिंदगी कनि गैरी चा

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 22
गिर गिर लागि बरखा

गिर गिर लागि बरखा
झिर झिर कै गे बरखा

जिकोड़ी थे भोरिकी
कीलै जीयु थे यकुली कै गे बरखा

सौंण की लागि बरखा
घाम मौली की दणमण बरखी गै बरखा

हेरदी रै गे घेरदी रै गे
चलूँ भ्तेक चुल्दी रै गे बरखा

मनखी भीतर मा लागि बरखा
तँसूँ सूखे गे किले सुरख च्ल्गे बरखा

उकलुँ थे तू छोडी कि
तू बि क्ख्क रौडी दौड़ी गे बरखा

म्यारा पाड़ों की ये बरखा
उजाड़ा डंडा कंठों की बरखा

गिर गिर लागि बरखा
झिर झिर कै गे बरखा

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 13
कैल लेकियूं हुलु इंन यूँ का भाग

कैल लेकियूं हुलु इंन यूँ का भाग
एक हात दिनी एक हाती रात

ना जागी पैई ना सै पैई
ना थिक से अन्न ईं पुट्गी गैई

मेरा पाडे कि वा बेटी ब्वारी
वा रे इंन हाथों की दाती

क़मरी कसी मोंड साफा लिप्टयूं
थग्ल्यू धतुली बोूलज्या सिल्युं

ना कै चीजा कि फरमाइश करींचा
जो मिल्युं चा वा संभलयूं धरयूं

मेरा पाडे कि वा बेटी ब्वारी
कबि थाकि की कबि ना उफा कैरीं च

जित्ग मि यूँ परी लिखयुलू
उत्गा बि मेरु लिख्युं काम पड़लु

मेर पाडे की भगवती बाल कुँवारी
यूँ रक्षा कैर जागृत देब्तों कु ठों हमारी

मेरा पाडे कि वा बेटी ब्वारी
उत्तराखंड गढ़वाल कुमो की नारी

कैल लेकियूं हुलु इंन यूँ का भाग
एक हात दिनी एक हाती रात

आभार फूटो: श्री महि सिंग मेहता भूल

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
June 23
आपरी सी लगणीचा

आपरी सी लगणीचा
ये जिंदगी कनि गैरी चा

अर्धि व्हैकि
भोरिकी की देकेनि चा
बोई बाबा की जनि देलकनि चा

आपरी सी लगणीचा
कंन ये जिंदगी दैली फैली चा

अपुरी कथा कैनि चा
माया कु ऊ थैलू थलगनु चा
सबुथे पिछने पिछने ले जानि चा

आपरी सी लगणीचा
बिरानी किले कै जाणि चा

उकलू कु बाटू चा
उन्दरु कु गीत किले गाणु चा
निसडु मन की गति चा खिंची की ले जनि चा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
 
एक दिनी सब भेंटि जुँला

वे माटा मा वे छला मा
गंगा जी की बगति लाटा मा
म्यारु उत्तराखंड म्यारु घारा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

रै क्ख्क बि मी
मेरु जीयु बस्युं मेरा पहाड़ा मा
यूँ उजाडा डंडा कांठा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

फूली जोंला प्योंली बुरंसी जनि
पाकी की खै जोंला हिसोंला किन्गोड़ा काफल जनि
चांदी जन चमकी जोंला ऊँ हिवांली का माथा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

वे माटा मा वे छला मा
गंगा जी की बगति लाटा मा
म्यारु उत्तराखंड म्यारु घारा मा
लठ्याला
एक दिनी सब भेंटि जुँला

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
30 minutes ago
अद बाटा मि

अद बाटा मि कन की अड़े गयुं
झट गौं घार गढ़वाल छोड़ी सुरुक अटकी गयुं

अब नि लगदु जियू मेरु यख
कया करना व्हाला ऊ म्यारा बिगेर वख

कन धोँ मची छन ये जीकोडी की गेड मा
झट सियुं की चट उठी ग्युं जनि कै डैरा मा

औंद औंद बुल्दा रों ऊ फुँद फुँद जाँदा रै
अद रति देकी टूटी ये स्पुनिया आच मि धैय लग्ना छिन

ये बोई ये बाबा जी मेरा आप आच याद आना छिन
मि थे थे किले ये भास ऐ ऐकी किले इनि झुराणा छिन

स्वास भोरी गे नब्ज जामी गे
आँखों का धारा छूटी की आच मि रुलेगे

खोयुं छों बस ऊँकी खुद मा
म्यार गों गोठ्यार म्यारा मुल्की की बाटा मा

अब बी
अद बाटा मि … ध्यानी

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