Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 63976 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
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खैल कै दे बोई

जिकोड़ी पीड़ा बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी
रैगे ऊ अपरू अंग्वाल मा
अपरू ही चुल्दु पाणी बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी

घुट घुट घुटैण्डीदी रै
कै थे भटैण्डीदी रै
जिकोड़ी कू घूरघूर ये
गुळ मुळ झुरैन्दी रै
विंकी हिरकिरी बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी

रन्या सब आपरी मा
मौल चवलों की चाकरी मा
वे धेढपढ़ी कैन यख पढ़ी
ठुख ठुख बजदा रंयां बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी

जरा सा मलास दे
ईं थे तू थोडु सा ध्यास दे
अपरी मा ही बसी चा ये
कूच त ना बस खैल कै दे बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी

जिकोड़ी पीड़ा बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी
रैगे ऊ अपरू अंग्वाल मा
अपरू ही चुल्दु पाणी बोई
कैल णी समझी , कैल नि जाणी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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निर्दयी जिकोड़ी

हे गेल्या
ना हेरी ना
मेरा बाटों थे ना हेरी ना

निर्दयी जिकोड़ी दगडी ना बांध ना
बांध ना येथे ना इनि ना
ये माया की गेड़ी ना इनि ना

हे गेल्या
ना हेरी ना
मेरा बाटों थे ना हेरी ना

जांण दे मी
ना दे हाक ना रोकी ना
रोकी ना मेरे खुटी थे तू ना टोकी ना

हे गेल्या
ना हेरी ना
मेरा बाटों थे ना हेरी ना

दूर जानू मी
तैसे दूर जानू मेर आँखि मा
इनि देकि ना गेल्या इनि देकि ना

हे गेल्या
ना हेरी ना
मेरा बाटों थे ना हेरी ना

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 4
इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी

इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी
जनि मेर पाड़ा ये मेरा हिमाला
जनि बगनि बोई यख गंगा की धारा
ये मेरु कुमौ -गढ़वाल

इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी ...............जिकोड़ी मेरी

बुरांस जनि लाल रंग रंगी मेरु देब्तों कु माथा
जनि मेरु कुल देबता नरंकार
फ्योंली का पिंगला रंग जनि पसरी यख
हमरु रीती रिवाज हमरु गौं घारा

इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी ...............जिकोड़ी मेरी

ना हुंदु बड़ो कबि ना अंदि ये अकल दाडा
ना छूट द गढ़देश मेरु ना मेरु पुंगड़ू ना ये डंडा कांठा
चकुलु जनि नि बैठ दूँ रान्यूं ये डाला वे छाला
बाल मन जनि जीयु हुँदु मेरु हे मेरा माया देशा

इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी ...............जिकोड़ी मेरी

बिछो कु दुःख क्या हूंद सुण रे मेरु उकाला
दणमण नि रुन्दा ये आंसूं कू रेन्दु मेरु पासा
हेर दी ना वा फेर दी दाणी हाती मलस दी ये माथा
इनि नि भाग मेरु बल कया लिक ये मा बिधाता

इन हुन्दी जिकोड़ी मेरी
जनि मेर पाड़ा ये मेरा हिमाला
जनि बगनि बोई यख गंगा की धारा
ये मेरु कुमौ -गढ़वाल

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 9 · Edited
लग्गे मड़ाण मौरी कू

पांडव जी आव बैठक लगवा
बैठक लगवा पांडव जी आव

उत्तराखंड भूमि जिला पौड़ी गढ़वाल
गगवाड़स्यूं पट्टी ग्राम तमलगा कुंजेठा मा

पांडव जी आव पंगत लगवा
पंगत लगवा पांडव जी आव

छै मास बेला २२ गते मार्गशीर्ष अ
भैरव मंदिर सजावा मंडाण लगाण

पांडव जी आव नाच लगाण
नाच लगाण पांडव जी आव

माहौरु लगाण भूमि सजाण
बांज पड़ी भूमि हैराली पशरयांण

पांडव जी आव एक डाली जमावा
एक डाली जमावा पांडव जी आव

कुसमा कु यौवन नारयण भूलेंण
रुपेणा बिसरेण राजपाठ गवेंन

पांडव जी आव नारयण याद दिलाण
नारयण याद दिलाण पांडव जी आव

रैबार पूछेनी हस्तिनापुर दरबार
दीदी कुंती ने बचन दिनी माहौरु लगाण

पांडव जी आव अपरा बचन निभावा
अपरा बचन निभावा पांडव जी आव

हैरी भैरी व्हैगे धरती रुपेणा मिले नारयण
ज्यूंदल पुजावा चवालों हल्दू पांडव न्यूत लगाव

पांडव जी फिर आव बारहा बरसा बाद
डाली जमी गे आज २२ गतै अषाड़ प्रस्थान करा सरकार

एक उत्तराखंडी

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 10
रैग्युं मी बिस्तरा भीतर

कोय्डी पौडीच ,कोय्डी छंईंच
म्यारा डंडा कठियों मा
म्यारा हिमवंती पहाड़ों मा .......... २

झिर झिर ऐगे घिर घिर ऐगे
मनख्यूं का दार कैलाश का घार
पैंयां पडन बद्री-केदार

म्यारा डंडा कठियों मा
म्यारा हिमवंती पहाड़ों मा .......... २

बयार बथों की सर सर सरहट
चखुला उडण गुणि यूं चखलाट
जंगलात कैगे हैंरू नचण छन भैरो

म्यारा डंडा कठियों मा
म्यारा हिमवंती पहाड़ों मा .......... २

भैर-भीतर तितर-बितर
जिकोड़ी मैया व्हैगे छितर छितर
रैग्युं मी सुबेर भतिक बिस्तरा भीतर

कोय्डी पौडीच ,कोय्डी छंईंच
म्यारा डंडा कठियों मा
म्यारा हिमवंती पहाड़ों मा .......... २

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
July 11
बैठ्युं छों

बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा
चिनी दूध चैय की पाती की गुडगुड़ी मा
बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा

कांसे की पिंगली पतेली वा
ताज कांचे की गिलास का एक सुर सुरा ला
बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा

खुदेंनु मीथे ऊ घुल घुल घुटेंनु जी
जिकोड़ी मा जै की माया छलैनु जी
बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा

बोई बाबा भुला भूली पाडे तस्बीर ऐमा
देके जांद चुस्का जिबि मा लगे जांद
बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा

बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा
चिनी दूध चैय की पाती की गुडगुड़ी मा
बैठ्युं छों चैय की दुकनि मा

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
23 hours ago
ऐ जावा ये मेरु संसार च

बस जी
सब कूच ठीक ठाक च
यु जी कु जंजाल च
अत्ग्युं रैग्युं जी मी
ये पिछने भगदा रैग्युं जी

जीकोडी मा ऐगे रेगे
सुपनियों जनि दढ़ी सी
मूल मूल कै की
गोड़ी हैंसी वा दंत पंक्ति जी

बस जी
सब कूच ठीक ठाक च
यु माया को मोंड्यार च
आँखि आँखि की भासा मा
यूँ जियूं मा चढ़ी बुखार च

बौल्या बणु रौलूं हिंडो
किन्गोड़ा हिसोला जनि
विंकी हैंसी मी टिपदा रओं
गद्नियों ये माया बगदि रैंयां

बस जी
सब कूच ठीक ठाक च
यु मेरु माया मा ये हाल च
कया तुम पर चढ़ी बुखार च
ऐ जावा ये मेरु संसार च

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कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी
7 hours ago
हे भूली आणु छों मि घारा

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान
सिन्कोली ऐ जावा भैजी सुखान लगी बोई बाबा जी का परान
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

जब भ्तेक आप गयां भैजी ऐ पाड़ थे छोड़ि कि
ना नींदि आंदी ना राति जांदी खटलु कु बोई कू सिरनु अब छुईं लगान्दी
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

उजाड़ा पुंगड़ी भैजी यकुली किले की बिरानी वहैगे
गढ़देश कु पाणी भैजी हम दगड हे किले बैमानि वहैगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

ना क्वी शौक रेगे भैजी किले हमरी शान हर्ची गे
आलू प्याज टमाटर हो भैजी अब पाड़ा मा भैर भतिक ऐंन लगे
भैजी काय बोलणा आपन क्या चीज आप लान

हे भूली आणु छों मि घारा ते थे क्या लान
बोली दे तू बोली दे झट अपरा गीची खोली दे
हे भूली आणु छों मि घारा

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Yesterday
जीकोडी गीत गाणी लगी

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

माया लगानि लागि
माया दिखाण लागि
माया माया दगडी ,ब्चान लागि
बैठी छ्या वा यकुली कख जान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

भितर ,भैर आन लागि
मुखडी मा वा छान लागि
मायादार छुईं लगान लागि
कु व्हाली वा जीं थे जीकोडी जीकोडी मा छिपान लागि …… हो
जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो

आपरी मा वा रैन लागि
सुप्नियों गैंना गठ्यान लागि
कैंकी खुद विंथे आन लागि
बैठी बैठी कबी हैसेंन कबी रुलाण लागि …… हो

जीकोडी गीत गाणी लगी
कै थे बुलानि लागि ...... हो
कै थे बुलानि लागि ...... हो

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ले जा दगडी मेरु उत्तराखंड मेरु पहाड़

मेरु गौंऊ मुल्कू
माया कू सौंसार
यख मिलालू तेथे दगड्या
प्रेमा कू भंडार

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
देख ले मेरु उत्तराखंड ये च मेरु पहाड़

बगदि छ्ल छ्ल गंगा धारा
ढुंगा ढुंगा मा बस्या देबता हमारा
बद्री- केदारा यख मेरा नरंकार
माँ भगोती कू लगा दे जै कारा

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
पौड जा मथा हो जालु तेरु ऊधार

लाल खिली बुरंसा हैंसी ते देखेली
पिंगला रंगा की नार फ्योंली ते देकि की लज्जेली
किन्गुडा काफल का ये डंडा कांठा मा
देके जाली ते थे सरया धरती ई नटेली

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
ऐगै ई यख तू जब जैलू मी जुलों तेरु साथ

मायादार लोग मिळाल
माया की ही ऊ छुईं ल्गाला
बिखरी पड़ी च सरया धरती मा माया
उकरी सकी उत्गा उकरी की ले जा

ऐजा यख तू ऐजा इक बार
ले जा दगडी मेरु उत्तराखंड मेरु पहाड़

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
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