Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 65340 times)

devbhumi

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धनतड़ाम

इन बी लगदु मिथे
उन बी लगदु
जैल जैल जन बोल द्याई
तन बी लगदु

झट कटिलै घास को
रुमक पौड़ीगे पौर डंडा को
बाघ लगिगे पल छाला को
ज्यू  डरीगे अल छाला को

यख मां बी निछू मि 
वख मां बी निछू
आंखीं न जख जख देखद्याई
तख  बी निछू मि 

देखणा को बांदा थे
छोरा ऐगे  सब दारा को
अब ज्वाणी कख लुकाओं
बालपन छूटगे कै धारा को

मन  लगि इन  मेला मां
कन  लगि गे इन झमेला मां
आज त नाची गैईलू
बल भोळ कया होलु जिबन मां

बालकृष्ण डी ध्यानी
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devbhumi

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माटु  ऐ ज्यू

माटु माटु ह्वैगे ऐ ज्यू
ज्यू तू बता दे तू मि कया करुं
कैथे पठायूं  कैथे रैबार द्यूं
कै दगडी मि अफी से बात करुं

भोरिगे नि वा रिता भांडा
छलै छलै कि ऊ कैगे नि आदा
उतेन्दु कैरी कि ऊन धरींयूँ चा
वै भांडू मां ही ऐ ज्यू अड्यूंचा

रैगी सुदी मेरा ऊ सुपनिया
छूटगे क्वी अगन्या क्वी पिछन्या
कख खोज्यू ऊथे मि ऐ ज्यू
जो बनिगयां अब मेरा सुपनिया

माटु माटु ह्वैगे ऐ ज्यू  ........

बालकृष्ण  डी ध्यानी
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हर्चि राजधानी  बाटा देखणी चा

सबि का सबि  लुबाड़ छिन
हे नेता मेरा पहाड़ का ना ना
(सबि का सबि ऐ दुट्याल छिन) ...२

कथा इनकी इन अपुरि चा
सत्ता मिलि बल जनता धूलि च
अपड़ो समझी बिस्वास कैरी
घात कै जांदी ना लगदी इन थे देरी

ज्यू बी सिरमौर यख ह्वै जांदू
सत्ता का सुख मां किले बिसरि जांदू
कुछ वादा किया छन तुमल
ना गद्दी द्याई हमलु तुम थे घुमण

गैरसैण तुमरि बाटा हेरनी चा
जीकोडी की तुमरी उल्यार देखणी चा
शहीदों का परान इन आस लगेनि
अपड़ा पहाड़ा की  वा बाट देखणी चा

मेर हर्चि राजधानी .....गैरसैण
 
बालकृष्ण डी ध्यानी
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मिथे त इन लागि गैल्या

मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई
म्यारा डंडा धारू मां
कण क्वै ऐ उजाड़ा ह्वैग्याई

सड़की का घेर ईनि घेरयाँ
देखि कि मि त पुरतु चकरी ग्याई
इन घेरों  मां घिरयां हम
हम थे कुच बी समझ नि आई

उन्का इन रिंग रिंगया देखि
कि मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

अगास मां उडद चखुला देखि कि
मिल बी अप्डू पंख फैलेद्याई
इन लमडी मि उन भेटको भतेक
अब बी जोड़ तोड़ मेरु थिक ना व्हाई

दागटरों की फौज देखि की देरहादुन मां
मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

शिक्षा को बल इन हाल च
कख एक विधार्थी चार मास्टर छन
कख चालीस विधार्थी छन
बस  बल जी एक हेडमास्टर छन

इन दूर ब्यवस्था को  देखि कि
मिल समझी बिकास ह्वैग्याई
मिथे त इन लागि गैल्या
कि पहाड़ को  बिकास ह्वैग्याई

बालकृष्ण डी ध्यानी
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खुद थे बदली बदली

खुद थे बदली बदली
म्यारा तौर तरीका बदली गैना

बगत थे इन ना बदनाम करयां
बल जी बस ऐ इंसान बदली गैना

रवाटा को एक टुकड़ा खातिर
मयारू  संसार बदली गैना

इन रितू का नि राखी ख्याल हमुळ
 ऐ जीबन को चाळ बदली गैना

कै छोर खड़याँ छन हम सबि आज
म्यारा पहाड़ बदली गैना

खुद थे बदली बदली  ..................

बालकृष्ण डी ध्यानी
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मेरु पैली लेखी  कबिता

मेरु पैली लेखी  कबिता किलै कि  आखेर ह्वैगयाई
कतगा दौड़ी दौड़ी मि इखलु  कपाली मुंडेर ह्वैगयाई !

भुंया बिखरयां पड्यां  गार ढुंगा  मेरु गैल ह्वैगयाई
फुण्ड  उनद चुलैदे मिल  गार ढुंगा मेरु खेळ ह्वैगयाई !

दुई आंख्युं झौळ  पौड़ी भुंईयां भंडया मैल ह्वैगयाई
कैर  कुडदा कुडदा ऐ  जिन्दगी किलै फेल  ह्वैगयाई !

फोन लगाण कोशिश जुटयां रयाँ औरृ रूमक ह्वैगयाई
अंध्यारु दियू  बलिगे इन लागि कि सुबेर ह्वैगयाई !

मेरु पैली लेखी  कबिता  ....

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छोरी

तू इतगा सुंदर छै  छोरी मि क्या बोलों
हर्चिगे म्यारा पासा का सबि  आखर
मि ऊथे कख खोज्यूँ 

एक बारी देखि ले छोरी  इन नरगिसी आंख्युं न
इन आंख्युं  की भाषा मि बी
जणदू  छौ  छोरी

ते दगडी मेरी पैली  भेंट मिथे  इन लगणी  छे 
सात  जळमा  कि  कुई मेरी  अपुरी
आस छे तू छोरी

तू इतगा सुंदर छै  ........

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मेरी बोई

बोई मेरी , मेरी बोई
अबि बी जग्वाळ कनि चा
यखुली मां बैथि बैथि
ऊ मेरु  ख़ैयाळ कनि चा

अफी स्वाळ  कैकी वा
अफी  जवाब देणी चा
आँखु का आंसु पोस्दा पोस्दा
वा मिथे रैबार  देणी चा

माया विंकी ईनि घहरी तिसी
विंकी सौली मां ऐ उमरी बीति
फिर बी रैगे मेर गौलि  तिसी
आँखि रैगे बल जी मेर भिजि

आज आई विंकी खुद खूब दौड़ी
वा आई सबि धाणी थे झट छोड़ी
कपला मां दिण विंन  बुकी
मलास  माथा छूछा कैकि

बोई मेरी , मेरी बोई  ......

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अबी बी रखियुं छ धरियुं

अबी बी रखियुं छ धरियुं
जख हमल बालपना मां लुकाई छ्या
माया कि गेड़ी बी ऊनि छ्या
जन हमल गेंठी छ्या

छ्वट बटी पाली जैथे
अब ऊ खूब बड़ो ह्वैगे होलु
इंकुलवास को मेरु डालो
खूब अब ऊ मौलीगे होलु 

अचाणचक हात आई
खत कैरी कि ऊ निसडी गैई
नीयती अगन्या पिच्न्या
जीबन यन ही मजबूर राई

चिमनी झालौ कलैग्याई
मुखड़ी का सुपनिया हैंसदा राई
अपणू पुटक पळण खातिर
क्दगा राति बुकि सैईग्याई

अबी बी रखियुं छ धरियुं

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अबी बी रखियुं छ धरियुं

अबी बी रखियुं छ धरियुं
जख हमल बालपना मां लुकाई छ्या
माया कि गेड़ी बी ऊनि छ्या
जन हमल गेंठी छ्या

छ्वट बटी पाली जैथे
अब ऊ खूब बड़ो ह्वैगे होलु
इंकुलवास को मेरु डालो
खूब अब ऊ मौलीगे होलु 

अचाणचक हात आई
खत कैरी कि ऊ निसडी गैई
नीयती अगन्या पिच्न्या
जीबन यन ही मजबूर राई

चिमनी झालौ कलैग्याई
मुखड़ी का सुपनिया हैंसदा राई
अपणू पुटक पळण खातिर
क्दगा राति बुकि सैईग्याई

अबी बी रखियुं छ धरियुं

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