Author Topic: Bal Krishana Dhyani's Poem on Uttarakhand-कविता उत्तराखंड की बालकृष्ण डी ध्यानी  (Read 63370 times)

devbhumi

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तेर माया परभा

इन बी न उन बी
जन बी न तन बी
रटन लग्युं तेरु नौ परभा
जपण लग्युं तेरु नौ परभा

जख बी तू तख बी
यख बी तू वख बी 
ऐ आंख्युं रिटन लगि तेर मुखड़ी परभा
फिरण लगि तेर मुखड़ी परभा

सुधि बी तू मुंदी बी
ऊब बी तू ऊंदी बी
तै दगड हुन लगि मेर भेंट परभा
हुन लगि तेरु मेरु मेल परभा

कन इन ऐ माया छै
इन सैलु की छ्या छे
बरखा जनि मि बरखण लग्युं मेर परभा
ऐमा भिजण लग्युं मेर परभा

बालकृष्ण डी ध्यानी
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किलै कि

किलै कि छूट होलु मैसे मेरु गढ़देश
क्या ह्वैगे हुलि मैसे इन बात
सोच्नु छौं बैथी
इखलु मि आज  ऐ बिराण देश

कैरी छ लाख कोशिश मैन
जिकोड़ि थे मेरी नि मिली यख चैन
आंख्युं मां रैगयाई
बल बस तेर ख़ुद (औरी ऐ आँसूं )..... २

बल बिसरि तेर छुईयुं की याद आणि छे
मिथे औरृ तेर पास लाणी छे
रात मां सौंण कि यन बरखा लगै कि
नींदी मेर मैसे तू किलै (दूरजाणि छे )..... २

तेर बिगैर भौत कठिन छ यख जिबन
सास भी परण दगडी अब यन बोल्न लगीं छन
कब भेंट होलि अब कन भेंट होलि
टपरानु रैगे बल मेरु  (च्खलू जन मन )..... २

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जिकोडी मां भरयुं रुमक थे

जिकोडी मां भरयुं रुमक थे
जरा सी उजालु चैनु जी

कन के कटन ऐ जिबान थे
अबै तक कैन बी नि बिंगी  जी

अपड़ो सुख थे तू देख्दी जा
कांडों मां नंगी खुथी लेकि हिट दी जा

खिजाण लग्यां इन ऊकालों बाटों मां
सबै थे सिधु सैणु ऊन्दरु बाटों चैनु जी

अपड़ी ही पीड़ा मां सबै यख रैगैनी
जन सुबेर ह्वाई सुधि , ऊनि सुधि यखि रति बितगैनी जी

जिकोडी मां भरयुं रुमक थे  .....

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ख़्वाब मा मेर तू ऐग्याई

ख़्वाब मा मेर तू ऐग्याई
जीबन मा ऐगे मौल्यार
बाटों माँ पड्यां कांडों थे
तू दूर कैरग्याई
मुखड़ी परि छैगे  मेरु फुल्यार

देख नींदी मेर मेसे हर्चि ग्याई
मिथे चढ़िगे माया को बुखार
जाण कया होलो  भौल मां अब
कया देल वा मिथे अपड़ी पछाँण
ख़्वाब मा मेर तू ऐग्याई .....

तेरु मेरु रिस्ता कया छ
जीकोडी मेरी तू  मिथे बथा
अध बाटूँ तेर मेर भेंट ह्वैग्याई
भाग्या मां लिख्युं कया वेळ ह्वैजाण
ख़्वाब मा मेर तू ऐग्याई .....

आगास मां मिल लेखीयाळी
जीकोडी को मेरु सरयू  उल्यार
मेर पिऱती आली तेर नींदी मा
अपड़ी जीकोडी को खोली राखी दार
ख़्वाब मा मेर तू ऐग्याई .....

बालकृष्ण डी ध्यानी
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ब्याखुनि कु सैलु घाम     

गीत बनिगे पीढ़ा मेरि
जीकोडी कु धक धक  सूर
आंख्युं कि बरखा बरखि गे
माया गदनि बौगि गे सुर

कख दूर रैगैनि
गौं मेरा भांड्या दूर बिरड़ीगैनी
मिसळीगियु मि अजाणु  मां
माया कि इन झुठि दुकनियूं  मां

खुद ऐगे यख हिट दा हिट दा
जियु किलै तू यख  रामी गे
बंद कैरी कि आँखा बॉडी ऐल कया तू
जख मि जोंलु तख तू सुख देल कया

सुकि डालि मां फूटिगे
फिर मौली गे माया कु बसंत
ऐग्याई  मौल्यार बौडी कि
अंग्वाल लेकि बथों की फिर ह्वैग्याई स्पर्श

बालकृष्ण डी ध्यानी
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नि रैगे रे तू

नि रैगे रे तू पैलु जनु
सुदि सुदि खिक्लाट....२
तू किलै कि कनु
किलै कि कनु  ........

बौग  ह्वैजा जा फुंड़ चली जा तू
इन बेकार कि छुईं ना मिसा
छुईं ना मिसा ......

अजि अबी तक अग्णाणु छ्या मि
अपड़ो थे अगेट्णु,किबलाणु छ्या मि.
एक एक कैकि उपरि ह्वैनि
उपरि ह्वैनि ......

उच्च कन्दुर्या अब सबि ह्वैनि
उकाला चढै चढै सबि हफि गैनि
समासुम छ्या अब खुदेणु छु मि
अब खुदेणु छु मि ......

 नि रैगे रे,तू पैलु जनु

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सुबेर रति

सुबेर रति दिनभर तेरि बाति
तेरि बाति हो अ ......
दिनभर तेरि बाति सुबेर रति
सुबेर रति हो अ ......सुबेर रति

चौक मां तेरि पैजी
बोल्दी कया जी हे...हे जी...जी
रुमक देखणु  छैलु अब हैगे  भौळ
औरि दगड़्या सुबेर बणिक ऐजा तू घौर
सुबेर रति हो अ ......सुबेर रति

चखलूँ कि भीर भीर
बणिगे तू मेर तकदीर फिर...फिर
देख दूर दूर वै पहाड़ टूक
सोना की बणिगे तू मेर जंजीर
सुबेर रति हो अ ......सुबेर रति

बथों की फर फर
ठंडी खुदों कि तू सर...सर
दूर बगदी गदनि को उड़द फेस
तेर खुद फिर सुवा हेगे तेज
सुबेर रति हो अ ......सुबेर रति

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दुई दुनि चार रे गैल्या

दुई दुनि चार रे गैल्या
बल चार दुनि आठ
तिकड़म किलै कि कन रे भुला
सिदू सैणु जोंला उकळी कु माथा

दुई घड़ेक जुनि कु उजालो
फिर छे अंधेरि रात
रात भर हुंघर द्यूँला दुई भुला
कबित व्हाळी प्रभात

नि छ्याई बगत हात माँ कैकु
नि राळु ऊ अखेरा मां भी कै हात
रो रो कि क्या ह्वाळू रे भुला
भौल मां कया लुकयूं कैला जाण

दुई दुनि चार रे गैल्या
ऐ बात त अब मेरी मान
मान बिन कुच नि रालो यख
बल कर्म ही तेर पछाण.... २

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ऐ  कपला मां

कबि.....त
ऐ जादी या म्यारा कपला मां
ऐ बर्मंड कु ख़ैयाळ मां
खोप्डू कु ह्वैगे वार पार जी 
कुडू ना रे गे फुन्ग्डू गे उजाड़ जी

अबि.....त
पोटगी मां लगिं खूब भूक चा
ऐ बाना बाँदर,गौणी अब मि ह्वेग्युं सुंघर छौं
गौडू ,बल्द,भेन्सू,बाखुरु,भेरू   
कबि म्यारा हुँदा छया अब ह्वैगे पखेरू

सबि.....त
म्यार लिख्यां किताब जी ह्वेगे अब सब ब्याळ जी     
झरफर ..२ इन  ग्याई सरि उमरी खेल मां
कख लुकियूं गे ह्वलू ऊ घाम सुबेर कु कै देश मां
अब कख तज लेन लेकि दगडी निशास रे

जबै.....त
जीबन कु मेरु यु कमकाज जी
रीता रै गी खुथी भूंयां रीता रै गे तै अगास रे 
खिसैनी रैगे मयारू सरयो कर्मकांड जी
अड़कस्सी अटक्यूँ मेरु अबै दा ऐ परान जी

ऐ जादी या म्यारा कपला मां .........

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सबु  थे प्रणाम

सबु  थे प्रणाम
सेवा-सौंळि
बार तियोहर
मेरु रैबार मेरु पहाड़
सबु  थे प्रणाम  .....

कुल देबता कु ठों
बद्री-केदर कु गौं
भूंयां पड़ी कि म्यारू  छौं
म्यारा अपड़ा म्यारा  अजाण
सबु  थे प्रणाम  .....

ऐ  कांडा ऐ  फूल
वै बाटा उन्का दौड़
ऊ ऊकाल तैं उनद्वार 
मेरु पहाड़ मेरु घरबार
सबु  थे प्रणाम  .....

आणा जाणा वाळा रोड
ओँ छुट्यां सड़की का छोड
को कनु ह्वलू जोड तोड
मेरु घरबार मेरु सौंसार
सबु  थे प्रणाम  .....

सबु  थे प्रणाम    .....

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